बहिष्कृत हितकारिणी सभा

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बहिष्कृत हितकारिणी सभा अछूतों (दलित / अस्पृश्य) के उन्नती के लिए सामाजिक आंदोलन निर्माण करने की दृष्टिसे डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने २० जुलाई १९२३ को मुंबई में ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ की स्थापना की। सामाजिक और राजनैतिक दृष्टिसे अतिदीन, अतिपिडीत भारतीओं को समाज में औरोके बराबर लाना, यह इस सभा का प्रमुख ध्येय था। अछूतों (दलित) को समाज के बाहर रखकर, उन्हें नागरी, धार्मिक और राजनैतिक अधिकार दिए गए नहीं थे। उनके अधिकारों के प्रति दलितों में जागृती निर्माण करना यह डॉ. भीमराव आंबेडकर का उद्देश था। अपने समाज के तरफ से डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने सायमन कमिशन को एक पत्र सादर किया और उसमें भीमराव ने पिछडों के नामनिर्देशक तत्त्वों पर जगह आरक्षित रकने की मांग की। उसमें उन्होंने भूदल, नौदल और पोलिस खाते में पिछडों के लिए भरती करने की मांग की थी। बहिष्कृत हितकारिणी सभा के माध्यम से अछूतों के कल्याण के लिए पाठशाला, वसतिगृह और ग्रंथालयों शुरु किये गए।

सभा का शैक्षिक कार्य[संपादित करें]

बहिष्कृत हितकारिणी सभा का शिक्षा कार्य

निचली जाती के लोगों में शिक्षा का प्रसार होने और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिती सुधरे इसलिए डॉ. भीमराव आंबेडकर ने ‘बहिष्कृत हितकारिणी संघटना’ की स्थापना की थी। इस संघटना द्वारा सोलापूर में ४ जनवरी १९२५ में एक वसतिगृह सुरू करके दलित, गरीब छात्रों को निवास, भोजन, कपडे व शिक्षा संबंधी साधनसामग्री दी. डॉ. भीमराव आंबेडकर ने इस वसतिगृह को सोलापूर नगरपालिका की तरफ से रू. ४००००/– का अनुदान दिलवा दिया. इस संस्थाने ‘सरस्वती विलास’ नाम का मासिक और एक मुफ्त वाचनालय भी शुरू किया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कडिया[संपादित करें]