कथावत्थु

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त्रिपिटक

    विनय पिटक    
   
                                       
सुत्त-
विभंग
खन्धक परि-
वार
               
   
    सुत्त पिटक    
   
                                                      
दीघ
निकाय
मज्झिम
निकाय
संयुत्त
निकाय
                     
   
   
                                                                     
अंगुत्तर
निकाय
खुद्दक
निकाय
                           
   
    अभिधम्म पिटक    
   
                                                           
ध॰सं॰ विभं॰ धा॰क॰
पुग्॰
क॰व॰ यमक पट्ठान
                       
   
         

कथावत्थु (संस्कृत : कथावस्तु) स्थविरवादी बौद्ध ग्रन्थ है। यह स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा रचित है तथा इसका समय लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है।

परिचय[संपादित करें]

बुद्ध के महापरिनिर्वाण के १०० वर्ष बाद वज्जिपुत्तक भिक्षुओं ने संघ के अनुशासन का उल्लंघन किया और 'महासंघिक' नामक संप्रदाय की स्थापना की जिसमें पाँच और शाखाओं का उद्भव बाद में हुआ। पहले जिस बौद्ध धर्म को प्रथम संगीति में एक निश्चित रूप प्राप्त हुआ था, उसमें अशोक के समय तक आते-आते ११ संप्रदाय और उदित हो गए थे। इस प्रकार सब मिलाकर, ऐसा माना जाता है कि ई.पू. तीसरी शताब्दी तक बौद्ध धर्म में कुल १८ संप्रदाय अस्तित्व में आ चुके थे। इतने वैभिन्य और विवाद को देखकर मूल बौद्ध धर्म की स्थापना के लिए अशोक ने बुद्ध के महापरिनिर्वाण के २३६ वर्ष बाद २५३ अथवा २४६ ई.पू. में पाटलिपुत्र में बौद्ध भिक्षुओं की एक सभा बुलाई, जिसके सभापति स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स ने १८ निकायों में से केवल थेरवाद या स्थविरवाद को मूल बौद्ध धर्म मानकर शेष १७ निकायों के दार्शनिक सिद्धांतों का निराकरण किया और उसे कथावत्थुप्पकरण नामक ग्रंथ में प्रस्तुत किया। यह ग्रंथ उसी समय से अभिधम्मपिटक का अंग माना जाने लगा।

इस ग्रंथ में विरोधी संप्रदायों के २१६ सिद्धान्तों का खंडन है। इसे २३ अध्यायों में विभक्त किया गया है, किंतु उक्त विरोधी संप्रदायों का नामोल्लेख इसमें नहीं मिलता। उन सम्प्रदायों के नामों का पता पाँचवीं शताब्दी में आचार्य बुद्धघोष द्वारा लिखित 'कथावत्थु अट्ठकथा' (कथावस्तु अर्थकथा) नामक ग्रंथ से लगता है जिसमें निराकृत २१६ सिद्धांतों को १७ संप्रदायों से पृथक-पृथक रूप में संबद्ध भी किया गया है। कुछ विद्वानों का मत है कि कथावत्थु में कुछ अशोकपरवर्ती संप्रदायों के भी दार्शनिक सिद्धांतों का निराकरण मिलता है। यह तो पूर्णतया स्पष्ट है कथावत्थु में संप्रदायों के नामों का उल्लेख नहीं है। अतः यह अनुमान स्वाभाविक है कि मोग्गलिपुत्त तिस्स के समय में जो सिद्धांत जीवित थे, वे ही बाद में संप्रदाय रूप में विकसित हो गए। इस कथावत्थु का अनुवर्तन बाद में संप्रदाय रूप में विकसित हो गए। इस कथावत्थु का अनुवर्तन बाद के दीपवंस और महावंस जैसे ग्रंथों में मिलता है। प्रथम ईस्वी शताब्दी में रचित मिलिन्दपन्हो नाम के प्रसिद्ध बौद्ध ग्रंथ के उपदेष्टा भदंत नागसेन के ऊपर भी कथावत्थु का पर्याप्त प्रभाव माना जाता है। अनेक लोगों का मत है कि मिलिन्दपञ्हो के रचयिता भदंत नागसेन ही थे। इस प्रकार कथावत्थु का महत्व स्थविरवादी सिद्धांत, तद्विरोधी मतों के सैद्धांतिक परिचय, उनके उदय के इतिहास आदि की दृष्टि से सर्वथा स्वीकार्य है।

वग्ग[संपादित करें]

इसमें कुल २३ वग्ग (वर्ग) हैं।

पुग्गलकथा
परिहानिकथा
ब्रह्मचरियकथा
जहतिकथा
सब्बमत्थीतिकथा
अतीतक्खन्धादिकथा
एकच्चं अत्थीतिकथा
सतिपट्ठानकथा
हेवत्थिकथा
दुतियवग्गो
ततियवग्गो
चतुत्थवग्गो
पञ्चमवग्गो
छट्ठवग्गो
सत्तमवग्गो
अट्ठमवग्गो
नवमवग्गो
दसमवग्गो
एकादसमवग्गो
द्वादसमवग्गो
तेरसमवग्गो
चुद्दसमवग्गो
पन्नरसमवग्गो
सोळसमवग्गो
सत्तरसमवग्गो
अट्ठारसमवग्गो
एकूनवीसतिमवग्गो
वीसतिमवग्गो
एकवीसतिमवग्गो
बावीसतिमवग्गो
तेवीसतिमवग्गो

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]