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उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने धर्म प्रचारक नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र तथा यूनान तक भेजे । उसने इस काम के लिए अप् ने पुत्र ओर पुत्रि को यात्राओ पर भेजा था|
उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने धर्म प्रचारक नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र तथा यूनान तक भेजे । उसने इस काम के लिए अप् ने पुत्र ओर पुत्रि को यात्राओ पर भेजा था|
अशोक के धर्म प्रचारको मे सबसे ज्यदा सफलता उसके पुत्र महेन्द्र को मिली। उसके पुत्र महेन्द्र ने श्रीलन्का के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म मे दीक्षित किया,जिसने बौद्ध धर्म को अपना राज धर्म बना दिया। अशोक से प्रेरित होकर उसने अपनी उपाधि देवनामप्रिय रख लिया।
अशोक के धर्म प्रचारको मे सबसे ज्यदा सफलता उसके पुत्र महेन्द्र को मिली। उसके पुत्र महेन्द्र ने श्रीलन्का के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म मे दीक्षित किया,जिसने बौद्ध धर्म को अपना राज धर्म बना दिया। अशोक से प्रेरित होकर उसने अपनी उपाधि देवनामप्रिय रख लिया।
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== मृत्यु ==
== मृत्यु ==

08:38, 4 मार्च 2011 का अवतरण

साँचा:ज्ञानसन्दूक शासक

अशोक (राजकाल ईसापूर्व 273-232 ) प्राचीन भारत में मौर्य राजवंश का चक्रवर्ती राजा था । उसके समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफ़गानिस्तान तक पहुँच गया था । यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था । सम्राट अशोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जाना जाता है ।

जीवन के उत्तरार्ध में अशोक भगवान गौतम बुद्ध के भक्त हो गये और उन्ही की स्मृति मे उन्होने एक स्तम्भ खड़ा कर दिया जो आज भी नेपाल में उनके जन्मस्थल - लुम्बिनी - मे मायादेवी मन्दिर के पास अशोक स्तम्भ के रुप मे देखा जा सकता है । उसने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया ।

आरंभिक जीवन

अशोक मौर्य सम्राट बिन्दुसार तथा रानी धर्मा का पुत्र था । कहा जाता है कि धर्मा एक ब्राह्मण की बेटी थी । एक दिन उसको स्वप्न आया कि उसका बेटा एक बहुत बड़ा सम्राट बनेगा । उसके बाद उसे राजा बिन्दुसार ने अपनी रानी बना लिया । चुँकि धर्मा कोई क्षत्रिय कुल से नहीं थी अतः उसको कोई विशेष स्थान राजकुल में प्राप्त नहीं था । अशोक के कई भाई (सौतेले)-बहने थी । बचपन में उनमें कड़ी प्रतिस्पर्धा रहती थी । अशोक के बारे में कहा जाता है कि वो बचपन से सैन्य गतिविधियों में प्रवीण था । दो हज़ार वर्षों के पश्चात्, अशोक का प्रभाव एशिया मुख्यतः भारतीय उपमहाद्वीप में देखा जा सकता है। अशोक काल में उकेरा गया प्रतीतात्मक चिह्न, जिसे हम 'अशोक चिह्न' के नाम से भी जानते हैं, आज भारत का राष्ट्रीय चिह्न है। बौद्ध धर्म के इतिहास में गौतम बुद्ध के पश्चात् अशोक का ही स्थान आता है। The Ashoka chakra was built by Ashoka during his reign. Chakra is a Sanskrit word which also means cycle or self repeating process. The process it signifies is the cycle of time as how the world changes with time. The horse means accuracy and speed while the bull means hardwork.

साम्राज्य विस्तार

अशोक का ज्येष्ठ भाई सुसीम उस समय तक्षशिला का प्रांतपाल था । तक्षशिला में भारतीय-यूनानी मूल के बहुत लोग रहते थे । इससे वह क्षेत्र विद्रोह के लिए उपयुक्त था । सुसीम के अकुशल प्रशासन के कारण भी उस क्षेत्र में विद्रोह पनप उठा । राजा बिन्दुसार ने सुसीम के कहने पर राजकुमार अशोक को विद्रोह के दमन के लिए वहाँ भेजा । अशोक के आने की खबर सुनकर ही विद्रोहियों ने उपद्रव खत्म कर दिया और विद्रोह बिना किसी युद्ध के खत्म हो गया । हालांकि यहां पर बग़ावत एक बार फिर अशोक के शासनकाल में हुई थी पर इस बार उसे बलपूर्वक कुचल दिया गया ।

अशोक का राज्य

अशोक की इस प्रसिद्ध से उसके भाई सुसीम को सिंहासन न मिलने का खतरा बढ़ गया । उसने सम्राट बिंदुसार को कह के अशोक को निर्वास मे डाल दिया । अशोक कलिंग चला गया । वहां उसे मत्स्य कुमारी कौर्वकी से प्यार हो गया । हाल में मिले साक्ष्यों के अनुसार बाद में अशोक ने उसे तीसरी या दूसरी रानी बनाया था ।

इसी बीच उज्जैन में विद्रोह हो गया । उसे सम्राट ने निर्वासन से बुला विद्रोह को दबाने के लिए भेज दिया । हालाकि उसके सेनापतियों ने विद्रोह को दबा दिया पर उसकी पहचान गुप्त ही रखी गई क्योंकि मौर्यों द्वारा फैलाए गए गुप्तचर जाल से उसके बारे में पता चलने के बाद उसके भाई सुसीम द्वारा उसे मरवाए जाने का भय था । वह बौद्ध सन्यासियों के साथ रहा था । इसी दौरान उसे बौद्ध विधि-विधानों तथा शिक्षाओं का पता चला था । यहाँ पर एक सुन्दरी जिसका नाम देवी था से उसे प्रेम हो गया जिसे उसने स्वस्थ्य होने के बाद विवाह कर लिया ।

कुछ वर्षों के बाद सुसीम से तंग आ चुके लोगों ने अशोक को राजसिंहासन हथिया लेने के लिए प्रोत्साहित किया क्योंकि सम्राट बिन्दुसार वृद्ध तथा रुग्न हो चले थे । जब वह आशरम मे॒ थे तब उन्को यह खबर् मिली की उनकी मा को उनके सोतेले भाईयो ने मार दाला। तब वह राज महल मे जाकार अपने सारे सोतेले भाईयो को मार दाला और सम्रात बने।


सत्ता सम्हालते ही अशोक ने पूर्व तथा पश्चिम दोनो दिशा में अपना साम्राज्य फैलाना शुरु किया । उसने आधुनिक असम से ईरान की सीमा तक साम्राज्य विस्तृत कर केवल आठ वर्षों में कर लिया ।


कलिंग की लड़ाई

कलिंग युद्ध उसके जीवन का एक निर्णायक मोड़ साबित हुई । इस युद्ध में हुए नरसंहार से उसका मन ग्लानि से भर गया और उसने बौद्ध धर्म को अंगीकार कर लिया । च्ह्क द्क्फ फ्ज्फ ल्;सल्द्च क्फ द्क्क्द्क्न्क्ष्च्

बौद्ध धर्म अंगीकरण

तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया मध्य प्रदेश में साँची का स्तूप

कलिंग युद्ध में हुई क्षति तथा नरसंहार से उसका मन लड़ाई करने से उब गया और वो अपने कृत्य से व्यथित हो गया । इसी शोक में वो बुद्ध के उपदेशों के करीब आता गया और उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिय ।

बौद्ध धर्म स्वीकीर करने के बाद उसने उसको अपने जीवन मे उतारने की कोशिश भी की । उसने शिकार तथा पशु-हत्या करना छोड़ दिया । उसने ब्राह्मणो तथा अन्य सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान दिया । जनकल्याण के लिए उसने चिकित्यालय, पाठशाला तथा सड़को आदि का निर्माण करवाया ।

उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने धर्म प्रचारक नेपाल, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, मिस्र तथा यूनान तक भेजे । उसने इस काम के लिए अप् ने पुत्र ओर पुत्रि को यात्राओ पर भेजा था| अशोक के धर्म प्रचारको मे सबसे ज्यदा सफलता उसके पुत्र महेन्द्र को मिली। उसके पुत्र महेन्द्र ने श्रीलन्का के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म मे दीक्षित किया,जिसने बौद्ध धर्म को अपना राज धर्म बना दिया। अशोक से प्रेरित होकर उसने अपनी उपाधि देवनामप्रिय रख लिया।

नेपालके लुम्बिनिमें सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया स्तम्भ

मृत्यु

अशोक ने लगभग 40 वर्षों तक शासन किया जिसके बाद लगभग 232 ईसापूर्व में उसकी मृत्यु हुई । उसके कई संतान तथा पत्नियां थीं पर उनके बारे में अधिक पता नहीं है । उसके पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा ने बौद्ध धर्म के प्रचार में योगदान दिया ।

अशोक की मृत्यु के बाद मौर्य राजवंश लगभग 60 वर्षों तक चला ।

अवशेष

मगध तथा भारतीय उपमहाद्वीप में कई जगहों पर उसके अवशेष मिले हैं । पटना (पाटलिपुत्र) के पास कुम्हरार में अशोककालीन अवशेष मिले हैं । लुम्बिनी में भी अशोक स्तंभ देखा जा सकता है । कर्नाटक के कई स्थानों पर उसके धर्मोपदेशों के शिलोत्कीर्ण अभिलेख मिले हैं ।