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प्राकृतिक विविधताओं से भरा '''मालदा''' [[पश्चिम बंगाल]] में स्थित है। यह [[मालदा जिला]] का मुख्यालय है। इसे '''इंग्लिश बाजार''' के नाम से भी जाना जाता है। पर्यटक यहां पर घने जंगलों और नदियों के खूसबूरत दृश्य देख सकते हैं। मालदा के जंगलों और नदियों के मनोहारी दृश्य देखना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है क्योंकि जंगलों में सैर के समय वह अनेक प्रजाति के आकर्षक पेड़-पौधे और वन्य जीवों को देख सकते हैं। इन जंगलों में नीम, इमली, पीपल, आम और बांस के झुण्ड बहुतायत में पाए जाते हैं। जंगलों की भांति नदियों की मनोहर झलकियां देखना भी पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। पर्यटक इन नदियों में विभिन्न प्रजातियों की मछलियों को देख सकते हैं। इन प्रजातियों में रोहू, काटला, चीतल, बोएल, मगुर, शोल, हिलिषा, पाबदा और अनेक प्रकार के केकड़े प्रमुख हैं। |
प्राकृतिक विविधताओं से भरा '''मालदा''' [[पश्चिम बंगाल]] में स्थित है। यह [[मालदा जिला]] का मुख्यालय है। इसे '''इंग्लिश बाजार''' के नाम से भी जाना जाता है। पर्यटक यहां पर घने जंगलों और नदियों के खूसबूरत दृश्य देख सकते हैं। मालदा के जंगलों और नदियों के मनोहारी दृश्य देखना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है क्योंकि जंगलों में सैर के समय वह अनेक प्रजाति के आकर्षक पेड़-पौधे और वन्य जीवों को देख सकते हैं। इन जंगलों में नीम, इमली, पीपल, आम और बांस के झुण्ड बहुतायत में पाए जाते हैं। जंगलों की भांति नदियों की मनोहर झलकियां देखना भी पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। पर्यटक इन नदियों में विभिन्न प्रजातियों की मछलियों को देख सकते हैं। इन प्रजातियों में रोहू, काटला, चीतल, बोएल, मगुर, शोल, हिलिषा, पाबदा और अनेक प्रकार के केकड़े प्रमुख हैं। |
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==प्रमुख आकर्षण== |
== प्रमुख आकर्षण == |
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===रामकेली=== |
=== रामकेली === |
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मालदा से 14 कि.मी. की दूरी पर एक छोटा-सा गांव रामकेली स्थित है। यह बंगाल के महान धर्म सुधारक श्री चैतन्य के लिए प्रसिद्ध है। वह जब वृंदावन जा रहे थे तब इसी गांव में रूके थे। यहां पर तमल और कदम्ब वृक्ष का अनुठा मेल भी देखा जा सकता है। कहा जाता है कि श्री चैतन्य ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। इस वृक्ष के नीचे एक पत्थर भी है जिस पर उनके पदचिन्ह देखे जा सकते हैं। यहां पर एक मन्दिर का निर्माण भी किया गया है जो श्री चैतन्य को समर्पित है। मन्दिर के पास आठ कुण्ड है जो बहुत आकर्षक हैं। इन कुण्डों के नाम रूपसागर, श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, ललितकुण्ड, विशाखाकुण्ड, सुरभि कुण्ड, रंजाकुण्ड और इन्दुलेखाकुण्ड है। ज्येष्ठ संक्रान्ति के दिन श्री चैतन्य को याद करने के लिए यहां एक सप्ताह के लिए भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मेले में स्थानीय निवासी और पर्यटक बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं। |
मालदा से 14 कि.मी. की दूरी पर एक छोटा-सा गांव रामकेली स्थित है। यह बंगाल के महान धर्म सुधारक श्री चैतन्य के लिए प्रसिद्ध है। वह जब वृंदावन जा रहे थे तब इसी गांव में रूके थे। यहां पर तमल और कदम्ब वृक्ष का अनुठा मेल भी देखा जा सकता है। कहा जाता है कि श्री चैतन्य ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। इस वृक्ष के नीचे एक पत्थर भी है जिस पर उनके पदचिन्ह देखे जा सकते हैं। यहां पर एक मन्दिर का निर्माण भी किया गया है जो श्री चैतन्य को समर्पित है। मन्दिर के पास आठ कुण्ड है जो बहुत आकर्षक हैं। इन कुण्डों के नाम रूपसागर, श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, ललितकुण्ड, विशाखाकुण्ड, सुरभि कुण्ड, रंजाकुण्ड और इन्दुलेखाकुण्ड है। ज्येष्ठ संक्रान्ति के दिन श्री चैतन्य को याद करने के लिए यहां एक सप्ताह के लिए भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मेले में स्थानीय निवासी और पर्यटक बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं। |
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===बारोद्वारी मस्जिद=== |
=== बारोद्वारी मस्जिद === |
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बारोद्वारी मस्जिद को बोरो सोना मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। यह मस्जिद रामकेली गांव की दक्षिण दिशा में स्थित है। यह गौड़ की सबसे बड़ी और भव्य मस्जिद है। बारोद्वारी मस्जिद चौकोर है और इसमें बारह द्वार हैं। इस कारण इसका नाम बारोद्वारी मस्जिद रखा गया है। इसका निर्माण अलाउद्दीन हुसैन शाह ने शुरू किया था और इसका निर्माण कार्य उसके पुत्र नसीरउद्दीन नुसरत शाह के शासनकाल में 1526 ई. में खत्म हुआ था। यह मस्जिद अरबी-भारतीय निर्माण कला का बेहतरीन नमूना है। स्थानीय लोगों के साथ पर्यटकों में भी यह मस्जिद बहुत लोकप्रिय है। |
बारोद्वारी मस्जिद को बोरो सोना मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। यह मस्जिद रामकेली गांव की दक्षिण दिशा में स्थित है। यह गौड़ की सबसे बड़ी और भव्य मस्जिद है। बारोद्वारी मस्जिद चौकोर है और इसमें बारह द्वार हैं। इस कारण इसका नाम बारोद्वारी मस्जिद रखा गया है। इसका निर्माण अलाउद्दीन हुसैन शाह ने शुरू किया था और इसका निर्माण कार्य उसके पुत्र नसीरउद्दीन नुसरत शाह के शासनकाल में 1526 ई. में खत्म हुआ था। यह मस्जिद अरबी-भारतीय निर्माण कला का बेहतरीन नमूना है। स्थानीय लोगों के साथ पर्यटकों में भी यह मस्जिद बहुत लोकप्रिय है। |
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===दाखिल दरवाजा=== |
=== दाखिल दरवाजा === |
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दाखिल दरवाजा बहुत खूबसूरत है। इस दरवाजे का निर्माण 1425 ई. में लाल ईटों से किया गया और टेराकोटा नक्काशी से सजाया गया है। यह दरवाजा 21 मी. ऊंचा और 34.5 मी. चौड़ा है। दरवाजे के चारों कोनों पर पांच मंजिला इमारतों का निर्माण किया गया है जो इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगाती हैं। इसकी दक्षिण-पूर्व दिशा में पर्यटक एक पुराने महल के अवशेष भी देख सकते हैं। प्राचीन काल में यहां से तोप के गोले दागे जाते थे। इस कारण इसे सलामी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है। |
दाखिल दरवाजा बहुत खूबसूरत है। इस दरवाजे का निर्माण 1425 ई. में लाल ईटों से किया गया और टेराकोटा नक्काशी से सजाया गया है। यह दरवाजा 21 मी. ऊंचा और 34.5 मी. चौड़ा है। दरवाजे के चारों कोनों पर पांच मंजिला इमारतों का निर्माण किया गया है जो इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगाती हैं। इसकी दक्षिण-पूर्व दिशा में पर्यटक एक पुराने महल के अवशेष भी देख सकते हैं। प्राचीन काल में यहां से तोप के गोले दागे जाते थे। इस कारण इसे सलामी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है। |
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===फिरोज मीनार=== |
=== फिरोज मीनार === |
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दाखिल दरवाजे से 1 कि.मी. की दूरी पर फिरोज मीनार स्थित है। इसे पीर-आशा मीनार और चिरागदानी नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण सुल्तान सैफउद्दीन फिरोज शाह ने 1485-89 ई. में कराया था। इस मीनार में पांच मंजिल हैं। जिनमें से निचली तीन मंजिलों के बारह पट हैं और ऊपर की दो मंजिल गोल हैं। मीनार के ऊपरी तल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। इस मीनार को टेराकोटा नक्काशी से सजाया गया है। यह मीनार तुगलक निर्माण कला का जीता-जागता गवाह है। |
दाखिल दरवाजे से 1 कि.मी. की दूरी पर फिरोज मीनार स्थित है। इसे पीर-आशा मीनार और चिरागदानी नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण सुल्तान सैफउद्दीन फिरोज शाह ने 1485-89 ई. में कराया था। इस मीनार में पांच मंजिल हैं। जिनमें से निचली तीन मंजिलों के बारह पट हैं और ऊपर की दो मंजिल गोल हैं। मीनार के ऊपरी तल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। इस मीनार को टेराकोटा नक्काशी से सजाया गया है। यह मीनार तुगलक निर्माण कला का जीता-जागता गवाह है। |
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===चमकती मस्जिद=== |
=== चमकती मस्जिद === |
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चमकती मस्जिद को चीका मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण सुल्तान युसूफ शाह ने 1475 ई. में कराया था। बहुत पहले यहां पर चमगादड़ रहते थे इस कारण इसका नाम चमकती मस्जिद रखा गया। चमकती मस्जिद का गुम्बद बहुत खूबसूरत है और इसे बेहतरीन नक्काशी से सजाया गया है। इस मस्जिद की वास्तु कला हिन्दू मन्दिरों की वास्तु कला से मेल खाती है क्योंकि इसकी दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। |
चमकती मस्जिद को चीका मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण सुल्तान युसूफ शाह ने 1475 ई. में कराया था। बहुत पहले यहां पर चमगादड़ रहते थे इस कारण इसका नाम चमकती मस्जिद रखा गया। चमकती मस्जिद का गुम्बद बहुत खूबसूरत है और इसे बेहतरीन नक्काशी से सजाया गया है। इस मस्जिद की वास्तु कला हिन्दू मन्दिरों की वास्तु कला से मेल खाती है क्योंकि इसकी दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। |
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===लूको चूरी द्वार=== |
=== लूको चूरी द्वार === |
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कदम-रसूल मस्जिद के पास स्थित लूको चूरी द्वार को लाख छिपी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण शाह शुजा ने 1655 ई. में मुगल शैली में कराया था। कहा जाता है शाह शुजा यहां पर अपनी बेगमों के साथ लुका-छिपी खेला करते थे इसीलिए इसका लूको चूरी रखा गया। अन्य इतिहासकारों के अनुसार यह माना जाता है कि इसका निर्माण अलाउद्दीन हुसैन से 1522 ई. में कराया था। लूको चूरी का वास्तु-शास्त्र अदभूत है जिसे देखने के लिए पर्यटक प्रतिवर्ष यहां आते हैं। |
कदम-रसूल मस्जिद के पास स्थित लूको चूरी द्वार को लाख छिपी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण शाह शुजा ने 1655 ई. में मुगल शैली में कराया था। कहा जाता है शाह शुजा यहां पर अपनी बेगमों के साथ लुका-छिपी खेला करते थे इसीलिए इसका लूको चूरी रखा गया। अन्य इतिहासकारों के अनुसार यह माना जाता है कि इसका निर्माण अलाउद्दीन हुसैन से 1522 ई. में कराया था। लूको चूरी का वास्तु-शास्त्र अदभूत है जिसे देखने के लिए पर्यटक प्रतिवर्ष यहां आते हैं। |
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==आवागमन== |
== आवागमन == |
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;वायु मार्ग |
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पर्यटकों की सुविधा के लिए कोलकाता में [[कोलकाता विमानक्षेत्र|हवाई अड्डे]] का निर्माण किया गया है। हवाई अड्डे से पर्यटक बसों व टैक्सियों द्वारा आसानी से मालदा तक पहुंच सकते हैं। |
पर्यटकों की सुविधा के लिए कोलकाता में [[कोलकाता विमानक्षेत्र|हवाई अड्डे]] का निर्माण किया गया है। हवाई अड्डे से पर्यटक बसों व टैक्सियों द्वारा आसानी से मालदा तक पहुंच सकते हैं। |
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पश्चिम बंगाल में स्थित मालदा पहुंचने के लिए सड़कमार्ग भी काफी अच्छा विकल्प है। राष्ट्रीय राजमार्ग 34 से बसों और टैक्सियों द्वारा पर्यटक आसानी से मालदा तक पहुंच सकते हैं। |
पश्चिम बंगाल में स्थित मालदा पहुंचने के लिए सड़कमार्ग भी काफी अच्छा विकल्प है। राष्ट्रीय राजमार्ग 34 से बसों और टैक्सियों द्वारा पर्यटक आसानी से मालदा तक पहुंच सकते हैं। |
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== संदर्भ== |
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== बाहरी सूत्र== |
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* [http://malda.nic.in/ आधिकारिक जालस्थल] |
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{{मालदा जिला}} |
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[[bn:ইংলিশবাজার]] |
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[[new:ईंग्लिश बजार]] |
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[[ru:Малда]] |
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[[sv:English Bazar]] |
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[[vi:English Bazar]] |
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07:08, 28 सितंबर 2010 का अवतरण
मालदा टाउन इंग्लिश बाज़ार | |||||
— शहर — | |||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||
देश | भारत | ||||
राज्य | पश्चिम बंगाल | ||||
ज़िला | मालदा | ||||
जनसंख्या | 161,448 (2001 के अनुसार [update]) | ||||
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
• 17 मीटर (56 फी॰) | ||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: malda.nic.in/ |
निर्देशांक: 25°00′N 88°09′E / 25.00°N 88.15°E प्राकृतिक विविधताओं से भरा मालदा पश्चिम बंगाल में स्थित है। यह मालदा जिला का मुख्यालय है। इसे इंग्लिश बाजार के नाम से भी जाना जाता है। पर्यटक यहां पर घने जंगलों और नदियों के खूसबूरत दृश्य देख सकते हैं। मालदा के जंगलों और नदियों के मनोहारी दृश्य देखना पर्यटकों को बहुत पसंद आता है क्योंकि जंगलों में सैर के समय वह अनेक प्रजाति के आकर्षक पेड़-पौधे और वन्य जीवों को देख सकते हैं। इन जंगलों में नीम, इमली, पीपल, आम और बांस के झुण्ड बहुतायत में पाए जाते हैं। जंगलों की भांति नदियों की मनोहर झलकियां देखना भी पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। पर्यटक इन नदियों में विभिन्न प्रजातियों की मछलियों को देख सकते हैं। इन प्रजातियों में रोहू, काटला, चीतल, बोएल, मगुर, शोल, हिलिषा, पाबदा और अनेक प्रकार के केकड़े प्रमुख हैं।
प्रमुख आकर्षण
रामकेली
मालदा से 14 कि.मी. की दूरी पर एक छोटा-सा गांव रामकेली स्थित है। यह बंगाल के महान धर्म सुधारक श्री चैतन्य के लिए प्रसिद्ध है। वह जब वृंदावन जा रहे थे तब इसी गांव में रूके थे। यहां पर तमल और कदम्ब वृक्ष का अनुठा मेल भी देखा जा सकता है। कहा जाता है कि श्री चैतन्य ने इसी वृक्ष के नीचे तपस्या की थी। इस वृक्ष के नीचे एक पत्थर भी है जिस पर उनके पदचिन्ह देखे जा सकते हैं। यहां पर एक मन्दिर का निर्माण भी किया गया है जो श्री चैतन्य को समर्पित है। मन्दिर के पास आठ कुण्ड है जो बहुत आकर्षक हैं। इन कुण्डों के नाम रूपसागर, श्यामकुण्ड, राधाकुण्ड, ललितकुण्ड, विशाखाकुण्ड, सुरभि कुण्ड, रंजाकुण्ड और इन्दुलेखाकुण्ड है। ज्येष्ठ संक्रान्ति के दिन श्री चैतन्य को याद करने के लिए यहां एक सप्ताह के लिए भव्य मेले का आयोजन भी किया जाता है। इस मेले में स्थानीय निवासी और पर्यटक बड़े उत्साह के साथ भाग लेते हैं।
बारोद्वारी मस्जिद
बारोद्वारी मस्जिद को बोरो सोना मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। यह मस्जिद रामकेली गांव की दक्षिण दिशा में स्थित है। यह गौड़ की सबसे बड़ी और भव्य मस्जिद है। बारोद्वारी मस्जिद चौकोर है और इसमें बारह द्वार हैं। इस कारण इसका नाम बारोद्वारी मस्जिद रखा गया है। इसका निर्माण अलाउद्दीन हुसैन शाह ने शुरू किया था और इसका निर्माण कार्य उसके पुत्र नसीरउद्दीन नुसरत शाह के शासनकाल में 1526 ई. में खत्म हुआ था। यह मस्जिद अरबी-भारतीय निर्माण कला का बेहतरीन नमूना है। स्थानीय लोगों के साथ पर्यटकों में भी यह मस्जिद बहुत लोकप्रिय है।
दाखिल दरवाजा
दाखिल दरवाजा बहुत खूबसूरत है। इस दरवाजे का निर्माण 1425 ई. में लाल ईटों से किया गया और टेराकोटा नक्काशी से सजाया गया है। यह दरवाजा 21 मी. ऊंचा और 34.5 मी. चौड़ा है। दरवाजे के चारों कोनों पर पांच मंजिला इमारतों का निर्माण किया गया है जो इसकी खूबसूरती में चार-चांद लगाती हैं। इसकी दक्षिण-पूर्व दिशा में पर्यटक एक पुराने महल के अवशेष भी देख सकते हैं। प्राचीन काल में यहां से तोप के गोले दागे जाते थे। इस कारण इसे सलामी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है।
फिरोज मीनार
दाखिल दरवाजे से 1 कि.मी. की दूरी पर फिरोज मीनार स्थित है। इसे पीर-आशा मीनार और चिरागदानी नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण सुल्तान सैफउद्दीन फिरोज शाह ने 1485-89 ई. में कराया था। इस मीनार में पांच मंजिल हैं। जिनमें से निचली तीन मंजिलों के बारह पट हैं और ऊपर की दो मंजिल गोल हैं। मीनार के ऊपरी तल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। इस मीनार को टेराकोटा नक्काशी से सजाया गया है। यह मीनार तुगलक निर्माण कला का जीता-जागता गवाह है।
चमकती मस्जिद
चमकती मस्जिद को चीका मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण सुल्तान युसूफ शाह ने 1475 ई. में कराया था। बहुत पहले यहां पर चमगादड़ रहते थे इस कारण इसका नाम चमकती मस्जिद रखा गया। चमकती मस्जिद का गुम्बद बहुत खूबसूरत है और इसे बेहतरीन नक्काशी से सजाया गया है। इस मस्जिद की वास्तु कला हिन्दू मन्दिरों की वास्तु कला से मेल खाती है क्योंकि इसकी दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरें देखी जा सकती हैं।
लूको चूरी द्वार
कदम-रसूल मस्जिद के पास स्थित लूको चूरी द्वार को लाख छिपी दरवाजे के नाम से भी जाना जाता है। इस मस्जिद का निर्माण शाह शुजा ने 1655 ई. में मुगल शैली में कराया था। कहा जाता है शाह शुजा यहां पर अपनी बेगमों के साथ लुका-छिपी खेला करते थे इसीलिए इसका लूको चूरी रखा गया। अन्य इतिहासकारों के अनुसार यह माना जाता है कि इसका निर्माण अलाउद्दीन हुसैन से 1522 ई. में कराया था। लूको चूरी का वास्तु-शास्त्र अदभूत है जिसे देखने के लिए पर्यटक प्रतिवर्ष यहां आते हैं।
आवागमन
- वायु मार्ग
पर्यटकों की सुविधा के लिए कोलकाता में हवाई अड्डे का निर्माण किया गया है। हवाई अड्डे से पर्यटक बसों व टैक्सियों द्वारा आसानी से मालदा तक पहुंच सकते हैं।
- रेल मार्ग
मालदा भारत के विभिन्न भागों से रेल मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। पर्यटक कोलकाता से जनशताब्दी एक्सप्रेस द्वारा, दिल्ली से ब्रह्मपुत्र मेल द्वारा और बम्बई से दादर-गुवाहटी एक्सप्रेस द्वारा आसानी से मालदा तक पहुंच सकते हैं।
- सड़क मार्ग
पश्चिम बंगाल में स्थित मालदा पहुंचने के लिए सड़कमार्ग भी काफी अच्छा विकल्प है। राष्ट्रीय राजमार्ग 34 से बसों और टैक्सियों द्वारा पर्यटक आसानी से मालदा तक पहुंच सकते हैं।