"चीनी ज्योतिष": अवतरणों में अंतर

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चीन में ज्योतिष का इतिहास पाँच हजार वर्ष से अधिक पुराना है। वहाँ के मनीषियों ने अपनी ज्योतिष विद्या को पौर्वात्य देशों में विस्तारित किया है। भारत ही नहीं, विश्व के अलग-अलग भू-भागों में मानव-सभ्यता और संस्कृति समानान्तर रूप से साथ-साथ जन्मीं और विकसित हुई हैं। मानव-विकास की गाथा अनबूझ रहस्यों की परतें खोलने कि दिशा में प्रेरित किया। रहस्य की परत-दर-परत खोलते हुए मानव अतल गहराईयों में उतरता चला गया। फलस्वरूप विकास और विज्ञान निरन्तर बढ़ता गया। तथाकथित ज्ञान बहुरूपों में प्रकट हुआ। विश्व के किसी भी भू-भाग में जन्मने और विकसित होनेवाला चाहे धर्म हो, योग हो, दर्शन-मनोविज्ञान हो,
चीन में ज्योतिष का इतिहास पाँच हजार वर्ष से अधिक पुराना है। वहाँ के मनीषियों ने अपनी ज्योतिष विद्या को पौर्वात्य देशों में विस्तारित किया है। भारत ही नहीं, विश्व के अलग-अलग भू-भागों में मानव-सभ्यता और संस्कृति समानान्तर रूप से साथ-साथ जन्मीं और विकसित हुई हैं। मानव-विकास की गाथा अनबूझ रहस्यों की परतें खोलने कि दिशा में प्रेरित किया। रहस्य की परत-दर-परत खोलते हुए मानव अतल गहराईयों में उतरता चला गया। फलस्वरूप विकास और विज्ञान निरन्तर बढ़ता गया। तथाकथित ज्ञान बहुरूपों में प्रकट हुआ। विश्व के किसी भी भू-भाग में जन्मने और विकसित होनेवाला चाहे धर्म हो, योग हो, दर्शन-मनोविज्ञान हो, वेद-वेदांग या ज्योतिष या अन्य कोई विधा हो, उसका मूल्य उदेश्य आत्म-ज्ञान प्राप्त करना, उसकी दिशा में बढ़ना और बढ़ते जाना ही रहा है।
अध्यात्म का लक्ष्य तो यही है। विधा कोई भी हो, ये सब आत्मज्ञान की प्राप्ति हेतु मानव द्वारा किये गए शताब्दियों नहीं, सहस्राब्दियों के ज्ञान-पिपासु प्रयासों के साक्षात् प्रमाण हैं।

12:43, 22 अगस्त 2010 का अवतरण

चीन में ज्योतिष का इतिहास पाँच हजार वर्ष से अधिक पुराना है। वहाँ के मनीषियों ने अपनी ज्योतिष विद्या को पौर्वात्य देशों में विस्तारित किया है। भारत ही नहीं, विश्व के अलग-अलग भू-भागों में मानव-सभ्यता और संस्कृति समानान्तर रूप से साथ-साथ जन्मीं और विकसित हुई हैं। मानव-विकास की गाथा अनबूझ रहस्यों की परतें खोलने कि दिशा में प्रेरित किया। रहस्य की परत-दर-परत खोलते हुए मानव अतल गहराईयों में उतरता चला गया। फलस्वरूप विकास और विज्ञान निरन्तर बढ़ता गया। तथाकथित ज्ञान बहुरूपों में प्रकट हुआ। विश्व के किसी भी भू-भाग में जन्मने और विकसित होनेवाला चाहे धर्म हो, योग हो, दर्शन-मनोविज्ञान हो, वेद-वेदांग या ज्योतिष या अन्य कोई विधा हो, उसका मूल्य उदेश्य आत्म-ज्ञान प्राप्त करना, उसकी दिशा में बढ़ना और बढ़ते जाना ही रहा है। अध्यात्म का लक्ष्य तो यही है। विधा कोई भी हो, ये सब आत्मज्ञान की प्राप्ति हेतु मानव द्वारा किये गए शताब्दियों नहीं, सहस्राब्दियों के ज्ञान-पिपासु प्रयासों के साक्षात् प्रमाण हैं।