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पटना
पाटलिपुत्र, मगध
पाटलि का प्राचीन ग्राम[1]
—  राजधानी  —
Map of बिहार with पटना marked
भारत के मानचित्र पर बिहार अंकित
पटना की भारत में स्थिति
पटना का मानचित्र
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
क्षेत्र मगध
राज्य बिहार
मण्डल पटना
ज़िला पटना
पाटलिपुत्र छठी शताब्दी ई.पू.
महापौर संजय कुमार
संसदीय निर्वाचन क्षेत्र पटना निर्वाचन क्षेत्र
विधायक निर्वाचन क्षेत्र PATNA WEST(188), PATNA CENTRAL(189), PATNA EAST(190)
योजना एजेंसी PRDA
नागरिक पालिका PMC
वार्ड 72 wards
जनसंख्या
घनत्व
16,97,976[2] (14th) (2001 के अनुसार )
• 1,405/किमी2 (3,639/मील2)
लिंगानुपात 1.145 /
साक्षरता
• पुरुष
• महिला
63.82%
• 73.81%
• 52.17%
आधिकारिक भाषा(एँ) हिन्दी, मगही, मैथिली, भोजपुरी, उर्दु, अंग्रेज़ी
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)
3,202 कि.मी² (1,236 वर्ग मील)
• 53 मीटर (174 फी॰)
जलवायु
वर्षा
तापमान
• ग्रीष्म
• शीत
ETh (कॉपेन)
     1,000 mm (39.4 in)
     26 °C (79 °F)
     35 °C (95 °F)
     12 °C (54 °F)
Governing body बिहार सरकार
भारत सरकार
ISO 3166-2 IN-BR-PA
आधिकारिक जालस्थल: www.patna.nic.in

निर्देशांक: 25°36′40″N 85°08′38″E / 25.611°N 85.144°E / 25.611; 85.144


पटना भारत में बिहार प्रान्त की राजधानी है। पटना का प्राचीन नाम पाटलीपुत्र था। आधुनिक पटना दुनिया के गिने-चुने उन विशेष प्रचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। अपने आप में इस शहर का एक अत्यंत ही ऐतिहासिक महत्व है|

ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है | पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र)जो गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) के संगम पर बसा था । उस पुस्तक के आकलनों के हिसाब से प्राचीन पटना (पलिबोथा) 9 मील (14.5 कि.मी.) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि.मी.) चौड़ा था ।

आधुनिक पटना बिहार राज्य की राजधानी है और गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है| जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है । यहां पर पावन गंगा नदी का स्वरुप नदी के जैसा न होकर सागर जैसा विराट दिखता है - अनन्त और अथाह! मन को प्रसन्न कर देनेवाली एक विशाल प्रवाह!

बारह लाख (12,00,000) की आवादी वाला यह शहर, लगभग 15 कि.मी. लम्बा और 7 कि.मी. चौड़ा है।

प्राचीन बौद्ध और जैन तीर्थस्थल वैशाली, राजगीर या राजगृह, नालन्दा, बोधगया और पावापुरी पटना शहर के आस पास ही अवस्थित हैं । पटना सिक्खों के लिये एक अत्यंत ही पवित्र स्थल है | सिक्खों के 10वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोबिंद सिंह का जन्म पटना में हीं हुआ था| प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमंदिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं|

पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को आज भी प्रदर्शित करते हैं |

एतिहासिक और प्रशासनिक महत्व के अतिरिक्त, पटना शिक्षा और चिकित्सा का भी एक प्रमुख केंद्र है । दीवालों से घिरा नगर का पुराना क्षेत्र, जिसे पटना सिटी के नाम से जाना जाता है, एक प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र है ।

नाम

पटना नाम पटनदेवी (एक हिन्दू देवी) से प्रचलित हुआ है । एक अन्य मत के अनुसार यह नाम संस्कृत के पत्तन से आया है जिसका अर्थ बन्दरगाह होता है। मौर्यकाल के यूनानी इतिहासकार मेगास्थनिज ने इस शहर को पालिबोथरा तथा चीनीयात्री फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है। यह ऐतिहासिक नगर पिछली दो सहस्त्राब्दियों में कई नाम पा चुका है - पाटलिग्राम, पाटलिपुत्र, पुष्पपुर, कुसुमपुर, अजीमाबाद और पटना। ऐसा समझा जाता है कि वर्तमान नाम शेरशाह सूरी के समय से प्रचलित हुआ।

इतिहास

मुख्य लेख: पटना का इतिहास

प्राचीन पटना (पूर्वनाम- पाटलिग्राम या पाटलिपुत्र) सोन और गंगा नदी के संगम पर स्थित था। सोन नदी आज से दो हजार वर्ष पूर्व अगमकुँआ से आगे गंगा मे मिलती थी। पाटलिग्राम मे गुलाब (पाटली का फूल ) काफी मात्रा में उपजाया जाता था। गुलाब के फूल से तरह-तरह के इत्र, दवा आदि बनाकर उनका व्यापार किया जाता था इसलिए इसका नाम पाटलिग्राम हो गया। लोककथाओं के अनुसार, राजा पत्रक को पटना का जनक कहा जाता है। उसने अपनी रानी पाटलि के लिये जादू से इस नगर का निर्माण किया। इसी कारण नगर का नाम पाटलिग्राम पड़ा । पाटलिपुत्र नाम भी इसी के कारण पड़ा । संस्कृत में पुत्र का अर्थ बेटा तथा ग्राम का अर्थ गांव होता है ।

पुरातात्विक अनुसंधानो के अनुसार पटना का इतिहास 490 ईसा पूर्व से होता है जब हर्यक वंश के शासक अजातशत्रु ने अपनी राजधानी राजगृह या राजगीर से बदलकर यहाँ स्थापित की। यह स्थान वैशाली के लिच्छवियों से संघर्ष में उपयुक्त होने के कारण राजगृह की अपेक्षा सामरिक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण था । उसने गंगा के किनारे यह स्थान चुना और अपना दुर्ग स्थापित कर लिया । उस समय से इस नगर का इतिहास लगातार बदलता रहा है। २५०० वर्षों से अधिक पुराना शहर होने का गौरव दुनिया के बहुत कम नगरों को हासिल है । बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध अपने अन्तिम दिनों में यहाँ से गुजरे थे । उनकी यह भविष्यवाणी थी कि नगर का भविष्य उज्जवल होगा, बाढ़ या आग के कारण नगर को खतरा बना रहेगा। मौर्य साम्राज्य के उत्कर्ष के बाद पाटलिपुत्र सत्ता का केन्द्र बन गया । चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़गानिस्तान तक फैल गया था। मौर्य काल के आरंभ में पाटलिपुत्र के अधिकांश राजमहल लकड़ियों से बने थे, पर सम्राट अशोक ने नगर को शिलाओं की संरचना मे तब्दील किया । चीन के फाहियान ने, जो कि सन् 399-414 तक भारत यात्रा पर था, अपने यात्रा-वृतांत में यहाँ के शैल संरचनाओं का जीवन्त वर्णन किया है । मेगास्थनीज़, जो कि एक यूनानी इतिहासकार और चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में एक राजदूत के नाते आया था, ने पाटलिपुत्र नगर का प्रथम लिखित विवरण दिया । बाद में, ज्ञान की खोज में कई चीनी यात्री यहाँ आए और उन्होने भी यहां के बारे में अपने यात्रा-वृतांतों में लिखा है ।

इसके पश्चात नगर पर गुप्त वंश सहित कई राजवंशों का राज रहा । इन राजाओं ने यहीं से भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया । गुप्त वंश के शासनकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है । पर इसके बाद नगर को वह गौरव नहीं मिल पाया जो एक समय मौर्य वंश या गुप्त वंश के समय प्राप्त था ।

गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद पटना का भविष्य काफी अनिश्चित रहा । 12 वीं सदी में बख़्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमा लिया और कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर डाला । पटना देश का सांस्कृतिक और राजनैतिक केन्द्र नहीं रहा ।

मुगलकाल में दिल्ली के सत्ताधारियों ने अपना नियंत्रण यहाँ बनाए रखा । इस काल में सबसे उत्कृष्ठ समय तब आया जब शेरशाह सूरी ने नगर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की । उसने गंगा के तीर पर एक किला बनाने की सोची । उसका बनाया कोई दुर्ग तो अभी नहीं है, पर अफ़ग़ान शैली में बना एक मस्जिद अभी भी है ।

मुगल बादशाह अकबर की सेना 1574 ईसवी में अफ़गान सरगना दाउद ख़ान को कुचलने पटना आया । अकबर के राज्य सचिव एवं आइने-अकबरी के लेखक अबुल फ़जल ने इस जगह को कागज, पत्थर तथा शीशे का सम्पन्न औद्योगिक केन्द्र के रूप में वर्णित किया है । पटना राइस के नाम से यूरोप में प्रसिद्ध चावल के विभिन्न नस्लों की गुणवत्ता का उल्लेख भी इन विवरणों में मिलता है । मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने प्रिय पोते मुहम्मद अज़ीम के अनुरोध पर 1704 में, शहर का नाम अजीमाबाद कर दिया, पर इस कालखंड में नाम के अतिरिक्त पटना में कुछ विशेष बदलाव नहीं आया। अज़ीम उस समय पटना का सूबेदार था । मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही पटना बंगाल के नबाबों के शासनाधीन हो गया जिन्होंने इस क्षेत्र पर भारी कर लगाया पर इसे वाणिज्यिक केन्द्र बने रहने की छूट दी । १७वीं शताब्दी में पटना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बन गया । अंग्रेज़ों ने 1620 में रेशम तथा कैलिको के व्यापार के लिये यहाँ फैक्ट्री खोली। जल्द ही यह सॉल्ट पीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) के व्यापार का केन्द्र बन गया जिसके कारण फ्रेंच और डच लोग से प्रतिस्पर्धा तेज हुई। बक्सर के निर्णायक युद्ध के बाद नगर इस्ट इंडिया कंपनी के अधीन चला गया और वाणिज्य का केन्द्र बना रहा ।

ईसवी सन 1912 में बंगाल विभाजन के बाद, पटना उड़ीसा तथा बिहार की राजधानी बना। आई एफ़ मुन्निंग ने पटना के प्रशासनिक भवनों का निर्माण किया। संग्रहालय, उच्च न्यायालय, विधानसभा भवन इत्यादि बनाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि पटना के नए भवनों के निर्माण में हासिल हुई महारथ दिल्ली के शासनिक क्षेत्र के निर्माण में बहुत काम आई। सन 1935 में उड़ीसा बिहार से अलग कर एक राज्य बना दिया गया । पटना राज्य की राजधानी बना रहा ।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नगर ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नील की खेती के लिये १९१७ में चम्पारण आन्दोलन तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन के समय पटना की भूमिका उल्लेखनीय रही है। आजादी के बाद पटना बिहार की राजधानी बना रहा। सन 2000 में झारखंड राज्य के अलग होने के बाद पटना बिहार की राजधानी पूर्ववत बना रहा।

भूगोल

पटना से देखने पर गंगा नदी का दृश्य

पटना गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित है। गंगा नदी नगर के साथ एक लम्बी तट रेखा बनाती है । पटना का विस्तार उत्तर-दक्षिण की अपेक्षा पूर्व-पश्चिम में बहुत अधिक है। नगर तीन ओर से गंगा, सोन नदी और पुनपुन नदी नदियों से घिरा है। नगर से ठीक उत्तर हाजीपुर के पास गंडक नदी भी गंगा में आ मिलती है। हाल के दिनों में पटना शहर का विस्तार पश्चिम की ओर अधिक हुआ है और यह दानापुर से जा मिला है।

महात्मा गांधी सेतु जो कि पटना से हाजीपुर को जोड़ने को लिये गंगा नदी पर उत्तर-दक्षिण की दिशा में बना एक पुल है, दुनिया का सबसे लम्बा सड़क पुल है । दो लेन वाले इस प्रबलित कंक्रीट पुल की लम्बाई 5575 मीटर है।

  • समुद्रतल से ऊँचाई: 53 मीटर
  • तापमान: गर्मी 43 °C - 21 °C, सर्दी 20 °C - 6 °C
  • औसत वर्षा : 1,200 मिलीमीटर

जलवायु

बिहार के अन्य भागों की तरह पटना में भी गर्मी का तापमान उच्च रहता है । गृष्म ऋतु में सीधा सूर्यातप तथा उष्ण तरंगों के कारण असह्य स्थिति हो जाती है। गर्म हवा से बनने वाली लू का असर शहर में भी मालूम पड़ता है। देश के शेष मैदानी भागों (यथा - दिल्ली) की अपेक्षा हलाँकि यह कम होता है। चार बड़ी नदियों के समीप होने के कारण नगर में आर्द्रता सालोभर अधिक रहती है ।

गृष्म ऋतु अप्रैल से आरंभ होकर जून- जुलाई के महीने में चरम पर होती है। तापमान 46 डिग्री तक पहुंच जाता है। जुलाई के मध्य में मॉनसून की झड़ियों से राहत पहुँचती है और वर्षा ऋतु का श्रीगणेश होता है। शीत ऋतु का आरंभ छठ पर्व के बाद यानी नवंबर से होता है। फरवरी में वसंत का आगमन होता है तथा होली के बाद मार्च में इसके अवसान के साथ ही ऋतु-चक्र पूरा हो जाता है।

जनसांख्यिकी

पटना की जनसंख्या वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार 12,85,470 है, जो 1991 में 9,17,243 थी । जनसंख्या का घनत्व 1132 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर तथा स्त्री पुरूष अनुपात है - 839 स्त्री प्रति 1,000 पुरूष। साक्षरता की दर पुरूषों में 62.9% तथा स्त्रियों में 50.8% है। (स्रोत -जिला प्राथमिक शिक्षा रिपोर्ट 2004, राष्ट्रीय शैक्षणिक नियोजन और प्रशासन संस्थान, नई दिल्ली)[1]

पटना में अपराध की दर अपेक्षाकृत कम है । मुख्य जेल बेउर में है ।

पटना में कई भाषाएँ तथा बोलियाँ बोली जाती हैं । हिन्दी एवं उर्दू राज्य की आधिकारिक भाषा है । अंग्रेजी का भी प्रयोग होता है। मगही यहाँ की स्थानीय बोली है। अन्य भाषाएँ, जो कि बिहार के अन्य भागों से आए लोगों की मातृभाषा है, में अंगिका, भोजपुरी, बज्जिका और मैथिली प्रमुख हैं। आंशिक प्रयोग में आनेवाली अन्य भाषाओं में बंग्ला और उड़िया का नाम लिया जा सकता है ।

पटना के मेमन को पाटनी मेमन कहते है और उनकी भाषा मेमनी भाषा का एक स्वरूप है ।

जनजीवन एवं स्त्रियों की दशा

पटना का मुख्य जनजीवन अंग तथा मिथिला प्रदेशों से काफी प्रभावित है। यह संस्कृति बंगाल से मिलती जुलती है। स्त्रियों का परिवार में सम्मान होता है तथा पारिवारिक निर्णयों में उनकी बात भी सुनी जाती है। यद्यपि स्त्रियां अभी तक घर के कमाऊ सदस्यों में नहीं हैं पर उनकी दशा उत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों से अच्छी है। भ्रूण हत्या की खबरें शायद ही सुनी जाती है लेकिन कही कहीं स्त्रियों का शोषण भी होता है। शिक्षा के मामले में स्त्रियों की तुलना में पुरूषों को तरजीह मिलती है।

विवाह

अधिकतर शादियां माता-पिता के द्वारा ही निर्धारित-निर्देशानुसार होती है । विवाद में संतान की इच्छा की मान्यता परिवार पर निर्भर करती है । विवाह को पवित्र माना जाता है औ‍र तलाक की बात सोचना (मुस्लिम परिवारों में भी) एक सामाजिक अपराध समझा जाता है। शादियाँ उत्सव की तरह आयोजित होती है और इस दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों की भरमार रहती है। कुछेक पर्वों को छोड़ दिया जाय तो वास्तव में विवाह के अवसर पर ही लोक-कला की सर्वोत्तम झांकी दिखाई देती है। इस अवसर पर किए गए खर्च और भोजों की अधिकता कई परिवारों में विपन्नता का कारण बनता है। दहेज का चलन ज्यादातर हिंदू एवं मुस्लिम परिवारों में बना हुआ है।

संस्कृति

पर्व-त्यौहार

दीवाली, दुर्गापूजा, होली, ईद, क्रिसमस, छठ आदि लोकप्रियतम पर्वो में से है ।

दशहरा

मुख्य लेख देखें: पटना में दशहरा

दशहरा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की लम्बी पर क्षीण होती परम्परा है ।इस परंपरा की शुरुआत वर्ष 1944 में मध्य पटना के गोविंद मित्रा रोड मुहल्ले से हुई थी । धुरंधर संगीतज्ञों के साथ-साथ बड़े क़व्वाल और मुकेश या तलत महमूद जैसे गायक भी यहाँ से जुड़ते चले गए ।

1950 से लेकर 1980 तक तो यही लगता रहा कि देश के शीर्षस्थ संगीतकारों का तीर्थ-सा बन गया है पटना । डीवी पलुस्कर, ओंकार नाथ ठाकुर, भीमसेन जोशी, अली अकबर ख़ान, निखिल बनर्जी, विनायक राव पटवर्धन, पंडित जसराज, कुमार गंधर्व, बीजी जोग, अहमद जान थिरकवा, बिरजू महाराज, सितारा देवी, किशन महाराज, गुदई महाराज, बिस्मिल्ला ख़ान, हरिप्रसाद चौरसिया, शिवकुमार शर्मा ... बड़ी लंबी सूची है । पंडित रविशंकर और उस्ताद अमीर ख़ान को छोड़कर बाक़ी प्रायः सभी नामी संगीतज्ञ उन दिनों पटना के दशहरा संगीत समारोहों की शोभा बन चुके थे ।

60 वर्ष पहले पटना के दशहरा और संगीत का जो संबंध सूत्र क़ायम हुआ था वह 80 के दशक में आकर टूट-बिखर गया । उसी परंपरा को फिर से जोड़ने की एक तथाकथित सरकारी कोशिश वर्ष 2006 के दशहरा के मौक़े पर हुई लेकिन नाकाम रही ।

खान-पान

आबादी का मुख्य भोजन भात-दाल-रोटी-तरकारी-अचार है । सरसों का तेल पारम्परिक रूप से खाना तैयार करने में प्रयुक्त होता है । खिचड़ी , जोकि चावल तथा दालों से साथ कुछ मसालों को मिलाकर पकाया जाता है, भी भोज्य व्यंजनों में काफी लोकप्रिय है । खिचड़ी, प्रायः शनिवार को, दही, पापड़, घी, अचार तथा चोखा के साथ-साथ परोसा जाता है ।

पटना को केन्द्रीय बिहार के मिष्ठान्नों तथा मीठे पकवानों के लिए भी जाना जाता है । इनमें खाजा, मावे का लड्डू,मोतीचूर के लड्डू, काला जामुन, केसरिया पेड़ा, परवल की मिठाई, खुबी की लाई और चना मर्की का नाम लिया जा सकता है । इन पकवानो का मूल इनके सम्बन्धित शहर हैं जो कि पटना के निकट हैं, जैसे कि सिलाव का खाजा, बाढ का मावे का लाई,मनेर का लड्डू, विक्रम का काला जामुन, गया का केसरिया पेड़ा, बख्तियारपुर का खुबी की लाई (???) का चना मर्की, बिहिया की पूरी इत्यादि उल्लेखनीय है । हलवाईयों के वंशज, पटना के नगरीय क्षेत्र में बड़ी संख्या में बस गए इस कारण से यहां नगर में ही अच्छे पकवान तथा मिठाईयां उपलब्ध हो जाते हैं । बंगाली मिठाईयों से, जोकि प्रायः चाशनी में डूबे रहते हैं, भिन्न यहां के पकवान प्रायः सूखे रहते हैं ।

इसके अतिरिक्त इन पकवानों का प्रचलन भी काफी है -

  • पुआ, - मैदा, दूध, घी, चीनी मधु इत्यादि से बनाया जाता है ।
  • पिठ्ठा - चावल के चूर्ण को पिसे हुए चने के साथ या खोवे के साथ तैयार किया जाता है ।
  • तिलकुट - जिसे बौद्ध ग्रंथों में पलाला नाम से वर्णित किया गया है, तिल तथा चीनी गुड़ बनाया जाता है ।
  • चिवड़ा या च्यूरा' - चावल को कूट कर या दबा कर पतले तथा चौड़ा कर बनाया जाता है । इसे प्रायः दही या अन्य चाजो के साथ ही परोसा जाता है ।
  • मखाना - (पानी में उगने वाली फली) इसकी खीर काफी पसन्द की जाती है ।
  • सत्तू - भूने हुए चने को पीसने से तैयार किया गया सत्तू, दिनभर की थकान को सहने के लिए सुबह में कई लोगो द्वारा प्रयोग किया जाता है । इसको रोटी के अन्दर भर कर भी प्रयोग किया जाता है जिसे स्थानीय लोग मकुनी रोटी कहते हैं ।
  • लिट्टी चोखा - लिट्टी जो आंटे के अन्दर सत्तू तथा मसाले डालकर आग पर सेंकने से बनता है, को चोखे के साथ परोसा जाता है । चोखा उबले आलू या बैंगन को गूंथने से तैयार होता है ।

आमिष व्यंजन भी लोकप्रिय हैं । मछली काफी लोकप्रिय है, और मुग़ल व्यंजन भी पटना में देखे जा सकते हैं । अभी हाल में कॉन्टिनेन्टल खाने भी लोगों द्वारा पसन्द किये जा रहे हैं । कई तरह के रोल, जोकि न्यूयॉर्क में भी उपलब्ध हैं, का मूल पटना ही है । विभाजन के दौरान कई मुस्लिम परिवार पाकिस्तान चले गए और बाद में अमेरिका । अपने साथ -साथ वो यहां की संस्कृति भी ले गए । वे कई शाकाहारी तथा आमिष रोलों रोल-बिहारी नाम से, न्यूयार्क में बेचते हैं ।

यातायात

सड़क परिवहन राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31 तथा 19 नगर से होकर गुजरता है । राज्य की राजधानी होने से पटना बिहार के सभी प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा है। बिहार के सभी जिला मुख्यालय तथा झारखंड के कुछ शहरों के लिए नियमित बस-सेवा यहाँ से उपलब्ध है। गंगा नदी पर बने महात्मा गांधी सेतु के द्वारा पटना हाजीपुर से जुड़ा है।

रेल परिवहन

Patna railway station

भारतीय रेल के नक्शे पर पटना एक महत्वपूर्ण जंक्शन है। भारतीय रेल द्वारा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के अतिरिक्त यहाँ से मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, जम्मू, अमृतसर, गुवाहाटी तथा अन्य महत्वपूर्ण शहरों के लिए सीधी ट्रेनें उपलब्ध है। पटना देश के अन्य सभी महत्वपूर्ण शहरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा है। पटना से जाने वाले रेलवे मार्ग हैं- पटना-मोकामा, पटना-मुगलसराय' तथा पटना-गया। यह पूर्व रेलवे के दिल्ली-हावड़ा मुख्य मार्ग पर स्थित है।

हवाई परिवहन पटना के अंतरराष्ट्रीय हवाई पट्टी का नाम लोकनायक जयप्रकाश नारायण हवाई अड्डा है और यह नगर के पश्चिमी भाग में स्थित है। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा संचालित लोकनायक जयप्रकाश हवाईक्षेत्र, पटना (IATA कोड- PAT) अंतर्देशीय तथा सीमित अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए बना है। इंडियन, किंगफिशर, जेटएयर, स्पाइसजेट तथा इंडिगो की उडानें दिल्ली, रांची, कलकत्ता, मुम्बई तथा कुछ अन्य नगरों के लिए नियमित रुप से उपलब्ध है ।

जल परिवहन पटना शहर १६८० किलोमीटर लंबे इलाहाबाद-हल्दिया राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-१ पर स्थित है। गंगा नदी का प्रयोग नागरिक यातायात के लिए हाल तक किया जाता था पर इसके उपर पुल बन जाने के कारण इसका महत्व अब भारवहन के लिए सीमित रह गया है। देश का एकमात्र राष्ट्रीय अंतर्देशीय नौकायन संस्थान पटना के गायघाट में स्थित है।

स्थानीय परिवहन - पटना शहर का सार्वजनिक यातायात मुख्यतः सिटी बसों, ऑटोरिक्शा और साइकिल रिक्शा पर आश्रित है। लगभग ३० किलोमीटर लंबे और ५ किलोमीटर चौड़े राज्य की राजधानी के यातायात की ज़रुरतें मुख्यरूप से ऑटोरिक्शा (जिसे टेम्पो भी कहा जाता है) ही पूरा करती हैं। स्थानीय भ्रमण हेतु टैक्सी सेवा उपलब्ध है, जो निजी मालिकों द्वारा संचालित मंहगा साधन है। नगर बस सेवा कुछ इलाको के लिए उपलब्ध है पर उनकी सेवा और समयसारणी भरोसे के लायक नहीं है। नगर का मुख्य मार्ग अशोक राजपथ टेम्पो, साइकिल-रिक्शा तथा निजी दोपहिया और चौपहिया वाहनों के कारण हमेशा जाम का शिकार रहता है।

आर्थिक स्थिति

प्राचीन काल में व्यापार का केन्द्र रहे इस शहर में अब निर्यात करने लायक कम उपादान ही बनते हैं, हंलांकि बिहार के अन्य हिस्सों में पटना के पूर्वी पुराने भाग (पटना सिटी) निर्मित माल की मांग होने के कारण कुछ उद्योग धंधे फल फूल रहे हैं ।

दर्शनीय स्थल

  • अगम कुआँ – मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक के काल का एक कुआँ गुलजा़रबाग स्टेशन के पास स्थित है। पास ही स्थित एक मन्दिर स्थानीय लोगों के शादी-विवाह का मह्त्वपूर्ण स्थल है।
  • कुम्रहार - चंद्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार तथा अशोक कालीन पाटलिपुत्र के भग्नावशेष को देखने के लिए यह सबसे अच्छी जगह है। कुम्रहार परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित तथा संचालित है और सोमवार को छोड़ सप्ताह के हर दिन १० बजे से ५ बजे तक खुला रहता है।
  • बेगू हज्जाम की मस्जिद सन् 1489 में बंगाल के शासक अलाउद्दीन शाह द्वारा निर्मित
  • 'पत्थर की मस्जिद - जहाँगीर के पुत्र शाह परवेज़ द्वारा 1621 में निर्मित यह छोटी सी मस्जिद अशोक राजपथ पर सुलतानगंज में स्थित है।
  • शेरशाह की मस्जिद अफगान शैली में बनी यह मस्जिद बिहार के महान शासक शेरशाह सूरी द्वारा 1540-1545 के बीच बनवाई गयी थी। पटना में बनी यह सबसे बड़ी मस्जिद है।
  • पादरी की हवेली - सन 1772 में निर्मित बिहार का प्राचीनतम चर्च बंगाल के नवाब मीर कासिम तथा ब्रिटिस ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच की कड़वाहटों का गवाह है।।
  • ख़ुदाबख़्श लाईब्रेरी अशोक राजपथ पर स्थित यह राष्ट्रीय पुस्तकालय 1891 में स्थापित हुआ था। यहाँ कुछ अतिदुर्लभ मुगल कालीन पांडुलपियां हैं ।
  • क़िला हाउस (जालान हाउस) दीवान बहादुर राधाकृष्ण जालान द्वारा शेरशाह के किले के अवशेष पर निर्मित इस भवन में हीरे जवाहरात तथा चीनी वस्तुओं का एक निजी संग्रहालय है ।
हरमंदिर साहेब, पटना सिटी
  • तख्त श्रीहरमंदिर पटना सिखों के दसमें और अंतिम गुरु गोविन्द सिंह की जन्मस्थली है। नवम गुरु श्री तेगबहादुर के पटना में रहने के दौरान गुरु गोविन्दसिंह ने अपने बचपन के कुछ वर्ष पटना सिटी में बिताए थे। बालक गोविन्दराय के बचपन का पंगुरा (पालना), लोहे के चार तीर, तलवार, पादुका तथा 'हुकुमनामा' यहाँ गुरुद्वारे में सुरक्षित है। यह स्थल सिक्खों के लिए अति पवित्र है।
  • महावीर मन्दिर संकटमोचन रामभक्त हनुमान मन्दिर पटना जंक्शन के ठीक बाहर बना है। न्यू मार्किट में बने मस्जिद के साथ खड़ा यह मन्दिर हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है।
  • गांधी मैदान वर्तमान शहर के मध्यभाग में स्थित यह विशाल मैदान पटना का दिल है। जनसभाओं, सम्मेलनों तथा राजनीतिक रैलियों के अतिरिक्त यह मैदान पुस्तक मेला तथा दैनिक व्यायाम का भी केन्द्र है। इसके चारों ओर अति महत्वपूर्ण सरकारी इमारतें और प्रशासनिक तथा मनोरंजन केंद्र बने हैं।
  • गोलघर 1770 ईस्वी में इस क्षेत्र में आए भयंकर अकाल के बाद अनाज भंडारण के लिए बनाया गया यह गोलाकार ईमारत अपनी खास आकृति के लिए प्रसिद्ध है। 1786 ईस्वी में जॉन गार्स्टिन द्वारा निर्माण के बाद से गोलघ‍र पटना शहर क प्रतीक चिह्न बन गया। दो तरफ बनी सीढियों से ऊपर जाकर पास ही बहनेवाली गंगा और इसके परिवेश का शानदार अवलोकन संभव है।
  • गाँधी संग्रहालय गोलघर के सामने बनी बाँकीपुर बालिका उच्च विद्यालय के बगल में महात्मा गाँधी की स्मृतियों से जुड़ी चीजों का नायाब संग्रह देखा जा सकता है। हाल में इसी परिसर में नवस्थापित चाणक्य विधि विश्वविद्यालय का अध्ययन केंद्र भी अवलोकन योग्य है।
  • श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र गाँधी मैदान के पश्चिम भाग में बना विज्ञान परिसर स्कूली शिक्षा में लगे बालकों के लिए ज्ञानवर्धक केंद्र है।
  • पटना संग्रहालय जादूघर के नाम से भी जानेवाले इस म्यूज़ियम में प्राचीन पटना के हिन्दू तथा बौद्ध धर्म की कई निशानियां हैं। लगभग ३० करोड़ वर्ष पुराने पेड़ के तने का फॉसिल यहाँ का विशेष धरोहर है।
  • ताराघर संग्रहालय के पास बना इन्दिरा गाँधी विज्ञान परिसर में बना ताराघर देश में वृहत्तम है।
  • संजय गांधी जैविक उद्यान - राज्यपाल के सरकारी निवास राजभवन के पीछे स्थित जैविक उद्यान शहर का फेफड़ा है। विज्ञानप्रेमियों के लिए ‌यह जन्तु तथा वानस्पतिक गवेषणा का केंद्र है। व्यायाम करनेवालों तथा पिकनिक के लिए यह् पसंदीदा स्थल है।
    • दरभंगा हाउस इसे नवलखा भवन भी कहते हैं । इसका निर्माण दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने करवाया था । गंगा के तट पर अवस्थित इस प्रासाद में पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभागों का कार्यालय है । इसके परिसर में एक काली मन्दिर भी है जहां राजा खुद अर्चना किया करते थे।

पटना के आसपास

शिक्षा

अनुग्रह नारायण सिँह कालेज पटना का नामी कालेज है।इसने शिक्षा के क्षेत्र मेँ बिहार का नाम विदेशोँ तक मशहुर किया। यह लेख भी देखें - खुदाबक़्श लाइब्रेरी साठ और सत्तर के दशक में अपने गौरवपूर्ण शैक्षणिक दिनों के बाद स्कूली शिक्षा ही अब स्तर की है । प्रायः बिहार बोर्ड तथा सीबीएसई के स्कूल हैं । हाल में ही बिहार कॉलेज ऑफ़ इंज़ीनियरिंग कोएनआईटी का दर्जा मिला है । पटना यूनिवर्सिटी, मगध विश्वविद्यालय तथा नालन्दा ओपेन यूनिवर्सिटी वे तीन विश्वविद्यालय है जिनके शिक्षण संस्थान नगर में स्थित है ।

संदर्भ

  1. "History of Patna". National Informatics Centre. Government of Bihar. 10 January 10, 2002. अभिगमन तिथि 2007-09-10. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. "Census of India". 2001 Census of India. Government of India. 2002-05-27. अभिगमन तिथि 2009-01-05.

बाहरी कड़ियाँ

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स्रोत्र

  • "Patna," Microsoft® Encarta® Encyclopedia 2001