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* [[श्‍वसन]] संबंधी संक्रमण जैसे [[न्‍युमोनिया]] एवं [[सर्दी]], [[खाँसी]], [[टॉन्सिल]], [[ब्रॉंन्‍कायटिस]]आदि।
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* मूत्रतंत्र [[संक्रमण]] (यूरिनरी ट्रॅक्‍ट इन्‍फेक्‍शन)
* मूत्रतंत्र [[संक्रमण]] (यूरिनरी ट्रॅक्‍ट इन्‍फेक्‍शन)


==साधारण ज्‍वर के लक्षण==
== साधारण ज्‍वर के लक्षण ==
साधारण ज्वर में शरीर का तापमान ३७.५ डि.से. या १०० फैरेनहाइट से अधिकहोना, सिरदर्द, ठंड लगना, जोड़ों में दर्द, भूख में कमी, कब्‍ज होना या भूख कम होना एवं थकान होना प्रमुख लक्षण हैं।
साधारण ज्वर में शरीर का तापमान ३७.५ डि.से. या १०० फैरेनहाइट से अधिकहोना, सिरदर्द, ठंड लगना, जोड़ों में दर्द, भूख में कमी, कब्‍ज होना या भूख कम होना एवं थकान होना प्रमुख लक्षण हैं।


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* जई में कुछ अद्वितीय वसा अम्‍ल (फैटी एसिड्स) एवं ऐन्‍टी ऑक्सिडेन्‍टस् होते हैं जो विटामिन ई के साथ एकत्रित होकर कोशिका क्षति की रोकथाम करता है एवं कर्करोग कैंसर के खतरा को कम करता है।
* जई में कुछ अद्वितीय वसा अम्‍ल (फैटी एसिड्स) एवं ऐन्‍टी ऑक्सिडेन्‍टस् होते हैं जो विटामिन ई के साथ एकत्रित होकर कोशिका क्षति की रोकथाम करता है एवं कर्करोग कैंसर के खतरा को कम करता है।


==इन्हें भी देखें==
== इन्हें भी देखें ==
* [[मस्तिष्क ज्वर]]
* [[मस्तिष्क ज्वर]]
==संदर्भ==
== संदर्भ ==
<references />
<references />
==वाह्य सूत्र==
== वाह्य सूत्र ==
* [http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/health/ayurvedic/0708/01/1070801019_1.htm ज्वर या बुखार : आयुर्वेदिक उपचार] (वेबदुनिया)
* [http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/health/ayurvedic/0708/01/1070801019_1.htm ज्वर या बुखार : आयुर्वेदिक उपचार] (वेबदुनिया)
* [http://akbaranwal.blogspot.com/2009/07/104-105-5-10-1-2-3-4-4-3-4-aconite.html होम्योपैथिक और ज्वर]।{{हिन्दी चिह्न}}।[[२० जुलाई]], [[२००९]]।अकबरनवाल
* [http://akbaranwal.blogspot.com/2009/07/104-105-5-10-1-2-3-4-4-3-4-aconite.html होम्योपैथिक और ज्वर]।{{हिन्दी चिह्न}}।[[२० जुलाई]], [[२००९]]।अकबरनवाल
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22:59, 11 मार्च 2010 का अवतरण

ज्वर

क्लीनिकल थर्मामीटर, जिसमें 38.7 °C तापमान अंकित है
ICD-10 R50.
ICD-9 780.6
DiseasesDB 18924
eMedicine med/785 
MeSH D005334

जब शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाये तो उस दशा को ज्वर (फीवर) कहते है । यह रोग नहीं बल्कि एक लक्षण (सिम्टम्) है जो बताता है कि शरीर का ताप नियंत्रित करने वाली प्रणाली ने शरीर का वांछित ताप (सेट-प्वाइंट) १-२ डिग्री सल्सियस बढा दिया है।मनुष्य के शरीर का सामान्‍य तापमान ३७°सेल्सियस या ९८.६° फैरेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्‍य स्‍तर से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति ज्‍वर या बुखार कहलाती है। ज्‍वर कोई रोग नहीं है। यह केवल रोग का एक लक्षण है। किसी भी प्रकार के संक्रमण की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया है। बढ़ता हुआ ज्‍वर रोग की गंभीरता के स्‍तर की ओर संकेत करता है।


कारण

निम्‍नलिखित रोग ज्‍वर का कारण हो सकते है-

साधारण ज्‍वर के लक्षण

साधारण ज्वर में शरीर का तापमान ३७.५ डि.से. या १०० फैरेनहाइट से अधिकहोना, सिरदर्द, ठंड लगना, जोड़ों में दर्द, भूख में कमी, कब्‍ज होना या भूख कम होना एवं थकान होना प्रमुख लक्षण हैं।

इसके उपचार हेतु सरल उपाय पालन करें: रोगी को अच्‍छे हवादार कमरे में रखना चाहिये। उसे बहुत सारे द्रव पदार्थ पीने को दें। स्‍वच्‍छ एवं मुलायम वस्‍त्र पहनाऍं, पर्याप्‍त विश्राम अति आवश्‍यक है। यदि ज्‍वर 39.5 डिग्री से. या 103.0 फैरेनहाइट से अधिक हो या फिर 48 घंटों से अधिक समय हो गया हो तो डॉक्‍टर से परामर्श लें।

इसके अलावा रोगी को खूब सारा स्‍वच्‍छ एवं उबला हुआ पानी पिलाएं, शरीर को पर्याप्‍त कैलोरिज देने के लिये, ग्‍लूकोज, आरोग्‍यवर्धक पेय (हेल्‍थ ड्रिंक्‍स), फलों का रस आदि लेने की सलाह दी जाती है।आसानी से पचनेवाला खाना जैसे चावल की कांजी, साबूदाने की कांजी, जौ का पानी आदि देना चाहिये। दूध, रोटी एवं डबलरोटी (ब्रेड), माँस, अंडे, मक्‍खन, दही एवं तेल में पकाये गये खाद्य पदार्थ न दें।

जई (ओटस्)
  • जई में वसा एवं नमक की मात्रा कम होती है; वे प्राकृतिक लौह तत्व का अच्‍छा स्रोत है। कैल्शियम का भी उत्तम स्रोत होने के कारण, जई हृदय, अस्थि एवं नाखूनों के लिये आदर्श हैं।
  • ये घुलनशील रेशे (फायबर) का सर्वोत्तम स्रोत हैं। खाने के लिए दी जई के आधा कप पके हुये भोजन में लगभग 4 ग्राम विस्‍कस सोल्‍यूबल फायबर (बीटा ग्‍लूकोन) होता है। यह रेशा रक्‍त में से LDL कोलॅस्‍ट्रॉल को कम करता है, जो कि तथाकथित रूप से ‘’बैड’’ कोलेस्‍ट्रॉल कहलाता है।
  • जई अतिरिक्‍त वसा को शोषित कर लेते हैं एवं उन्‍हें हमारे पाचनतंत्र के माध्‍यम से बाहर कर देते हैं। इसीलिये ये कब्‍ज का इलाज उच्‍च घुलनशील रेशे की मदद से करते हैं एवं गैस्‍ट्रोइंटस्‍टाइनल क्रियाकलापों का नियमन करने में सहायक होते हैं।
  • जई से युक्‍त आहार रक्‍त शर्करा स्‍तर को भी स्थिर रखने में मदद करता है।
  • जई नाड़ी-तंत्र के विकारों में भी सहायक है।
  • जई महिलाओं में रजोनिवृत्ति से संबधित ओवरी एवं गर्भाशय संबंधी समस्‍याओं के निवारण में मदद करता है।
  • जई में कुछ अद्वितीय वसा अम्‍ल (फैटी एसिड्स) एवं ऐन्‍टी ऑक्सिडेन्‍टस् होते हैं जो विटामिन ई के साथ एकत्रित होकर कोशिका क्षति की रोकथाम करता है एवं कर्करोग कैंसर के खतरा को कम करता है।

इन्हें भी देखें

संदर्भ

वाह्य सूत्र