"मेहता लज्जाराम शर्मा": अवतरणों में अंतर

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उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। उन्होंने गुजराती, हिंदी, संस्कृत, मराठी तथा अंग्रेजी भाषा में दक्षता प्राप्त की।
उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। उन्होंने गुजराती, हिंदी, संस्कृत, मराठी तथा अंग्रेजी भाषा में दक्षता प्राप्त की।

२९ जून १९३१ ई. को उनका निधन हो गया।

== व्यावसायिक जीवन ==
== व्यावसायिक जीवन ==
मेहता लज्जाराम शर्मा ने अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत अध्यापक के रूप में किया। इसके बाद उन्होंने सर्वहित नामक हिंदी पत्र निकाला। इसके बाद उन्होंने मुंबी के वेंकटेस्वर समाचार पत्र में संपादक के रूप में कार्य किया। ७ वर्ष तक संपादन कार्य करने के बाद वे बूंदी चले गए।
मेहता लज्जाराम शर्मा ने अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत अध्यापक के रूप में किया। इसके बाद उन्होंने सर्वहित नामक हिंदी पत्र निकाला। इसके बाद उन्होंने मुंबी के वेंकटेस्वर समाचार पत्र में संपादक के रूप में कार्य किया। ७ वर्ष तक संपादन कार्य करने के बाद वे बूंदी चले गए।

03:48, 16 दिसम्बर 2021 का अवतरण

मेहता लज्जाराम शर्मा (जन्म - १८६३, मृत्यु ३१ जून १९३१) हिंदी साहित्यकार एवं पत्रकार थे। उन्होंने १३ उपन्यासों सहित कुल २३ पुस्तकें लिखी हैं। वे गुजराती भारतीय थे। उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास आदर्श हिंदू है। यह हिंदी की प्रथम त्रिकथा है।

जीवन परिचय

मेहता लज्जाराम शर्मा का जन्म १८६३ में हुआ था। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि "मैं नौ महीने के स्थान पर ८ महीने अपनी माता के गर्भ में रहा हूँ और जीवन भर के लिए रोगों को साथ लेकर पैदा हुआ हूं। "

उनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। उन्होंने गुजराती, हिंदी, संस्कृत, मराठी तथा अंग्रेजी भाषा में दक्षता प्राप्त की।

२९ जून १९३१ ई. को उनका निधन हो गया।

व्यावसायिक जीवन

मेहता लज्जाराम शर्मा ने अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत अध्यापक के रूप में किया। इसके बाद उन्होंने सर्वहित नामक हिंदी पत्र निकाला। इसके बाद उन्होंने मुंबी के वेंकटेस्वर समाचार पत्र में संपादक के रूप में कार्य किया। ७ वर्ष तक संपादन कार्य करने के बाद वे बूंदी चले गए।

पत्रकारिता के साथ ही उन्होंने साहित्य लेखन का कार्य जारी रखा। उन्होंने कुल २३ पुस्तकें लिखी। इनमें १३ उपन्यास हैं। उपन्यासों के साथ ही उन्होंने कहानी, जीवन चरित, इतिहास आदि भी लिखा। उपन्यास के साथ ही उन्होंने ज्ञान साहित्य के निर्माण की ओ्र भी ध्यान दिया। बूंदी में रहते हुए उन्होंने वहाँ का इतिहास लिखा।