"शिरडी साईं बाबा": अवतरणों में अंतर

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*साईं ट्रस्ट के द्वारा 96 करोड़ मस्जिद के लिए दान।* *लेकिन राम मंदिर निर्माण के लिए 1रूपया नहीं दिया गया।* *अब भी नहीं समझे मुर्खों तो अफगान का हाल देख लो।* *तुम्हारे ही चढ़ावा के धन से* *मस्जिद बन रहें हैं, आतंकवादी पल रहे हैं और तुम्हारा सर्वनाश कर रहे हैं।* *वाह रे साईं तेरा षड़यंत्र, हिन्दू भूल रहे वैदिक मंत्र।* *और हम मुर्ख हिंदू साई के मंदिर में जाकर माथा टेकते हैं और चढ़ावा चढ़ाते है*साईं बाबा की सच्चाई सभी सनातन धर्मियों को जाना चाहिए । किस तरह से साजिश के तहत हिंदू मंदिरों में साईं...
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*साईं ट्रस्ट के द्वारा 96 करोड़ मस्जिद के लिए दान।*
*लेकिन राम मंदिर निर्माण के लिए 1रूपया नहीं दिया गया।*

*अब भी नहीं समझे मुर्खों तो अफगान का हाल देख लो।*
*तुम्हारे ही चढ़ावा के धन से* *मस्जिद बन रहें हैं, आतंकवादी पल रहे हैं और तुम्हारा सर्वनाश कर रहे हैं।*
सच्चाई सभी सनातन धर्मियों को जाना चाहिए । किस तरह से साजिश के तहत हिंदू मंदिरों में साईं की मूर्तियां बैठाई जा रही है सावधान हो जाओ हिंदुओं और सच्चाई जानने का प्रयास करो । उसके पुस्तक साई सत्चरित्र से_

विवेक दर्शन पत्रिका

आप भी जान लीजिए साई की चाले , चेहरा, चरित्र और मजहब

अध्याय 4, 5, 7 - साईं बाबा के होंठो पर सदैव "अल्लाह मालिक" रहता था,
साईं मस्जिद मैं रहता था अध्याय- 1, 3, 4, 7, 8, 9, 11, 13
साईं बकरे हलाल करता था ... अध्याय- 5, 11, 14, 23, 28, 50
अध्याय 5 - साईं बाबा ने दियो में थूक कर दिए जलाए,
अध्याय 7 - साईं बाबा फकीरों के साथ आमिष और मछली का भी सेवन कर लेते थे,
अध्याय 11 - साईं बाबा ने पूछा की हाजी से पूछो की उसे बकरे का गोश्त पसंद है या नाध या अंडकोष
अध्याय 11, 28 - साईं बाबा खाने के समय फातिहा कुरान पढ़ते थे
अध्याय 5, 14, 50 - साईं बाबा बीडी चिलम पीते थे और अपने भक्तो को भी पीने के लिए देते थे, जिस कारण उन्हें दमा था,
अध्याय 18, 19 - इस मस्जिद में बैठ कर मैं सत्य ही बोलुगा की किन्ही साधनाओ या शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं है,
अध्याय 10- न्याय या दर्शन शास्त्र या मीमांसा पढने की आवश्यकता नहीं है,
अध्याय 23 - प्राणायाम, श्वासोंचछवासम हठयोग या अन्य कठिन साधनाओ की आवश्यकता नहीं है,
अध्याय 28 - चावडी का जुलुस देखने के दिन साईं बाबा कफ से अधिक पीड़ित थे,
अध्याय 43, 44 - 1886 मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन साईं बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई,
अध्याय 43, 44 - साईं बाबा ने खुद को पास वाले मंदिर में इस्लामिक रीती रिवाज से पूजने की बात कही थी, जिसके बाद मंदिर में ही गड्ढा खोद कर उन्हें वहां दफना दिया गया था,
एक एकादशी के दिन उन्होने केलकर को कुछ रूपये देकर कुछ मास खरीद कर लाने को कहा (अध्याय38)
एसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा,देखो तो नमकीन बिरयानी पुलाव कैसा पका है?दादा ने यो ही कह दिया कि अच्छा है।तव वे कहने लगे तुमने न अपनी आखो देखा न जीव से स्वाद लिया,फिर तुमने कैसे कह दिया अच्छा बना है?
अध्याय 38 - मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वे "मौलवी से फातिहा" पढने के लिए कहते थे,

मित्रो, आज तक मैंने जितने भी साईं मंदिर देखे है उन सभी में साईं की मुर्तिया बहुत ही सुन्दर और मनमोहक होती है,
असल में एक पूरी योजना के साथ झूठ का प्रचार करके साईं को मंदिरों में बिठाने का षड्यंत्र 1992 में श्री रामजन्मभूमि के बाद शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य था राम के नाम पर उग्र हो चुके हिन्दुओ के जोश को ठंडा करके एक ऐसा विकल्प देना जिसके पीछे भाग कर हिन्दू राम को भूल जाए,
आज जितने देश में राम मंदिर है उतने ही साईं के मस्जिद रूपी मंदिर बन चुके है, हर राम मंदिर में राम जी के साथ साईं नाम का अधर्म बैठा हुआ है,

अधिकतर साईं के मंदिर 1998 के बाद ही बने है तब इस्लामिक संगठनो द्वारा साईं के प्रचार के लिए बहुत अधिक धन लगाया गया,

साईं के सुन्दर सुन्दर भजन, गाने, मूर्तियाँ, झूठी कहानियां बनाई गयी, कुछ कहानियां साईं सत्चरित्र से मेल खाती है जैसे की दिवाली पर दिए जलाने की घटना जो असल में साईं ने दियो में थूक कर जलाये थे,

ऐसी ही बहुत सी घटनाओं को तोड़ मरोड़ कर पेश किया और हिन्दुओ में सेकुलरिज्म का बीज साईं के रूप में अंकुरित किया गया,

यदि किसी को ये झूठ लगे तो स्वयं ही वो शोध कर ले,

साईं की ये असली मूर्ति आप देख रहे है जिसमे साईं एक मुस्लिम और पूरी तरह से केवल एक मुस्लिम ही दिख रहा है जिसमे सनातन धर्म का अंश मात्र भी नहीं दिख रहा है,

03:57, 24 अक्टूबर 2021 का अवतरण

साँचा:Infobox hindu leader

साईंबाबा (जन्म:२८ सितंबर १८३५ [1], मृत्यु: १५ अक्टूबर १९१८)[2] जिन्हें शिरडी साईंबाबा भी कहा जाता है, एक भारतीय गुरु, संत एवं फ़क़ीर के रूप में बहुमान्य हैं। उनके अनुयायी उन्हें सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी मानते हैं।[3]

जीवन-परिचय

जन्म-तिथि एवं स्थान

साईं बाबा का जन्म कब और कहाँ हुआ था एवं उनके माता-पिता कौन थे ये बातें अज्ञात हैं। किसी दस्तावेज से इसका प्रामाणिक पता नहीं चलता है। स्वयं शिरडी साईं ने इसके बारे में कुछ नहीं बताया है।[4] हालाँकि एक कथा के रूप में यह प्रचलित है कि एक बार श्री साईं बाबा ने अपने एक अंतरंग भक्त म्हालसापति को, जो कि बाबा के साथ ही मस्जिद तथा चावड़ी में शयन करते थे, बतलाया था कि "मेरा जन्म पाथर्डी (पाथरी) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मेरे माता-पिता ने मुझे बाल्यावस्था में ही एक फकीर को सौंप दिया था।" जब यह चर्चा चल रही थी तभी पाथरी से कुछ लोग वहाँ आये तथा बाबा ने उनसे कुछ लोगों के सम्बन्ध में पूछताछ भी की।[5] उनके जन्म स्थान एवं तिथि की बात वास्तव में उनके अनुयायियों के विश्वास एवं श्रद्धा पर आधारित हैं। शिरडी साईं बाबा के अवतार माने जाने वाले श्री सत्य साईं बाबा ने अपने पूर्व रूप का परिचय देते हुए शिरडी साईं बाबा के प्रारंभिक जीवन सम्बन्धी घटनाओं पर प्रकाश डाला है जिससे ज्ञात होता है कि उनका जन्म २८ सितंबर १८३५ में तत्कालीन हैदराबाद राज्य के पाथरी नामक गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।[1]

माता-पिता

जन्मतिथि एवं स्थान की तरह ही साईं के माता-पिता के बारे में भी प्रमाणिक रूप से कुछ भी ज्ञात नहीं है। श्री सत्य साईं बाबा द्वारा दिये गये पूर्वोक्त विवरण के अनुरूप उनके पिता का नाम श्री गंगा बावड़िया एवं उनकी माता का नाम देवगिरि अम्मा माना जाता है। ये दोनों शिव-पार्वती के उपासक थे तथा शिव के आशीर्वाद से ही उनके संतान हुई थी। कहा जाता है कि जब साईं अपनी माँ के गर्भ में थे उसी समय उनके पिता के मन में ब्रह्म की खोज में अरण्यवास की अभिलाषा तीव्र हो गयी थी। वे अपना सब कुछ त्याग कर जंगल में निकल पड़े थे। उनके साथ उनकी पत्नी भी थी। मार्ग में ही उन्होंने बच्चे को जन्म दिया था और पति के आदेश के अनुसार उसे वृक्ष के नीचे छोड़ कर चली गयी थी। एक मुस्लिम फकीर उधर से निकले जो निःसंतान थे। उन्होंने ही उस बच्चे को अपना लिया और प्यार से 'बाबा' नाम रखकर उन्होंने उसका पालन-पोषण किया।[1]

बचपन एवं चाँद पाटिल का आश्रय

बाबा का लालन-पालन एक मुसलमान फकीर के द्वारा हुआ था, परंतु बचपन से ही उनका झुकाव विभिन्न धर्मों की ओर था लेकिन किसी एक धर्म के प्रति उनकी एकनिष्ठ आस्था नहीं थी। कभी वे हिन्दुओं के मंदिर में घुस जाते थे तो कभी मस्जिद में जाकर शिवलिंग की स्थापना करने लगते थे। इससे न तो गाँव के हिन्दू उनसे प्रसन्न थे और न मुसलमान। निरंतर उनकी शिकायतें आने के कारण उनको पालने वाले फकीर ने उन्हें अपने घर से निकाल दिया।[6] साईं के जितने वृत्तांत प्राप्त हैं वे सभी उनके किसी न किसी चमत्कार से जुड़े हुए हैं। ऐसे ही एक वृत्तांत के अनुसार औरंगाबाद जिले के धूप गाँव के एक धनाढ्य मुस्लिम सज्जन की खोयी घोड़ी बाबा के कथनानुसार मिल जाने से उन्होंने प्रभावित होकर बाबा को आश्रय दिया और कुछ समय तक बाबा वहीं रहे।[7]

शिरडी में आगमन

चामत्कारिक कथा के तौर पर ही कहा जाता है कि बाबा पहली बार सोलह वर्ष की उम्र में शिरडी में एक नीम के पेड़ के तले पाये गये थे। उनके इस निवास के बारे में कुछ चामत्कारिक कथाएँ प्रचलित हैं।[8] कुछ समय बाद वे वहाँ से अदृश्य हो गये थे। पुनः शिरडी आने एवं उसे निवास स्थान बनाने के संदर्भ में कथा है कि चाँद पाटिल के आश्रय में कुछ समय तक रहने के बाद एक बार पाटिल के एक निकट सम्बन्धी की बारात शिरडी गाँव गयी जिसके साथ बाबा भी गये। विवाह संपन्न हो जाने के बाद बारात तो वापस लौट गयी परंतु बाबा को वह जगह काफी पसंद आयी और वे वही एक जीर्ण-शीर्ण मस्जिद में रहने लगे और जीवनपर्यन्त वहीं रहे।[7]

'साईं' नाम की प्राप्ति

कहा जाता है कि चाँद पाटिल के सम्बन्धी की बारात जब शिरडी गाँव पहुँची थी तो खंडोबा के मंदिर के सामने ही बैल गाड़ियाँ खोल दी गयी थीं और बारात के लोग उतरने लगे थे। वहीं एक श्रद्धालु व्यक्ति म्हालसापति ने तरुण फकीर के तेजस्वी व्यक्तित्व से अभिभूत होकर उन्हें 'साईं' कहकर सम्बोधित किया। धीरे-धीरे शिरडी में सभी लोग उन्हें 'साईं' या 'साईं बाबा' के नाम से ही पुकारने लगे और इस प्रकार वे 'साईं' नाम से प्रसिद्ध हो गये।[7][6]

धार्मिक मान्यता

साईं बाबा का पालन-पोषण मुसलमान फकीर के द्वारा हुआ था और बाद में भी वे प्रायः मस्जिदों में ही रहे। उन्हें लोग सामान्यतया मुस्लिम फकीर के रूप में ही जानते थे। वे निरंतर अल्लाह का स्मरण करते थे। वे 'अल्लाह मालिक' कहा करते थे।[9] हालाँकि उन्होंने सभी धर्मों की एकता पर बल दिया है और विभिन्न धर्मावलंबियों को अपने आश्रय में स्थान देते थे। उनके अनुयायी हिन्दू और मुसलमान दोनों थे। उनके आश्रयस्थल (मस्जिदों) में हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक पर्व भी मनाये जाते थे और मुसलमानों के भी। उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रन्थों के अध्ययन को भी प्रश्रय दिया था। उस समय भारत के कई प्रदेशों में हिन्दू-मुस्लिम द्वेष व्याप्त था, परंतु उनका संदेश था :

"राम और रहीम दोनों एक ही हैं और उनमें किंचित् मात्र भी भेद नहीं है। फिर तुम उनके अनुयायी होकर क्यों परस्पर झगड़ते हो। अज्ञानी लोगों में एकता साधकर दोनों जातियों को मिलजुल कर रहना चाहिए।"[10]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा, गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-12.
  2. Ruhela, Satya Pal (1998). The Spiritual Philosophy Of Shri Shirdi Sai Baba (अंग्रेज़ी में). Diamond Pocket Books (P) Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788171820900. मूल से 4 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 जुलाई 2018.
  3. शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा, गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-17 एवं 127-131.
  4. श्री साई सच्चरित्र, श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-१८.
  5. श्री साई सच्चरित्र, श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-३१.
  6. शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा, गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-13.
  7. श्री साई सच्चरित्र, श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-२०.
  8. श्री साई सच्चरित्र, श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-१८-१९.
  9. श्री साई सच्चरित्र, श्री गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर (हेमाड़ पंत), हिन्दी अनुवाद- श्री शिवराम ठाकुर, श्री साईं बाबा संस्थान, शिरडी, १७वाँ संस्करण-१९९९, पृष्ठ-१६.
  10. शिरडी साईं बाबा : दिव्य महिमा, गणपति चन्द्र गुप्त, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, तृतीय (पेपरबैक) संस्करण-2011, पृष्ठ-14-15.

बाहरी कड़ियाँ



  • साईं ट्रस्ट के द्वारा 96 करोड़ मस्जिद के लिए दान।*
  • लेकिन राम मंदिर निर्माण के लिए 1रूपया नहीं दिया गया।*
  • अब भी नहीं समझे मुर्खों तो अफगान का हाल देख लो।*
  • तुम्हारे ही चढ़ावा के धन से* *मस्जिद बन रहें हैं, आतंकवादी पल रहे हैं और तुम्हारा सर्वनाश कर रहे हैं।*

सच्चाई सभी सनातन धर्मियों को जाना चाहिए । किस तरह से साजिश के तहत हिंदू मंदिरों में साईं की मूर्तियां बैठाई जा रही है सावधान हो जाओ हिंदुओं और सच्चाई जानने का प्रयास करो । उसके पुस्तक साई सत्चरित्र से_

विवेक दर्शन पत्रिका

आप भी जान लीजिए साई की चाले , चेहरा, चरित्र और मजहब

अध्याय 4, 5, 7 - साईं बाबा के होंठो पर सदैव "अल्लाह मालिक" रहता था,
साईं मस्जिद मैं रहता था अध्याय- 1, 3, 4, 7, 8, 9, 11, 13
साईं बकरे हलाल करता था ... अध्याय- 5, 11, 14, 23, 28, 50
अध्याय 5 - साईं बाबा ने दियो में थूक कर दिए जलाए,
 अध्याय 7 - साईं बाबा फकीरों के साथ आमिष और मछली का भी सेवन कर लेते थे,
अध्याय 11 - साईं बाबा ने पूछा की हाजी से पूछो की उसे बकरे का गोश्त पसंद है या नाध या अंडकोष
अध्याय 11, 28 - साईं बाबा खाने के समय फातिहा कुरान पढ़ते थे
अध्याय 5, 14, 50 - साईं बाबा बीडी चिलम पीते थे और अपने भक्तो को भी पीने के लिए देते थे, जिस कारण उन्हें दमा था,
अध्याय 18, 19 - इस मस्जिद में बैठ कर मैं सत्य ही बोलुगा की किन्ही साधनाओ या शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं है,
अध्याय 10- न्याय या दर्शन शास्त्र या मीमांसा पढने की आवश्यकता नहीं है,
अध्याय 23 - प्राणायाम, श्वासोंचछवासम हठयोग या अन्य कठिन साधनाओ की आवश्यकता नहीं है,
अध्याय 28 - चावडी का जुलुस देखने के दिन साईं बाबा कफ से अधिक पीड़ित थे,
अध्याय 43, 44 - 1886 मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन साईं बाबा को दमा से अधिक पीड़ा हुई,
अध्याय 43, 44 - साईं बाबा ने खुद को पास वाले मंदिर में इस्लामिक रीती रिवाज से पूजने की बात कही थी, जिसके बाद मंदिर में ही गड्ढा खोद कर उन्हें वहां दफना दिया गया था,
एक एकादशी के दिन उन्होने केलकर को कुछ रूपये देकर कुछ मास खरीद कर लाने को कहा (अध्याय38)
एसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा,देखो तो नमकीन बिरयानी पुलाव कैसा पका है?दादा ने यो ही कह दिया कि अच्छा है।तव वे कहने लगे तुमने न अपनी आखो देखा न जीव से स्वाद लिया,फिर तुमने कैसे कह दिया अच्छा बना है?
अध्याय 38 - मस्जिद से बर्तन मंगवाकर वे "मौलवी से फातिहा" पढने के लिए कहते थे,

मित्रो, आज तक मैंने जितने भी साईं मंदिर देखे है उन सभी में साईं की मुर्तिया बहुत ही सुन्दर और मनमोहक होती है, असल में एक पूरी योजना के साथ झूठ का प्रचार करके साईं को मंदिरों में बिठाने का षड्यंत्र 1992 में श्री रामजन्मभूमि के बाद शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य था राम के नाम पर उग्र हो चुके हिन्दुओ के जोश को ठंडा करके एक ऐसा विकल्प देना जिसके पीछे भाग कर हिन्दू राम को भूल जाए, आज जितने देश में राम मंदिर है उतने ही साईं के मस्जिद रूपी मंदिर बन चुके है, हर राम मंदिर में राम जी के साथ साईं नाम का अधर्म बैठा हुआ है,

अधिकतर साईं के मंदिर 1998 के बाद ही बने है तब इस्लामिक संगठनो द्वारा साईं के प्रचार के लिए बहुत अधिक धन लगाया गया,

साईं के सुन्दर सुन्दर भजन, गाने, मूर्तियाँ, झूठी कहानियां बनाई गयी, कुछ कहानियां साईं सत्चरित्र से मेल खाती है जैसे की दिवाली पर दिए जलाने की घटना जो असल में साईं ने दियो में थूक कर जलाये थे,

ऐसी ही बहुत सी घटनाओं को तोड़ मरोड़ कर पेश किया और हिन्दुओ में सेकुलरिज्म का बीज साईं के रूप में अंकुरित किया गया,

यदि किसी को ये झूठ लगे तो स्वयं ही वो शोध कर ले,

साईं की ये असली मूर्ति आप देख रहे है जिसमे साईं एक मुस्लिम और पूरी तरह से केवल एक मुस्लिम ही दिख रहा है जिसमे सनातन धर्म का अंश मात्र भी नहीं दिख रहा है,