"कान": अवतरणों में अंतर

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कान को संस्कृत में क्या कहते हैं?

कान की ख़ासियत क्या है?..

क्या कान का कच्चा होना सही है।
लोग कान क्यों भरते हैं।
कानाफूसी, चुगली कैसे करते हैं?
जाने कान के किस्से एवं सभी रोचक रहस्य
अमृतमपत्रिका, चित्रगुप्त गंज, नईसड़क, ग्वालियर मप्र के इस लेख में..

कान के बारे में इतने भावुक, कर्णप्रिय रोचक रहस्य आज तक नहीं पढ़े होंगे। आनंद लेवें।
जीने का मजा किरकिरा,
कर देते हैं वे लोग।
एक तो कान के कच्चे,
दूसरे भरने वाले लोग।।

कान के कारण ही हर किसी में करुणा भाव आता है। कान पर चश्मे, ईयरफोन, नारी के झुमके का बोझ है। कान को हमेशा खूंटी ही समझा गया।

मुँह-मस्तिष्क की गलती पर गालियाँ कान ही सुनता है।

बरेली के बाजार में झुमका कान से ही गिरा था, ऐसा किसी गाने में गाया है।
लोग किसी भी बात को दिल लगाकर सुने, कान लगाकर नहीं!…. यही खुश रहने का फंडा है।

वो दिल की बातें दिल से सुन लेती है….कानों पर एतवार नहीं। भरोसा, प्रेम इसी को कहते हैं। यह पुरानी टेलीपैथी परम्परा थी।

कान का करें सम्मान…

आँख के चश्मे का भी उस पर भार,….फिर भी नहीं प्रकट करता कान का आभार

सच्चाई से गौर करें, तो खूबसूरती की बहुत बड़ी वजह कान है, किंतु कान को कभी कोई धन्यवाद नहीं देता। इसलिए उसमें से मवाद आने लगता है।

अतः कान का सम्मान करें क्योंकि ध्यान साधना में.. !!ॐ!! की गूंज कान में ही सुनाई पड़ती है।

कान ही जहान है। कर्ण में नाकारात्मक, शब्द, बातचीत जाने से रोके, तो कण-कण में शिव और गुरु के के दर्शन होते हैं।

कान कब क्लेश-कलह कराकर कष्ट में ला दे, पता नहीं। कान के कारण ही कुछ लोग कारागृह में बन्द हैं।

Heart और Ear के रहस्य....
कान को अंग्रेजी में Ear कहते हैं। Ear के पहले H और अंत में T लगाने से Heart अर्थात ह्रदय शब्द बनता है।
!! H !!…….का मतलब है कि कान से सदैव हाइलेबिल तथा सकरात्मक एवं काम की बातें सुनकर अपने अंदर - T ….यानी टेलेंट पैदा करें और जीवन में भयंकर उन्नति प्राप्त कर अपने दिल को आराम देंवें।
Thinking की शुरू भी T … से होती है। सोच को बदलते ही सितारे बदल जाते हैं।
जिंदगी में परेशानियां
सबके साथ खड़ी हैं,
जीत जाते हैं, वे लोग
जिनकी सोच बड़ी है।

पत्थर की तरह न थिंकिंग न बनाओ खुद की… किसी दीवार में चुने जा सकते हो।
जब आप सफल हो जाएंगे, तो आपके कार्यों की गूंज सबके कान में सुनाई देगी।
कान के कारण ही हम स्वस्थ्य और बीमार रह सकते हैं।
अच्छा सुनोगे, तो अच्छा करोगे और अच्छा ही पाओगे। यही सन्सार का सिद्धांत है।
कान मनुष्य की 5 ज्ञान इन्द्रिय में से एक मुख्य हिस्सा है। जो किस्सा सुनने के काम आते हैं।
जगत का सारा ज्ञान कान की वजह से ही बढ़ता है।
यह दिल की बात है-दिल्लगी की नहीं…. कहते तो यही है कि- दिल की लगी न हो, तो क्या जिंदगी है। इसमें कान का विशेष योगदान है।

अगर Heart शब्द से HE ….अर्थात वह होता है। हिन्दी भाषा शब्दकोश में इसका एक अर्थ अहं है। Heart से अहंकार सूचक शब्द he को हटा देंवें, तो केवल - art ….बचेगा! आर्ट का अर्थ है कला….!
कलाकार बनने के लिए विनम्रता बहुत आवश्यक तत्व है। जब आप अनेक कलाओं से भरे होंगे, तो दुनिया के कान आपकी तरफ होंगे और सब सरायेंगे भी।
यदि Heart में R को साइलेंट करें, तो Heat बचेगा। Heat के हिसाब से सब परिचित हैं।
heat ऊष्मा या ऊष्मीय ऊर्जा, ऊर्जा का एक रूप है, जो ताप के कारण होता है। ऊर्जा के अन्य रूपों की तरह ऊष्मा का भी प्रवाह होता है। अगर आप HAT या नफरत से भरें, तो यह Heat आपको बीमार कर देगी।
आयुर्वेद चंद्रोदय किताब के मुताबिक Hat रूपी Heat की वजह से पित्तदोष होता है।
सभी धर्मग्रंथ, सन्त, पंथ…अंत में यही बताते हैं कि- द्वेष-दुर्भावना, कामना, काम भावना, कामवासना, व्यर्थ की संभावना, ताड़ना, यानि बुरी नजर, ज्यादा खाँसना, आसना(इश्क) यह सब स्वास्थ्य को खराब करते हैं।
कान में कर्णप्रिय शब्द मन में अमन लाते हैं।
वेद की एक ऋचा में भी कान से अच्छा सुने, ऐसा लिखा है-
भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः!
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः!!(ऋग्वेद मंडल 1, सूक्त 89, मंत्र 8)

अर्थात- हे भोलेनाथ!! हम तुम्हारा चिंतन, मनन, भजन


जब हम अपने कानों से कल्याणमय वचन सुनकर यजत्राः…यानि हम अपनी आंखों से मंगलमय घटित होते देखें । नीरोग इंद्रियों एवं स्वस्थ देह के माध्यम से आपकी स्तुति करते हुए तुष्टुवांसः…. अर्थात हम हमारे देह हितार्थ देवहितं …मतलब १०० वर्ष अथवा उससे भी अधिक जो आयु हमारी निश्चित कर रखी है उसे प्राप्त करें।

व्यशेम से तात्पर्य है कि हमारे शरीर के सभी अंग और इंद्रियां स्वस्थ एवं क्रियाशील बने रहें और हम सौ या उससे अधिक की अमृतम रोगरहित लंबी आयु पावें।

संस्कृत भाषा में कान को कर्ण भी कहते हैं। देखें ईश्वरोउपनिषद ग्रन्थ की फोटो—



सूर्य और वायु के कारण हम सुन पाते हैं लेकिन इन्हें कुछ मानते नहीं है। लोग कभी सुबह उठकर इन्हें प्रणाम भी नहीं करते। खैर अपाकी मर्जी…

सीस कान मुख नासिका, ऊँचे ऊँचे नाँव।

सहजो नीचे कारने, सब कोई पूजे पाँव।।

हमारे शरीर में मुख, सिर, नाक, कान जैसे अनेक अंग-इन्द्रिय होते हैं जिनके स्थान भी ऊंचे हैं। किन्तु सबसे नीचे रहने वाले मलीन पैर/चरणों की ही पूजा केवल उन्हीं की होती है, जो अपने कान बन्द रखते हैं।
कानाफूसी करने वाले, कच्चे कान वाले लोगों से कभही भी भूलकर रिश्ता या सम्बन्ध न बनाएं।
कर्ण का एक अर्थ है- छेद या सुराख करना, सुनना !!कर्णयति-ते, कर्णित!!

बहुत प्राचीन हिंदी संस्कृत शब्दकोश में कर्ण के अर्थ का चित्र देखें ..


कान के साइड इफ़ेक्ट…

कान ही कल्पांतर से कलह, क्लेश, किच-,किच का कारण है।
कान के कारण ही बड़े-बड़े किंग कचरे में मिल मिल गए।
कच्चे कान वाले लोग कीच में पड़े रहते हैं।
किसी के कान में भनक लगते ही कंचन (सोना) चोरी हो जाता है!
कंचन कामिनी युवती के कान में प्रेम के शब्द पड़ते ही वह दीवानी हो जाती है।
कच्चे कान के कारण ही दो सगे भाई कान की तरह अलग-अलग हो जाते हैं।
काल के कलाकार महाकाल ने कटि यानी कमर से कंचन अर्थात मांस, निकालकर नारी के कुचिन मध्य रख दिये, तो वे स्तन, वक्ष कहलाये। किसी ने शायद इसीलिए लिखा कि-
।।काया कंचन की बनी, काहे को कटि क्षीण।।

कर्णफूल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आयुर्वेदिक निघण्ट में इसे लौंग बताया है। दानवीर कर्ण से इसकी खोज की, तो लौंग को कर्णफूल भी कहते हैं। लौंग एक संक्रमण नाशक मसाला है और कैंसर से बचने के लिए इसे खाना अति आवश्यक है।
कान दो होते हैं, जो दुकान पर बैठकर खुले रखना चाहिए।
धन्य-धान्य की वृद्धि के लिए बुजुर्गों की बातें कान लगाकर, बड़े ध्यान से सुनना हितकारी रहता है।
!!करिये सुख को होत दुख, यह कहु कौन सयान!! वा सोने कौ जारिये, जासों टूटै कान।।

बड़े-बुजुर्ग कहते हैं - धन सुख भोगें लेकिन जिस सुख से तकलीफ या वेदना हो वह बेकार है। जैसे कान में पहना हुआ सोना अगर कान को पीड़ा देने लगे, तो उसे त्यागना ही श्रेष्ठकर है।
गुरुमंत्र सदा कान में फूंका या सुनाया जाता है।
कान की करुणामय कथा…

बचपन में पढ़ाई में दिमाग काम न करे, कोई गलती हो जाती थी, तो मास्टरजी सबसे पहले कान ही मरोड़ते थे।
अच्छा-बुरा सुनने की जिम्मेदारी कान की है।
कान ही करोड़पति बनाने वाले बड़े काम के गुण सुनता है और हम उसमें लकड़ी, तिनका डालकर उसे दर्द देते हैं।
सम्पूर्ण देह में केवल कान, नाक में ही छेद कर दुःख दिया जाता है।
लोग थप्पड़ भी कान पर ही मरते हैं।
कान बड़े होते दोनों ही दो केले के पत्ते से, तो

मैं सुन लेता मामा की बातें सब कलकते से।

निवेदन… अपने मुख से उतना ही बोले, जितना दूसरे का कान सुन सकें।

मत ले जाओ हमें दीवारों के पास, घृणा है मुझे उनसे जिनके कच्चे कान होते हैं।

युवा पीढ़ी के कान iloveyou सुनने को सदा तरसते हैं।
उसने धीरे से कान में बोला…तेरी तितली उदास है जुगनू।

अब तुमसे बातें बहुत कम किया करूंगी अब से…

क्योंकि कान को शिकायत है कि मैं चुगली करने लगी हूँ।

जीवन में एक बार उत्तराखंड के मुख्य तीर्थ कर्णप्रयाग जाकर शिव कर्णेश्वर के दर्शन करें, तो कान भराई से बहुत राहत मिलेगी।
कान की कथा का अभी अंत नही हुआ है। स्वस्थ्य-तन्दरुस्त रहने के लिए अमृतमपत्रिका गूगल, क्योरा, विकिपीडिया पर देखें।
अमृतम गोल्ड माल्ट सपरिवार लेवें।

{{ज्ञा्नसंदूक शरीर व्यवच्छेद-विद्या |
{{ज्ञा्नसंदूक शरीर व्यवच्छेद-विद्या |
Name = कान |
Name = कान |

06:04, 5 अक्टूबर 2021 का अवतरण

कान को संस्कृत में क्या कहते हैं?

कान की ख़ासियत क्या है?..

क्या कान का कच्चा होना सही है। लोग कान क्यों भरते हैं। कानाफूसी, चुगली कैसे करते हैं? जाने कान के किस्से एवं सभी रोचक रहस्य अमृतमपत्रिका, चित्रगुप्त गंज, नईसड़क, ग्वालियर मप्र के इस लेख में..

कान के बारे में इतने भावुक, कर्णप्रिय रोचक रहस्य आज तक नहीं पढ़े होंगे। आनंद लेवें। जीने का मजा किरकिरा, कर देते हैं वे लोग। एक तो कान के कच्चे, दूसरे भरने वाले लोग।।

कान के कारण ही हर किसी में करुणा भाव आता है। कान पर चश्मे, ईयरफोन, नारी के झुमके का बोझ है। कान को हमेशा खूंटी ही समझा गया।

मुँह-मस्तिष्क की गलती पर गालियाँ कान ही सुनता है।

बरेली के बाजार में झुमका कान से ही गिरा था, ऐसा किसी गाने में गाया है। लोग किसी भी बात को दिल लगाकर सुने, कान लगाकर नहीं!…. यही खुश रहने का फंडा है।

वो दिल की बातें दिल से सुन लेती है….कानों पर एतवार नहीं। भरोसा, प्रेम इसी को कहते हैं। यह पुरानी टेलीपैथी परम्परा थी।

कान का करें सम्मान…

आँख के चश्मे का भी उस पर भार,….फिर भी नहीं प्रकट करता कान का आभार

सच्चाई से गौर करें, तो खूबसूरती की बहुत बड़ी वजह कान है, किंतु कान को कभी कोई धन्यवाद नहीं देता। इसलिए उसमें से मवाद आने लगता है।

अतः कान का सम्मान करें क्योंकि ध्यान साधना में.. !!ॐ!! की गूंज कान में ही सुनाई पड़ती है।

कान ही जहान है। कर्ण में नाकारात्मक, शब्द, बातचीत जाने से रोके, तो कण-कण में शिव और गुरु के के दर्शन होते हैं।

कान कब क्लेश-कलह कराकर कष्ट में ला दे, पता नहीं। कान के कारण ही कुछ लोग कारागृह में बन्द हैं।

Heart और Ear के रहस्य.... कान को अंग्रेजी में Ear कहते हैं। Ear के पहले H और अंत में T लगाने से Heart अर्थात ह्रदय शब्द बनता है। !! H !!…….का मतलब है कि कान से सदैव हाइलेबिल तथा सकरात्मक एवं काम की बातें सुनकर अपने अंदर - T ….यानी टेलेंट पैदा करें और जीवन में भयंकर उन्नति प्राप्त कर अपने दिल को आराम देंवें। Thinking की शुरू भी T … से होती है। सोच को बदलते ही सितारे बदल जाते हैं। जिंदगी में परेशानियां सबके साथ खड़ी हैं, जीत जाते हैं, वे लोग जिनकी सोच बड़ी है।

पत्थर की तरह न थिंकिंग न बनाओ खुद की… किसी दीवार में चुने जा सकते हो। जब आप सफल हो जाएंगे, तो आपके कार्यों की गूंज सबके कान में सुनाई देगी। कान के कारण ही हम स्वस्थ्य और बीमार रह सकते हैं। अच्छा सुनोगे, तो अच्छा करोगे और अच्छा ही पाओगे। यही सन्सार का सिद्धांत है। कान मनुष्य की 5 ज्ञान इन्द्रिय में से एक मुख्य हिस्सा है। जो किस्सा सुनने के काम आते हैं। जगत का सारा ज्ञान कान की वजह से ही बढ़ता है। यह दिल की बात है-दिल्लगी की नहीं…. कहते तो यही है कि- दिल की लगी न हो, तो क्या जिंदगी है। इसमें कान का विशेष योगदान है।

अगर Heart शब्द से HE ….अर्थात वह होता है। हिन्दी भाषा शब्दकोश में इसका एक अर्थ अहं है। Heart से अहंकार सूचक शब्द he को हटा देंवें, तो केवल - art ….बचेगा! आर्ट का अर्थ है कला….! कलाकार बनने के लिए विनम्रता बहुत आवश्यक तत्व है। जब आप अनेक कलाओं से भरे होंगे, तो दुनिया के कान आपकी तरफ होंगे और सब सरायेंगे भी। यदि Heart में R को साइलेंट करें, तो Heat बचेगा। Heat के हिसाब से सब परिचित हैं। heat ऊष्मा या ऊष्मीय ऊर्जा, ऊर्जा का एक रूप है, जो ताप के कारण होता है। ऊर्जा के अन्य रूपों की तरह ऊष्मा का भी प्रवाह होता है। अगर आप HAT या नफरत से भरें, तो यह Heat आपको बीमार कर देगी। आयुर्वेद चंद्रोदय किताब के मुताबिक Hat रूपी Heat की वजह से पित्तदोष होता है। सभी धर्मग्रंथ, सन्त, पंथ…अंत में यही बताते हैं कि- द्वेष-दुर्भावना, कामना, काम भावना, कामवासना, व्यर्थ की संभावना, ताड़ना, यानि बुरी नजर, ज्यादा खाँसना, आसना(इश्क) यह सब स्वास्थ्य को खराब करते हैं। कान में कर्णप्रिय शब्द मन में अमन लाते हैं। वेद की एक ऋचा में भी कान से अच्छा सुने, ऐसा लिखा है- भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः! स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः!!(ऋग्वेद मंडल 1, सूक्त 89, मंत्र 8)

अर्थात- हे भोलेनाथ!! हम तुम्हारा चिंतन, मनन, भजन


जब हम अपने कानों से कल्याणमय वचन सुनकर यजत्राः…यानि हम अपनी आंखों से मंगलमय घटित होते देखें । नीरोग इंद्रियों एवं स्वस्थ देह के माध्यम से आपकी स्तुति करते हुए तुष्टुवांसः…. अर्थात हम हमारे देह हितार्थ देवहितं …मतलब १०० वर्ष अथवा उससे भी अधिक जो आयु हमारी निश्चित कर रखी है उसे प्राप्त करें।

व्यशेम से तात्पर्य है कि हमारे शरीर के सभी अंग और इंद्रियां स्वस्थ एवं क्रियाशील बने रहें और हम सौ या उससे अधिक की अमृतम रोगरहित लंबी आयु पावें।

संस्कृत भाषा में कान को कर्ण भी कहते हैं। देखें ईश्वरोउपनिषद ग्रन्थ की फोटो—


सूर्य और वायु के कारण हम सुन पाते हैं लेकिन इन्हें कुछ मानते नहीं है। लोग कभी सुबह उठकर इन्हें प्रणाम भी नहीं करते। खैर अपाकी मर्जी…

सीस कान मुख नासिका, ऊँचे ऊँचे नाँव।

सहजो नीचे कारने, सब कोई पूजे पाँव।।

हमारे शरीर में मुख, सिर, नाक, कान जैसे अनेक अंग-इन्द्रिय होते हैं जिनके स्थान भी ऊंचे हैं। किन्तु सबसे नीचे रहने वाले मलीन पैर/चरणों की ही पूजा केवल उन्हीं की होती है, जो अपने कान बन्द रखते हैं। कानाफूसी करने वाले, कच्चे कान वाले लोगों से कभही भी भूलकर रिश्ता या सम्बन्ध न बनाएं। कर्ण का एक अर्थ है- छेद या सुराख करना, सुनना !!कर्णयति-ते, कर्णित!!

बहुत प्राचीन हिंदी संस्कृत शब्दकोश में कर्ण के अर्थ का चित्र देखें ..


कान के साइड इफ़ेक्ट…

कान ही कल्पांतर से कलह, क्लेश, किच-,किच का कारण है। कान के कारण ही बड़े-बड़े किंग कचरे में मिल मिल गए। कच्चे कान वाले लोग कीच में पड़े रहते हैं। किसी के कान में भनक लगते ही कंचन (सोना) चोरी हो जाता है! कंचन कामिनी युवती के कान में प्रेम के शब्द पड़ते ही वह दीवानी हो जाती है। कच्चे कान के कारण ही दो सगे भाई कान की तरह अलग-अलग हो जाते हैं। काल के कलाकार महाकाल ने कटि यानी कमर से कंचन अर्थात मांस, निकालकर नारी के कुचिन मध्य रख दिये, तो वे स्तन, वक्ष कहलाये। किसी ने शायद इसीलिए लिखा कि- ।।काया कंचन की बनी, काहे को कटि क्षीण।।

कर्णफूल के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आयुर्वेदिक निघण्ट में इसे लौंग बताया है। दानवीर कर्ण से इसकी खोज की, तो लौंग को कर्णफूल भी कहते हैं। लौंग एक संक्रमण नाशक मसाला है और कैंसर से बचने के लिए इसे खाना अति आवश्यक है। कान दो होते हैं, जो दुकान पर बैठकर खुले रखना चाहिए। धन्य-धान्य की वृद्धि के लिए बुजुर्गों की बातें कान लगाकर, बड़े ध्यान से सुनना हितकारी रहता है। !!करिये सुख को होत दुख, यह कहु कौन सयान!! वा सोने कौ जारिये, जासों टूटै कान।।

बड़े-बुजुर्ग कहते हैं - धन सुख भोगें लेकिन जिस सुख से तकलीफ या वेदना हो वह बेकार है। जैसे कान में पहना हुआ सोना अगर कान को पीड़ा देने लगे, तो उसे त्यागना ही श्रेष्ठकर है। गुरुमंत्र सदा कान में फूंका या सुनाया जाता है। कान की करुणामय कथा…

बचपन में पढ़ाई में दिमाग काम न करे, कोई गलती हो जाती थी, तो मास्टरजी सबसे पहले कान ही मरोड़ते थे। अच्छा-बुरा सुनने की जिम्मेदारी कान की है। कान ही करोड़पति बनाने वाले बड़े काम के गुण सुनता है और हम उसमें लकड़ी, तिनका डालकर उसे दर्द देते हैं। सम्पूर्ण देह में केवल कान, नाक में ही छेद कर दुःख दिया जाता है। लोग थप्पड़ भी कान पर ही मरते हैं। कान बड़े होते दोनों ही दो केले के पत्ते से, तो

मैं सुन लेता मामा की बातें सब कलकते से।

निवेदन… अपने मुख से उतना ही बोले, जितना दूसरे का कान सुन सकें।

मत ले जाओ हमें दीवारों के पास, घृणा है मुझे उनसे जिनके कच्चे कान होते हैं।

युवा पीढ़ी के कान iloveyou सुनने को सदा तरसते हैं। उसने धीरे से कान में बोला…तेरी तितली उदास है जुगनू।

अब तुमसे बातें बहुत कम किया करूंगी अब से…

क्योंकि कान को शिकायत है कि मैं चुगली करने लगी हूँ।

जीवन में एक बार उत्तराखंड के मुख्य तीर्थ कर्णप्रयाग जाकर शिव कर्णेश्वर के दर्शन करें, तो कान भराई से बहुत राहत मिलेगी। कान की कथा का अभी अंत नही हुआ है। स्वस्थ्य-तन्दरुस्त रहने के लिए अमृतमपत्रिका गूगल, क्योरा, विकिपीडिया पर देखें। अमृतम गोल्ड माल्ट सपरिवार लेवें।

कान
मानव बाह्यकर्ण

मानव व अन्य स्तनधारी प्राणियों मे कर्ण या कान श्रवण प्रणाली का मुख्य अंग है। कशेरुकी प्राणियों मे मछली से लेकर मनुष्य तक कान जीववैज्ञानिक रूप से समान होता है सिर्फ उसकी संरचना गण और प्रजाति के अनुसार भिन्नता का प्रदर्शन करती है। कान वह अंग है जो ध्वनि का पता लगाता है, यह न केवल ध्वनि के लिए एक ग्राहक (रिसीवर) के रूप में कार्य करता है, अपितु शरीर के संतुलन और स्थिति के बोध में भी एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

"कान" शब्द को पूर्ण अंग या सिर्फ दिखाई देने वाले भाग के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। अधिकतर प्राणियों में, कान का जो हिस्सा दिखाई देता है वह ऊतकों से निर्मित एक प्रालंब होता है जिसे बाह्यकर्ण या कर्णपाली कहा जाता है। बाह्यकर्ण श्रवण प्रक्रिया के कई कदमो मे से सिर्फ पहले कदम पर ही प्रयुक्त होता है और शरीर को संतुलन बोध कराने में कोई भूमिका नहीं निभाता। कशेरुकी प्राणियों मे कान जोड़े मे सममितीय रूप से सिर के दोनो ओर उपस्थित होते हैं। यह व्यवस्था ध्वनि स्रोतों की स्थिति निर्धारण करने में सहायक होती है।

कर्ण मानव जीवन मे अत्यंत महत्वपूर्ण भुमिका निभाता हैं यह हमे श्रवन के साथ साथ हमारे शरीर को संतुलित भी बनाये रखता हैं साथ ही यह हमारे संवेदनशील अंग का मुख्य हिस्सा भी होता हैं कर्ण हमे तरह तरह की धव्नी को पहचानने मे भी मदद करता हैं

भाग

मानवीय कान के तीन भाग होते हैं-

  • बाह्य कर्ण
  • मध्य कर्ण
  • आंतरिक कर्ण

अब जन्म से बहरे बच्चों का भी काॅक्लियर इम्पलांट सर्जरी के माधयम से आॅपरेशन करके उन्हें ठीक किया जा सकता है और बे बच्चे भी सुन सकते हैं और बोल भी सकते हैं

बाहरी कान
कीप या कर्णपाली से आवाज़ की तरंगें इकट्ठी करके कान के पर्दे तक पहुँचाती है। इससे कान के पर्दे में कम्पन होता है। बाहरी कान के गुफानुमा रास्ते की त्वचा आम त्वचा जैसे एक चिकना पदार्थ स्वात्रित करती है। यही पदार्थ इकट्ठा होकर कान की मोम बनाता है। मोम धूल और अन्य कणों को इकट्ठा करने में मदद करती है। हम में से ज़्यादातर लोगों को कान में से बार बार यह मोम निकालते रहने की आदत होती है। इस आदत से चोट लग सकती है। अक्सर मोम सख्त हो कर कान के पर्दे पर चिपक जाती है। इससे बाहरी कान में दर्द होता है।
मध्य कान
मध्य कान यूस्टेशियन ट्यूब द्वारा नाक की गुफा से जुड़ा रहता है। यूस्टेशियन नाक को ई एन टी (ईयर नोज़ थ्रोट) ट्यूब भी कह सकते हैं क्योंकि यह कान नाक और गले को जोड़ती है। इसके कारण मध्य कर्ण वातावारण में अचानक हुए हवा के दबाव में बदलाव को झेल सकती है। अगर अचानक किसी विस्फोट या धमाके की आवाज़ कान के पर्दे से टकराए तो वो फटता नहीं है क्योंकि यह जबर्दस्त दवाब ईएनटी ट्यूब द्वारा नाक की गुफा में चला जाता है। पर मुश्किल यह है कि यही ई एन टी ट्यूब नाक व गले के संक्रमण भी कान तक पहुँचा देती है।

आतंरिक कर्ण:-

इसे लैबरंथ भी कहते है

आंतरिक कान या लैबरिंथ शंखनुमा संरचना होती है। इस शंख में द्रव भर रहता है। यह आवाज़ के कम्पनों को तंत्रिकाओं के संकेतों में बदल देती है। ये संकेत आठवीं मस्तिष्क तंत्रिका द्वारा दिमाग तक पहुँचाती है। आन्तर कर्ण (लैबरिंथ) की अंदरूनी केशनुमा संरचनाएँ आवाज़ की तरंगों की आवृति के अनुसार कम्पित होती हैं।

आवाज़ की तरंगों को किस तरह अलग-अलग किया जाता है यह समझना बहुत ही मज़ेदार है। आन्तर कर्ण (लैबरिंथ) में स्थित पटि्टयों का संरचना हारमोनियम जैसे अलग-अलग तरह से कम्पित होती हैं।

यानि आवाज़ की तरंगों की किसी एक आवृत्ति से कोई एक पट्टी कम्पित होगी। और दिमाग इसे एक खास स्वर की तरह समझ लेता है। इस ध्वनिज्ञान के विषय में और भी कुछ मत है।

बाहरी कड़ियाँ