"मोपला विद्रोह": अवतरणों में अंतर

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लिहाजा झूठे आख्यानों से परे इसे वास्तविक रूप में देखना और समझना महत्वपूर्ण है कि 1921 में आखिर हुआ क्या था। दंगों के समय मालाबार की जनसंख्या में मोपला की संख्या करीब 35 प्रतिशत थी। मोपला मलयाली भाषी मुसलमान थे, जिनकी जड़ें अरब में थीं। यह इस क्षेत्र में सबसे बड़ा समुदाय बन गया था। 20 अगस्त 1921 से शुरू होकर कई महीनों तक चली इस हिंसा को पक्षपाती वामपंथी इतिहासकारों और कांग्रेस द्वारा जमींदारों और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के रूप में चित्रित किया गया, लेकिन यह सच्चाई नहीं थी। मालाबार में सांप्...
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लिहाजा झूठे आख्यानों से परे इसे वास्तविक रूप में देखना और समझना महत्वपूर्ण है कि 1921 में आखिर हुआ क्या था। दंगों के समय मालाबार की जनसंख्या में मोपला की संख्या करीब 35 प्रतिशत थी। मोपला मलयाली भाषी मुसलमान थे, जिनकी जड़ें अरब में थीं। यह इस क्षेत्र में सबसे बड़ा समुदाय बन गया था। 20 अगस्त 1921 से शुरू होकर कई महीनों तक चली इस हिंसा को पक्षपाती वामपंथी इतिहासकारों और कांग्रेस द्वारा जमींदारों और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के रूप में चित्रित किया गया, लेकिन यह सच्चाई नहीं थी।
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09:40, 25 सितंबर 2021 का अवतरण

मोपला विद्रोह मालाबार में क्रूरता का कलंकित अध्याय
खिलाफत आन्दोलन, मोपला विद्रोह और [[भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन से इसका कोई लेना देना नही है। यह एक सांप्रदायिक दंगा था जिसमे हिंदुओं को मारा गया और जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया हिंदू लड़कियों और महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया]] का भाग
South Malabar 1921.png
वर्ष 1921 में दक्षिण मालाबार; लाल रंग में प्रदर्शित तालुक विद्रोह से प्रभावित
तिथि 20 अगस्त1921
स्थान मालाबार
परिणाम विद्रोह दबा दिया गया
योद्धा
ब्रिटिश राज, हिन्दू मापिला
सेनानायक
थॉमस टी॰एस॰ हिट्चॉक, ए॰ एस॰ पी॰ अमु अली मुस्लियार, वरियान कान्नाथु कुंजहम्मद हाजी, सिथी कोया ठंगल, चेम्ब्रेसरी ठंगल, के॰ मोइटींकुट्टी हाजी, कोन्नार ठंगल, अबदू एच॰ हिन[1]
मृत्यु एवं हानि
ब्रितानी सेना: 43 सैनिक मारे गये, 126 सैनिक घायल 50,000 को कारावास

मोपला नरसंहार

केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा १९२१में स्थानीय और हिन्दुओं के विरुद्ध किया गया था। यह विद्रोह मोपला नरसंहार कहलाता है। यह विद्रोह मालाबार के एरनद और वल्लुवानद तालुका में खिलाफत आन्दोलन के असफलता के विरुद्ध हुआ था और इसका कारण हिंदुओं को बताया गया था। इस नरसंहार में मुसलमानों द्वारा 10 हज़ार हिंदुओं का मारा गया, 5 हज़ार महिलाओं के साथ दरिंदगी की गई 1 लाख विस्थापित हुए। विनायक दामोदर सावरकर ने 'मोपला' नामक उपन्यास की रचना की है। इस प्रकार देखा जाए तो वर्ष 1921 में जो हुआ, बना वह वस्तुतः मालाबार में वर्षों से चल रही सांप्रदायिक र्षों घृणा का नतीजा था। इस भीषण हिंसा से पहले ने मालाबार में लगभग 50 हिंसक घटनाएं हुई थीं। इनमें से ज्यादातर हिंसक घटनाएं इसलिए घटित हुईं, क्योंकि मुसलमान मस्जिद बनाने के लिए हिंदू मंदिरों के पास की जमीन पर कब्जा करने का प्रयास कर रहे थे। वहीं जिन इलाकों में मुस्लिम बहुसंख्यक थे, वहां जबरन मतांतरण की मुहिम चलाई जा रही थी।

बोए

यहां एक तथ्य यह भी है कि इनमें से एक भी घटना का कृषि संकट से कोई लेनादेना नहीं था। वास्तव में उत्तरी मालाबार में जमींदारों की अच्छी खासी आबादी मुसलमानों की भी थी। वे 1921 में हुए सभी तथाकथित किसान विद्रोहों से अछूते रहे। इस दौरान वेरियनकुनाथ कुन्हम्मद हाजी, जो कुछ सबसे भीषण घटनाओं के लिए जिम्मेदार थे, उनकी विश्वसनीयता किसान आंदोलन के नेतृत्व को लेकर बेहद कमजोर हो चुकी थी। ये कुछ ऐसे तथ्य हैं जो आज तक निर्विवाद हैं। इनके जवाब मोपला दंगों के इर्दगिर्द बुने गए झूठे कृषि विद्रोह का नाम दे दिया गया जबकि यह एक शरियत सरकार बनाने के लिए किया गया था।जिसमे यह प्रचारित किया गया था।

लिहाजा झूठे आख्यानों से परे इसे वास्तविक रूप में देखना और समझना महत्वपूर्ण है कि 1921 में आखिर हुआ क्या था। दंगों के समय मालाबार की जनसंख्या में मोपला की संख्या करीब 35 प्रतिशत थी। मोपला मलयाली भाषी मुसलमान थे, जिनकी जड़ें अरब में थीं। यह इस क्षेत्र में सबसे बड़ा समुदाय बन गया था। 20 अगस्त 1921 से शुरू होकर कई महीनों तक चली इस हिंसा को पक्षपाती वामपंथी इतिहासकारों और कांग्रेस द्वारा जमींदारों और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के रूप में चित्रित किया गया, लेकिन यह सच्चाई नहीं थी। मालाबार में सांप्रदायिकता के बीज 1766 में बोए गए थे, जब हैदर अली और टीपू सुल्तान द्वारा क्षेत्र के इति हिंदुओं और ईसाइयों के खिलाफ हिंसक मुहिम छेड़ी गई। इस कारण लाखों लोगों को अपने घरों से भागना वह की यह शृंखला यूं तो 150 वर्षों घृप् पड़ा। हिंसक घटनाओं की कालावधि में फैली हुई है, लेकिन जिस पहलू ने मा पहले से मौजूद सांप्रदायिक विभाजन की खाई को इन् और चौड़ा किया तो वह था खिलाफत आंदोलन ।


अली बंधुओं- शौकत अली, मोहम्मद अली जौहर के और अबुल कलाम आजाद के नेतृत्व में खिलाफत आंदोलन का समर्थन करने वाला एक प्रस्ताव 28 अप्रैल 1920 को मालाबार जिला सम्मेलन में पारित हुआ। इसके बाद एक तिरुरंगदी मस्जिद के इमाम अली मुस्लीर ने नेतृत्व अपने हाथ में लिया और इस्लामी कानून को देश का कानून बनाने का प्रयास किया। इस्लामिक राज्य की स्थापना के अंतिम लक्ष्य को गति देने के लिए एक अफवाह फैलाई गई कि अफगानिस्तान के अमीर ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया है और मुसलमानों के लिए इस क्षेत्र पर दावा करने का समय आ गया है। अन्य मुस्लिम नेता जैसे वरियनकनाथ जी ने तब तक खुद को इस्लामिक स्टेट का गवर्नर घोषित कर दिया था और मुस्लिम लोगों को भड़काना शुरू कर दिया था।क्षेत्र के गैर मुस्लिम लोगों के ऊपर जजिया कर या धार्मिक कर भी लगाया गया।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Besant, Annie. The Future of Indian Politics: A Contribution To The Understanding Of Present-Day Problems P252. Kessinger Publishing, LLC. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1428626050. They murdered and plundered abundantly, and killed or drove away all Hindus who would not apostatize. Somewhere about a lakh of people were driven from their homes with nothing but the clothes they had on, stripped of everything. Malabar has taught us what Islamic rule still means, and we do not want to see another specimen of the Khilafat Raj in India.