"शरीफा": अवतरणों में अंतर
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'''शरीफ़ा''' या सीताफल (कस्टर्ड ऐपल) एक प्रकार का फल है। इसका वानस्पतिक नाम अन्नोना स्क्वामोसा है। नंदेली गांव में इसको कठेर के नाम से जाना जाता है। यह पेड़ बहुत पहले अन्य देशों से लाया गया था बाद में इसकी खेती अब पूरे भारत में की जाती है और दक्षिण भारत में अपने आप भी उग आता है इसका पेड़ छोटा और तना साफ छाल हल्के नीले रंग की होती है |
'''शरीफ़ा''' या सीताफल (कस्टर्ड ऐपल) एक प्रकार का फल है। इसका वानस्पतिक नाम अन्नोना स्क्वामोसा है। नंदेली गांव में इसको कठेर के नाम से जाना जाता है। यह पेड़ बहुत पहले अन्य देशों से लाया गया था बाद में इसकी खेती अब पूरे भारत में की जाती है और दक्षिण भारत में अपने आप भी उग आता है इसका पेड़ छोटा और तना साफ छाल हल्के नीले रंग की होती है छत्तीसगढ़ में सीताफल बालोद जिले के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र और जंगल में बहुत अधिक तादाद में पाया जाता है यह प्राकृतिक रूप से तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है सीताफल में विशेष प्रकार की गंध विद्यमान रहते हैं। जिसके कारण पशु पक्षी पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाते है सीताफल के बीज कठोर आवरण से परिपूर्ण रहते हैं जिस वजह से भूमि में अन्य बैक्टीरिया फंगस का इन्फेक्शन ना होने के कारण आसानी से पौधे तैयार हो जाते हैं |
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सीताफल बालोद जिले के जंगल ग्रामीण अंचल में भारी तादाद में पाए जाते हैं इस वजह से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं बच्चे सीताफल का सीजन आने पर उसे तोड़ के शहरी क्षेत्र में कम दाम में बेच देते हैं दिल्ली मुंबई रायपुर जैसे बड़े शहरों में सीताफल डेढ़ सौ से ₹200 किलो तक मिलता है |
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जैविक खेती में सीताफल की खेती आसानी से की जा सकती है सीताफल का प्रयोग प्राकृतिक फैंसिंग बनाने के लिए भी उपयोग में लाई जा सकता है खेत के चारों तरफ सीताफल के पेड़ लगाने से बाहरी जीव जंतुओं का आक्रमण खेत में आने से रोका जा सकता है खेती करने से सीताफल से अतिरिक्त आमदनी मिल सकती है |
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03:50, 14 सितंबर 2021 का अवतरण
शरीफ़ा या सीताफल (कस्टर्ड ऐपल) एक प्रकार का फल है। इसका वानस्पतिक नाम अन्नोना स्क्वामोसा है। नंदेली गांव में इसको कठेर के नाम से जाना जाता है। यह पेड़ बहुत पहले अन्य देशों से लाया गया था बाद में इसकी खेती अब पूरे भारत में की जाती है और दक्षिण भारत में अपने आप भी उग आता है इसका पेड़ छोटा और तना साफ छाल हल्के नीले रंग की होती है छत्तीसगढ़ में सीताफल बालोद जिले के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र और जंगल में बहुत अधिक तादाद में पाया जाता है यह प्राकृतिक रूप से तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है सीताफल में विशेष प्रकार की गंध विद्यमान रहते हैं। जिसके कारण पशु पक्षी पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाते है सीताफल के बीज कठोर आवरण से परिपूर्ण रहते हैं जिस वजह से भूमि में अन्य बैक्टीरिया फंगस का इन्फेक्शन ना होने के कारण आसानी से पौधे तैयार हो जाते हैं
सीताफल बालोद जिले के जंगल ग्रामीण अंचल में भारी तादाद में पाए जाते हैं इस वजह से ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं बच्चे सीताफल का सीजन आने पर उसे तोड़ के शहरी क्षेत्र में कम दाम में बेच देते हैं दिल्ली मुंबई रायपुर जैसे बड़े शहरों में सीताफल डेढ़ सौ से ₹200 किलो तक मिलता है
जैविक खेती में सीताफल की खेती आसानी से की जा सकती है सीताफल का प्रयोग प्राकृतिक फैंसिंग बनाने के लिए भी उपयोग में लाई जा सकता है खेत के चारों तरफ सीताफल के पेड़ लगाने से बाहरी जीव जंतुओं का आक्रमण खेत में आने से रोका जा सकता है खेती करने से सीताफल से अतिरिक्त आमदनी मिल सकती है
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