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'''माइटोकॉण्ड्रिया''' [[जीवाणु]] एवं [[नील हरित शैवाल]] को छोड़कर शेष सभी सजीव [[पादप]] एवं [[जंतु]] [[कोशिकाओं]] के [[कोशिका द्रव]] में अनियमित रूप से बिखरे हुए द्वीप-एकक पर्दा युक्त अंगाणुओं को कहते हैं। कोशिका के अंदर [[सूक्ष्मदर्शी]] की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-77672.html माइटोकॉण्ड्रिया ]।हिन्दुस्तान लाइव।{{हिन्दी चिह्न}}।[[२४अक्तूबर]],[[२००९]]</ref> |
'''माइटोकॉण्ड्रिया''' [[जीवाणु]] एवं [[नील हरित शैवाल]] को छोड़कर शेष सभी सजीव [[पादप]] एवं [[जंतु]] [[कोशिकाओं]] के [[कोशिका द्रव]] में अनियमित रूप से बिखरे हुए द्वीप-एकक पर्दा युक्त अंगाणुओं को कहते हैं। कोशिका के अंदर [[सूक्ष्मदर्शी]] की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-77672.html माइटोकॉण्ड्रिया ]।हिन्दुस्तान लाइव।{{हिन्दी चिह्न}}।[[२४अक्तूबर]],[[२००९]]</ref> ये [[कोशिका]] के [[कोशिका द्रव]] में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है। माइटोकाण्ड्रिया के भीतर आनुवांशिक पदार्थ के रूप में [[डीएनए]] होता है जो वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य एवं खोज़ का विषय हैं। माइटोकाण्ड्रिया में उपस्थित डीएनए की रचना एवं आकार जीवाणुओं के डीएनए के समान है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि लाखों वर्ष पहले शायद कोई जीवाणु मानव की किसी कोशिका में प्रवेश कर गया होगा एवं कालांतर में उसने कोशिका को ही स्थायी निवास बना लिया। माइटोकाण्ड्रिया के डीएनए एवं कोशिकाओं के केन्द्रक में विद्यमान डीएनए में ३५-३८ जीन एक समान हैं। अपने डीएनए की वज़ह से माइकोण्ड्रिया कोशिका के भीतर आवश्यकता पड़ने पर अपनी संख्या स्वयं बढ़ा सकते हैं। संतानो की कोशिकाओं में पाया जाने वाला माइटोकांड्रिया उन्हें उनकी माता से प्राप्त होता है। निषेचित अंडों के माइटोकाण्ड्रिया में पाया जाने वाले [[डीएनए]] में शुक्राणुओं की भूमिका नहीं होती। है।<ref name="भगवती">[http://chankay.blogspot.com/2009/08/blog-post_3061.html निरोगी होगा शिशु ... गारंटी]।चाणक्य।{{हिन्दी चिह्न}}।[[३१ अगस्त]], [[२००९]]।भगवती लाल माली</ref><ref name="भगवती"/> |
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[[श्वसन]] की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश [[ऊर्जा]] उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या शक्ति गृह (पावर हाउस) कहा जाता है। जीव विज्ञान की प्रशाखा कोशिका विज्ञान या सेल-बायोलॉजी (साइटोलॉजी) इस विषय में विस्तार से वर्णन उपलब्ध कराती है। [[अमेरिका]] के [[शिकागो विश्वविद्यालय]] के डॉ. सिविया यच. बेन्स ली एवं नार्मण्ड एल. हॉर और ''रॉकफैलर इन्स्टीटय़ूट फॉर मेडीकल रिसर्च'' के डॉ.अलबर्ट क्लाड ने विभिन्न प्राणियों के जीवकोषों से माइटोकॉण्ड्रिया को अलग कर उनका गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार माइटोकॉण्ड्रिया की रासायनिक प्रक्रिया से शरीर के लिए पर्याप्त ऊर्जा-शक्ति भी उत्पन्न होती है।<ref name="हिन्दुस्तान"/> संग्रहीत ऊर्जा का रासायनिक स्वरूप एटीपी ([[एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट]]) है। शरीर की आवश्यकतानुसार जिस भाग में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वहां अधिक मात्रा में माइटोकॉण्ड्रिया पाए जाते हैं। |
[[श्वसन]] की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश [[ऊर्जा]] उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या शक्ति गृह (पावर हाउस) कहा जाता है। जीव विज्ञान की प्रशाखा कोशिका विज्ञान या सेल-बायोलॉजी (साइटोलॉजी) इस विषय में विस्तार से वर्णन उपलब्ध कराती है। [[अमेरिका]] के [[शिकागो विश्वविद्यालय]] के डॉ. सिविया यच. बेन्स ली एवं नार्मण्ड एल. हॉर और ''रॉकफैलर इन्स्टीटय़ूट फॉर मेडीकल रिसर्च'' के डॉ.अलबर्ट क्लाड ने विभिन्न प्राणियों के जीवकोषों से माइटोकॉण्ड्रिया को अलग कर उनका गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार माइटोकॉण्ड्रिया की रासायनिक प्रक्रिया से शरीर के लिए पर्याप्त ऊर्जा-शक्ति भी उत्पन्न होती है।<ref name="हिन्दुस्तान"/> संग्रहीत ऊर्जा का रासायनिक स्वरूप एटीपी ([[एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट]]) है। शरीर की आवश्यकतानुसार जिस भाग में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वहां अधिक मात्रा में माइटोकॉण्ड्रिया पाए जाते हैं। |
02:12, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण
माइटोकॉण्ड्रिया जीवाणु एवं नील हरित शैवाल को छोड़कर शेष सभी सजीव पादप एवं जंतु कोशिकाओं के कोशिका द्रव में अनियमित रूप से बिखरे हुए द्वीप-एकक पर्दा युक्त अंगाणुओं को कहते हैं। कोशिका के अंदर सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखने में ये गोल, लम्बे या अण्डाकार दिखते हैं।[1] ये कोशिका के कोशिका द्रव में उपस्थित दोहरी झिल्ली से घिरा रहता है। माइटोकाण्ड्रिया के भीतर आनुवांशिक पदार्थ के रूप में डीएनए होता है जो वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य एवं खोज़ का विषय हैं। माइटोकाण्ड्रिया में उपस्थित डीएनए की रचना एवं आकार जीवाणुओं के डीएनए के समान है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि लाखों वर्ष पहले शायद कोई जीवाणु मानव की किसी कोशिका में प्रवेश कर गया होगा एवं कालांतर में उसने कोशिका को ही स्थायी निवास बना लिया। माइटोकाण्ड्रिया के डीएनए एवं कोशिकाओं के केन्द्रक में विद्यमान डीएनए में ३५-३८ जीन एक समान हैं। अपने डीएनए की वज़ह से माइकोण्ड्रिया कोशिका के भीतर आवश्यकता पड़ने पर अपनी संख्या स्वयं बढ़ा सकते हैं। संतानो की कोशिकाओं में पाया जाने वाला माइटोकांड्रिया उन्हें उनकी माता से प्राप्त होता है। निषेचित अंडों के माइटोकाण्ड्रिया में पाया जाने वाले डीएनए में शुक्राणुओं की भूमिका नहीं होती। है।[2][2]
श्वसन की क्रिया प्रत्येक जीवित कोशिका के कोशिका द्रव्य (साइटोप्लाज्म) एवं माइटोकाण्ड्रिया में सम्पन्न होती है। श्वसन सम्बन्धित प्रारम्भिक क्रियाएँ साइटोप्लाज्म में होती है तथा शेष क्रियाएँ माइटोकाण्ड्रियाओं में होती हैं। चूँकि क्रिया के अंतिम चरण में ही अधिकांश ऊर्जा उत्पन्न होती हैं। इसलिए माइटोकाण्ड्रिया को कोशिका का श्वसनांग या शक्ति गृह (पावर हाउस) कहा जाता है। जीव विज्ञान की प्रशाखा कोशिका विज्ञान या सेल-बायोलॉजी (साइटोलॉजी) इस विषय में विस्तार से वर्णन उपलब्ध कराती है। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के डॉ. सिविया यच. बेन्स ली एवं नार्मण्ड एल. हॉर और रॉकफैलर इन्स्टीटय़ूट फॉर मेडीकल रिसर्च के डॉ.अलबर्ट क्लाड ने विभिन्न प्राणियों के जीवकोषों से माइटोकॉण्ड्रिया को अलग कर उनका गहन अध्ययन किया है। उनके अनुसार माइटोकॉण्ड्रिया की रासायनिक प्रक्रिया से शरीर के लिए पर्याप्त ऊर्जा-शक्ति भी उत्पन्न होती है।[1] संग्रहीत ऊर्जा का रासायनिक स्वरूप एटीपी (एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट) है। शरीर की आवश्यकतानुसार जिस भाग में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वहां अधिक मात्रा में माइटोकॉण्ड्रिया पाए जाते हैं।
इसके अलावा, जीव कोष का एक घटक होने के साथ-साथ माइटोकॉण्ड्रिया शरीर के अंगों के ऊपर नियंत्रण भी रखता है। माइट्रोकान्ड्रिया के द्वारा मानव इतिहास का अध्ययन और खोज भी किये जा सकते हैं, क्योंकि उनमें पुराने गुणसूत्र उपलब्ध होते हैं।[3]शोधकर्ता वैज्ञानिकों ने पहली बार कोशिका को ऊर्जा प्रदान करने वाले माइटोकांड्रिया को बदलने में सफलता प्राप्त की है। माइटोकांड्रिया में दोष उत्पन्न हो जाने पर मांस-पेशियों में विकार, एपिलेप्सी, पक्षाघात और मंदबद्धि जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।[4]
संदर्भ
- ↑ अ आ माइटोकॉण्ड्रिया ।हिन्दुस्तान लाइव।(हिन्दी)।२४अक्तूबर,२००९
- ↑ अ आ निरोगी होगा शिशु ... गारंटी।चाणक्य।(हिन्दी)।३१ अगस्त, २००९।भगवती लाल माली
- ↑ ग्लोबल वार्मिग से लुप्त हुए निएंडरथल मानव।याहू जागरण।(हिन्दी)।२१ दिसंबर, २००९
- ↑ दो मां व एक पिता से बनाया कृत्रिम भ्रूण।दैनिक भास्कर।(हिन्दी)।६ फरवरी, २००८