"वेग": अवतरणों में अंतर
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अमृतम पत्रिका, ग्वालियर मप्र से साभार... |
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आयुर्वेद के अनुसार इन 14 वेगों को कभी न रोकें। जाने कौनसे हैं, वे वेग और उनसे होने वाले नुकसान क्या हैं? |
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वीर्य से ही वीरता बढ़ती है। वीर्य की कमजोरी से घर वीरान हो जाता है। ज्यादा दिनों तक वीर्य को रोकने से मानसिक या दिमागी रोग पनपने लगते हैं। |
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अष्टाङ्ग ह्रदय ग्रन्थ के अनुसार 14 तरह के वेग होते हैं, इनको रोकने से शरीर अनेक विकार उत्पन्न होने लगते हैं। जैसे-मल-मूत्र, छींक, जम्हाई, वीर्य आदि। |
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वीर्य को रोकने के कारण ही बुढ़ापे में प्रोस्टेट में पानी भर जाता है। सूजन आदि समस्या आने लगती है। नपुंसकता की वजह भी वीर्य रोक ही है। |
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देखें हजारों वर्ष पुराने ग्रन्थ का पृष्ठ चित्र,… |
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50 हजार वर्ष प्राचीन आयुर्वेदाचार्यों ने लिखा है कि भूलकर भी वीर्य के वेग को नहीं रखना चाहिए। |
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आयुर्वेद ग्रन्थों में वीर्य आदि वेगों के रोकने से होने वाली हानि की जानकारी 50 से अधिक पृष्ठों में बताई है। |
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अष्टाङ्ग ह्रदय के चतुर्थ अध्याय के भाषा टीका में उल्लेख है कि- |
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!!अथातोरोगानुत्पादनीयाध्यायं….!! |
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अर्थ- किन-किन कामों के करने या ना करने से क्या-क्या रोग पैदा होते हैं एवं उनकी शांति भी तत्काल करना चाहिए |
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वे वेग कौन से हैं? इस बारे में संस्कृत का एक श्लोक दिया गया है- |
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वेगान्नधारयेद्वात वीर्यमूत्रक्षवतृटक्षुधाम्! |
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निद्राकास श्रम श्वांसजंरुभाश्रुच्छअर्दीरेतसाम्!! |
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(चरक सहिंता) |
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अर्थात- अधो वायु यानि पाद, गैस आदि, |
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मल यानि पखाना या लैट्रिन कभी न रोकें। |
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मूत्र- पेशाब, लघुशंका |
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छींक, प्यास, भूख, निद्रा (नींद), खांसी, |
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श्रमश्वास यानि मेहनत से चढ़ हुआ श्वांस जिसे हांफनी भी कहते हैं। |
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जम्भाई आना, आंखों के आंसू, नीचे के आंसू या वीर्य, सेक्स की इच्छा और वमन यानि उल्टी होना और मासिक धर्म/माहवारी आदि इन वेगों को रोकने से शरीर में अनेक उपद्रव, विकार पनपने लगते हैं। |
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अधोवातस्यरोधेन गुल्मोदावर्त रुक्क्लमा:! |
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वात मूत्र श कृत्संगद्दष्टयग्निवधह्रद्गगदा:!! |
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अर्थात-अधोवायु यानी गैस को रोकने से गुल्म, उदावर्त, नाभि आदि स्थानों पर वेदना, दर्द या Pain, ग्लानि, वातविकार, मूत्र एवं मल की रुकावट, दृष्टिनाश, जठराग्नि नाश यानी भूख न लगने के साथ भोजन भी न पचना तथा ह्रदय रोग आदि परेशानियां पैदा होने लगती हैं। |
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¶¶~ मल या लैट्रिन को रोकना हो सकता है खतरनाक… |
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शकृत: पिंडिकोद्वेष्ट…..आदि |
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■ मल को रोकने से बवासीर, अर्श या पाइल्स, मांस में ऐंठन, प्रतिश्याय (जुकाम) हिचकी, डकार आदि का ऊपर को जाना। परिकर्त यानि गुदा मलद्वार में कैंची से काटने जैसी पीड़ा होना, ह्रदयोंपरोध अर्थात छाती में भारीपन, मुख से विष्ठा यानि मल/लैट्रिन का निकलना और ग्रन्थिशोथ (थायराइड) आदि रोग होने लगते हैं। |
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■ आंसुओं को रोकने से आंख, सिर भारी होकर सिरदर्द, कम दिखना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। |
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उल्टी वमन, माहवारी रोकने से त्वचा रोग, सफेद दाग, कोढ़, नेत्ररोग, जी मिचलाना, सूजन आदि रोग होते हैं। चेहरे पर झुर्रियां, काले के निशान, मुहाँसे, व्यंग होने लगते हैं। |
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छींक के वेग को रोकने से होने वाला नुकसान… |
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इन 14 वेगों की जानकारी संक्षिप्त में दी जा रही है। यह बहुत बड़ा विषय है। … विस्तार से पढ़ने के लिए अमृतम पत्रिका गूगल पर पढ़ें। |
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किसी वस्तु का '''वेग''' [[निर्देश तंत्र]] में उसकी [[स्थिति सदिश|स्थिति]] में परिवर्तन की दर होती है और यह समय का फलन होती है। किसी वस्तु की [[चाल]] और [[गति (भौतिकी)|गति]] की दिशा के साथ लेने पर वेग तुल्य होती है (जैसे 60 किमी प्रति घण्टा उत्तर की तरफ)। वेग [[चिरसम्मत भौतिकी]] में पिण्डों की गति को वर्णित करने वाली शाखा में गतिकी का एक मूलभूत अवधारणा है। |
किसी वस्तु का '''वेग''' [[निर्देश तंत्र]] में उसकी [[स्थिति सदिश|स्थिति]] में परिवर्तन की दर होती है और यह समय का फलन होती है। किसी वस्तु की [[चाल]] और [[गति (भौतिकी)|गति]] की दिशा के साथ लेने पर वेग तुल्य होती है (जैसे 60 किमी प्रति घण्टा उत्तर की तरफ)। वेग [[चिरसम्मत भौतिकी]] में पिण्डों की गति को वर्णित करने वाली शाखा में गतिकी का एक मूलभूत अवधारणा है। |
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14:04, 25 जून 2021 का अवतरण
किसी वस्तु का वेग निर्देश तंत्र में उसकी स्थिति में परिवर्तन की दर होती है और यह समय का फलन होती है। किसी वस्तु की चाल और गति की दिशा के साथ लेने पर वेग तुल्य होती है (जैसे 60 किमी प्रति घण्टा उत्तर की तरफ)। वेग चिरसम्मत भौतिकी में पिण्डों की गति को वर्णित करने वाली शाखा में गतिकी का एक मूलभूत अवधारणा है।
वेग एक सदिश भौतिक राशि है; जिसके लिए परिमाण और दिशा दोनों आवश्यक हैं।
तात्क्षणिक वेग
किसी क्षण पर वस्तु वेग को उसका तात्क्षणिक वेग कहते हैं। जब कोई वस्तु समान समयान्तराल में असमान विस्थापन करती है तो वस्तु के वेग को परिवर्ति वेग कहते हैं। परिवर्ती वेग की दशा में वस्तु का तात्क्षणिक वेग नियत नहीं रहता, बल्कि परिवर्ती होता है।
अगर हम v को वेग और x को विस्थापन (स्थिति में परिवर्तन) वेक्टर के रूप में मानते हैं , तो हम किसी विशेष समय टी पर किसी कण या वस्तु के (तात्कालिक) वेग को व्यक्त कर सकते हैं, समय के साथ स्थिति के व्युत्पन्न के रूप में :
इस व्युत्पन्न समीकरण से, एक आयामी मामले में यह देखा जा सकता है कि वेग बनाम समय ( v बनाम t ग्राफ) के तहत क्षेत्र विस्थापन, x है । कैलकुलस शब्दों में, वेग फ़ंक्शन v ( t ) का अभिन्न अंग विस्थापन फ़ंक्शन x ( t ) है । चित्र में, के तहत वक्र लेबल पीला क्षेत्र को यह मेल खाती रों ( एस विस्थापन के लिए एक वैकल्पिक अंकन किया जा रहा है)।
चूँकि समय के साथ स्थिति की व्युत्पत्ति समय ( सेकंड में ) में विभाजित स्थिति ( मीटर में ) में परिवर्तन को गति देती है, वेग को मीटर प्रति सेकंड (m / s) में मापा जाता है । हालांकि एक तात्कालिक वेग की अवधारणा पहली बार प्रति-सहज प्रतीत हो सकती है, यह उस वेग के रूप में सोचा जा सकता है कि वस्तु उस समय यात्रा करना जारी रखेगी यदि वह उस समय गति करना बंद कर दे।