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[[हिन्दी]] कविता की परम्परा बहुत लम्बी है। [[शिव सिंह सेंगर]] ने [[हिन्दी साहित्य]] के आदि काल के प्रथम कवि के रूप में 'पुष्य' या 'पुण्ड' का नाम प्रस्तावित किया है। कुछ विद्बान [[सरहपाद]] को हिन्दी का पहला [[कवि]] मानते हैं।<ref>[https://books.google.co.in/books?id=BjC6DQAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false भारतीय साहित्य की पहचान ; पृष्ट ६२०] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20181110200220/https://books.google.co.in/books?id=BjC6DQAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false |date=10 नवंबर 2018 }} (गूगल पुस्तक ; लेखक-सियाराम तिवारी)</ref> सरहपाद और उनके समवर्ती व परवर्ती सिद्धों ने [[दोहा|दोहों]] और पदों के रूप में अपनी स्फुट रचनाएं प्रस्तुत कीं। रासोकाल तक आते-आते प्राचीन हिन्दी का रूप स्थिर हो चुका था। [[अपभ्रंश]] और शुरुआती हिन्दी परस्पर घुली-मिली दिखाई देती हैं। धीरे-धीरे हिन्दी में परिष्कार होता रहा और अपभ्रंश भाषा के पटल से लुप्त हो गई।
[[हिन्दी]] कविता की परम्परा बहुत लम्बी है। [[शिव सिंह सेंगर]] ने [[हिन्दी साहित्य]] के आदि काल के प्रथम कवि के रूप में 'पुष्य' या 'पुण्ड' का नाम प्रस्तावित किया है। कुछ विद्बान [[सरहपाद]] को हिन्दी का पहला [[कवि]] मानते हैं।<ref>[https://books.google.co.in/books?id=BjC6DQAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false भारतीय साहित्य की पहचान ; पृष्ट ६२०] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20181110200220/https://books.google.co.in/books?id=BjC6DQAAQBAJ&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false |date=10 नवंबर 2018 }} (गूगल पुस्तक ; लेखक-सियाराम तिवारी)</ref> सरहपाद और उनके समवर्ती व परवर्ती सिद्धों ने [[दोहा|दोहों]] और पदों के रूप में अपनी स्फुट रचनाएं प्रस्तुत कीं। रासोकाल तक आते-आते प्राचीन हिन्दी का रूप स्थिर हो चुका था। [[अपभ्रंश]] और शुरुआती हिन्दी परस्पर घुली-मिली दिखाई देती हैं। धीरे-धीरे हिन्दी में परिष्कार होता रहा और अपभ्रंश भाषा के पटल से लुप्त हो गई।

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15:45, 23 जून 2021 का अवतरण

हिन्दी कविता की परम्परा बहुत लम्बी है। शिव सिंह सेंगर ने हिन्दी साहित्य के आदि काल के प्रथम कवि के रूप में 'पुष्य' या 'पुण्ड' का नाम प्रस्तावित किया है। कुछ विद्बान सरहपाद को हिन्दी का पहला कवि मानते हैं।[1] सरहपाद और उनके समवर्ती व परवर्ती सिद्धों ने दोहों और पदों के रूप में अपनी स्फुट रचनाएं प्रस्तुत कीं। रासोकाल तक आते-आते प्राचीन हिन्दी का रूप स्थिर हो चुका था। अपभ्रंश और शुरुआती हिन्दी परस्पर घुली-मिली दिखाई देती हैं। धीरे-धीरे हिन्दी में परिष्कार होता रहा और अपभ्रंश भाषा के पटल से लुप्त हो गई।

सन्दर्भ

  1. भारतीय साहित्य की पहचान ; पृष्ट ६२० Archived 2018-11-10 at the वेबैक मशीन (गूगल पुस्तक ; लेखक-सियाराम तिवारी)