"यशवंतराव होलकर": अवतरणों में अंतर
. टैग: Reverted मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
रोहित साव27 (वार्ता | योगदान) छो 157.33.200.185 (Talk) के संपादनों को हटाकर रोहित साव27 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया टैग: वापस लिया |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{Infobox royalty |
{{Infobox royalty |
||
|image= Yashwant Rao Holkar I.jpg |
|image= Yashwant Rao Holkar I.jpg |
||
|name = सरदार यशवंतराव होलकर |
|||
|name = चक्रवर्ती महाराजा यशवंतराजे होलकर सम्राट |
|||
|caption = सरदार यशवंतराव होल्कर |
|||
|caption = |
|||
|title =''[[महाराजा]]'' ([[ |
|title =''[[महाराजा]]'' ([[इंदोर राज्य|इंदोर]])<br>'' आली जाह'' <br>'' जुबदतुल उमरा'' (Best of the Army)<br>'' बहादुर उल-मुल्क'' (साम्राज्य के हीरो)<br>'' फर्जंद इ अर्जुमंद'' (Son of the Nobleman)<br>'' नुस्रत जंग'' (Who Help in War)''<ref>[http://www.royalark.net/India/indore4.htm indore4] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20190203161313/http://www.royalark.net/India/indore4.htm |date=3 फ़रवरी 2019 }} Raised to the titles Ali Jah, Zubdat ul-Umara, Bahadur ul-Mulk, Farzand-i-Arjmand and Nusrat Jang by the King of Delhi ([[Akbar Shah II]]) in 1807</ref> |
||
|religion = [[हिन्दू]] |
|religion = [[हिन्दू]] |
||
|full name = हिज हाईनेस महाराजाधिराज राज राजेश्वर सवाई श्रीमंत |
|full name = हिज हाईनेस महाराजाधिराज राज राजेश्वर सवाई श्रीमंत यशवंतराव होलकर |
||
|coronation = जनवरी1799 |
|coronation = जनवरी1799 |
||
|birth_date = 3 दिसेंबर 1776 |
|birth_date = 3 दिसेंबर 1776 |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
|issue = |
|issue = |
||
}} |
}} |
||
''' |
'''यशवंतराव होलकर''' [[तुकोजीराव होलकर]] का पुत्र था। वह उद्दंड होते हुए भी बड़ा साहसी तथा दक्ष सेनानायक था। तुकोजी की मृत्यु पर (1797) उत्तराधिकार के प्रश्न पर दौलतराव शिंदे के हस्तक्षेप तथा तज्जनित युद्ध में यशवंतराव के ज्येष्ठ भ्राता मल्हरराव के वध (1797) के कारण, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो यशवंतराव ने शिंदे के राज्य में निरंतर लूट-मार आरंभ कर दी। [[अहिल्याबाई होल्कर|अहिल्या बाई]] का संचित कोष हाथ आ जाने से (1800 ई) उसकी शक्ति और भी बढ़ गई। 1802 में उसने [[पेशवा]] तथा शिंदे को सम्मिलित सेना को पूर्णतया पराजित किया जिससे पेशवा ने बसई भागकर अंग्रेजों से संधि की (31 दिसम्बर 1802)। फलस्वरूप [[द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध]] छिड़ गया। शिंदे से वैमनस्य के कारण मराठासंघ छोड़ने में यशवंतराव ने बड़ी गलती की क्योंकि भोंसले तथा शिंदे क पराजय के बाद, होलकर को अकेले अंग्रेजों से युद्ध करना पड़ा। पहले ता यशवंतराव ने मॉनसन पर विजय पाई (1804), किंतु, फर्रूखाबाद (नवम्बर 17) तथा डीग (दिसंबर 13) में उसकी पराजय हुई। फलस्वरूप उसे अंग्रेजों से [[संधि (व्याकरण)|संधि]] स्थापित करनी पड़ी (24 दिसबंर, 1805) अंत में, पूर्ण विक्षिप्तावस्था में, तीस वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई (28 अक्टूबर 1811)। |
||
एक ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। इकलौता ऐसा शासक, जिसका खौफ अंग्रेजों में साफ-साफ दिखता था। एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे। एक ऐसा शासक, जिसे अपनों ने ही बार-बार धोखा दिया, फिर भी जंग के मैदान में कभी हिम्मत नहीं हारी। |
एक ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। इकलौता ऐसा शासक, जिसका खौफ अंग्रेजों में साफ-साफ दिखता था। एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे। एक ऐसा शासक, जिसे अपनों ने ही बार-बार धोखा दिया, फिर भी जंग के मैदान में कभी हिम्मत नहीं हारी। |
||
इतना महान था वो भारतीय |
इतना महान था वो भारतीय शासक, फिर भी इतिहास के पन्नों में वो कहीं खोया हुआ है। उसके बारे में आज भी बहुत लोगों को जानकारी नहीं है। उसका नाम आज भी लोगों के लिए अनजान है। उस महान शासक का नाम है - यशवंतराव होलकर। यह उस महान वीरयोद्धा का नाम है, जिसकी तुलना विख्यात इतिहास शास्त्री एन एस इनामदार ने 'नेपोलियन' से की है। |
||
पश्चिम मध्यप्रदेश की मालवा रियासत के |
पश्चिम मध्यप्रदेश की मालवा रियासत के महाराज यशवंतराव होलकर का भारत की आजादी के लिए किया गया योगदान महाराणा प्रताप और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कहीं कम नहीं है। यशवतंराव होलकर का जन्म 1776 ई. में हुआ। इनके पिता थे - तुकोजीराव होलकर। होलकर साम्राज्य के बढ़ते प्रभाव के कारण ग्वालियर के शासक दौलतराव सिंधिया ने यशवंतराव के बड़े भाई मल्हारराव को मौत की नींद सुला दिया। |
||
इस घटना ने यशवंतराव को पूरी तरह से तोड़ दिया था। उनका अपनों पर से विश्वास उठ गया। इसके बाद उन्होंने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया। ये अपने काम में काफी होशियार और बहादुर थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1802 ई. में इन्होंने पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय व सिंधिया की मिलीजुली सेना को मात दी और इंदौर वापस आ गए। |
इस घटना ने यशवंतराव को पूरी तरह से तोड़ दिया था। उनका अपनों पर से विश्वास उठ गया। इसके बाद उन्होंने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया। ये अपने काम में काफी होशियार और बहादुर थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1802 ई. में इन्होंने पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय व सिंधिया की मिलीजुली सेना को मात दी और इंदौर वापस आ गए। |
||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
उन्होंने अन्य शासकों से एकबार फिर एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने अकेले दम पर अंग्रेजों को छठी का दूध याद दिलाने की ठानी। 8 जून 1804 ई. को उन्होंने अंग्रेजों की सेना को धूल चटाई। फिर 8 जुलाई 1804 ई. में कोटा से उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया। |
उन्होंने अन्य शासकों से एकबार फिर एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने अकेले दम पर अंग्रेजों को छठी का दूध याद दिलाने की ठानी। 8 जून 1804 ई. को उन्होंने अंग्रेजों की सेना को धूल चटाई। फिर 8 जुलाई 1804 ई. में कोटा से उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया। |
||
[[File:Yeshwantrao holkar.jpg|thumb|श्रीमंत चक्रवर्ती महाराजा यशवंतराव होळकर.<ref>{{Cite book|url=https://www.amazon.in/Maharaja-Yashwant-Rao-Holkar-Swatantra/dp/1642498696|title=Maharaja Yashwant Rao Holkar: Bhartiya Swatantra Ke Mahanayak|last=Holkar|first=Ghanshyam|date=2018-05-31|publisher=Notion Press, Inc.|isbn=9781642498691|edition=1st|language=hi|access-date=17 अगस्त 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20180626163941/https://www.amazon.in/Maharaja-Yashwant-Rao-Holkar-Swatantra/dp/1642498696|archive-date=26 जून 2018|url-status=live}}</ref>]] |
[[File:Yeshwantrao holkar.jpg|thumb|श्रीमंत चक्रवर्ती महाराजा यशवंतराव होळकर.<ref>{{Cite book|url=https://www.amazon.in/Maharaja-Yashwant-Rao-Holkar-Swatantra/dp/1642498696|title=Maharaja Yashwant Rao Holkar: Bhartiya Swatantra Ke Mahanayak|last=Holkar|first=Ghanshyam|date=2018-05-31|publisher=Notion Press, Inc.|isbn=9781642498691|edition=1st|language=hi|access-date=17 अगस्त 2018|archive-url=https://web.archive.org/web/20180626163941/https://www.amazon.in/Maharaja-Yashwant-Rao-Holkar-Swatantra/dp/1642498696|archive-date=26 जून 2018|url-status=live}}</ref>]] |
||
11 सितंबर 1804 ई. को अंग्रेज जनरल वेलेस्ले ने लॉर्ड ल्युक को लिखा कि यदि यशवंतराव पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो वे अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देंगे। इसी मद्देनजर नवंबर, 1804 ई. में अंग्रेजों ने दिग पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भरतपुर के महाराज रंजित सिंह के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों को उनकी नानी याद दिलाई। यही नहीं इतिहास के मुताबिक उन्होंने 300 अंग्रेजों की नाक ही काट डाली थी। |
11 सितंबर 1804 ई. को अंग्रेज जनरल वेलेस्ले ने लॉर्ड ल्युक को लिखा कि यदि यशवंतराव पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो वे अन्य शासकों के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देंगे। इसी मद्देनजर नवंबर, 1804 ई. में अंग्रेजों ने दिग पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भरतपुर के महाराज रंजित सिंह के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों को उनकी नानी याद दिलाई। यही नहीं इतिहास के मुताबिक उन्होंने 300 अंग्रेजों की नाक ही काट डाली थी। |
||
अचानक रंजित सिंह ने भी यशवंतराव का साथ छोड़ दिया और अंग्रजों से हाथ मिला लिया। इसके बाद सिंधिया ने यशवंतराव की बहादुरी देखते हुए उनसे हाथ मिलाया। अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई। लॉर्ड ल्युक ने लिखा कि यशवंतराव की सेना अंग्रेजों को मारने में बहुत आनंद लेती है। इसके बाद अंग्रेजों ने यह फैसला किया कि यशवंतराव के साथ संधि से ही बात संभल सकती है। इसलिए उनके साथ बिना शर्त संधि की जाए। उन्हें जो चाहिए, दे दिया जाए। उनका जितना साम्राज्य है, सब लौटा दिया जाए। इसके बावजूद यशवंतराव ने संधि से इंकार कर दिया। |
अचानक रंजित सिंह ने भी यशवंतराव का साथ छोड़ दिया और अंग्रजों से हाथ मिला लिया। इसके बाद सिंधिया ने यशवंतराव की बहादुरी देखते हुए उनसे हाथ मिलाया। अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई। लॉर्ड ल्युक ने लिखा कि यशवंतराव की सेना अंग्रेजों को मारने में बहुत आनंद लेती है। इसके बाद अंग्रेजों ने यह फैसला किया कि यशवंतराव के साथ संधि से ही बात संभल सकती है। इसलिए उनके साथ बिना शर्त संधि की जाए। उन्हें जो चाहिए, दे दिया जाए। उनका जितना साम्राज्य है, सब लौटा दिया जाए। इसके बावजूद यशवंतराव ने संधि से इंकार कर दिया। |
||
वे सभी शासकों को एकजुट करने में जुटे हुए थे। अंत में जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने दूसरी चाल से अंग्रेजों को मात देने की सोची। इस मद्देनजर उन्होंने 1805 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि कर ली। अंग्रेजों ने उन्हें स्वतंत्र शासक |
वे सभी शासकों को एकजुट करने में जुटे हुए थे। अंत में जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने दूसरी चाल से अंग्रेजों को मात देने की सोची। इस मद्देनजर उन्होंने 1805 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि कर ली। अंग्रेजों ने उन्हें स्वतंत्र शासक माना और उनके सारे क्षेत्र लौटा दिए। इसके बाद उन्होंने सिंधिया के साथ मिलकर अंग्रेजों को खदेड़ने का एक और प्लान बनाया। उन्होंने सिंधिया को खत लिखा, लेकिन सिंधिया दगेबाज निकले और वह खत अंग्रेजों को दिखा दिया। |
||
इसके बाद पूरा मामला फिर से बिगड़ गया। यशवंतराव ने हल्ला बोल दिया और अंग्रेजों को अकेले दम पर मात देने की पूरी तैयारी में जुट गए। इसके लिए उन्होंने भानपुर में गोला बारूद का कारखाना खोला। इसबार उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ने की ठान ली थी। इसलिए दिन-रात मेहनत करने में जुट गए थे। लगातार मेहनत करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और 28 अक्टूबर 1811 ई. में सिर्फ 35 साल की उम्र में वे स्वर्ग सिधार गए। |
इसके बाद पूरा मामला फिर से बिगड़ गया। यशवंतराव ने हल्ला बोल दिया और अंग्रेजों को अकेले दम पर मात देने की पूरी तैयारी में जुट गए। इसके लिए उन्होंने भानपुर में गोला बारूद का कारखाना खोला। इसबार उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ने की ठान ली थी। इसलिए दिन-रात मेहनत करने में जुट गए थे। लगातार मेहनत करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और 28 अक्टूबर 1811 ई. में सिर्फ 35 साल की उम्र में वे स्वर्ग सिधार गए। |
06:45, 23 मई 2021 का अवतरण
यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |
सरदार यशवंतराव होलकर | |||||
---|---|---|---|---|---|
''महाराजा (इंदोर) आली जाह जुबदतुल उमरा (Best of the Army) बहादुर उल-मुल्क (साम्राज्य के हीरो) फर्जंद इ अर्जुमंद (Son of the Nobleman) नुस्रत जंग (Who Help in War)[1] | |||||
चित्र:Yashwant Rao Holkar I.jpg | |||||
शासनावधि | (as regent. 1799 – 1807) (r. 1807 - 1811) | ||||
राज्याभिषेक | जनवरी1799 | ||||
उत्तरवर्ती | मल्हारराव होलकर द्वितीय | ||||
जन्म | 3 दिसेंबर 1776 वाफगांव, पुणे, मराठा साम्राज्य (अब महाराष्ट्र, भारत) | ||||
निधन | 28 अक्तूबर1811 भनपुरा, मालवा | ||||
| |||||
पिता | तुकोजी राव होलकर | ||||
धर्म | हिन्दू |
यशवंतराव होलकर तुकोजीराव होलकर का पुत्र था। वह उद्दंड होते हुए भी बड़ा साहसी तथा दक्ष सेनानायक था। तुकोजी की मृत्यु पर (1797) उत्तराधिकार के प्रश्न पर दौलतराव शिंदे के हस्तक्षेप तथा तज्जनित युद्ध में यशवंतराव के ज्येष्ठ भ्राता मल्हरराव के वध (1797) के कारण, प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो यशवंतराव ने शिंदे के राज्य में निरंतर लूट-मार आरंभ कर दी। अहिल्या बाई का संचित कोष हाथ आ जाने से (1800 ई) उसकी शक्ति और भी बढ़ गई। 1802 में उसने पेशवा तथा शिंदे को सम्मिलित सेना को पूर्णतया पराजित किया जिससे पेशवा ने बसई भागकर अंग्रेजों से संधि की (31 दिसम्बर 1802)। फलस्वरूप द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध छिड़ गया। शिंदे से वैमनस्य के कारण मराठासंघ छोड़ने में यशवंतराव ने बड़ी गलती की क्योंकि भोंसले तथा शिंदे क पराजय के बाद, होलकर को अकेले अंग्रेजों से युद्ध करना पड़ा। पहले ता यशवंतराव ने मॉनसन पर विजय पाई (1804), किंतु, फर्रूखाबाद (नवम्बर 17) तथा डीग (दिसंबर 13) में उसकी पराजय हुई। फलस्वरूप उसे अंग्रेजों से संधि स्थापित करनी पड़ी (24 दिसबंर, 1805) अंत में, पूर्ण विक्षिप्तावस्था में, तीस वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हो गई (28 अक्टूबर 1811)।
एक ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। इकलौता ऐसा शासक, जिसका खौफ अंग्रेजों में साफ-साफ दिखता था। एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे। एक ऐसा शासक, जिसे अपनों ने ही बार-बार धोखा दिया, फिर भी जंग के मैदान में कभी हिम्मत नहीं हारी।
इतना महान था वो भारतीय शासक, फिर भी इतिहास के पन्नों में वो कहीं खोया हुआ है। उसके बारे में आज भी बहुत लोगों को जानकारी नहीं है। उसका नाम आज भी लोगों के लिए अनजान है। उस महान शासक का नाम है - यशवंतराव होलकर। यह उस महान वीरयोद्धा का नाम है, जिसकी तुलना विख्यात इतिहास शास्त्री एन एस इनामदार ने 'नेपोलियन' से की है।
पश्चिम मध्यप्रदेश की मालवा रियासत के महाराज यशवंतराव होलकर का भारत की आजादी के लिए किया गया योगदान महाराणा प्रताप और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से कहीं कम नहीं है। यशवतंराव होलकर का जन्म 1776 ई. में हुआ। इनके पिता थे - तुकोजीराव होलकर। होलकर साम्राज्य के बढ़ते प्रभाव के कारण ग्वालियर के शासक दौलतराव सिंधिया ने यशवंतराव के बड़े भाई मल्हारराव को मौत की नींद सुला दिया।
इस घटना ने यशवंतराव को पूरी तरह से तोड़ दिया था। उनका अपनों पर से विश्वास उठ गया। इसके बाद उन्होंने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया। ये अपने काम में काफी होशियार और बहादुर थे। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1802 ई. में इन्होंने पुणे के पेशवा बाजीराव द्वितीय व सिंधिया की मिलीजुली सेना को मात दी और इंदौर वापस आ गए।
इस दौरान अंग्रेज भारत में तेजी से अपने पांव पसार रहे थे। यशवंत राव के सामने एक नई चुनौती सामने आ चुकी थी। भारत को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराना। इसके लिए उन्हें अन्य भारतीय शासकों की सहायता की जरूरत थी। वे अंग्रेजों के बढ़ते साम्राज्य को रोक देना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने नागपुर के भोंसले और ग्वालियर के सिंधिया से एकबार फिर हाथ मिलाया और अंग्रेजों को खदेड़ने की ठानी। लेकिन पुरानी दुश्मनी के कारण भोंसले और सिंधिया ने उन्हें फिर धोखा दिया और यशवंतराव एक बार फिर अकेले पड़ गए।
उन्होंने अन्य शासकों से एकबार फिर एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया, लेकिन किसी ने उनकी बात नहीं मानी। इसके बाद उन्होंने अकेले दम पर अंग्रेजों को छठी का दूध याद दिलाने की ठानी। 8 जून 1804 ई. को उन्होंने अंग्रेजों की सेना को धूल चटाई। फिर 8 जुलाई 1804 ई. में कोटा से उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ दिया।
11 सितंबर 1804 ई. को अंग्रेज जनरल वेलेस्ले ने लॉर्ड ल्युक को लिखा कि यदि यशवंतराव पर जल्दी काबू नहीं पाया गया तो वे अन्य शासकों के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से खदेड़ देंगे। इसी मद्देनजर नवंबर, 1804 ई. में अंग्रेजों ने दिग पर हमला कर दिया। इस युद्ध में भरतपुर के महाराज रंजित सिंह के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों को उनकी नानी याद दिलाई। यही नहीं इतिहास के मुताबिक उन्होंने 300 अंग्रेजों की नाक ही काट डाली थी।
अचानक रंजित सिंह ने भी यशवंतराव का साथ छोड़ दिया और अंग्रजों से हाथ मिला लिया। इसके बाद सिंधिया ने यशवंतराव की बहादुरी देखते हुए उनसे हाथ मिलाया। अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई। लॉर्ड ल्युक ने लिखा कि यशवंतराव की सेना अंग्रेजों को मारने में बहुत आनंद लेती है। इसके बाद अंग्रेजों ने यह फैसला किया कि यशवंतराव के साथ संधि से ही बात संभल सकती है। इसलिए उनके साथ बिना शर्त संधि की जाए। उन्हें जो चाहिए, दे दिया जाए। उनका जितना साम्राज्य है, सब लौटा दिया जाए। इसके बावजूद यशवंतराव ने संधि से इंकार कर दिया।
वे सभी शासकों को एकजुट करने में जुटे हुए थे। अंत में जब उन्हें सफलता नहीं मिली तो उन्होंने दूसरी चाल से अंग्रेजों को मात देने की सोची। इस मद्देनजर उन्होंने 1805 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि कर ली। अंग्रेजों ने उन्हें स्वतंत्र शासक माना और उनके सारे क्षेत्र लौटा दिए। इसके बाद उन्होंने सिंधिया के साथ मिलकर अंग्रेजों को खदेड़ने का एक और प्लान बनाया। उन्होंने सिंधिया को खत लिखा, लेकिन सिंधिया दगेबाज निकले और वह खत अंग्रेजों को दिखा दिया।
इसके बाद पूरा मामला फिर से बिगड़ गया। यशवंतराव ने हल्ला बोल दिया और अंग्रेजों को अकेले दम पर मात देने की पूरी तैयारी में जुट गए। इसके लिए उन्होंने भानपुर में गोला बारूद का कारखाना खोला। इसबार उन्होंने अंग्रेजों को खदेड़ने की ठान ली थी। इसलिए दिन-रात मेहनत करने में जुट गए थे। लगातार मेहनत करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा। लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नहीं दिया और 28 अक्टूबर 1811 ई. में सिर्फ 35 साल की उम्र में वे स्वर्ग सिधार गए।
इस तरह से एक महान शासक का अंत हो गया। एक ऐसे शासक का जिसपर अंग्रेज कभी अधिकार नहीं जमा सके। एक ऐसे शासक का जिन्होंने अपनी छोटी उम्र को जंग के मैदान में झोंक दिया। यदि भारतीय शासकों ने उनका साथ दिया होता तो शायद तस्वीर कुछ और होती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और एक महान शासक यशवंतराव होलकर इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया और खो गई उनकी बहादुरी, जो आज अनजान बनी हुई है।
संदर्भ ग्रंथ
- ↑ indore4 Archived 2019-02-03 at the वेबैक मशीन Raised to the titles Ali Jah, Zubdat ul-Umara, Bahadur ul-Mulk, Farzand-i-Arjmand and Nusrat Jang by the King of Delhi (Akbar Shah II) in 1807
- ↑ Holkar, Ghanshyam (2018-05-31). Maharaja Yashwant Rao Holkar: Bhartiya Swatantra Ke Mahanayak (1st संस्करण). Notion Press, Inc. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781642498691. मूल से 26 जून 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 अगस्त 2018.
- जी0 एस0 सरदेसाई: दि न्यू हिस्ट्री ऑव दि मराठाज़