"रामदेव पीर": अवतरणों में अंतर

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छो रामासापीर बाबा का पहला पर्चा भैरव राक्षस : भैरव नाम के एक राक्षस ने पोकरण में आतंक मचा रखा था। प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी के 'मारवाड़ रा परगना री विगत' नामक ग्रंथ में इस घटना का उल्लेख मिलता है। भैरव राक्षस का आतंक पोखरण क्षेत्र में 36 कोष तक फैला हुआ था। यह राक्षस मानव की सुगं सूंघकर उसका वध कर देता था। बाबा के गुरु बालीनाथजी के तप से यह राक्षस डरता था, किंतु फिर भी इसने इस क्षेत्र को जीवरहित कर दिया था। अंत में बाबा रामदेवजी बालीनाथजी के धूणे में गुदड़ी में छुपकर बैठ गए। जब भैरव राक्षस
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* [[श्री रामदेवबाबा अभियांत्रिकी व प्रबंध महाविद्यालय]]
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== सन्दर्भ ==
== रामासापीर बाबा का पहला पर्चा ==
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भैरव राक्षस : भैरव नाम के एक राक्षस ने पोकरण में आतंक मचा रखा था। प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी के 'मारवाड़ रा परगना री विगत' नामक ग्रंथ में इस घटना का उल्लेख मिलता है।

भैरव राक्षस का आतंक पोखरण क्षेत्र में 36 कोष तक फैला हुआ था। यह राक्षस मानव की सुगं सूंघकर उसका वध कर देता था। बाबा के गुरु बालीनाथजी के तप से यह राक्षस डरता था, किंतु फिर भी इसने इस क्षेत्र को जीवरहित कर दिया था। अंत में बाबा [https://toprajasthani.com/2021/02/09/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%AC%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5/ रामदेवजी] बालीनाथजी के धूणे में गुदड़ी में छुपकर बैठ गए। जब भैरव राक्षस आया और उसने गुदड़ी खींची तब अवतारी रामदेवजी को देखकर वह अपनी पीठ दिखाकर भागने लगा और कैलाश टेकरी के पास गुफा में जा घुसा। वहीं रामदेवजी ने घोड़े पर बैठकर उसका वध कर दिया था।

हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि उसने हार मानकर आत्मसमर्पण कर दिया था। बाद में बाबा की आज्ञा अनुसार वह मारवाड़ छोड़कर चला गया था।{{टिप्पणीसूची}}


[[श्रेणी:राजस्थान के लोक देवता]]
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05:46, 8 मई 2021 का अवतरण

रामदेव जी[1]

  • नाम =रामदेव जी
  • पिता = अजमल जी
  • माता = मैणादे
  • बहन= सुगना बाई
  • जन्म = भाद्रपद शुक्ल द्वितीया वि.स. 1409
  • जन्म स्थान = रुणिचा
  • समाधी = रामदेवरा
  • जीवन संगी = नैतलदे
  • धर्म = हिन्दू
  • मृत्यु = वि.स. 1442
रामदेव जी
रुणिचा के शासक, संत तथा समाज सुधारक
उत्तरवर्तीअजमल जी
जन्मचैत्र सुदी पंचमी, विक्रम संवत 1409
रामदेवरा, तहसील पोकरण, जिला जैसलमेर
निधन1442 (33 वर्ष)
रामदेवरा
समाधि
रामदेवरा
पिताअजमल जी तँवर
मातामैणादे
धर्महिन्दू

रामदेव जी (बाबा रामदेव, रामसा पीर, रामदेव पीर)[2] राजस्थान के एक लोक देवता हैं जिनकी पूजा सम्पूर्ण राजस्थान व गुजरात समेत कई भारतीय राज्यों में की जाती है। इनके समाधि-स्थल रामदेवरा (जैसलमेर) पर भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष द्वितीया सेे दसमी तक भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देश भर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते है।

वे चौदहवीं सदी के एक शासक थे, जिनके पास मान्यतानुसार चमत्कारी शक्तियां थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों तथा दलितों के उत्थान के लिए समर्पित किया। भारत में कई समाज उन्हें अपने इष्टदेव के रूप में पूजते हैं।

पृष्ठभूमि

बाबा रामदेवजी मुस्लिमों के भी आराध्य हैं और वे उन्हें रामसा पीर या रामशाह पीर के नाम से पूजते हैं। रामदेवजी के पास चमत्कारी शक्तियां थी तथा उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली। किंवदंती के अनुसार मक्का से पांच पीर रामदेव की शक्तियों का परीक्षण करने आए। रामदेवजी ने उनका स्वागत किया तथा उनसे भोजन करने का आग्रह किया। पीरों ने मना करते हुए कहा वे सिर्फ अपने निजी बर्तनों में भोजन करते हैं, जो कि इस समय मक्का में हैं। इस पर रामदेव मुस्कुराए और उनसे कहा कि देखिए आपके बर्तन आ रहे हैं और जब पीरों ने देखा तो उनके बर्तन मक्का से उड़ते हुए आ रहे थे। रामदेवजी की क्षमताओं और शक्तियों से संतुष्ट होकर उन्होंने उन्हें प्रणाम किया तथा उन्हें राम शाह पीर का नाम दिया। रामदेव की शक्तियों से प्राभावित होकर पांचों पीरों ने उनके साथ रहने का निश्चय किया। उनकी मज़ारें भी रामदेव की समाधि के निकट स्थित हैं।[3]

रामदेव सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास करते थे, चाहे वह उच्च या निम्न हो, अमीर या गरीब हो। उन्होंने दलितों को उनकी इच्छानुसार फल देकर उनकी मदद की। उन्हें अक्सर घोड़े पर सवार दर्शाया जाता है। उनके अनुयायी राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, मुंबई, दिल्ली के साथ पाकिस्तान के सिंध तक फैले हुए हैं। राजस्थान में कई मेले आयोजित किए जाते हैं। उनके मंदिर भारत के कई राज्यों में स्थित हैं।

रामदेवरा (जैसलमेर) स्थित बाबा रामदेव की समाधि

समाधि

बाबा रामदेव ने वि.स. १४४२ में भाद्रपद शुक्ल एकादशी को राजस्थान के रामदेवरा (पोकरण से 10 कि.मी.) में जीवित समाधि ले ली।

रामदेव जयंती

रामदेव जयंती, अर्थात् बाबा का जन्मदिवस प्रतिवर्ष उनके भक्तों द्वारा सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। यह तिथि हिन्दू पंचांग के भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की दूज पर पड़ती है। इस दिन राजस्थान में सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता है और रामदेवरा के मंदिर में एक अंतरप्रांतीय मेले का आयोजन होता है जिसे "भादवा का मेला" कहते हैं। इस मेले में देश के हर कोने से लाखों हिन्दू और मुस्लिम श्रद्धालु यात्रा करते हुए पहुंचते हैं तथा बाबा की समाधि पर नमन करते हैं।[4]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "लोकदेवता बाबा रामदेव जी (रामसा पीर) का जीवन परिचय". मूल से 26 सितम्बर 2020 को पुरालेखित.
  2. "रामदेव जी के पर्चे". मूल से 15 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जून 2017.
  3. India today, Volume 18, Issues 1-12. लिविंग मीडिया इंडिया प्राइवेट लिमिटेड. 1993. पृ॰ ६१. मूल से 23 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 अप्रैल 2020.
  4. "भादवा मेला : दर्शनों के लिए लगी लंबी कतारें माता-पिता की गोद व कंधों पर बच्चे रहे सवार". दैनिक भास्कर. २६ अगस्त २०१९. मूल से 10 अक्तूबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2020.