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छत्रिय यानी राजपूत
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क्षत्रिय
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[[चित्र:StandingBuddha.jpg|right|thumb|250px|[[गौतम बुद्ध]] का जन्म एक क्षत्रिय [[शाक्य]] कुल में हुआ था। ]]
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'''क्षत्रिय'''<ref>{{cite web |last=Editors |first=The |url=https://www.britannica.com/topic/Kshatriya |title=Kshatriya &#124; Hindu caste |language=en |publisher=Britannica.com |date= |accessdate=2017-05-09 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170825033426/https://www.britannica.com/topic/Kshatriya |archive-date=25 अगस्त 2017 |url-status=live }}</ref> ([[पालि भाषा|पालि]] रूप : खत्रिय), क्षत्र, राजन्य - ये चारों शब्द सामान्यतः [[हिन्दू धर्म|सत्य सनातन]] समाज के द्वितीय [[वर्ण (बहुविकल्पी शब्द)|वर्ण]] और [[जाति]] के अर्थ में व्यवहृत होते हैं किन्तु विशिष्ठ एतिहासिक अथवा सामाजिक प्रसंग में पारिपाश्वों से संबंध होने के कारण इनके अपने विशेष अर्थ और ध्वनियां हैं किंतु बाद में यह शब्द उस वर्ग को अभिहित करने लगा जो शास्त्रास्त्रों के द्वारा अन्य वर्णों का परिरक्षण करता था।<ref>('''क्षतात्किल त्रायत इत्युदग्र''कम्बोज वंसज, [[रघुवंश]])</ref>
'''क्षत्रिय'''<ref>{{cite web |last=Editors |first=The |url=https://www.britannica.com/topic/Kshatriya |title=Kshatriya &#124; Hindu caste |language=en |publisher=Britannica.com |date= |accessdate=2017-05-09 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170825033426/https://www.britannica.com/topic/Kshatriya |archive-date=25 अगस्त 2017 |url-status=live }}</ref> ([[पालि भाषा|पालि]] रूप : खत्रिय), क्षत्र, राजन्य - ये चारों शब्द सामान्यतः सत्य सनातन समाज के द्वितीय [[वर्ण (बहुविकल्पी शब्द)|वर्ण]] और [[जाति]] के अर्थ में व्यवहृत होते हैं किन्तु विशिष्ठ एतिहासिक अथवा सामाजिक प्रसंग में पारिपाश्वों से संबंध होने के कारण इनके अपने विशेष अर्थ और ध्वनियां हैं किंतु बाद में यह शब्द उस वर्ग को अभिहित करने लगा जो शास्त्रास्त्रों के द्वारा अन्य वर्णों का परिरक्षण करता था।<ref>('''क्षतात्किल त्रायत इत्युदग्र''कम्बोज वंसज, [[रघुवंश]])</ref>
[[वेद|वेदों]] तथा [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] में क्षत्रिय शब्द राजवर्ग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। प्राचीन काल ही क्षत्रिय योद्धा और शासक समुदाय था। <ref>हाप्किंस, जरनल ऑव अमेरीकन औरियंटल सोसाइटी, १३, पृ. ७३</ref>
[[वेद|वेदों]] तथा [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] में क्षत्रिय शब्द राजवर्ग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। प्राचीन काल ही क्षत्रिय योद्धा और शासक समुदाय था। <ref>हाप्किंस, जरनल ऑव अमेरीकन औरियंटल सोसाइटी, १३, पृ. ७३</ref>



11:06, 3 मई 2021 का अवतरण

अयोध्या के राजा मर्यादा-पुरुषोत्तम राम
गौतम बुद्ध का जन्म एक क्षत्रिय शाक्य कुल में हुआ था।

क्षत्रिय[1] (पालि रूप : खत्रिय), क्षत्र, राजन्य - ये चारों शब्द सामान्यतः सत्य सनातन समाज के द्वितीय वर्ण और जाति के अर्थ में व्यवहृत होते हैं किन्तु विशिष्ठ एतिहासिक अथवा सामाजिक प्रसंग में पारिपाश्वों से संबंध होने के कारण इनके अपने विशेष अर्थ और ध्वनियां हैं किंतु बाद में यह शब्द उस वर्ग को अभिहित करने लगा जो शास्त्रास्त्रों के द्वारा अन्य वर्णों का परिरक्षण करता था।[2] वेदों तथा ब्राह्मणों में क्षत्रिय शब्द राजवर्ग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। प्राचीन काल ही क्षत्रिय योद्धा और शासक समुदाय था। [3]

इसलेख में संस्कृत शब्द 'क्षत्रिय', वैदिक काल के समाज के सन्दर्भ में वर्णित है जब पूरा समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यशूद्र नामक चार वर्गों में विभक्त था।[4] स्मृतियों में कुछ युद्धपरक जनजातियाँ क्षत्रिय वर्ग के अंतर्गत अनुसूचित की गई।[5]

पारम्परिक रूप से शासक व सैनिक क्षत्रिय वर्ग का हिस्सा होते थे, जिनका कार्य युद्ध काल में समाज की रक्षा हेतु युद्ध करना व शांति काल में सुशासन प्रदान करना था।

गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है-

शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम् ।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ॥१८-४३ ॥
(वीरता, तेज, धैर्य, दक्षता, युद्ध से पलायन न करना, दान, और ईश्वरभाव (राजा या स्वामी होने का भाव) - ये क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं।)

उत्पत्ति

'क्षत्रिय' शब्द का उद्गम "क्षत्र" से है जिसका अर्थ लौकिक प्राधिकरण और शक्ति है, इसका सम्बन्ध युद्ध में सफल नेता से कम तथा एक क्षेत्र पर संप्रभुता का दावा करने की मूर्त शक्ति पर अधिक है। यह आनुवांशिक कबीले की भूमि पर स्वामित्व का प्रतीक है।[6]

प्रारंभिक ऋगवेदिक आदिम जाति मुख्यधारा

ऋग्वैदिक कालीन शासन प्रणाली में सम्पूर्ण कबीले का प्रमुख "राजन" कहलाता था व राजन की पदवी वंशानुगत नहीं होती थी। कबीले की समिति जिसमें महिलाएं भी भागीदार होती थीं, राजा का सर्व सहमति से चयन करती थी। कबीले के जन व पशुधन (गाय) की रक्षा करना राजन का कर्तव्य था। राजपुरोहित राजन का सहयोगी होता था। प्रारंभिक दौर में अलग से कोई सेना नहीं होती थी परंतु कालांतर में शासक व सैनिकों के एक पृथक वर्ग का उदय हुआ। उस समय समाज के चार वर्णों में विभाजन की प्रणाली नहीं थी।[7]

उत्तर वैदिक काल

ऋग्वेद के "पुरुषसूक्त" में चार वर्णों के पौराणिक इतिहास का वर्णन है। कुछ विद्वान पुरुषसूक्त को ऋग्वेद में अंतःप्रकाशित मानते हैं, जो कि वैदिक साहित्य की मूल संरचना के मुक़ाबले नवीन तर्कों पर ज्यादा आधारित है। चूंकि वैदिक समाज के वर्णों में सभी भारतीय जातियों का उल्लेख नहीं है[8] अर्थात पुरुष सूक्त को वंशानुगत जाति व्यवस्था की वकालत हेतु लिखा गया था। वैकल्पिक व्याख्या यह भी है कि पुरुषसूक्त के अलावा ऋग्वेद में अन्य कहीं भी "शूद्र" शब्द का प्रयोग ही नहीं हुआ है, अतः कुछ विद्वानों का मानना है कि पुरुष सूक्त उत्तर- ऋग्वैदिक काल का एक संयोजन था, जो एक दमनकारी और शोषक वर्ग संरचना को पहले से ही अस्तित्व में होने को निरूपित व वैध बनाने हेतु लिखा गया था। [9]

हालांकि, पुरुषसूक्त में "क्षत्रिय" शब्द प्रयुक्त नहीं हुआ है, "राजन" शब्द हुआ है, फिर भी वैदिक ग्रंथावली में यह पहला अवसर माना जाता है जहां समाज के चारों वर्ण एक समय में व एक साथ प्रयुक्त हुये हैं।[10] "राजन्य" शब्द का प्रयोग संभवतः उस समय राजा के संबधियों हेतु प्रयुक्त हुआ माना जाता है, जबकि यह समाज के एक विशिष्ट वर्ग के रूप में स्थापित हो चुके थे। वैदिक काल के अंतिम चरणों "राजन्य" शब्द को "क्षत्रिय" शब्द से प्रतिस्थापित कर दिया गया, जहाँ "राजन्य" शब्द राजा से संबंध होना इंगित करता है तथा "क्षत्रिय" शब्द किसी विशेष क्षेत्र पर शक्ति प्रभाव या नियंत्रण को।[10] "राजन्य" शब्द प्रमुख रूप से एक ही वंशावली के तहत प्रमुख स्थान को प्रदर्शित करता है जबकि "क्षत्रिय" शब्द शासन या शासक को।[11]

काशीप्रसाद जायसवाल का तर्क है कि ऋग्वेद में "ब्राह्मण" शब्द भी दुर्लभ प्रतीत होता है, यह सिर्फ "पुरुषसूक्त" में ही आया है तथा संभवतः पुरोहित वर्ग विशेष के लिए नहीं प्रयुक्त हुआ है।[10] पाणिनी, पतंजलि, कात्यायनमहाभारत के आधार पर जयसवाल मानते हैं कि राजनैतिक वर्ग को राजन्य नाम से संबोधित किया जाता था तथा राजन्य लोकतान्त्रिक रूप से चुने हुये शासक थे।[12] लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से चुने हुये शासक जैसे कि अंधकवृष्णि इत्यादि इस संदर्भ में उदाहरण माने जाते हैं।[10]

रामशरण शर्मा दर्शाते हैं कि "राजन्य (राज सहयोगी वर्ग)" व "विस (वंश का कृषक वर्ग)" के मध्य बढ़ते हुये ध्रुवीकरण के उपरान्त कैसे विभिन्न वंश प्रमुखों द्वारा एक सर्वमान्य मुखिया का चयन होता था जिसके फलस्वरूप एक तरफ शासक वर्ग (राजा, राजन्य, क्षत्र, क्षत्रिय) तथा दूसरी तरफ "विस" (उसी वंश के कृषक) जैसे पृथक वर्गों का विभेदीकरण उत्पन्न होता गया।[13]

सामाजिक स्थिति

ब्राह्मण काल में क्षत्रियों की सामाजिक स्थिति पर मतभेद है। "पंचविंश ब्राह्मण (13,4,7)" के अनुसार राजन्य का स्थान सर्वोच्च है तथा ब्राह्मण व वैश्य उससे नीचे की श्रेणी में हैं। "शतपथ ब्राह्मण 13.8.3.11" के अनुसार राजन्य, ब्राह्मण व वैश्य के बाद दूसरे क्रम पर आते हैं। शतपथ ब्राह्मण में वर्ण क्रम -ब्राह्मण, वैश्य, राजन्य व शूद्र है। वर्तमान ब्राह्मणवादी परंपरा का क्रम - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र, धर्मशास्त्र काल के बाद स्थिर हो गया।[14] बौद्ध काल में प्रायः क्षत्रिय उत्कृष्ट वर्ग माना गया।[15]

सन्दर्भ

  1. Editors, The. "Kshatriya | Hindu caste" (अंग्रेज़ी में). Britannica.com. मूल से 25 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2017-05-09.सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: authors list (link)
  2. ('क्षतात्किल त्रायत इत्युदग्रकम्बोज वंसज, रघुवंश)
  3. हाप्किंस, जरनल ऑव अमेरीकन औरियंटल सोसाइटी, १३, पृ. ७३
  4. Bujor Avari (2007). India: The Ancient Past: A History of the Indian Sub-Continent from c. 7000 BC to AD 1200, p. 74 Archived 2017-02-26 at the वेबैक मशीन
  5. दिनेश प्रसाद सकलानी (1 जनवरी 1998). Ancient Communities of the Himalaya [हिमालय के प्राचीन समुदाय] (अंग्रेज़ी में). इण्डस प्रकाशन (Indus Pub.). पृ॰ 123. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7387-090-3.
  6. Reddy (2005). General Studies History 4 Upsc. Tata McGraw-Hill Education,. पपृ॰ 78, 79, 33, 80, 27, 123. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780070604476.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
  7. शर्मा, राम शरण (2005). इंडियास अंसिएंट पास्ट (India's ancient past). the University of Michigan: ऑक्सफोर्ड युनिवेर्सिटी प्रैस. पपृ॰ 110–112. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780195667141.
  8. David Kean (2007). Caste-based Discrimination in International Human Rights Law Archived 2017-02-26 at the वेबैक मशीन, p. 26. Ashgate Publishing Ltd.
  9. जयन्तनुज बंद्योपाध्याय (2007). Class and Religion in Ancient India Archived 2017-02-26 at the वेबैक मशीन, pp. 37–47. Anthem Press.
  10. Kumkum Roy (2011). Insights and Interventions: Essays in Honour of Uma Chakravarti Archived 2017-02-25 at the वेबैक मशीन, p. 148. Primus Books.
  11. Turner, Sir Ralph Lilley; Dorothy Rivers Turner (January 2006) [1962]. A Comparative Dictionary of the Indo-Aryan Languages (Accompanied by three supplementary volumes: indexes, compiled by Dorothy Rivers Turner: 1969. – Phonetic analysis: 1971. – Addenda et corrigenda: 1985. संस्करण). London: Oxford University Press,. पपृ॰ 189–190. अभिगमन तिथि 23 October 2011.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
  12. Radhakrishna Choudhary (1964). The Vrātyas in Ancient India, Volume 38 of Chowkhamba Sanskrit studies, p. 125. Sanskrit Series Office.
  13. Ram Sharan Sharma (1991). Aspects of Political Ideas and Institutions in Ancient India, p. 172 Archived 2017-02-24 at the वेबैक मशीन. Motilal Banarsidass Publications.
  14. Upinder Singh (2008). A History of Ancient and Early Medieval India: From the Stone Age to the 12th Century, p. 202 Archived 2017-02-26 at the वेबैक मशीन. Pearson Education India.
  15. Jeanne Auboyer (1965). Daily Life in Ancient India. Phoenix Press. पपृ॰ 26–27. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-84212-591-5.

बाहरी कड़ियाँ