"सदस्य:Ankit kumar vijeta": अवतरणों में अंतर

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New poem by ankit
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मसरूफ Ka Mtlb
मसरूफ Ka mtlb (busy)

लोग कहते हैं कि हम रोते नहीं,

ये जरा साथ रहने वाले अंधेरो से पूछो.

जिक्र मेरा भी होगा उनकी खामोशियों में।




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कह के निकल जाने दो,
कह के निकल जाने दो,


टूट जाने दो हमको बिखर जाने दो।
टूट जाने दो हमको बिखर जाने दो।।





Khusii mt dhoondo in zindagi ki rah me,

Zine ke liye maut bhi kaafi hothoti hai..





09:03, 1 मई 2021 का अवतरण

तन्हाई के बेसुध सन्नाटे में,

बेबस रिश्तो का है शोर।

जाने कितने टूट गये,

अपनों के ऐसे डोर।

जिनसे नाता तो था अपना,

पर नहीं था उन पर जोर।

सहमी सहमी ये बातें,

और रिश्तो का होड़।

तन्हाई के बेसुध सन्नाटे में,

बेबस रिश्तो का है शोर।


New poem by ankit

मसरूफ Ka mtlb (busy)

लोग कहते हैं कि हम रोते नहीं,

ये जरा साथ रहने वाले अंधेरो से पूछो.

जिक्र मेरा भी होगा उनकी खामोशियों में।



टूट जाने दो हमको बिखर जाने दो,

कितना भी रोके दिल सुनने को,

आज सुनकर मुकर जाने दो।

कितने मसरूफ हो जिंदगी में,

इतना ही कह कर निकल जाने दो।

तन्हा सही इस भीड़ में,

साथ रहकर निकल जाने दो।

कद्र कितनी है मत कहो,

अब हमको संभल जाने दो।

आग जलने दो और जल जाने दो,

आज फिर से सुलग जाने दो।

सब ठीक है,

कह के निकल जाने दो,

टूट जाने दो हमको बिखर जाने दो।।



Khusii mt dhoondo in zindagi ki rah me,

Zine ke liye maut bhi kaafi hothoti hai..



More coming soon..