"विभीषण": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
No edit summary टैग: Reverted यथादृश्य संपादिका मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन |
छो 2401:4900:463B:2D73:2918:A657:7A6A:7709 (talk) के संपादनों को हटाकर Kuldhar Rabha (5173132) के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया: बर्बरता हटाई। टैग: वापस लिया SWViewer [1.4] |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
== सन्दर्भ == |
== सन्दर्भ == |
||
{{Reflist}} |
|||
{{Reflist}}वर्षों बाद अभी एक-दो दिन पहले राजस्थान के कोटा शहर जाने का मौका मिला तो फिर कैथून जाने का लोभ संवरण नहीं कर सका। कोटा जिले से बीस - पच्चीस की. मी. दूर यह वही जगह है, जहां कोटा-डोरिया की विश्व-प्रसिद्ध साड़ियां बनायी जाती हैं। वहीँ स्थित है, रावण भ्राता, विभीषण का दुनिया का एकलौता मंदिर, जहां उसकी देवता के रूप में पूजा होती है। यह मंदिर चौथी शताब्दी का बना हुआ है। यहां हर साल मार्च के महीने में मेले का आयोजन किया जाता है। धीरे - धीरे, जैसे - जैसे इस जगह की ख्याति और जानकारी बढ़ रही है वैसे - वैसे यहां लोगों के आने-जाने में भी बढ़ोत्तरी होने लगी है। जिसका असर मंदिर की साज-सज्जा और रख - रखाव को देख साफ़ पता चलता है। पहले की अपेक्षा अब तो बहुत बदलाव हो गया है। |
|||
यह सही है कि राम-रावण समर में विभीषण ने राम का साथ दिया था वैसे भी वह धार्मिक प्रवृति का था। पर था तो राक्षस कुल का ही, ऊपर से भाई के विरुद्ध जाने के कारण उसे कुलघाती माना जा कर दुनिया भर की बदनामी भी मिलती रही है । फिर भी उसके मंदिर का होना एक आश्चर्य का विषय है। यहां मंदिर बनने की कथा कुछ इस प्रकार है कि जब लंका-विजय के पश्चात श्री राम का राज्याभिषेक होने लगा तो सारे ब्रह्माण्ड से अतिथियों का आगमन हुआ था। कैलाश से शिव जी और लंका से विभीषण भी पधारे थे। समारोह के पश्चात शिव जी ने हनुमान जी से भारत भ्रमण की |
|||
{| class="wikitable" |
|||
| |
|||
|- |
|||
|मंदिर का पार्श्व भाग |
|||
|} |
|||
इच्छा जाहिर की तो विभीषण ने आग्रह किया कि शिव जी और हनुमान जी को कांवड़ में बैठा कर यात्रा करवाने की उनकी कामना को पूरा करने का सुयोग प्रदान किया जाए।भगवान शिव मान तो गए पर उन्होंने एक शर्त रख दी कि यदि यात्रा के दौरान कहीं कांवड़ भूमि से छू गयी तो वहीँ यात्रा का अंत कर दिया जाएगा। विभीषण ने बात मान ली और एक ऐसी कावंड बनवाई जिसके दोनों छोरों में आठ कोस की दूरी थी। उसी में एक तरफ शिव जी तथा दूसरी तरफ हनुमान जी बैठ गए। पर प्रभुएच्छा से कुछ समय बाद जब ये लोग कैथून, तब की कनकपुरी, पहुंचे तो शिव जी वाला हिस्सा जमीन से छू गया और शर्तानुसार यात्रा वहीँ ख़त्म हो गयी। जिस जगह शिव जी उतरे वह जगह थी चौमा गांव वहीँ उनका मंदिर भी बना। उसी |
|||
{| class="wikitable" |
|||
| |
|||
|- |
|||
|अंदरुनी भाग |
|||
|} |
|||
तरह कोटा के रंगबाड़ी स्थान पर हनुमान जी स्थित हो गए, दोनों जगहों की प्रतिमाएं आज भी अपनी अपूर्व छटा के साथ विद्यमान हैं। इसी तरह इनके बीचोबीच कैथून में, जहां विभीषण जी ठहरे थे, वहाँ उनके मंदिर की स्थापना हो गयी। जहां उनके धड़ के ऊपरी भाग की पूजा की जाती है। |
|||
{| class="wikitable" |
|||
| |
|||
|- |
|||
|मंदिर के अंदर की छत |
|||
|} |
|||
अपने यहां बचपन से ही कथा-कहानियों के सुनने-सुनाने का दौर शुरू हो जाता है और घरवालों की आस्था तथा मान्यताओं के अनुरूप ही हम अपने मन में उन कथाओं के चरित्रों की छवि गढ़ लेते हैं, जो ता-उम्र वैसी ही बनी रह कर आगे भी उसी रूप में स्थानांतरित होती चली जाती है। ये अलग बात है कि कोई चरित्र किसी के लिए नायक का होता है तो वही किसी और के लिए खलनायक का। इसका कारण स्थान, वहां के लोगों की आस्था, वर्षों से चली आ रही मान्यताएं कुछ भी हो सकता है। है। पर अभी भी कोटा शहर में भी ऐसे लोग मिल जाएंगे जो इस मंदिर के बारे में अनजान हैं। जो भी हो मंदिर तो है ही और पूजा भी होती ही है। कभी कोटा जाएं तो इस जगह को जरूर ध्यान में रख घूम कर आएं। |
|||
==बाहरी कड़ियाँ== |
==बाहरी कड़ियाँ== |
14:04, 25 अप्रैल 2021 का अवतरण
विभीषण रामायण के एक प्रमुख पात्र हैं। वे रावण के भाई थे।विभीषण बहुत ही बड़े राम भक्त थे। उन्होंने लंका में रहते हुए भी राम भक्ति की, जहाँ भगवान श्री राम का शत्रु रावण का राज था। विभीषण, राक्षस राजा रावण का सबसे छोटा भाई था, जिसने लंका पर शासन किया था। वह ऋषि पुलस्त्य के पुत्र ऋषि विश्रवा और कैकसी के सबसे छोटे पुत्र थे। लंका और कुंभकर्ण के राजा रावण उनके बड़े भाई थे। हालाँकि विभीषण दानव जाति के थे, लेकिन वे पवित्र थे और श्री राम के भक्त थे । उनका व्यवहार सच्चे ब्राह्मणो जैसा था। उन्होंने अपने बड़े भाइयों के साथ ब्रह्मा जी की तपस्या की थी, एवं वरदान में अपने लिए ये माँगा की वे हमेशा धर्म-पथ पर चले।