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'''अहीर''' भारत का समुदाय है। इस समुदाय के अधिकतर लोगों को [[यादव]] समुदाय के रूप में पहचाने जाते हैं क्योंकि वे दोनों नामों को समानर्थी मानते हैं। अहीर मूलतः यदुवंशी क्षत्रिय है।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.com/books?redir_esc=y&id=wT-BAAAAMAAJ&focus=searchwithinvolume&q=Yadubansi+Kshatriyas+were+originally+Ahirs|title=The Cattle and the Stick: An Ethnographic Profile of the Raut of Chhattisgarh|last=Soni|first=Lok Nath|date=2000|publisher=Anthropological Survey of India, Government of India, Ministry of Tourism and Culture, Department of Culture|isbn=978-81-85579-57-3|language=en}}</ref>अहीरों का पारम्पिक पेशा मवेशी पालन व कृषि है। वे पूरे भारत में पाए जाते हैं लेकिन विशेष रूप से उत्तरी भारतीय क्षेत्रों में केंद्रित हैं । उन्हें कई अन्य नामों से जाना जाता है, जिनमें गवली और उत्तर में घोसी या गोप शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में कुछ को दौवा के नाम से भी जाना जाता है ।
'''अहीर''' भारत का समुदाय है। इस समुदाय के अधिकतर लोगों को [[यादव]] समुदाय के रूप में पहचाने जाते हैं क्योंकि वे दोनों नामों को समानर्थी मानते हैं। [[यदुवंशी|यदुवंशी क्षत्रिय]] मूलतः अहीर हैं।<ref>{{Cite book|url=https://books.google.com/books?redir_esc=y&id=wT-BAAAAMAAJ&focus=searchwithinvolume&q=Yadubansi+Kshatriyas+were+originally+Ahirs|title=The Cattle and the Stick: An Ethnographic Profile of the Raut of Chhattisgarh|last=Soni|first=Lok Nath|date=2000|publisher=Anthropological Survey of India, Government of India, Ministry of Tourism and Culture, Department of Culture|isbn=978-81-85579-57-3|language=en}}</ref> अहीरों का पारम्पिक पेशा मवेशी पालन व कृषि है। वे पूरे भारत में पाए जाते हैं लेकिन विशेष रूप से उत्तरी भारतीय क्षेत्रों में केंद्रित हैं । उन्हें कई अन्य नामों से जाना जाता है, जिनमें गवली और उत्तर में घोसी या गोप शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में कुछ को दौवा के नाम से भी जाना जाता है ।

==इतिहास==
==इतिहास==
===व्युत्पत्ति===
===व्युत्पत्ति===

17:16, 19 अप्रैल 2021 का अवतरण

अहीर भारत का समुदाय है। इस समुदाय के अधिकतर लोगों को यादव समुदाय के रूप में पहचाने जाते हैं क्योंकि वे दोनों नामों को समानर्थी मानते हैं। यदुवंशी क्षत्रिय मूलतः अहीर हैं।[1] अहीरों का पारम्पिक पेशा मवेशी पालन व कृषि है। वे पूरे भारत में पाए जाते हैं लेकिन विशेष रूप से उत्तरी भारतीय क्षेत्रों में केंद्रित हैं । उन्हें कई अन्य नामों से जाना जाता है, जिनमें गवली और उत्तर में घोसी या गोप शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में कुछ को दौवा के नाम से भी जाना जाता है ।

इतिहास

व्युत्पत्ति

गंगा राम गर्ग अहीर को प्राचीन आभीर समुदाय के वंशज मानते हैं। अभीर का भारत में सटीक स्थान ज्यादातर महाभारत और टॉलेमी के लेखन जैसे पुराने ग्रंथों की व्याख्याओं पर आधारित विभिन्न सिद्धांतों का विषय है। वह अहीर शब्द को संस्कृत शब्द अभीर का प्राकृत रूप मानते हैं। वह टिप्पड़ी करते है कि बंगाली और मराठी भाषाओं में वर्तमान शब्द आभीर है ।

गर्ग एक ब्राह्मण समुदाय को अलग करते हैं जो आभीर नाम का उपयोग करते हैं और महाराष्ट्र और गुजरात के वर्तमान राज्यों में पाए जाते हैं। वह कहते हैं, ऐसा इसलिए है क्योंकि ब्राह्मणों का विभाजन प्राचीन आभीर जनजाति के पुजारी थे

पौराणिक उद्भव

पौराणिक दृष्टि से, अहीर या आभीर यदुवंशी राजा आहुक के वंशज है।[2] शक्ति संगम तंत्र मे उल्लेख मिलता है कि राजा ययाति के दो पत्नियाँ थीं-देवयानी व शर्मिष्ठा। देवयानी से यदु व तुर्वशू नामक पुत्र हुये। यदु के वंशज यादव कहलाए। यदुवंशीय भीम सात्वत के वृष्णि आदि चार पुत्र हुये व इन्हीं की कई पीढ़ियों बाद राजा आहुक हुये, जिनके वंशज आभीर या अहीर कहलाए।[3]

आहुक वंशात समुद्भूता आभीरा इति प्रकीर्तिता। (शक्ति संगम तंत्र, पृष्ठ 164)[4]

इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि यादव व आभीर मूलतः एक ही वंश के क्षत्रिय थे तथा "हरिवंश पुराण" मे भी इस तथ्य की पुष्टि होती है।[5]

भागवत में भी वसुदेव ने आभीर पति नन्द को अपना भाई कहकर संबोधित किया है व श्रीक़ृष्ण ने नन्द को मथुरा से विदा करते समय गोकुलवासियों को संदेश देते हुये उपनन्द, वृषभान आदि अहीरों को अपना सजातीय कह कर संबोधित किया है। वर्तमान अहीर भी स्वयं को यदुवंशी आहुक की संतान मानते हैं।[6]

सैन्य भागीदारी

भारत के ब्रिटिश शासकों ने 1920 के दशक में पंजाब के अहीरों को एक "कृषिक जाति" के रूप में वर्गीकृत किया था, जो उस समय "योद्धा जातियाँ" होने का पर्याय था। वे 1898 से सेना में भर्ती हुए थे। अलवर, रेवाड़ी, नारनौल, महेंद्रगढ़, गुड़गांव और झज्जर के आसपास के क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण आबादी है। इस क्षेत्र को अहीरवाल के रूप में जाना जाता है।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Soni, Lok Nath (2000). The Cattle and the Stick: An Ethnographic Profile of the Raut of Chhattisgarh (अंग्रेज़ी में). Anthropological Survey of India, Government of India, Ministry of Tourism and Culture, Department of Culture. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-85579-57-3.
  2. मित्तल, द्वारका प्रसाद (1970). हिन्दी साहित्य में राधा. जवाहर पुस्तकालय. मूल से 21 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2020.
  3. भाषा भूगोल व सांस्कृतिक चेतना Archived 2015-09-28 at the वेबैक मशीन, Vijaya Candra Publisher Vidyā Prakāśana, 1996 Original from the University of California, पृष्ठ 28
  4. भाषा भूगोल व सांस्कृतिक चेतना Archived 2015-09-28 at the वेबैक मशीन Vijaya Candra Publisher Vidyā Prakāśana, 1996 Original from the University of California, पृष्ठ 28,29,30
  5. Agrawal, Ramnarayan (1981). Braja kā rāsa raṅgamc̃a. the University of Michigan: Neśanala. मूल से 7 मई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2020.
  6. मित्तल, द्वारका प्रसाद (1970). हिन्दी साहित्य में राधा. जवाहर पुस्तकालय. मूल से 21 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2020.