"फतेहपुर जिला": अवतरणों में अंतर
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[[फतेहपुर जिला]] [[उत्तर प्रदेश]] [[राज्य]] का एक [[जिला]] है। जो कि [[पवित्र]] [[गँगा]] एँव [[यमुना]] [[नदी]] के किनारों पर बसा हुआ है। [[फतेहपुर]] को [[पुराणों]] मे भी दर्शाया गया है। भिटौरा और असनि के [[घाट]] भी [[पुराणों]] मे मिलते है। भिटौरा [[भ्रिगु]] [[ऋषि]] की [[तपोस्थली]] थी। [[फतेहपुर जिला]] [[इलाहाबाद मण्डल]] का एक हिस्सा है |
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'''बावनी इमली''' <br />यह [[स्मारक]] [[स्वतंत्रता]] सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को [[ब्रिटिश सेना]] द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगो का विश्वास है के उस [[पेड़]] का विकास उस [[नरसंहार]] के बाद बंद हो गया है। यह जगह [[बिन्दकी]] उपखंड में [[खजुआ]] कस्बे के निकट है। [[बिन्दकी ]] [[तहसील]] मुख्यालय से तीन [[किलोमीटर]] पश्चिम मुगल रोड स्थित [[शहीद]] [[स्मारक]] [[बावनी इमली]] [[स्वतंत्रता]] की जंग में अपना विशेष महत्व रखती है। शहीद स्थल में बूढ़े इमली के पेड़ में 28 अप्रैल 1857 को [[रसूलपुर]] गांव के निवासी [[ जोधा सिंह अटैया]] को उनके इक्यावन क्रांतिकारियों के साथ [[फांसी]] पर लटका दिया गया था इन्हीं बावन शहीदों की [[स्मृति]] में इस [[वृक्ष]] को [[बावनी इमली]] कहा जाने लगा। |
'''बावनी इमली''' <br />यह [[स्मारक]] [[स्वतंत्रता]] सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को [[ब्रिटिश सेना]] द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगो का विश्वास है के उस [[पेड़]] का विकास उस [[नरसंहार]] के बाद बंद हो गया है। यह जगह [[बिन्दकी]] उपखंड में [[खजुआ]] कस्बे के निकट है। [[बिन्दकी ]] [[तहसील]] मुख्यालय से तीन [[किलोमीटर]] पश्चिम मुगल रोड स्थित [[शहीद]] [[स्मारक]] [[बावनी इमली]] [[स्वतंत्रता]] की जंग में अपना विशेष महत्व रखती है। शहीद स्थल में बूढ़े इमली के पेड़ में 28 अप्रैल 1857 को [[रसूलपुर]] गांव के निवासी [[ जोधा सिंह अटैया]] को उनके इक्यावन क्रांतिकारियों के साथ [[फांसी]] पर लटका दिया गया था इन्हीं बावन शहीदों की [[स्मृति]] में इस [[वृक्ष]] को [[बावनी इमली]] कहा जाने लगा। |
02:54, 10 अक्टूबर 2009 का अवतरण
फतेहपुर | |||||||
— जिला — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
राज्य | उत्तर प्रदेश | ||||||
जिलाधिकारी | श्री पी. गुरुप्रसाद | ||||||
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
4,152 km² (1,603 sq mi) • 114.66 मीटर (376 फी॰) | ||||||
विभिन्न कोड
| |||||||
आधिकारिक जालस्थल: www.fatehpur.nic.in |
निर्देशांक: 26°10′N 81°12′E / 26.16°N 81.20°E फतेहपुर जिला उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है। जो कि पवित्र गँगा एँव यमुना नदी के किनारों पर बसा हुआ है। फतेहपुर को पुराणों मे भी दर्शाया गया है। भिटौरा और असनि के घाट भी पुराणों मे मिलते है। भिटौरा भ्रिगु ऋषि की तपोस्थली थी। फतेहपुर जिला इलाहाबाद मण्डल का एक हिस्सा है
ऐतिहासिक स्थल
बावनी इमली
यह स्मारक स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किये गये बलिदानों का प्रतीक है। 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश सेना द्वारा बावन स्वतंत्रता सेनानियों को एक इमली के पेड़ पर फाँसी दी गयी थी। ये इमली का पेड़ अभी भी मौजूद है। लोगो का विश्वास है के उस पेड़ का विकास उस नरसंहार के बाद बंद हो गया है। यह जगह बिन्दकी उपखंड में खजुआ कस्बे के निकट है। बिन्दकी तहसील मुख्यालय से तीन किलोमीटर पश्चिम मुगल रोड स्थित शहीद स्मारक बावनी इमली स्वतंत्रता की जंग में अपना विशेष महत्व रखती है। शहीद स्थल में बूढ़े इमली के पेड़ में 28 अप्रैल 1857 को रसूलपुर गांव के निवासी जोधा सिंह अटैया को उनके इक्यावन क्रांतिकारियों के साथ फांसी पर लटका दिया गया था इन्हीं बावन शहीदों की स्मृति में इस वृक्ष को बावनी इमली कहा जाने लगा।
चार फरवरी 1858 को जोधा सिंह अटैया पर ब्रिगेडियर करथ्यू ने असफल आक्रमण किया। साहसी जोधा सिंह अटैया को सरकारी कार्यालय लूटने एवं जलाये जाने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डकैत घोषित कर दिया। जोधा सिंह ने 27अक्टूबर 1857 को महमूदपुर गांव में एक दरोगा व एक अंग्रेज सिपाही को घेरकरमार डाला था। सात दिसंबर 1857 को गंगापार रानीपुर पुलिस चौकी पर हमला करएक अंग्रेज परस्त को भी मार डाला। इसी क्रांतिकारी गुट ने 9 दिसंबर को जहानाबाद में गदर काटी और छापा मारकर ढंग से तहसीलदार को बंदी बना लिया।जोधा सिंह ने दरियाव सिंह और शिवदयाल सिंह के साथ गोरिल्ला युद्ध कीशुरुआत की थी। जोधा सिंह को 28 अप्रैल 1858 को अपने इक्यावन साथियों के साथ लौट रहे थे तभी मुखबिर की सूचना पर कर्नल क्रिस्टाइल की सेना ने उन्हें सभी साथियों सहित बंदी बना लिया और सबको फांसी दे दी गयी। बर्बरता की चरम सीमा यह रही कि शवों को पेड़ से उतारा भी नहीं गया। कई दिनों तक यह शव इसी पेड़ पर झूलते रहे। चार जून की रात अपने सशस्त्र साथियों के साथ महराज सिंह बावनी इमली आये और शवों को उतारकर शिवराजपुर में इन नरकंकालों की अंत्येष्टि की।
भिटौरा
इस मुख्यालय पवित्र गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। यहाँ सुप्रसिद्ध संत महर्षि भृगु लंबे समय तक पूजा का स्थान रहा है। यहा पर गंगा नदी प्रवाह उत्तर दिशा की ओर है| शहर मुख्यालय से उत्तर दिशा में बारह किलोमीटर दूर उत्तरवाहिनी भागीरथी के भिटौरा तट पर महर्षि भृगु मुनि ने तपस्या की थी । पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भृगु मुनि की तपोस्थली में देवता भी परिक्रमा करने आए थे । पवित्र धाम गंगा महर्षि भृगु क्रोध में एक बार भगवान् विष्णु की छाती पर लात भी मारी थी । यहाँ पर अन्य आधा दर्जन मन्दिर बने हुए हैं ।
स्वामी विज्ञानानंद जी ने महर्षि भृगु की तपोस्थली में भगवान् शंकर की विशाल मूर्ति स्थापित कराई है , और नया पक्का घाट भी तैयार कराया है । भगवान् शंकर की मूर्ति पर ॐ नमः शिवाय का बारह वर्षों से अनवरत पाठ चल रहा है । उत्तर वाहिनी गंगा पूरे भारत में मात्र तीन जगह है जिसमे हरिद्वार , काशी व भृगु धाम भिटौरा है
हथगाम
यह महान स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री गणेश शंकर विद्यार्थी ऐवम उर्दू के शायर श्री इकबाल वर्मा का जन्म स्थान है। इस् स्थान पर राजा जयचंद की हथशाला थी। और सिखों के पाँचवे गुरु अर्जुन देव जी की तपोस्थली होने का गौरव प्राप्त है।
रेन्ह्
यह महाभारत कालीन गाँव है और यमुना नदि के किनारे पर बसा हुआ है। दो दशकों पहले एक बहुत पुरानी भगवान विष्णु की कीमती मिश्र धातु की मूर्ति को इस इस गांव में पाया गया था। अब ये मूर्ति कीर्तिखेडा गांव में एक मंदिर मे स्थित है और ये गांव बिन्द्की ललौली सड़क पर है। कहा जाता है कि यहां पर क्रिष्ण के बडे भाई बलराम की ससुराल है।
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ज्ञान साधन |
शिवराजपुर
यह गांव बिन्दकी के निकट गंगा नदी के किनारे पर स्थित है। इस गांव में भगवान कृष्ण का एक बहुत पुराना मंदिर है। जो मीरा बाई का मंदिर के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि ये भगवान कृष्ण की मूर्ति को मीरा बाई जो की भगवान कृष्ण की एक प्रख्यात भक्त और मेवाड़ के शाही परिवार के एक सदस्य थी के द्वारा स्थापित किया गया था।
तेन्दुली
यह गांव चौड्गरा-बिन्दकी सडक पर है। ऐसा मानना है कि यहाँ सांप के शिकार / कुत्ता काटे बीमरो का ईलाज बाबा झामदास के मन्दिर मे होता है।
बिन्द्की
यह बहुत ही पुराना शहर है जो कि मुख्यालय से लगभग १५ मील दूर है। बिन्दकी का नाम यहा के राजा वेनुकी के नाम पर पडा। यह बहुत ही धर्मनिरपेक्ष शहर है। यहा कि भूमि गन्गा और यमुना नदी के बीच मे होने के कारण बहुत ही उपजाऊ है।
यह् उत्तर प्रदेश के राज्य में एक् एक सबसे पुराना तहसील है। शहीद जोधा सिंह अटैया और कई अन्य स्वतंत्रता सेनानियों और प्रसिद्ध हिंदी कवि राष्ट्र-कवि सोहन लाल द्विवेदी की मात्रभूमि है।
खजुहा
आदि काल मे खजुहा को खजुआ गढ के नाम से जाना जाता था। इस स्थान का मुगल काल मे बहुत ही महत्त्व था। औरन्गजेब के समय पर यह इलाहाबाद मण्डल की मुख्य छावनी थी। खजुहा को भगवान शिव की नगरी के तौर पर भी जाना जाता है। इस छोटे से शहर में 118 अद्भुत शिव मंदिर है| खजुहा कस्बा ऐतिहासिक घटनाओं और स्थानों को समेटे हुए है। कस्बे के मुगल रोड में विशालकाय फाटक और सरांय स्थित है। जो कस्बे की पहचान बना हुआ है। वहीं कस्बे के स्वर्णिम अतीत के वैभव की दास्तां बयां कर रहा है। मुगल रोड के उत्तर में रामजानकी मंदिर, तीन विशालकाय तालाब, बनारस की नगरी के समान प्रत्येक गली और कुँए अपनी भव्यता की कहानी कह रही है।
इस छोटे से कस्बे में करीब एक सौ अठारह शिवालय हैं। इसी क्रम में दशहरा मेले में होने वाली रामलीला के आयोजन में रावण पूजा भी अलौकिक और अनोखी मानी जाती है। यहां की रामलीला को देखने के लिए प्रदेश के कोने-कोने से श्रृद्धालु एकत्रित होते हैं। खजुहा कस्बे की रामलीला जिले में ही नहीं पूरे प्रदेश में ख्याति प्राप्त है।
यहां पर दशहरा मेले पर अन्य स्थानों की तरह रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि रावण को पूजनीय मानकर हजारों दीपों की रोशनी के साथ पूजा अर्चना की जाती है। कस्बे के महिलाएं और बच्चे भी इस सामूहिक आरती और पूजन कार्य में हिस्सा लेते हैं। इस अजीब उत्सव को देखने के लिए दूरदराज से लोगों जमावड़ा लगता है। वहीं रावण के साथ अन्य पुतलों को नगर के मुख्य मार्गों में भ्रमण कराया जाता है।
इस ऐतिहासिक मेले का शुभारम्भ भादो मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया (तीजा) के दिन तालाब से लाई गई मिट्टी एवं कांस से कुंभ निर्माण कर गणेश की प्रतिमा निर्माण कर दशहरा के दिन पूजा अर्चना की जाती है। खजुहा मेले में निर्मित होने वाले सभी स्वरूप नरई, पुआल आदि समान से बनाए जाते हैं। इन स्वरूपों के चेहरों की रंगाई का कार्य खजुहा के कुशल पेंटरों द्वारा किया जाता है। जबकि रावण का शीश तांबे से बनाया जाता है। दशमी के दिन से गणेश पूजन से शुरू होने वाली रामलीला परेवा द्वितीया के दिन राम रावण युद्ध के बाद इस ऐतिहासिक रामलीला की समाप्त हो जाती है।
खजुहा की रामलीला का विशेष महत्व है। जहां रावण को जलाने के स्थान पर इस की पूजा की जाने की परंपरा है। तांबे के शीश वाले रावण के पुतले को हजारों दीपों की रोशनी प्रज्वलित करके सजाया जाता है। इसके बाद ठाकुर जी के पुजारी द्वारा श्रीराम के पहले रावण की पूजा की जाती है। जहां मेघनाथ का 25 फिट ऊंचा लकड़ी के पुतले की सवारी कस्बे के मुख्य मार्गों में निकाली जाती है। वहीं 40 फुट लंबा कुंभकरण व अन्य के पुतले तैयार किए जाते हैं।
हजारी लाल का फाटक
1857 से शुरू हुई आजादी की जंग के अंतिम मुकाम 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का केन्द्र बिन्दु शहर के चौक स्थित हजारी लाल का फाटक था। बलिया के कर्नल भगवान सिंह ने जिले के आठ सौ से अधिक देशभक्तों की फौज की कमान संभाली थी। झंडा गीत के रचयिता श्याम लाल गुप्त पार्षद ने आजादी की इस चिंगारी को तेज करने का प्रयास किया। शिवराजपुर का जंगल क्रांतिकारियों की शरण स्थली था। बताते हैं कि यहीं पर गुप्त रणनीति तय होती थी और फिर अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने के लिये क्रांतिकारियों के दल निकल पड़ते थे।
9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जिले की महती भूमिका होने पर 1942 की लड़ाई में पूर्वाचल के जनपदों सहित बांदा व हमीरपुर के क्रांतिकारियों ने जिले को ही रणभूमि के रूप में स्वीकारा तभी तो बलिया के कर्नल भगवान सिंह, चीतू पांडेय जैसे क्रांतिकारी यहां के देशभक्तों का साथ देकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को तेज किया। जिले के क्रांतिकारी गुरुप्रसाद पांडेय, बंशगोपाल, शिवदयाल उपाध्याय, दादा दीप नारायण, शिवराज बली, देवीदयाल, रघुनंदन पांडेय, यदुनंदन प्रसाद, वासुदेव दीक्षित भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व कर जिले में एक माहौल पैदा कर दिया तभी तो एक-एक करके लगभग आठ सौ से अधिक की फौज क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों की सत्ता को हिला दिया। चौक स्थित हजारीलाल का फाटक क्रांतिकारियों के लिये गुप्तगू का मुख्य केन्द्र था। बताते हैं कि यहीं पर कानपुर व पूर्वाचल के क्रांतिकारी नेता आकर अंग्रेजों को देश से भगाने के लिये क्या करना है इसकी रणनीति बताते थे।
अंग्रेजी शासकों को हजारी लाल फाटक की जानकारी हो गयी थी। कई बार यहां छापा मारकर क्रांतिकारियों को दबोचने के प्रयास किये गये। आखिर क्रांतिकारियों को गुप्त स्थान खोजना ही पड़ा। शिवराजपुर के जंगल में क्रांतिकारियों का मजमा लगता था। बताते हैं कि अस्सी हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में विस्तारित जंगल को ही क्रांतिकारियों ने अपना ठिकाना बनाया। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत गोपालगंज के फसिहाबाद स्थल से की गयी। इसके अलावा खागा जीटी रोड को भी केन्द्र बिन्दु बनाया गया। जहानाबाद, हथगाम, खागा सहित दो दर्जन से अधिक स्थानों पर क्रांतिकारियों ने धरना-प्रदर्शन कर अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिये ललकारा। इस दरम्यान लगभग चार सौ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। नेतृत्व करने वाले आधे से अधिक नेता जब जेल चले गये तो अंगनू पांडेय, बद्री जैसे क्रांतिकारियों ने मोर्चा संभाला।
परिवहन
फतेहपुर जिला भली प्रकार से सड़क और रेल मार्ग से जुडा हुआ है।
भारतीय रेल
भारतीय रेलवे की हावड़ा अमृतसर मुख्य मार्ग पर फतेहपुर का पडाव स्थल है। यहा पर नई दिल्ली, जम्मू, हावड़ा, जोधपुर, फ़र्रुख़ाबाद, कानपुर, इलाहाबाद और वाराणसी आदि के लिये मेल गाडी मिलती है। यहा से मिलने वाली कुछ गाडीया नीचे दी है।
'कानपुर की ओर जाने वाली गाड़ियाँ'
गाडी सख्या | नाम | कहाँ से | कहाँ तक | आगमन समय | प्रस्थान समय | सन्चालित दिवस |
---|---|---|---|---|---|---|
२४०३ | इलाहाबाद मथुरा एक्सप्रेस | इलाहाबाद | मथुरा | -- | ००:५३ | प्रतिदिन |
२४१७ | प्रयागराज एक्सप्रेस | इलाहाबाद | नयी दिल्ली | -- | २२:५० | प्रतिदिन |
४१६३ | संगम एक्सप्रेस | इलाहाबाद | मेरठ शहर | -- | २०:३० | प्रतिदिन |
२३०७ | हावड़ा जोधपुर एक्सप्रेस | हावड़ा | जोधपुर | -- | १३:३० | प्रतिदिन |
२३११ | हावड़ा दिल्ली कालका मेल | हावड़ा | कालका | -- | १०:४५ | प्रतिदिन |
२५०५ | नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस | -- | ११:०० | प्रतिदिन | ||
२८१५ | पुरी नयी दिल्ली एक्सप्रेस् | पुरी | नयी दिल्ली | -- | ०८:४० | म॰,गु॰,शु॰,रवि॰ |
४०८३ | महानन्दा एक्सप्रेस | -- | ०७:४५ | प्रतिदिन | ||
८१०१ | टाटा जम्मूतवी एक्सप्रेस | टाटा | जम्मू | -- | १०:३० | प्रतिदिन |
'इलाहाबाद की ओर जाने वाली गाडिया'
गाडी सख्या | नाम | कहाँ से | कहाँ तक | आगमन समय | प्रस्थान समय | सन्चालित दिवस |
---|---|---|---|---|---|---|
२४०4 | इलाहाबाद मथुरा एक्सप्रेस | मथुरा | इलाहाबाद | -- | 03:13 | प्रतिदिन |
२४१8 | प्रयागराज एक्सप्रेस | नयी दिल्ली | इलाहाबाद | -- | 04:37 | प्रतिदिन |
4164 | संगम एक्सप्रेस | मेरठ शहर | इलाहाबाद | -- | 05:15 | प्रतिदिन |
2308 | हावड़ा जोधपुर एक्सप्रेस | जोधपुर | हावड़ा | -- | 12:30 | प्रतिदिन |
2312 | हावड़ा दिल्ली कालका मेल | कालका | हावड़ा | -- | 15:40 | प्रतिदिन |
2506 | नॉर्थ ईस्ट एक्सप्रेस | -- | 14:05 | प्रतिदिन | ||
4084 | महानन्दा एक्सप्रेस | -- | 16:10 | प्रतिदिन |
सड़क मार्ग
फतेहपुर जिला भली प्रकार से सड़क मार्ग से अन्य शहरो से जुडा हुआ है। ग्रान्ट ट्रक रोड पर स्थित फतेहपुर जिला लगभग सभी शहरो से सीधे सम्पर्क मे है। उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम का बस ठहराव स्थल भी यहा है। यहा से नियमित तौर पर दिल्ली,कानपुर,लखनऊ,इलाहाबाद,बाँदा,चित्रकूट,झाँसी,बरेली आदि शहरो के लिये बस सेवा उपलब्ध है।
बाज़ार
फतेहपुर का मुख्य बाज़ार चॉक है। शहर कि अन्य जगह पर भी आपकी ज़रूरत का सामान मिल सकता है। उनमे से कुछ निम्न लिखित है।
- चौक (मुख्य बाजार)
- कटरा अब्दुल गनी
- अमरजई
- बाक़रगंज
- हरिहरगंज
- लाला की बाजार
- महाजरी मोहल्ला.
- काजियाना
- वर्मा चौराहा
- पटेल नगर
- पानी मोहल्ला
- कलेक्टर गंज
- शादीपुर चौराहा
- मुराईन टोला
- सिविल लाइन्स
- जयराम नगर
- अ।बू नगर
- लाठी मोहाल
- पक्का तालाब
- देवीगन्ज
- पुलिस लाइन्स
- राधा नगर
- खेलदार
- शकुन नगर
- क्रिष्ण बिहारी नगर
- श्याम नगर
- चूडी वाली गली (महिलाओं बाजार)
- मस्वानी
- गौतम नगर
बाहरी कड़ियां
सरकारी जाल पन्ना फतेहपुर से जुड़े लोगों का ब्लॉग, जहाँ पर फतेहपुर के इतिहास व संस्कृति के अलावा खबरें भी उपलब्ध हैं