"इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी": अवतरणों में अंतर

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बख्तियार खिलजी के आक्रमण के समय बंगाल का शासक लक्ष्मण सेन था।
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'''इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी''' ([[बाङ्ला भाषा|बांग्ला]]:ইখতিয়ার উদ্দিন মুহম্মদ বখতিয়ার খলজী, [[फ़ारसी भाषा|फारसी]]: اختيار الدين محمد بن بختيار الخلجي), जिसे बख्तियार खिलजी भी कहते हैं, [[कुतुब-उद-दीन ऐबक|कुतुबुद्दीन एबक]] का एक सैन्य सिपहसालार था। बख्तियार खिलजी के आक्रमण के समय बंगाल का शासक लक्ष्मण सेन था।
'''इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी''' ([[बाङ्ला भाषा|बांग्ला]]:ইখতিয়ার উদ্দিন মুহম্মদ বখতিয়ার খলজী, [[फ़ारसी भाषा|फारसी]]: اختيار الدين محمد بن بختيار الخلجي), जिसे बख्तियार खिलजी भी कहते हैं, [[कुतुब-उद-दीन ऐबक|कुतुबुद्दीन एबक]] का एक सैन्य सिपहसालार था। बख्तियार खिलजी के आक्रमण के समय बंगाल का शासक लक्ष्मण सेन था।उस समय बख्तियार खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था और एक बार वह काफी बीमार पड़ा. उसने अपने हकीमों से काफी इलाज करवाया मगर वह ठीक नहीं हो सका और मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया. तभी किसी ने उसको सलाह दी कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र को दिखाए और इलाज करवाए. परन्तु खिलजी इसके लिए तैयार नहीं था. उसे अपने हकीमों पर ज्यादा भरोसा था. वह यह मानने को तैयार नहीं था की भारतीय वैद्य उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञान रखते हैं या ज्यादा काबिल हो सकते हैं.

लेकिन अपनी जान बचाने के लिए उसको नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र को बुलवाना पड़ा. फिर बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी और कहां की में उनके द्वारा दी गई किसी भी प्रकार की दवा नहीं खाऊंगा. बिना दवा के वो उसको ठीक करें. वैद्यराज ने सोच कर उसकी शर्त मान ली और कुछ दिनों के बाद वो खिलजी के पास एक कुरान लेकर पहुंचे और कहा कि इस कुरान की पृष्ठ संख्या.. इतने से इतने तक पढ़ लीजिये ठीक हो जायेंगे.

बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के बताए अनुसार कुरान को पढ़ा और ठीक हो गया था. ऐसा कहा जाता हैं कि राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था, वह थूक के साथ उन पन्नों को पढ़ता गया और ठीक होता चला गया. खिलजी इस तथ्य से परेशान रहने लगा कि एक भारतीय विद्वान और शिक्षक को उनके हकीमों से ज्यादा ज्ञान था. फिर उसने देश से ज्ञान, बौद्ध धर्म और आयुर्वेद की जड़ों को नष्ट करने का फैसला किया. परिणाम स्वरूप खिलजी ने नालंदा की महान पुस्तकालय में आग लगा दी और लगभग 9 मिलियन पांडुलिपियों को जला दिया.

ऐसा कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि वह तीन महीने तक जलती रहीं. इसके बाद खिलजी के आदेश पर तुर्की आक्रमणकारियों ने नालंदा के हजारों धार्मिक विद्वानों और भिक्षुओं की भी हत्या कर दी.


==सन्दर्भ==
==सन्दर्भ==

11:11, 3 मार्च 2021 का अवतरण

इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी (बांग्ला:ইখতিয়ার উদ্দিন মুহম্মদ বখতিয়ার খলজী, फारसी: اختيار الدين محمد بن بختيار الخلجي), जिसे बख्तियार खिलजी भी कहते हैं, कुतुबुद्दीन एबक का एक सैन्य सिपहसालार था। बख्तियार खिलजी के आक्रमण के समय बंगाल का शासक लक्ष्मण सेन था।उस समय बख्तियार खिलजी ने उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था और एक बार वह काफी बीमार पड़ा. उसने अपने हकीमों से काफी इलाज करवाया मगर वह ठीक नहीं हो सका और मरणासन्न स्थिति में पहुँच गया. तभी किसी ने उसको सलाह दी कि वह नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र को दिखाए और इलाज करवाए. परन्तु खिलजी इसके लिए तैयार नहीं था. उसे अपने हकीमों पर ज्यादा भरोसा था. वह यह मानने को तैयार नहीं था की भारतीय वैद्य उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञान रखते हैं या ज्यादा काबिल हो सकते हैं.

लेकिन अपनी जान बचाने के लिए उसको नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र को बुलवाना पड़ा. फिर बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रखी और कहां की में उनके द्वारा दी गई किसी भी प्रकार की दवा नहीं खाऊंगा. बिना दवा के वो उसको ठीक करें. वैद्यराज ने सोच कर उसकी शर्त मान ली और कुछ दिनों के बाद वो खिलजी के पास एक कुरान लेकर पहुंचे और कहा कि इस कुरान की पृष्ठ संख्या.. इतने से इतने तक पढ़ लीजिये ठीक हो जायेंगे.

बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के बताए अनुसार कुरान को पढ़ा और ठीक हो गया था. ऐसा कहा जाता हैं कि राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था, वह थूक के साथ उन पन्नों को पढ़ता गया और ठीक होता चला गया. खिलजी इस तथ्य से परेशान रहने लगा कि एक भारतीय विद्वान और शिक्षक को उनके हकीमों से ज्यादा ज्ञान था. फिर उसने देश से ज्ञान, बौद्ध धर्म और आयुर्वेद की जड़ों को नष्ट करने का फैसला किया. परिणाम स्वरूप खिलजी ने नालंदा की महान पुस्तकालय में आग लगा दी और लगभग 9 मिलियन पांडुलिपियों को जला दिया.

ऐसा कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि वह तीन महीने तक जलती रहीं. इसके बाद खिलजी के आदेश पर तुर्की आक्रमणकारियों ने नालंदा के हजारों धार्मिक विद्वानों और भिक्षुओं की भी हत्या कर दी.

सन्दर्भ