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नया पृष्ठ: नमस्ते कमला मागो सागर दुल्लणी । नमस्ते नमस्ते लक्ष्मी बिष्णुङ्... |
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श्री लक्ष्मी पुराण |
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नमस्ते कमला मागो सागर दुल्लणी । नमस्ते नमस्ते लक्ष्मी बिष्णुङ्क घरणि ।१। |
नमस्ते कमला मागो सागर दुल्लणी । नमस्ते नमस्ते लक्ष्मी बिष्णुङ्क घरणि ।१। |
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नमस्ते कमला मागो अति दय़ाबती । स्थाबर जङ्गम कीट आदि पालु निति ।२। |
नमस्ते कमला मागो अति दय़ाबती । स्थाबर जङ्गम कीट आदि पालु निति ।२। |
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दिनके नारद पराशर मुनि दुइ । भ्रमि भ्रमि एक ग्रामे प्रबेशिले जाइँ ।९। |
दिनके नारद पराशर मुनि दुइ । भ्रमि भ्रमि एक ग्रामे प्रबेशिले जाइँ ।९। |
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सेहिदिन मार्गशीर मास गुरुवार । पर्ब पड़िथिला सर्ब पुरबासीङ्कर ।१०। |
सेहिदिन मार्गशीर मास गुरुवार । पर्ब पड़िथिला सर्ब पुरबासीङ्कर ।१०। |
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प्रति घरद्वार गोमय़रे लिपा होइ । लक्ष्मी पादपद्म चिता प्ड़िथिला तहिँ ।११। |
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नारीमाने स्नान सारि पिन्धा झीनबास । लक्ष्मींक पूजारे सर्बे होइछन्ति बश ।१२। |
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ब्राह्मणंक ठारु जे चण्डाल परियन्ते । लक्ष्मींक पूजारे रत अछन्ति समस्त ।१३। |
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हुल हुली शबदरे पुरिछि गगन । देखि ए उत्सब रीति बिधाता नन्दन ।१४। |
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पछरन्ति पराशर मुनिङ्कु उदन्त । कह कह तपीबर ए किस चरित ।१५। |
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ब्रह्मण चण्डाल आदि समस्त जातिरे । करुछन्ति कि उत्सब आनन्द मतिरे ।१६। |
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केउँ ब्रत कि उपास अटे एहा नाम । काहाकु करन्ति पूजा तार कि निय़म ।१७। |
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एहा शुणि पराशर होइ हस हस । कहन्ति बचन धीरे शुण बिधिशिष्य़ ।१८। |
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ए धान माणिका गुरुवार जे अटइ । लक्ष्मी देवींकर पूजा ए ब्रत अटइ ।१९। |
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सबु मास मानंकरे मार्गशिर सार । तहिँरे पड़इ जेउँ जेउँ गुरुवार ।२०। |
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लक्ष्मींकर प्रिय़ सेहि बारमान जाण । सबुठारु आद्य गुरुवारटि प्रधान ।२१। |
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एक दिने शुक्ल दशमी गुरुवार । पड़िले सुदशाब्रत हुए से दिनर ।२२। |
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लक्ष्मींकर अतिप्रिय़ अटइ से ब्रत । एहा कहि पराशर हेले मौनब्रत ।२३। |
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पुणि ताहाङ्कु पुछिले ब्रह्माङ्क कुमर । लक्ष्मीब्रत करिथिले मर्त्य केउँ नर ।२४। |
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तहिँरु से केउँ शुभफल लभिअछि । लक्ष्मी द्रोही होइकरि के दुःख पाइछि ।२५। |
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एहा सबु मो आगरे कहतपी साइँ । शुणिबाकु ताहा चित्ते श्रद्धा उपुजइ ।२६। |
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नारद बचन शुणि पराशर मुनि । कहन्ति हरष चित्ते सुमधुर बाणी ।२७। |
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धन्य़ हे नारद तुम्भे पबित्र चरित्र । लक्ष्मीब्रत कथारे जे होइअछ रत ।२८। |
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कहुअछि पुरातन कथा अछि जाहा । होइब आनन्द जात शुणिलेटि ताहा ।२९। |
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एकदिने जगन्नाथ पाशे लक्ष्मी थिले । करपत्र योड़िण ताहाङ्कु जणाइले ।३०। |
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आजि मो बारर ब्रत पड़िला गोसाइँ । तुम्भे आज्ञा देले नग्र बुलिजिबि मुहिँ ।३१। |
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गोविन्द बोइले लक्ष्मी नग्रहिँ बुलिब । दशमी पालना अन्न बेगे रान्धि देब ।३२। |
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प्रभुंक मुखरु मात एमन्त शुणिले । बस्त्र अलंकारमान यतने पिन्धिले ।३३। |
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नासिकारे नबरत्न बसणि खंजिले । चउसरी रत्नमाला कण्ठे लम्बाइले ।३४। |
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कररे बाहुटि रम्य़ बलय़ कंकण । सुना सुता माणिक्य़ पदक आभरण ।३५। |
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बाजेणि नूपुर माता पय़रे खंजिले । एपरि नाना भूषणे सुबेश होइले ।३६। |
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जेबण मातांक अधिकार तिनिपुर । आभरण केते मात्र देबे पट्टान्तर ।३७। |
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शुण हे नारद एहा होइ एक चित्त । बुढ़ी ब्राह्मणी रूपकु धरि जगन्मात ।३८। |
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प्रबेश होइले जाइँ साधुर दुआरे । साधबाणी उभा होइथिला सेहिठारे ।३९। |
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ताकु देखि महालक्ष्मी कहन्ति बचन । शुण शुण साधबाणि होइ स्थिरमन ।४०। |
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आजि परा महालक्ष्मी ब्रत गुरुवार । लिपा पोछा करिनाहुँ किम्पा घर द्वार ।४१। |
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साधबाणी एहा शुणि बेलोइ सेक्षणि । कि रूपे ए ब्रत हुए काहा पूजा पुणि ।४२। |
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बुझाइ ता सबु कह हे नानी गोसाइँ । अइले मनकु से ब्रत मुँ करिबइँ ।४३। |
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एहा शुणि पद्मालय़ा कहन्ति सधीरे । शुण साधबाणी ब्रत हुए ए बिधिरे ।४४। |
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मार्गशिर मासे जेउँ आद्य गुरुवार । सेदिन उषारु शेय छाड़ि तत् पर ।४५। |
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गोमय़ जलरे घर दुआर लिपिब । लक्ष्मीदेबी पादपद्म चिताकु लेखिब ।४६। |
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नूआ माण गोटिए अणाइ यत्ने बेगे । धोइ धाइ करि ताकु शुखाइब आगे ।४७। |
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ताहाकु करिब नाना चित्र जे बिचित्र । चाउलकु बाटि चिता लेखिब समस्त ।४८। |
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तहिँ स्नान करि आसि होइ शुचिमन्त । चड़कि बा खटुलिए आणिब त्वरित ।४९। |
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ताकु धोइ ता उपरे देबे नूआधान । रंगकला नोहि होइथिब शुक्लबर्ण ।५०। |
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तहुँ किछि कुढ़ाइ जे से नूआ माणरे । धानमाण जे पुराइ रखिब तापरे ।५१। |
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से धान माण उपरे गुआ तिनिगाटि । हलदी पाणिरे ताहा धोइ थोइबटि ।५२। |
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शुक्ल धानर शिखा रखि बेण्टि करि । माण उपरे ताहाकु थोइब बिचारि ।५३। |
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गुआ आखु मूला कदलीरे सजाड़िब । पट्टादिरंग बसन पुष्पे मण्डाइब ।५४। |
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तहुँ आबाहन महालक्ष्मींकु करिब । गन्धपुष्प धूपदीप आदि समर्पिब ।५५। |
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प्रथमरे बालधूप तापरे शङ्खुड़ि । एपरि करिब तिनि धूपकु सजड़ि ।५६। |
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महालक्ष्मींकर आउ एक ब्रत अछि । सुदशा बोलि ता नाम प्रकटिछि ।५७। |
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शुक्लदशमी हेले गुरुवार दिन । हुअइ सुदशाब्रत शुण देइ मन ।५८। |
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सेदिन उषारु उठि लिपि घरद्वार । झोटि आदि चिता देब पूर्ब परकार ।५९। |
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स्नान सारि गृहे पद्ममण्डल लेखिब । तहिँपरे धोइ एक खटुलि रखिब ।६०। |
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तहिँपरे लक्ष्मीपूजा गुआकु थोइब । पञ्चामृत शुद्धजले स्नान कराइब ।६१। |
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दशखिअ सूतारे जे ब्रतेक करिब । लक्ष्मींक नामरे दशगोटि गण्ठिदेब ।६२। |
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दशकेरा दूबरे से ब्रत गुड़ाइब । महालक्ष्मी गुआ पाशे ताहाकु थोइब ।६३। |
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करुथिले पूर्बरु से ब्रत पुरातन । ब्रतडोर आणि तहिँ थोइब बहन ।६४। |
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प्रथमरे बालधूप नइबेद्य करि । तापरे जा भोग देब शुण हेतु करि ।६५। |
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अरुआ चाउल एकमाण तिन्ताइब । ताकु कुटि चूना करि यतने रखिब ।६६। |
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कदली नड़िआ छेना आदि दशपुर । देइ दशगोटि मण्डा करिब सत्वर ।६७। |
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महालक्ष्मींकु ता पूजा करि भक्ति चित्ते । से प्रसाद खाइ दिन बञ्चिब जे सुस्थ ।६८। |
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महालक्ष्मी प्रसाद जे परकु न देब । बिभा होइथिबा झिअ सुद्धा न खाइब ।६९। |
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ए उत्तारु कथा एक मनदेइ शुण । गुरुवार दिन जेउँ कथा निबारण ।७०। |
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से कथा कहुछि एबे साधबाणी शुण । केबे न भाजिब खइ गुरुवार दिन ।७१। |
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जेउँ नारी गुरुवार दिनरे आमिष । भुञ्जइ लोभरे किबा न पखाले केश ।७२। |
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भुञ्जइ उच्छिष्ट किबा लगाइ जे तेल । महालक्षी तार निश्चे भाङ्गिद्यन्ति गेल ।७३। |
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गुरुबारे जेउँ नारी तुलाकु भिणइ । लाउरे आमिष देइ जे ग्रास करइ ।७४। |
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खटर छाय़ारे जेहु करइ शय़न । रात्रकाले दधिअन्न जे करे भोजन ।७५। |
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क्षौर हुए जेहु जाइ नापितर द्वारे । भोजन समय़े अन्न पकाए भूमिरे ।७६। |
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भुञ्जि न पारिण अन्न फोपाड़िण दिए । एड़े कर्म करे जिए लक्ष्मींकु न पाए ।७७। |
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गुरुवार दिन सकालरु गोमय़रे । दुआर जे न लिपइ अलस पणरे ।७८। |
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चुलिरु न काढ़े पांश भक्षे जे आमिष । एमानंकठारे लक्ष्मी करन्ति जे रोष ।७९। |
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धन जन सबु तार हरण करन्ति । मागिगले अन्नबस्त्र केहि न दिअन्ति ।८०। |
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गुरुबारे जेउँ नारी पिन्धे शुक्ल लुगा । ऐश्वर्य सम्पद पाए हुअइ सुभगा ।८१। |
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गुरुबारे जेउँ नारी पिलाङ्कु मारइ । किबा पाकहांडि धोइ कला न छाड़इ ।८२। |
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संध्यागड़िगले जिए दिए सन्ध्याबती । पुत्रधन हानी हुए सदा बहु क्षति ।८३। |
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गुरुवारे जेउँ नारी पोड़ा द्रव्य खाए । शोइबारे शय्य़ बंका करिण बिछाए ।८४। |
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शाशु श्वशुरंकु न मानइ जे रमणी । उलग्न होइ शयन करे जेउँ प्राणी ।८५। |
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अमावस्या संक्रान्तिरे बुलाए जे हल । एहि दिनमानंकरे घेनइ तइल ।८६। |
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सभामानंकरे बसि मिछ जे कहइ । आलस्य़े पाद न धोइ जे भुञ्जइ ।८७। |
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कुष्माण्ड फलकु जेहु रमणी काटइ । ऋतुमती नारीकु जे रमण करइ ।८८। |
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कन्य़ा तुला मासे पितृश्राद्ध न करइ । कथा कहु कहु सबुबेले जे हसइ ।८९। |
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एमन्त मनुष्य़ सदा बहु कष्ट पाइ । आय़ बुद्धि नाशय़ाए अन्न न मिलइ ।९०। |
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गुरुवार संक्रांति अमावस्या दिन । रजनीरे स्त्री पुरुष कलेक भोजन ।९१। |
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किबा एहि तिनि दिन जेउँ नारी मोहे । पुरुष संगरे माति धर्मकु न चाहेँ ।९२। |
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प्राणे नाश न करिण ताकु दुःख देइ । बुलान्ति जे अन्न बस्त्र काहिँ न मिलइ ।९३। |
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एहि तिनि देने जेहु तिक्त द्रव्य खान्ति । अन्तः काले यम द्वारे बहु कष्ट पान्ति ।९४। |
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ए तिनि दिन जे नारी करइ हविष्य । दुःखी रङ्कि देखि दान करइ बिशेष ।९५। |
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करे लक्ष्मीब्रत लक्ष्मीबारे उपबास । बढ़िब ताहा धन जन आय़ु यश ।९६। |
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सकालु शेयरु उठि जे मुख न धुए । ता मुख जे जन देखे तार शुभ नुहेँ ।९७। |
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रात्रशेषे बासि शेजे जे करे शय़न । ता गृहकु लक्ष्मी त्य़ाग करन्ति बहन ।९८। |
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आसन बिना जे भूमिपरे बसि खाए । किबा जे कुमारी संगतरे काममोहे ।९९। |
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दक्षिण पश्चिम मुख जे भुञ्जि बसइ । एमानंक पाशु लक्ष्मी जान्ति दूर होइ ।१००। |
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सन्ध्यारे कुण्डाइ केश बान्धे जेउँ नारी । केभे न देखन्ति लक्ष्मी ताहार जे शिरी ।१०१। |
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भोजन करि जे मुख शोधन न करे । भोजन करइ जेहु अन्धकार घरे ।१०२। |
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जेउँ नारी निज पतिठारे रोष बहे । स्वामी जाहा बोले ताहा न करे केबेहेँ ।१०३। |
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पर पुरुषरे जेहु होइथाए रत । परिष्कृत नोहि हुए जे नारी कुत्सित ।१०४। |
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एमन्त नारींक मुख लक्ष्मी न देखन्ति । कांगालिनी परि बारद्वारे से बुलान्ति ।१०५। |
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कलही अलसी अति अप्रिय़ा साहसी । देब बिप्र अतिथिरे नुहँइ बिश्वासी ।१०६। |
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एहिपरि नारी थिले से गृह श्मशान । लक्ष्मी से स्थानकु सदा करन्ति बर्जन ।१०७। |
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जेउँ नारी भक्ति चित्ते स्वामीकि न सेबे । जन्मे जन्मे स्वामी दुःखे दुःखी हुए भबे ।१०८। |
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जेउँ नारी स्वामीकु जे देब सम मणि । सेबाकरि तोषुथाए तार मत चिह्नि ।१०९। |
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निज अंग परिष्कार करि शुचि हुए । सान बड़ समस्तंकु समभाबे चाहेँ ।११०। |
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परषिबा बेले पक्षपात जे न करे । स्वामी पुत्र समस्तंकु बाण्टे समानरे ।१११। |
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पतिर आज्ञाकु केबे न पकाए तले । स्वामी दुःखे दुःखी सुखे सुखी होइ चले ।११२। |
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एमन्त नारीर गृह लक्ष्मी न छाड़न्ति । तार दुःख नय़नरे केबे न देखन्ति ।११३। |
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ए मर्त्त्य़ मण्डले सेहि नारी सुख पाए । पति पुत्र कन्य़ा अइश्वर्य सुख पाए ।१०४। |
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अन्तकाले बइकुण्ठे लक्ष्मींक संगरे । अनुक्षणे मजि रहे प्रमोद रंगरे ।१०५। |
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सधबा नारीर पति बिना नाहिँ गति । तप जप देब पूजा ताहार अनीति ।१०६। |
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पति सेब छाड़ि बृथा ब्रत जे करइ । जन्म जन्मान्तरे बाल्य़ बिधबा हुअइ ।१०७। |
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जेउँ नारी आनन्दरे अतिथि सेबइ । पुण्यवती बोलि ताकु पुराणरे कहि ।१०८। |
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एमन्त प्रकारे जेउँ नारी बा पुरुष । आपणार कुलधर्म न छाड़न्ति लेश ।१०९। |
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सदाबेले करन्ति उत्तम आचरण । श्रीलक्ष्मी ताहाङ्क पादे मिलन्ति तक्षण ।११०। |
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पति सेबा बिना नाहिँ नारींकर गति । पतिप्राणा नारी करे देबलोक गति ।१११। |
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नारींकर लक्ष्मीब्रत पतिसेबा बिना । अन्य़ देब पूजातीर्थ यात्रा बिड़म्बना ।११२। |
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पति सेबा बरजि जे मात गरबरे । गुरुबारे लक्ष्मीब्रत सेहु यदि करे ।११३। |
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ताहार नुहइ भल जनमे जनमे । दुःख शोक रोग भोग संसारे से भ्रमे ।११४। |
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एमन्त तिआरि साधबाणीकि बोइले । आजिठारु लक्ष्मीब्रत कर जा बोइले ।११५। |
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न कले सर्ब सम्पद तोर क्षय़ जिब । अन्न बस्त्र अभाबरे दुःख भोग हेब ।११६। |
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शुण हे नारद ठाकुराणी एहा कहि । सेठाबरु केतेदूर पथ गले बाहि ।११७। |
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घरे घरे पुरे पुरे लक्ष्मी बिजे कले । काहारि दुआरे सेहि शुचि न देखिले ।११८। |
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केबण युबती निदे होइ अचेतन । काहर फिटिजाइचछि पिन्धिला बसन ।११९। |
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काहार शिररे केश मुकुलित होइ । भूमिपरे पड़िअछि केरि केरि होइ ।१२०। |
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एहि रुपे महालक्ष्मी देखिकरि गले । चण्डाल साहिरे जाइ प्रबेश होइले ।१२० |
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श्रिय़ा चण्डालुणी नग्र बाहारे ता घर । ताहार महिमा देवंकु जे अगोचर ।१२१। |
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प्रतिदिन खरकइ गुण्डिचा नगर । बिष्णु भकतिरे से जे अति ततपर ।१२२। |
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रात्र बेनि घड़ि थाइ चण्डालुणी गला । एक बर्ण्णि गाईर जे गोबर आणिला ।१२३। |
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उत्तम करिण घरद्वारकु लिपिला । अरुआ चाउल बाटि घरे झोटि देला । |
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षोलकोठि करि दिब्य़ पद्मेक काटिला ।१२५। |
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दशमुखी दीपाबली मण्डले थोइला । दशबर्ण फलमूल मण्डले बाढ़िला ।१२६। |
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सूता दशखिअ नेइ मण्डले थोइला । मनर चंचले पुणि बेगे चलगला ।१२७। |
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अरुआ चाउल आउ दुब दशकेरा । ताहा नेइ चण्डालुणी मण्डले थोइला ।१२८। |
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धूपदीप नइबेद्य गन्धपुष्प देला । लक्ष्मी नाराय़ण बोलि सुमरणा कला ।१२९। |
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नमस्ते नमस्ते मागो हरिंक घरणी । मुहिँ छार हीनजाति न जाणइ पुणि ।१३०। |
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चण्डाल साहिरे घर पुणि चण्डालुणी । किञ्चिते भकति मोर घेन कमलिनी ।१३१। |
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दाण्डे दाण्डे जाउथिले बिष्णु पाटराणी । सहि न पारिले चण्डालुणीर दय़िनी ।१३२। |
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पद्म फुल देखि तांक बलिला शरधा । दुइपाद देइ माता पद्मे हेले उभा ।१३३। |
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चण्डालुणी घरगोटि पाइलाक शोभा । लक्ष्मी बिजे करिछन्ति कि उपमा देबा ।१३४। |
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बोइलेक चण्डालुणी मागि घेन बर । प्रसन्न होइलि दुःख नाशिबि तोहर ।१३५। |
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चण्डालुणी कहुअछि शिरे कर देइ । कि बर मागिबि मागो मागि न जाणइ ।१३६। |
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गो-गोष्ठकु देब मोर लक्षे पद्म गाई । कुबेर समान धन देबु मागो तुहि ।१३७। |
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कोलकु नन्दन जे हस्तकु सुनाबाहि । चारियुगे बसिबि अमर बर पाइ ।१३८। |
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लक्ष्मी शुणि होइले तु होइछु कि बाइ । ए समस्त बर तोते देइ त पारइ ।१३९। |
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अमर बर देबाकु शक्ति नाहिँ मोर । ए बर मागिलु तु केमन्त प्रकार ।१४०। |
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जेते दिन जिइँथिबु ऐश्वर्य भुञ्जिबु । अन्तकाले जाइ बष्णु पञ्जरे पशिबु ।१४१। |
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मोहर ए ब्रत करुथिबु सबुदिन । लक्ष्मी-नाराय़ण पादे थिब तोर मन ।१४२। |
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शुण हे नारद एणे हरि बलराम । मृगय़ा बिनोदे जाइथिले घोरबन ।१४३। |
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योगबले बलराम ए कथा जाणिले । डाकिकरि श्रीहरिङ्कु एमन्त कहिले ।१४४। |
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देख देख कह्नाइ तो भारिजा आचार । उभा होइ अछन्त जे चण्डालुणी घर ।१४५। |
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हाड़ि घरे थिब लक्ष्मी पाण घरे थिब । स्नान न करिण बड़ देउले पशिब ।१४६। |
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एहि रुपे सबुदेन देउले पशुछि । दुइगोटि भाइंकु बिटाल कराउछि ।१४७। |
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दरिद्र भञ्जनी नाम जेणु अछि बहि । दरिद्रमानङ्क कष्ट न पारइ सहि ।१४८। |
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सुदशा नामक एक ब्रत जे ताहार । एहि ब्रते चण्डालुणी पुजइ पय़र ।१४९। |
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भारिजारे कार्य जेबे अछिरे कह्नाइ । चण्डाल साहिरे नग्र तोल बेगे जाइ ।१५०। |
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आम्भ बाक्य़ मानि ताकु दिअ घउड़ाइ । एपरि घरणि थिले भल गति नाहिँ ।१५१। |
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गोविन्द बोइले भाइ घउड़ाइ देबा । लक्ष्मी परा भारिजाकु आउ न पाइबा ।१५२ |
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से दोष करिछि जेबे एमन्त करिबा । स्वर्गपुर लोकंकु डकाइ अणाइबा ।१५३। |
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पाञ्च लक्ष टङ्का देइ जाति कराइबा । आउ बेले तार यदि अनीति देखिबा ।१५४। |
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देउल भितरु ताकु देबा घउड़ाइ । ए कथा प्रमाण तमे शुण ज्य़ोष्ठ भाइ ।१५५। |
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न जाणि जे दोष कले सिन्धु राजजेमा । बारे मात्र भाइ तांक दोष कर क्षमा ।१५६। |
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बलराम बोलुछन्ति शुण भाबग्राही । तोर लक्ष्मी थिले मुहिँ रहिबइ नाहिँ ।१५७। |
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भारिजा अटइ सिना पादर पाण्डोइ । भाइ थिले कोटि भार्या मिलि जे पारइ ।१५८। |
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भार्याठारे लोभ जेबे अछिरे कह्नाइ । चण्डाल साहिरे तु नबर तोल जाइ ।१५९। |
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मोर बड़ देउलकु आउ न आसिबु । माइपकु नेइ दाण्ड बाहारे रहिबु ।१६०। |
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धिक्कार बचन प्रभु शुणि न पारिले । छाड़िलि बोलिण रंग अधरे कहिले ।१६१। |
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देउलर सिंहद्वारे प्रबेश होइले। उर्द्ध्ॱमुख होइ प्रभु निःश्वास छाड़िले ।१६२। |
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शुण हे नारद तेणे श्रीय़ा चण्डालुणी । पूजा करुथिला लक्ष्मींकर पादबेनि ।१६३। |
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ताहार पूजारे लक्ष्मी सन्तुष्ट होइले । जाचिण अनेक बर प्रदान करिले ।१६४। |
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कुटीर खण्डिक थिला बलुरिर दास । लक्ष्मी दय़ाकले ताकु चन्दन उआस ।१६५। |
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जेउँ चण्डालुणी घरे न थिलाक पुत्र । लक्ष्मी दय़ा कले तार हेला पाञ्च सुत ।१६६। |
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धन पुत्रबती हुअ बोलिण बोइले । बरदेइ से ठाबरु बिजे करिगले ।१६७। |
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लक्ष्मी हेतु चण्डालुणी हेले भाग्य़बती । एबे शुण हे नारद अपूर्ब भारती ।१६८। |
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सिंहद्वारे बिजय़ लक्ष्मी जे महामाय़ी । देखिले दुआरे बसिछन्ति बेनि भाइ ।१६९। |
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बोइले ले बाट छाड़ भितरकु जिबि । दशनी योगाड़ मुहिँ मणिही रान्धिबि ।१७०। |
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गोविन्द बोइले लक्ष्मी होइल कि बाइ । चण्डाल साहिकि जाइथिल काहिँ पाइँ ।१७१। |
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आम्भे न देखुणि देखिले जे बड़भाइ । आम्भे देखुथिले सिना दिअन्तु घोड़ाइ ।१७२। |
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जाअ लक्ष्मी तुम्भठारे आउ कार्य नाहिँ । धिक्कार बहुत मोते कले बड़ भाइ ।१७३। |
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हाड़ि घरे थिब लक्षी थिब पाण घरे । स्नान न करि पशुछि देउल भितरे ।१७४। |
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ताठारु पापिनी नाहिँ संसाररे नाहिँ । मोहर बचन एबे शुण प्राणसही ।१७५। |
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जगते बोलन्ति तोते बाइ ठाकुराणी । बाइ प्राय़े बुलुथाउ होइ मो घरणी ।१७६। |
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एक घर कराउ सहस्र घर भाङ्गि । सहस्र घर कराउ एक घर भाङ्गि ।१६८। |
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एमन्त प्रकार लक्ष्मी महिमा तोहर । जाअ लक्ष्मी बाहारि गो न रह मो पुर ।१६९। |
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तोहठारे कोप करिछन्ति बड़ भाइ । लक्ष्मीदेबी कहुछन्ति ठाकुरंकु चाहिँ ।१७०। |
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छाड़ पत्र देइ मोते दिअ घउड़ाइ । जगन्नाथ कहुछन्ति लक्ष्मी मुख चाहिँ ।१७१। |
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आम जातिरे त छाड़ पत्र चले नाहिँ । छाड़िबा भारिजा मुख चाहिँ न योगाइ ।१७२। |
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लक्ष्मी देबी कहुछन्ति ठाकुरंकु चाहिँ । जेतेबेले सागर मन्थिले देबे जाइँ ।१७३। |
|||
बेद मन्त्रादि सह मोते पाइथिल । सेतेबेल कथा तुमे पाशोरि जे देल ।१७४। |
|||
मोर पिता बरुण जे तुम्भंकु बरिले । कनक बेदीरे नेइ बिभा कराइले ।१७५। |
|||
झिअ देइ शरण पशिले तुम्भठाइँ । दशदोष मोर क्षमा करिबार पाइँ ।१७६। |
|||
दशगोटि दोषरु गोटिए न सहिल । प्रथमरे चण्डालुणी बोलि गालिदेल ।१७७। |
|||
बिभा बासी दिन जुआ खेलिबार बेले । सातकड़ा कउड़ि जे पातिलइँ तले ।१७८। |
|||
तुम्भे ढ़ालिदिअ नाथ मोहरि हस्तरे । सुबर्ण कउड़ि मुहिँ जाकिलइँ करे ।१७९। |
|||
छड़ाइ न पारि तुम्भे ब्रह्माण्ड ठाकुर । मोते बोइल जा' इच्छा मागि घेन बर ।१८०। |
|||
जाहा मन बाञ्छा गो करिबु बइदेही । ताहा मुँ अबश्य़ देबि शुण प्राणसही ।१८१। |
|||
करपत्र योड़िण मुँ बोइलि उत्तर । साबधान होइ शुण ब्रह्माण्ड ठाकुर ।१८२। |
|||
अष्टदिने पड़िब मोहर गुरुवार । पड़ि चरचिबि मुहिँ सभिङ्कर घर ।१८३। |
|||
पड़ि चरचिबि कीटु ब्रह्म परियन्ते । एहि दोष मोर प्रभु न धरिब चित्ते ।१८४। |
|||
हेउ बोलि श्रीमुखरे आज्ञा अछ देइ । एबे किम्पा सत्य़ भग्न हेउछ गोसाइँ ।१८५। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति कोपभर होइ । बाप तो लुणिअ जे गरजि मरुथाइ ।१८६। |
|||
झिअ टेरी तो दुर्गुण कहिले न सरे । बापर गर्ज्जन शब्दे किए रहिपारे ।१८७। |
|||
चारिपाखे मेघनाद पाचेरी तोलाइ । बड़ देउलरे रहिअछ दुइ भाइ ।१८८। |
|||
महालक्ष्मी बोलुछन्ति ठाकुरंकु चाहिँ । अछबर घरे दण्डे थिले उभाहोइ ।१८९। |
|||
अछब बिटाल बोलि दिअ घउड़ाइ । पुणि जाति कुल गोत्र कहिल गोसाइँ ।१९०। |
|||
प्रभु हेतु जाउछन्ति सबु गोप्य़ होइ । तुम जाति कूलर त ठिकणा न थाइ ।१९१। |
|||
तुम्भ जाति कूल जे कहिले न सरइ । गउड़ घरे रहिल दुइगोटि भाइ ।१९२। |
|||
निमा नामे सपुटि जे जातिरे गोलक । ताहा घरे जगन्नाथ कल अन्न भक्ष ।१९३। |
|||
दूत पणे जाइथिल हस्तिना भुबन । बिदुर घरे जे पुणि करिल भोजन ।१९४। |
|||
जारा नामे शबर जे अरण्य़रे घर । से तुम्भंकु पूजिला बरष दश बार ।१९५। |
|||
अरण्य़र फलमूल खोजिण आणइ । बसिण प्रथमे भलमन्द से खाअइ ।१९६। |
|||
पिता कषा सबु प्रभु आड़ करिदेइ । जे फल सुआद ताहा तुम्भंकु भुञ्जइ ।१९७। |
|||
शबर बिटाल तुम्भे बेनिगोटि भाइ । ए कथा कि तुम्भ मनु गला भुलि होइ ।१९८। |
|||
आपणे पातकी किम्पा पर निन्दा कर । पाप पूण्य़ दुइ कथा बिचार न कर ।१९९। |
|||
भारिजा जे दोष कले पति ता सहइ । एक अपराधे प्रभु भृत्य़े कि तेजइ ।२००। |
|||
किम्पा न कर प्रभु एमन्त बिचार । जाअ जाअ बोलुअछ मोते बारम्बार ।२०१। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति एमन्त करिबा । माणे माणे पड़ि तोते नित्य़ देउथिबा ।२०२। |
|||
भाइकु बुझाइ पछे तुम्भंकु आणिबु । भाइङ्क आज्ञा अबज्ञा केबे न करिबु ।२०३। |
|||
लक्ष्मीदेबी कहन्ति पड़िरे कार्य नाहिँ । अनाथ अरक्ष प्राय़े जाउअछि मुहिँ ।२०४। |
|||
राण्डी अलक्षणी झिअ मुहिँ जे नुहँइ । पितार घरकु मुँ जे बाहारि जिबइ ।२०५। |
|||
तुम्भ अलंकारमान प्रभु काढ़िनिअ । पछरे मोते जे आउ बोलणा न दिअ ।२०६। |
|||
गोनिन्द बोलन्ति लक्ष्मी होइल कि बाई । अंग अलंकार आम्भे नेबु काहिँ पाइँ ।२०७। |
|||
भारिजा देहरे जेउँ अलंकार थाए । स्वामी होइ ताहाठारु काढ़ि किए निए ।२०८। |
|||
ठाकुराणी कहुछन्ति श्रीमुखकु चाहिँ । तुम्भर अटइ मुँ जे प्रथम बिबाही २०९। |
|||
पछरे कहिब लक्ष्मी आम घरे थिला । सहस्र टङ्कार अलंकार घेनि गला ।२१०। |
|||
एमन्त अख्य़ाति मोते न दिअ गोसाइँ । तुम्भ अलंकारमान निअ बाहुड़ाइ ।२११। |
|||
शिररु काढ़िले लक्ष्मी मुकुतार जालि । हृदरु काढ़िले इन्द्र गोविन्द कञ्चुलि ।२१२। |
|||
अण्टारु काढ़िले माए रत्न ओड़िआणी । नासिकारु काढ़िले जे मुकुता बसणी ।२१३। |
|||
कर्णद्ॱय़रु काढ़ले हीरार कुण्डल । गलारु काढ़िले जे दोषरी चिनामाल ।२१४। |
|||
पादरु काढ़िले देबी बाजेणी नुपूर । अङ्गुष्ठिरु काढ़िले जे झुण्टिआ सत्वर ।२१५। |
|||
अन्य़ अलंकारमान कि कहिबि आउ । रुण्ड कलारु दिशिला सबु दाउ दाउ ।२१६। |
|||
सबु अलंकारमान एकठाब कले । रख दीनबन्धु एहा बोलि समर्पिले ।२१७। |
|||
गोविन्द कहन्ति एहा कि करिबु नेइ । आम्भर ए अलंकारे प्रय़ोजन नाहिँ ।२१७। |
|||
गृहस्थ होइण जेबे भार्याकु तेजइ । छ' मास हात लुगा लेखिण दिअइ ।२१८। |
|||
एहि अलंकार सबु तुम्भे घेनिजाअ । बिकि भाङ्गिकरि भात लुगा करुथाअ ।२१९। |
|||
लक्ष्मीदेबी कहुछन्ति प्रभु मुख चाहिँ । साबधान होइ शुण ब्रह्माण्ड गोसाइँ ।२२०। |
|||
मोर तुले आउ जेउँ भारिजा आणिब । एहिसबु अलंकार ताहांकु जे देब ।२२१। |
|||
मुहिँ जाउअछि हीन अरक्षित होइ । मोग अभिशाप घेन प्रभु भाबग्राही ।२२२। |
|||
सते यदि चन्द्र सूर्य होन्ति आतजात । तुम्भंकु अन्न न मिलु आहे जगन्नाथ ।२२३। |
|||
बारबर्ष जाए तुम्भे दरिद्र होइब । अन्न बस्त्र जल जे तुम्भंकु न मिलिब ।२२४। |
|||
मुहिँ चण्डालुणी जेबे टेकिदेबि अन्न । भोजन करिबे तेबे कालीय़ गञ्जन ।२२५। |
|||
एते बोलि लक्ष्मी देबी शाप देइगले । देउलु बाहार होइ केतेदूर गले ।२२६। |
|||
एहा देखि दासीमाने सङ्गे गोड़ाअन्ति । दासींकु अनाइ लक्ष्मीदेवी बोलुछन्ति ।२२७। |
|||
मुहिँ जाउअछि हीन अलक्षणी होइ । मोर पछे तुम्भेमाने आसुछ किम्पाइँ ।२२८। |
|||
एहि परि होइ जेबे पिताघर जि वी । चारिदिन मात्र तहिँ रहि न पारिबि ।२२९। |
|||
जगन्नाथ प्राय़ बन्धु पिताघर जिबे । तांकु देखि पिता मोते समर्पिण देबे ।२३०। |
|||
शाप देबा फल मोर हेब अकारण । दरिद्र नोहिबे प्रभु देव भगबान ।२३१। |
|||
एते बोलि लक्ष्मीदेबी मने चिन्ताकले । बिश्वकर्माकु जे माए मने सुमरिले ।२३२। |
|||
बैकुण्ठपुररे बिश्वकर्मा रहिथिला । स्मरण मात्रके लक्ष्मी छामुरे मिलिला ।२३३। |
|||
किस आज्ञा हेउ मोते लक्ष्मी महामाय़ी । शुणि आज्ञा देले बिश्वकर्माकु जे चाहिँ ।२३४। |
|||
चण्डालुणी कहि प्रभु देले घउड़ाइ । पारिबुकि खण्डिए कुड़िआ तोलिदेइ ।२३५। |
|||
आज्ञामात्रे बिश्वकर्मा बेगे चलिगले । तिनि कोश प्रमाणे उआस तोलाइले ।२३६। |
|||
सुवर्णर कान्थमान सबुघरे कले । हीरे नीला माणिक्य़ादि तहिँ खञ्जाइले ।२३७। |
|||
गण्ठिस्थले अनेक मुकुता लगाइले । प्रबालर स्तम्भमान तहिँरे रचिले ।२३८। |
|||
पुर देखि कमलिनी सन्तुष्ट होइले । बिश्वकर्माकु बहुत प्रशंसा जे कले ।२३९। |
|||
बैकुण्ठ पुरकु बिश्वकर्मा चलिगले । अष्ट बेतालकु डाकि देबी आज्ञा देले ।२४०। |
|||
अष्ट बेतालरे तुम्भे एमन्त करिब । प्रथमे रोषाइ शाले जाइण पशिब ।२४१। |
|||
षाठिए पउटि भोग भुञ्जिब जे तहिँ । तेर पौटि ब्य़ञ्जन खाइब हर्ष होइ ।२४२। |
|||
शागमुग मधुरुचि तिक्त काञ्जिराइ । आम्बिल खाइब खण्ड शाकर मिशाइ ।२४३। |
|||
अमृत मणोहिमान भोजन करिब । हांडिमान नेइ एकठाबे कचाड़िब ।२४४। |
|||
तहुँ जाइण भण्डार मध्य़रे पशिब । बाउन कोटि भण्डार बोहिण आणिब ।२४५। |
|||
काणि कउड़ि कड़ाकर द्रव्य न रखिब । सबु बोहि आणि मोर पाशे समर्पिब ।२४६। |
|||
बेताल बोइले महालक्ष्मी मुख चाहिँ । केमन्त करिण तहुँ आणिबु बुहाइ ।२४७। |
|||
जगन्नाथ महाप्रभु तहिँ चाहिँ थिबे । आम्भंकु देखिण काले पराभब देबे ।२४८। |
|||
शुणि कमलिनी निद्राबतीकि राइले । बहन मो बोलकर बोलिण बोइले ।२४९। |
|||
रामकृष्ण नय़नरे निद्रा जे घारिबु । कालि बेल दुइ घड़िजाए न छाड़िबु ।२५०। |
|||
आज्ञा पाइ निद्राबती शीघ्र चलिगले । रामकृष्ण नय़नरे निद्रा जे घारिले ।२५१। |
|||
पाकशालारे बेताल प्रबेश होइले । तहिँ थिबा पाकद्रव्य समस्त खाइले ।२५२। |
|||
हांडिमान सबु एक स्थाने कचाड़िले । भण्डार घररे अष्ट बेताल पशिले ।२५३। |
|||
जेते द्रव्य पूर्ण होइ रहिथिला तहिँ । बाउन कोटि भण्डार आणिले बुहाइ ।२५४। |
|||
रात्र षोल घड़िजाक बेताल जे तहिँ । कुलारु छाञ्चुणि जाए सबु नेले बोहि ।२५५। |
|||
देखिकरि महालक्ष्मी सन्तुष्ट होइले । तुम्भे आजि पुत्रपण करिल बोइले ।२५६। |
|||
प्रशंसा करिण माए बचन जे कहि । सबु द्रव्य आणिल त रत्न खट नाहिँ ।२५७। |
|||
पाञ्च लक्ष मूल्य़ सेहि खट त अटइ । जाअरे बेताल सेहि खट आण बोहि ।२५८। |
|||
जेतेबेले जगन्नाथ दरिद्र होइबे । रत्न खट बिकिकरि दिन चलाइबे ।२५८। |
|||
जेबे प्रभु जगन्नाथ मोते न खोजिबे । नारींकु परुषमाने आउ न लोड़िबे ।२५९। |
|||
मोते घेनि प्रभु जेबे न करिबे घर । कलियुगे नारींकु जे न खोजिबे नर ।२६०। |
|||
बेतालि बोलुछन्ति रमा मुख चाहिँ । रत्न खटे शोइछन्ति बेनि दुइ भाइ ।२६१। |
|||
कोटि सिंह पराक्रम प्रभु बलराम । पुणि तहिँ शोइछन्ति कालीय़ गञ्जन ।२६२। |
|||
सातगोटि पर्बतरु अटइ जे गरु । नाम बहि अछन्ति अचल महामेरु ।२६३। |
|||
महालक्ष्मी बोइलेरे एमन्त करिब । दउड़िआ खट एक गोटि जे आणिब ।२६४। |
|||
रामकृष्ण दुहिँङ्कु जे गड़ाइण देब । शोइबार रत्न खट बोहिण आणिब ।२६५। |
|||
एहा शुणि बेतेल जे शीघ्र चलिगले । रत्नखट पाशै दउड़िआ खट देले ।२६६। |
|||
बलरामङ्कु प्रथमे धइलेक जाइ । दउड़िआ खटकु जे देले गड़िआइ ।२६७। |
|||
ए उत्तारु जगन्नाथ प्रभुंकु धइले । दउड़िआ खट उपरकु गड़ाइले ।२६८। |
|||
शोइबार रत्नखट आणिलेक बोहि । महालक्ष्मी आगे देले आनन्दरे नेइ ।२६९। |
|||
बलराम पिन्धिबार पाट बोहि नेले । जगन्नाथ पिन्धिबार नेत घेनिगले ।२७०। |
|||
देखिकरि महालक्ष्मी सन्तुष्ट होइले । अष्ट बेतालकु बर जाचिण जे देले ।२७१। |
|||
आरे अष्ट बेतालरे एमन्त करिब । बैकुण्ठ पुररे जाइ सुखरे रहिब ।२७२। |
|||
आज्ञा पाइण बेतालगण बेगे गले । बैकुण्ठपुररे जाइ प्रबेश होइले ।२७३। |
|||
महालक्ष्मी तहुँ एक कथा बिचारिले । सरस्वती देबीङ्कु जे हृदे सुमरिले ।२७४। |
|||
बोइले गो सरस्वती एमन्त करिब । राज्य़ राज्य़ होइ घरे घरे बुलुथिब ।२७५। |
|||
सर्बद्वारे जगन्नाथ बुलिबेटि जाइँ । सर्बकण्ठे सरस्वती बिजे कर तुहि ।२७६। |
|||
अन्न पाणि केहि तांकु किछिहिँ न देबे । एते दुःख पाइले से मोते सुमरिबे ।२७८। |
|||
आराम दाय़िनी रात्र सुखरे पाहिला । दिन दुइ घड़िकरे निद्रा जे भांगिला ।२७९। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । गहल चहल आजि किछि शुभुनाहिँ ।२८०। |
|||
मुदिरथ पण्डार त तुण्ड शुभुनाहिँ । दासी परबारी जे परिचा गले काहिँ ।२८१। |
|||
श्रीमुख पखालिबाकु जल न मिलइ । कि बुद्धि करिबा एबे कहरे कह्नाइ ।२८२। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ । लक्ष्मी छाड़िगलारु जे एमन्त हुअइ ।२८३। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । भार्या छार एमन्तकु कहुअछु तुहि ।२८४। |
|||
काहार भारिजा जेबे ऋषि हजिजाए । तार गृहस्थ इ भात रान्धिण न खाए ।२८५। |
|||
भण्डार घरकु बिजे कले दुइभाइ । भण्डारे देखिले किछि पदार्थ जे नाहिँ ।२८६। |
|||
बलराम कहुछन्ति काहिँ किस हेला । बाउन कोटि भण्डार के घेनिण गला ।२८७। |
|||
लक्षे जीब खाइले बोहिले न सरइ । क्षणक भितरे किए घेनिगला बोहि ।२८८। |
|||
सुबर्ण मुदिए बलराम जे पाइले । सात गोटि गण्ठिदेइ कानिरे बान्धिले ।२८९। |
|||
जगन्नाथ कहन्ति जे पाइलकि भाइ । बलराम कहुछन्ति धन पाइलइँ ।२९०। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति बलराम भाइ । बेङ्गि पित्तल खण्डिक रख काहिँ पाइँ ।२९१। |
|||
बलराम कहुछन्ति कि कथा घटिला । पाइथिबा स्वर्ण बेङ्गि पित्तल होइला ।२९२। |
|||
शुद्ध सुबर्णरु जेउँ धन धन होइथिला । काणि कउड़ि जड़ाकु समान नोहिला २९३। |
|||
सेठारु बाहारि गले दुइगोटि भाइ । पाकशाल दुआरे जे प्रबेशिले जाइ ।२९४। |
|||
बलराम ठिआहेले दुआर मुहँकु । जगन्नाथ पशिगले रोषाइ घरकु ।२९५। |
|||
देहरे लागिला कला मुहँरे लागिला । कला श्रीमुख गोटक झटकि दिशिला ।२९६। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुण जगन्नाथ । बड़ खिआ बोल तोते कहन्ति जगत ।२९७। |
|||
मोते अन्न न देइण सबु खाउ तुहि । जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ ।२९८। |
|||
अन्न काहिँ मिलिब जे चुलि सुद्धा नाहिँ । न बुझि एपरि किम्पा कहुछ गोसाइँ ।२९०। |
|||
देखिले अगाड़ि तहिँ गोटिए जे नाहिँ । तहुँ गले दुइभाइ निराश जे होइ ।२९१। |
|||
इन्द्रद्य़ुम्न कूले जाइ प्रबेश होइले । टोपाए टोपाए पाणि तहिँ न देखिले ।२९२। |
|||
बड़ देउलरे जाइ प्रबेश होइले । सेहिदिन उपबास करिण रहिले ।२९३। |
|||
बेल दुइ घड़िलरे निद्रा जे भांगिला । मुख प्रक्षालन अर्थे पाणि न मिलिला ।२९४। |
|||
कि बुद्धि करिबा एबे बुद्धि दिशुनाहिँ । बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ ।२९५। |
|||
कालि उपबासरे रहिले दुइ भाइ । आउ पादे जिबाकु त बल पाउनाहिँ ।२९६। |
|||
केउँठारे आजि यदि न मिलिब अन्न । केमन्त प्रकारे आम्भे धरिबा जीबन ।२९७। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुण आरे बाबा । नगररे भिक्षा मागि जीबन पोषिबा ।२९८। |
|||
कान्धरे पकाइ छिण्डा उत्तरी पइता । हस्तरे धइले दुइभाइ भङ्गाछता ।२९९। |
|||
चिता घेनिबाकु जल काहिँ न पाआन्ति । जाहा घरठाकु पाणि मागिबाकु जान्ति ।३००। |
|||
चोर खण्ट बोलि मारि घउड़ाइ द्य़न्ति । से ठाबरु दुइ भाइ भय़े पलाअन्ति ।३०१। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ । बड़पण्डा घरकु हे चाल ज्य़ेष्ठ भाइ ।३०२। |
|||
हस्त धरा धरि होइ दुइ भाइ गले । बड़पण्डा घरे जाइ प्रबेश होइले ।३०३। |
|||
बधु तार कहइ जे शाशु आगे जाइ । ब्रह्मण जे दुइगोटि आसिछन्ति धाइँ ।३०४। |
|||
शाशु राण्डि राहाङ्कु जे चिह्नि न पारिला । धाइँ जाइ बेगे तांकु कबाट किलिला ।३०५। |
|||
आस आस बोहुए लो ठेङ्गा बाड़ि धरि । चोर कि खण्ट ए दुहेँ देबा आड़करि ।३०५। |
|||
एहा शुणि दुइ भाइ तहुँ पलाइले । सामबेद यजुरबेद दूरे उच्चारिले ।३०६। |
|||
शुणि शष्क तरुगण पल्लबी उठिले । भिक्षुक ब्राह्मण बोलि ब्राह्मणी चिह्निले ३०७। |
|||
दुइ भाइंकु से डाकि तहिँ बसाइला । खुद मलुख मिशाइ सत्वर रान्धिला ।३०८। |
|||
अफिटा कदलीमञ्ज दुइखण्ड आणि । बेनि भाइ पकाइण सिञ्चिलेक पाणि ।३०९। |
|||
कंसा घेनि ब्राह्मणी जे अन्न आणिगला । आउ कि बाढ़िब तार हांडि उभा हेला ।३१०। |
|||
लक्ष्मी द्रोही पुरुष ए बोलिण जाणिला । पाकशालरु लेउटि पाशरे मिलिला ।३११। |
|||
दुइगोटि भाइंकर हस्तकु धइला । कटु कथा कहि तांकु दाण्डरे छाड़िला ।३१२। |
|||
तहुँ दुइजण जे निराश होइगले । कबीर साहिरे जाइ प्रबेश होइले ।३१३। |
|||
क्षुधार्थ ब्राह्मण बोलि कबीर जाणिले । खइ चारि पाञ्च माण आणि बेगे देले ।३१४। |
|||
अन्तर्गते जाणिले जा देबी कमलिनी । पबनकु डाकि आज्ञा देले सेहिक्षणि ।३१५। |
|||
आरे पबन तुहि त बेगे चलिजिबु । खइ चारि पाञ्च माण उड़ाइण देबु ।३१६। |
|||
आज्ञा पाइ पबन जे बेगे चलिगला । प्रभुंक आगरु खइ उड़ाइण नेला ।३१७। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । प्राण गलाबेले जाति कूल लोड़ु काहिँ ।३१८। |
|||
पद्म पोखरीकु चाल जिबा दुइ भाइ । पद्म मूल खाइ प्राण बञ्चाइबा तहिँ ।३१९। |
|||
फल पुष्प करि तहुँ गुड़ाए आणिबा । अधिक मिलिले किछि सञ्चिण रखिबा ।३२०। |
|||
एमन्त बिचार करि दुइ भाइ गले । पद्म पुष्करिणीरे जे प्रबेश होइले ।३२१। |
|||
पद्म पोखरीरे सात ताल पाणि थिला । लक्ष्मी आज्ञा मात्रे सबु पङ्क होइगला ।३२२। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति कि बुद्धि करिबा । जल नाहिँ फल एथि काहुँ बा पाइबा ।३२३। |
|||
एहा कहि दुइजण तहुँ चलिगले । जाउ जाउ बाटे एक योगीकि भेटिले ।३२४। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण आहे नाथ । तुम्भर थालरु जे आम्भकु दिअ भात ।३२५। |
|||
सत्य़ानन्द बोले रामकृष्ण मुख चाहिँ । लक्ष्मी द्रोहि होइअछ तुम्भे दुइ भाइ ।३२६। |
|||
दुध अन्नरे जे मोर थाल पुरिथिला । तुम्भे मागन्तेण अन्न शून्य़ होइगला ।३२७। |
|||
अन्न जल न मिलिब तुम्भंकु जे काहिँ । समुद्र कूलकु बेगे जाअ दुइ भाइ ।३२८। |
|||
मुहिँ जाइथिलि मोते अन्न थिले देइ । खाइले बोहिले सेहि अन्न न सरइ ।३२९। |
|||
एहि रूपे सत्य़ानन्द बाट कहिदेले । जिबा बोलि दुइ भाइ कमर बान्धिले ।३३०। |
|||
हटि कमलिनी तहुँ बाट भिआइले । सूर्यंकु राइण देबी बेगे आज्ञा देले ।३३१। |
|||
अतिशीघ्र टाण खरा कर तुम्भे जाइ । बालि माटि तातु बेगे डह डह होइ ।३३२। |
|||
तातिब खरारे जेह्ने भाजिबार बालि । पादे मात्र केहि तहिँ न पारिबे चालि ।३३३। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ । एड़े बड़ खरारे मुँ चालि न पारइ ।३३४। |
|||
बेग बेग होइ तुम्भे जाउअछ धाइँ । बुद्धि दिशुनाहिँ एबे किस करिबइँ ।३३५। |
|||
शुणि न शुणिला परि बलराम गले । कमलांक सिंहद्वारे प्रबेश होइले ।३३६। |
|||
सिंहद्वारे प्रबेशिण डाकिलेक तहुँ । डाक शुणि दासीमाने अइलेक तहुँ ।३३७। |
|||
केउँ दासी कहुअछि शुण आगो सहि । एपरि कांगाल मुँ जे काहिँ देखिनाहिँ ।३३८। |
|||
एहिपरि मोटा होइ गोटाएक थिला । आम्भ ठाकुराणींकु जे घरु तड़िदेला ।३३९। |
|||
एहि रूपे दासीमाने कुहाकुहि हेले । बेकरे हात देइण दाण्डरे छाड़िले ।३४०। |
|||
बलराम प्रभु तहिँ लेउटि अइले । जगन्नाथ ठाकुरंकु बाटरे देखिले ।३४१। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । दासीमाने आसि मोते देले घउड़ाइ ।३४२। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति कि बुद्धि करिबा । केमन्त प्रकारे आम्भे जीबन धरिबा ।३४३। |
|||
आउथरे चाल बेनि भाइ फेरिजिबा । बिनय़ करिण अन्न दासींकु मागिबा ।३४४। |
|||
बलराम कहुछन्ति पछे आम्भे थिबु । आगरे थाइण अन्न तुहि जे मागिबु ।३४५। |
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एते कहि सिंहद्वारे प्रभु बिजेकले । मन्दिर शोभा देखि आश्चर्य होइले ।३४६। |
|||
जगन्नाथ प्रभु यहुँ एमन्त शुणिले । ओँकार शबद करि बेदध्ॱनि कले ।३४७। |
|||
ऋक्, शाम, यजुः जे अथर्ब चारि बेद । ब्रह्माण्ड पुरिउठिला गहगह नाद ।३४८। |
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पलङ्क उपरे कमला जे शोइथिले । निस्तरिलि निस्तरिलि बोलिण बोइले ।३४९। |
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कोटि कोटि जन्मर पातक हेले क्षय़ । मोर घरे बिजे कले प्रभु देबराय़ ।३५०। |
|||
पचार पचार दासी पचार लो जाइ । किस मागुछन्ति जे ब्राह्मण बेनिभाइ ।३५१। |
|||
चालिजाइ मुदु्सुलि तांकु पचारिले । कि मागुछ पण्डामाने कह तुम्भे भले ।३५२। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति दासीमुख चाहिँ । अन्न गण्डाएक तुम्भे पारिबकि देइ ।३५३। |
|||
एमन्त शुणिण दासीमाने चलिगले । लक्ष्मी ठाकुराणी आगे बेगे से बोइले ।३५४। |
|||
दासीङ्क मुखरु जे एमन्त बाक्य़ शुणि । मने बिचार करन्ति लक्ष्मी ठाकुराणी ।३५५। |
|||
ए कथा अरजि अछि चण्डालुणी मुहिँ । एबे दासीमाने लो पचार बेगे जाइ ।३५६। |
|||
ब्राह्मण होइ मो घरे कि खाइबे । चण्डालुणी अन्न खाइ अपबाद नेबे ।३५७। |
|||
ए मोहर द्रव्य तांकु छुइँ न योगाइ । जाणु जाणु मुँ केमन्त प्रकारे देबइँ ।३५८। |
|||
ठाकुराणी समीपरु दासीमाने गले । ब्राह्मणंक आगे जाइ एमन्त कहिले ।३५९। |
|||
दासीङ्क मुखरु जे एमन्त बाक्य़ शुणि । क्षुधातुर होइ कहन्ति हलपाणि ।३६०। |
|||
नूआ हांडि नूआ सञ्चा देइ कि पारिबु । एमन्त बोइले आम्भेमाने जे खाइबु ।३६१। |
|||
दासीमाने कहन्ति लक्ष्मींक आगे जाइ । हाते रान्धि भोजन करिबे दुइ भाइ ।३६२। |
|||
एहा शुणि महालक्ष्मी सन्तोष होइले । दासीङ्क हस्तरे हांडि दशगोटि देले ।३६३। |
|||
चाउल पउटिए नेइ छामुरे रखिले । लेउटिआ शाग नेइ छामुरे रखिले ।३६४। |
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आलु सारु कदली जे बड़ि बाइगण । दुध दहि छेना शर्करी जे देले पुण ।३६५। |
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एबे जेते इच्छा तेते भुञ्ज होइ बोइले । गृहे महालक्ष्मी थाइ बिचार जे कले ।३६६। |
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रान्धणा भुञ्जिबे यदि हाते दुइ भाइ । नारींकु पुरुष आउ लोड़िबे किम्पाइँ ।३६७। |
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लक्ष्मीदेबी काष्ठ खण्डे हातरे धरिले । अग्निर स्तम्भन मन्त्र देबी पाठा कले ।३६८। |
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कदापि अग्नि देबता तेज न होइब । हांडि न तातिबा आउ पाणि न तातिब ।३६९। |
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जेते काठ जलुथिबा भष्म होइजिब । कुहुलि करिण तहुँ धुआँ हेउथिब ।३७०। |
|||
एमन्त बोलिण कमला जे आज्ञा देले । सेहि प्रकारेण अग्नि देबता जे कले ।३७१। |
|||
सबु काठजाक तहिँ अंगार अङ्गार जे हेला । तेबे सुद्धा किञ्चिते जे पाणि न तातिला ।३७२। |
|||
हटि कमलिनी हट भिआइले जेणु । हांडितले कला टिके न पड़िला तेणु ।३७३। |
|||
सुगन्ध तइल देबी देले पठिआइ । दासीमाने कहुछन्ति ब्राह्मणङ्कु जाइ ।३७४। |
|||
पाकसिद्धि हेला कि ब हेला हे गोसाइँ । तइल लगाइ स्नान कर बेगे जाइ ।३७५। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति पाणि न तातिला । कि पाक करिबु बेल उछुर होइला ।३७६। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । अन्न होइलाकि नाहिँ कह बेगे तुहि ।३७७। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण आहे भाइ । अन्न कि होइब टिके पाणि ताति नाहिँ ।३७८। |
|||
बलराम कहुछन्तिरे अधुआ मुहाँ । रान्धि न जाणि होइअछु रान्धुणिआ ।३७९। |
|||
तुहि आड़ हुअ मुहिँ रान्धुअछि जाइँ । अन्न रान्धिबाकु गले ब्राह्मण गोसाइँ ।३८०। |
|||
फुङ्कि फुङ्कि बलराम बिरक्त होइले । काठ खण्डे घेनिण जे हांडि पिटिदेले ।३८१। |
|||
क्षुधातुर दुइभाइ आकुल होइले । कि बुद्धि करिबा जगन्नाथङ्कु बोइले ।३८२। |
|||
जगन्नाथ बोइले त बुद्धि दिशुनाहिँ । क्षुधारे आतुर हेउअछि मोर देही ।३८३। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुण जगन्नाथ । जाति पछे जाउ तार घरे खाउ भात ।३८४। |
|||
जेबे एहा घरु भात आम्भकु न देब । आम्भ दुइ भाइंकर मरण होइब ।३८५। |
|||
लेउटिण दासी जाइ लक्ष्मींकु कहिले । ब्राह्मण त हांडि भाङ्गि फोपड़ाइ देले ।३८६। |
|||
एहा शुणि महालक्ष्मी मने चिन्ता कले । केते दुःख दीनबन्धु दुहेँ जे पाइले ।३८७। |
|||
सुबर्णर चटु गोटि हातरे धइले । रोषेइ शालकु लक्ष्मी निजे बिजे कले ।३८८। |
|||
प्रथमे रान्धिले माए बगड़ा जे अन्न । मुग मधुरुचि क्षीर नानादि ब्य़ञ्जन ।३८९। |
|||
आम्बिल शाकर कले कदलीर भजा । अति यत्ने कले माए तिअण जे मञ्जा ।३९०। |
|||
षाठिए पउटि से रन्धन कले जाइ । बगड़ा भात महिमा कलना न जाइ ।३९१। |
|||
दुधपुलि कले मात घृतपुलि कले । अति यतनरे माए सरपुलि कले ।३९२। |
|||
जेते द्रव्य रान्धिछन्ति ब्राह्मणंक रुचि । बड़िर महुर कले पकाइण साचि ।३९३। |
|||
सहस्र आटिका रान्धि द्रव्य सजाड़िले । जे जाहा स्थानरे यत्ने रखाइण देले ।३९४। |
|||
कर्पूर छेना शर्करा मरिच गोलाइ । षाठिए नउति पणा रखिले त तहिँ ।३९५। |
|||
रंगबाण पइड़ संगरे छेनापणा । अदा मिशा करि जे नबात खण्डछेना ।३९६। |
|||
लक्ष्मींकर पाकगुण के कहि पारिब । क्षणक मध्य़रे माए सजाड़िले सर्ब ।३९७। |
|||
सबुथिरु खण्डिए खण्डिए रखिथिले । भोजन शेषकु पोड़पिठाए रखिले ।३९८। |
|||
बोइले दासीङ्कि कर अंग मरदन । ब्राह्मण बोलिण मने न पाञ्चिब भिन्न।३९९। |
|||
ब्राह्मणमानङ्क मुहिँ अटे निज दासी । शुणिण आनन्दे चलिगले सबु दासी ।४००। |
|||
दासीमाने कहुछन्ति सुबेदी गोसाइँ । स्नान कर बेगे अंग मरदन होइ ।४०१। |
|||
तहुँ सुबास जलरे दुहेँ स्नान कले । अंग पोछिबाकु दासी गामुछाए देले ।४०२। |
|||
पिताम्बर पाट आणि पिन्धिबाकु देले । सुबेश होइण दुइ भाइ जे बसिले ।४०३। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । एमन्त प्रकारे मान्य़ करे किस पाइँ ।४०४। |
|||
एहा घरे पुरुष त जणे दिशुनाहिँ । शूलि देबा प्राय़े एहि बिचार दिशइ ।४०५। |
|||
चाल एबे पलाइण एहिठारु यिबा । क्षणक मध्य़रे आउ प्राण ब पाइबा ।४०६। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति ज्य़ेष्ठ भाइ शुण । ए घरर कर्त्ता आजि होइबे आपण ।४०७। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । एमन्त कहिबा तोर उचित नुहइँ ।४०८। |
|||
गृह परिष्कार देबी स्वहस्तरे कले । गन्ध चन्दन जे माए छड़ा पकाइले ।४०९। |
|||
सुबर्णर थालि सुबर्णर गिनाझरि । हातधूआ पादधूआ सुसज्जित करि ।४१०। |
|||
मणोहि करिबा बिधि जेमन्त भिआण । सुबर्णर पीठ तहिँ कलेक निर्माण ।४११। |
|||
महालक्ष्मी कहुछन्ति दासी मुख चाहिँ । बेग प्रभुंकु लो घेनिआस जाइ ।४१२। |
|||
एहा शुणि दासीमाने बेगे चलिगले । ब्राह्मणंक पाशे जाइ प्रबेश होइले ।४१३। |
|||
बिनय़रे कहुछन्ति ब्राह्मण गोसाइँ । भोजन करिब चाल स्थान अछि होइ ।४१४। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । नारीए जणे पुरुष केहि एथि नाहिँ ।४१५। |
|||
भितरकु जिबा आम्भ उचित नुहँइ । पत्र दुइखण्ड तुम्भे आण बेगे जाइ ।४१६। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण भाइ तुम्भे । ए घरर कर्त्ता आज होइबा जे आम्भे ।४१७। |
|||
किम्पा तुम्भे भय़ करुअछ ज्य़ेष्ठ भाइ । दाता देउअछि आम्भे छाड़िबा कम्पाइ ।४१८। |
|||
भय़े बलराम से ठाबरु न उठन्ति । हस्त धरि घेनिगले कमलांक पति ।४१९। |
|||
ठाब सञ्चारे जे बलराम न बसन्ति । हस्त धरि बसाइले देब शिरीपति ।४२०। |
|||
कमलिनी कहुछन्ति तुलसी ब्राह्मणी । देढ़शूर अटन्ति जे मोर हलपाणि ।४२१। |
|||
ताहाङ्कु केमन्ते अन्न मुहिँ देबि नेइ । भितरे थाइण मुँ जे देबइँ बढ़ाइ ।४२२। |
|||
सान किए बोलि आग पचारिबु जाइ । बड़ठारे आग अन्न परशिबु नेइ ।४२३। |
|||
अन्नथालि नेइ आग ब्राह्मणी अइला । बड़ सान केउँ पण्डा बोलि पचारिला ।४२४। |
|||
बलराम बोलुछन्ति होइलुकि काणी । बड़ सान किए तोते न दिशइ पुणि ।४२५। |
|||
आम्भे बड़ बोलिण जे बलराम कहि । ब्राह्मणी बोइले कोप कल कि गोसाइँ ।४२६। |
|||
प्रथम थालिर अन्न बलरामे देला । भितरकु आउ अन्न आणिबाकु गला ।४२७। |
|||
आउ एक थालि अन्न आणिला बेलकु । चारि ग्रासरे बलराम खाइले ताहाकु ।४२८। |
|||
अन्न थालि घेनि करि ब्राह्मणी अइला । ए पण्डार अन्नजाक किए घेनिगला ।४२९। |
|||
बलराम बोइले क्षुधार्त्त होइथिलु । आग करि चारि ग्रास बेगे खाइदेलु ।४३०। |
|||
हसिला ब्राह्मणी दुइभाइंकु अनाइ । कुटुम्भ मारिबा प्राय़ दिशुछ गोसाइँ ।४३१। |
|||
पुत्र भारिजाकि तुम्भ दुहिङ्कर नाहिँ । पेट लागि बुलुअछ देश देश होइ ।४३२। |
|||
सहस्र कान्दि कदली रखिदेले नेइ । षाठिए नउति पणा रखिदेले थोइइ ।४३३। |
|||
जेउँपरि प्रभुंकर मनकु रुचइ । सेहिपरि कमलिनी दिअन्ति पठाइ ।४३४। |
|||
भोजान शेषकु जे कहन्ति बलराम । लक्ष्मींक रान्धणा परि लागुछि उत्तम ।४३५। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति बलराम भाइ । लक्ष्मीपरा भार्याकु पाइबा आउ काहिँ ।४३६। |
|||
लक्ष्मींकु भर्त्सना करि देले घउड़ाइ । बाहारि गले से तांक इच्छा हेला नाहिँ ।४३७। |
|||
एमन्त समय़े पोड़पिठा देले नेइ । जगन्नाथ कहुछन्ति बलराम भाइ ।४३८। |
|||
मोर मन कथाकु जे लक्ष्मी जाणिथाइ । भोजन शेषकु पोड़पिठाए दिअइ ।४३९। |
|||
भोजन सारिण प्रभु आचमन कले । कर्पुर ताम्बूल दुइ भाइ जे भुञ्जिले ।४४०। |
|||
बाहार मेलारे जाइ प्रभु बिजेकले जाइँ । गबाक्ष द्वाररे लक्ष्मी अछन्ति अनाइ ।४४१। |
|||
पचार पचार दासी पचारलो जाइ । बिभा होइ अछन्ति कि पण्डा दुइ भाइ ।४४२। |
|||
एहा शुणि दासीमाने बेगे चलिगले । ब्राह्मणंक निकटरे प्रबेश होइले ।४४३। |
|||
पुत्र भार्या अछन्ति कि काहिँ तुम्भ घर । केउँ राज्य़े बाड़ि बृत्ति शासन तुम्भर ।४४४। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति शुण दासी तुहि । बिबाह हेबाकु द्रव्य आम्भर जे नाहिँ ।४४५। |
|||
गुआ बाड़ि शासन पाइबु आम्भे काहिँ । लक्ष्मी परा भार्याकु जे देलु घउड़ाइ ।४४६। |
|||
कपाल मन्दा आम्भर दुइ भाइ बुलु । लक्ष्मी घउड़ाइ आम्भे ए दुःख पाइलु ।४४७। |
|||
दासीए बोइले पण्डा होइल कि बाइ । नारीकि छाड़ि पुरुष दरिद्र कि होइ ।४४८। |
|||
गोविन्द बोलन्ति आम्भे कहुअछु शुण । केउँ नारी थिले हुए ऐश्वर्य बर्द्धन ।४४८। |
|||
केउँ नारी थिले बंश निपात हुअइ । केउँ नारी थिले बासि पेज न मिलइ ।४४९। |
|||
केउँ नारी थिले सुना बला जे मिलइ । केउँ नारी अलक्षणी घररे भाङ्गइ ।४५०। |
|||
तुम्भ साआन्ताणींकु जे पचार बोलइ । दासी कहे बातुल कि होइल गोसाइँ ।४५१। |
|||
क्षुधा लागुथिला एबे भात जे खाइल । आम्भ साआन्ताणिङ्कु जे पचार बोइल ।४५२। |
|||
बलराम बोइले ए मोर पिला भाइ । तुम्भ साआन्ताणी आगे जणाइब नाहिँ ।४५३। |
|||
जगन्नाथ कहुछन्ति भय़ काहिँपाइँ । किछि न बिचार आहे बलराम भाइ ।४५४। |
|||
लक्ष्मींकर गृह सिना अटइ जे एहि । एठारे आपण भय़ कर किस पाइँ ।४५५। |
|||
बलराम बोलुछन्ति बाबु चक्रधर । तुम्भे जाइँ हस्तधरि महालक्ष्मींकर ।४५६। |
|||
आम्भ दोष कलु बोलि कह तांकु जाइ । जहिँ इच्छा तहिँ रह आम्भ मना नाहिँ ।४५७। |
|||
जेतेबेले बलराम एमन्त कहिले । भितर पुरकु प्रभु निजे बिजे कले ।४५८। |
|||
धीरे धीरे भितरकु गले पीतबास । प्रबेश होइले जाइ कमलांक पाश ।४५९। |
|||
पाणिझरि घेनिकरि कमला अइले । दरहासे प्रभुंकर मुखकु चाहिँले ।४६०। |
|||
अति यतनरे देले पादपद्म धोइ । थोपाए पाद उदक मस्तके लगाइ ।४६१। |
|||
किछि पादोदक लक्ष्मी गर्भकु खेपिले । पञ्चबर्ण पुष्पे पादपद्म पूजाकले ।४६२। |
|||
महालक्ष्मी कहुछन्ति प्रभुंकु अनाइ । चण्डालुणी बोलि मोते देल घउड़ाइ ।४६३। |
|||
चण्डालुणी घरे एबे भुञ्जिल गोसाइँ । चण्डाल बिटाल हेल दुइगोटि भाइ ।४६४। |
|||
धिक तुम बड़पण धिक तुम कथा । पोड़ु तुम्भर प्रतिज्ञा धिक तुम्भ भ्राता ।४६५। |
|||
महालक्ष्मी ए प्रकारे बहु धिकारिला । कालीय़ गञ्जन शुणि किछि न कहिले ।४६६। |
|||
महामय़ी बोइले हे शुण मो बचन । मोर किस कार्य तुम्भे कह हे बहन ।४६७। |
|||
किछि क्षण उत्तारे बोइले जगन्नाथ । एबे मनु मान तेज जगतर मात ।४६८। |
|||
अकारणे एते कथा कह प्राणसहि । आम्भर प्रार्थना आम्भ सङ्गे जिबापाइँ ।४६९। |
|||
बड़ हेले किस हेला गरब गञ्जिल । रबि तले सबु युगे यश रखिगल ।४७०। |
|||
तुम्भ योगे आम्भे कष्ट पाइलु बहुत । आम्भे भिक्षा मागिबार जाणिले जगत ।४७१। |
|||
तुम्भ यश किर्त्ती एबे जगते रहिला । आम्भंकु अन्न देबार जगत शुणिला ।४७२। |
|||
गुरुवार दिन ए पुराण जे शुणिब । जन्म जन्मान्तर पाप तार क्षय़ हेब ।४७३। |
|||
लक्ष्मीपूजा दिन एहा जे नारी गाइब । इह जन्मे पतिब्रता बैकुण्ठकु जिब ।४७४। |
|||
यद्यपि नारीकु केहि मुखे बुझाइब । ताहार सुकृत आउ के कहि पारिब ।४७५। |
|||
एते कहि गोविन्द धइले लक्ष्मी हस्त । जगत मात कहिले कर तुम्भे सत्य़ ।४७६। |
|||
चण्डालु ब्राह्मण जाए खुआखोइ हेबे । समस्ते खाइण हस्त जले न धोइबे ।४७७। |
|||
हाड़िर हस्तु ब्राह्मण छड़ाइ खाइबे । ब्राह्मणे खाइ हस्तकु मुण्डरे पोछिबे ।४७८। |
|||
अन्न खाइ सर्बे मुण्डे पोछुथिबे हस्त । तेबे बड़ देउलकु जिबि जगन्नाथ ।४७९। |
|||
हेउ हेउ बोलि आज्ञा देले महाबाहु । युगे युगे लक्ष्मी गो तुम्भर यश रहु ।४८०। |
|||
लक्ष्मींक हस्त धरिण जगन्नाथ नेले । बड़ देउलकु प्रभु बिजे करिगले ।४८१। |
|||
लक्षे चन्द्र उदिआजे छामुरे जलइ । देउलकु बिजे कले ब्रह्माण्ड गोसाइँ ।४८२। |
|||
इन्द्र डाकुछन्ति देब मणिमा मणिमा । ब्रह्मा डाकुछन्त देब गुहारि शुणिमा ।४८३। |
|||
बरुण कुबेर जे हस्तरे बेत धरि । नृत्य करुथिले जहिँ स्वर्ग अपशरि ।४८४। |
|||
रम्भा जे मेनका आदि आउ चित्रलेखा । तुलसी मालति आउ अन्य़ान्य़ रसिका ।४८५। |
|||
चञ्चला जे मदालसी आबर सुशीला । नृत्य आरम्भन्ति तुष्ट होइ से अबला ।४८६। |
|||
बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्ना इ । घरकु घरणी सिना सुन्दर दिशइ ।४८७। |
|||
जेतेबेले दाण्डे जाउथिलु दुइ भाइ । चोर खण्ट बोलि देउथिले घउड़ाइ ।४८८। |
|||
आहुरि कथाए शुण जगन्नाथ भाइ । लक्ष्मी एते बड़ बोलि एबे जाणिलइँ ।४८९। |
|||
लक्ष्मी देबी बिजे कले तांक देउलकु । दुइ भाइ बिजे कले तांक देउलकु ।४९०। |
|||
दासी परचारि आदिकरि जेते थिले । लक्ष्मी आसिलारु से समस्त जे अइले ।४९१। |
|||
लक्ष्मींकु पाइण देब गोविन्द आनन्द । संसाररे सेहि मते कलेक गोविन्द ।४९२। |
|||
शुणिले नारद एहि पुरातन आख्य़ा । जाहा प्रसन्नरे प्रभु मागिले जे भिक्षा ।४९३। |
|||
छार चण्डालुणी अइश्वर्य भोग कला । लक्ष्मींकर सुदय़ारे एमन्त होइला ।४९४। |
|||
ए पुराण पढ़िले जे सर्ब सिद्धि हुए । सूर्योदय सम तम पाप क्षय़ हुए ।४९५। |
|||
ए पुराण जेउँमाने पढ़न्ति शुणन्ति । लक्षे कोटि गोदानर फल जे लभन्ति ।४९६। |
|||
ए पुराण अटइ जे मुकतिर पथ । एहा फल कथनरे के हेब समर्थ ।४९७। |
|||
लक्ष्मींक पुराण एहु समाप्त होइला । भाबे '''बलराम दास''' गीतरे कहिला ।४९८। |
|||
:॥ इति श्री लक्ष्मी पुराण समाप्त ॥: |
|||
बळराम > बलराम |
|||
चाउळ > चाउल |
|||
कमळा >कमला |
|||
कदळी> कदली |
|||
कमळाङ्क, कदळीरे, येउँ |
|||
अलंकार, बंचित, अंगार, मंडल |
12:55, 17 फ़रवरी 2021 का अवतरण
श्री लक्ष्मी पुराण
नमस्ते कमला मागो सागर दुल्लणी । नमस्ते नमस्ते लक्ष्मी बिष्णुङ्क घरणि ।१। नमस्ते कमला मागो अति दय़ाबती । स्थाबर जङ्गम कीट आदि पालु निति ।२। तोर दय़ाबले मागो दरिद्र जनर । हुअइ अचल बित्त जिणइ कुबेर ।३। तोर द्रोही जने मागो अन्न न मिलइ । जेते अरजिले केभँ पेट न पुरइ ।४। तोहर चरित मन देइ जे शुणइ । किअबा भकति भाबे सर्बदा गुणइ ।५। ताहार दरिद्र पण जाए दूर होइ । सर्बदा ताकु प्रसन्न हेउ महामाय़ी ।६। एणु तो चरणे मागो अशेष प्रणाम । करुछि पुराअ बारे मोर मनस्काम ।७। तो चरित किञ्चिते मुँ करिबि रचना । जगत जननी बारे दिअ दिब्य़ ज्ञान ।८। दिनके नारद पराशर मुनि दुइ । भ्रमि भ्रमि एक ग्रामे प्रबेशिले जाइँ ।९। सेहिदिन मार्गशीर मास गुरुवार । पर्ब पड़िथिला सर्ब पुरबासीङ्कर ।१०। प्रति घरद्वार गोमय़रे लिपा होइ । लक्ष्मी पादपद्म चिता प्ड़िथिला तहिँ ।११। नारीमाने स्नान सारि पिन्धा झीनबास । लक्ष्मींक पूजारे सर्बे होइछन्ति बश ।१२। ब्राह्मणंक ठारु जे चण्डाल परियन्ते । लक्ष्मींक पूजारे रत अछन्ति समस्त ।१३। हुल हुली शबदरे पुरिछि गगन । देखि ए उत्सब रीति बिधाता नन्दन ।१४। पछरन्ति पराशर मुनिङ्कु उदन्त । कह कह तपीबर ए किस चरित ।१५। ब्रह्मण चण्डाल आदि समस्त जातिरे । करुछन्ति कि उत्सब आनन्द मतिरे ।१६। केउँ ब्रत कि उपास अटे एहा नाम । काहाकु करन्ति पूजा तार कि निय़म ।१७। एहा शुणि पराशर होइ हस हस । कहन्ति बचन धीरे शुण बिधिशिष्य़ ।१८। ए धान माणिका गुरुवार जे अटइ । लक्ष्मी देवींकर पूजा ए ब्रत अटइ ।१९। सबु मास मानंकरे मार्गशिर सार । तहिँरे पड़इ जेउँ जेउँ गुरुवार ।२०। लक्ष्मींकर प्रिय़ सेहि बारमान जाण । सबुठारु आद्य गुरुवारटि प्रधान ।२१। एक दिने शुक्ल दशमी गुरुवार । पड़िले सुदशाब्रत हुए से दिनर ।२२। लक्ष्मींकर अतिप्रिय़ अटइ से ब्रत । एहा कहि पराशर हेले मौनब्रत ।२३। पुणि ताहाङ्कु पुछिले ब्रह्माङ्क कुमर । लक्ष्मीब्रत करिथिले मर्त्य केउँ नर ।२४। तहिँरु से केउँ शुभफल लभिअछि । लक्ष्मी द्रोही होइकरि के दुःख पाइछि ।२५। एहा सबु मो आगरे कहतपी साइँ । शुणिबाकु ताहा चित्ते श्रद्धा उपुजइ ।२६। नारद बचन शुणि पराशर मुनि । कहन्ति हरष चित्ते सुमधुर बाणी ।२७। धन्य़ हे नारद तुम्भे पबित्र चरित्र । लक्ष्मीब्रत कथारे जे होइअछ रत ।२८। कहुअछि पुरातन कथा अछि जाहा । होइब आनन्द जात शुणिलेटि ताहा ।२९। एकदिने जगन्नाथ पाशे लक्ष्मी थिले । करपत्र योड़िण ताहाङ्कु जणाइले ।३०। आजि मो बारर ब्रत पड़िला गोसाइँ । तुम्भे आज्ञा देले नग्र बुलिजिबि मुहिँ ।३१। गोविन्द बोइले लक्ष्मी नग्रहिँ बुलिब । दशमी पालना अन्न बेगे रान्धि देब ।३२। प्रभुंक मुखरु मात एमन्त शुणिले । बस्त्र अलंकारमान यतने पिन्धिले ।३३। नासिकारे नबरत्न बसणि खंजिले । चउसरी रत्नमाला कण्ठे लम्बाइले ।३४। कररे बाहुटि रम्य़ बलय़ कंकण । सुना सुता माणिक्य़ पदक आभरण ।३५। बाजेणि नूपुर माता पय़रे खंजिले । एपरि नाना भूषणे सुबेश होइले ।३६। जेबण मातांक अधिकार तिनिपुर । आभरण केते मात्र देबे पट्टान्तर ।३७। शुण हे नारद एहा होइ एक चित्त । बुढ़ी ब्राह्मणी रूपकु धरि जगन्मात ।३८। प्रबेश होइले जाइँ साधुर दुआरे । साधबाणी उभा होइथिला सेहिठारे ।३९। ताकु देखि महालक्ष्मी कहन्ति बचन । शुण शुण साधबाणि होइ स्थिरमन ।४०। आजि परा महालक्ष्मी ब्रत गुरुवार । लिपा पोछा करिनाहुँ किम्पा घर द्वार ।४१। साधबाणी एहा शुणि बेलोइ सेक्षणि । कि रूपे ए ब्रत हुए काहा पूजा पुणि ।४२। बुझाइ ता सबु कह हे नानी गोसाइँ । अइले मनकु से ब्रत मुँ करिबइँ ।४३। एहा शुणि पद्मालय़ा कहन्ति सधीरे । शुण साधबाणी ब्रत हुए ए बिधिरे ।४४। मार्गशिर मासे जेउँ आद्य गुरुवार । सेदिन उषारु शेय छाड़ि तत् पर ।४५। गोमय़ जलरे घर दुआर लिपिब । लक्ष्मीदेबी पादपद्म चिताकु लेखिब ।४६। नूआ माण गोटिए अणाइ यत्ने बेगे । धोइ धाइ करि ताकु शुखाइब आगे ।४७। ताहाकु करिब नाना चित्र जे बिचित्र । चाउलकु बाटि चिता लेखिब समस्त ।४८। तहिँ स्नान करि आसि होइ शुचिमन्त । चड़कि बा खटुलिए आणिब त्वरित ।४९। ताकु धोइ ता उपरे देबे नूआधान । रंगकला नोहि होइथिब शुक्लबर्ण ।५०। तहुँ किछि कुढ़ाइ जे से नूआ माणरे । धानमाण जे पुराइ रखिब तापरे ।५१। से धान माण उपरे गुआ तिनिगाटि । हलदी पाणिरे ताहा धोइ थोइबटि ।५२। शुक्ल धानर शिखा रखि बेण्टि करि । माण उपरे ताहाकु थोइब बिचारि ।५३। गुआ आखु मूला कदलीरे सजाड़िब । पट्टादिरंग बसन पुष्पे मण्डाइब ।५४। तहुँ आबाहन महालक्ष्मींकु करिब । गन्धपुष्प धूपदीप आदि समर्पिब ।५५। प्रथमरे बालधूप तापरे शङ्खुड़ि । एपरि करिब तिनि धूपकु सजड़ि ।५६। महालक्ष्मींकर आउ एक ब्रत अछि । सुदशा बोलि ता नाम प्रकटिछि ।५७। शुक्लदशमी हेले गुरुवार दिन । हुअइ सुदशाब्रत शुण देइ मन ।५८। सेदिन उषारु उठि लिपि घरद्वार । झोटि आदि चिता देब पूर्ब परकार ।५९। स्नान सारि गृहे पद्ममण्डल लेखिब । तहिँपरे धोइ एक खटुलि रखिब ।६०। तहिँपरे लक्ष्मीपूजा गुआकु थोइब । पञ्चामृत शुद्धजले स्नान कराइब ।६१। दशखिअ सूतारे जे ब्रतेक करिब । लक्ष्मींक नामरे दशगोटि गण्ठिदेब ।६२। दशकेरा दूबरे से ब्रत गुड़ाइब । महालक्ष्मी गुआ पाशे ताहाकु थोइब ।६३। करुथिले पूर्बरु से ब्रत पुरातन । ब्रतडोर आणि तहिँ थोइब बहन ।६४। प्रथमरे बालधूप नइबेद्य करि । तापरे जा भोग देब शुण हेतु करि ।६५। अरुआ चाउल एकमाण तिन्ताइब । ताकु कुटि चूना करि यतने रखिब ।६६। कदली नड़िआ छेना आदि दशपुर । देइ दशगोटि मण्डा करिब सत्वर ।६७। महालक्ष्मींकु ता पूजा करि भक्ति चित्ते । से प्रसाद खाइ दिन बञ्चिब जे सुस्थ ।६८। महालक्ष्मी प्रसाद जे परकु न देब । बिभा होइथिबा झिअ सुद्धा न खाइब ।६९। ए उत्तारु कथा एक मनदेइ शुण । गुरुवार दिन जेउँ कथा निबारण ।७०। से कथा कहुछि एबे साधबाणी शुण । केबे न भाजिब खइ गुरुवार दिन ।७१। जेउँ नारी गुरुवार दिनरे आमिष । भुञ्जइ लोभरे किबा न पखाले केश ।७२। भुञ्जइ उच्छिष्ट किबा लगाइ जे तेल । महालक्षी तार निश्चे भाङ्गिद्यन्ति गेल ।७३। गुरुबारे जेउँ नारी तुलाकु भिणइ । लाउरे आमिष देइ जे ग्रास करइ ।७४। खटर छाय़ारे जेहु करइ शय़न । रात्रकाले दधिअन्न जे करे भोजन ।७५। क्षौर हुए जेहु जाइ नापितर द्वारे । भोजन समय़े अन्न पकाए भूमिरे ।७६। भुञ्जि न पारिण अन्न फोपाड़िण दिए । एड़े कर्म करे जिए लक्ष्मींकु न पाए ।७७। गुरुवार दिन सकालरु गोमय़रे । दुआर जे न लिपइ अलस पणरे ।७८। चुलिरु न काढ़े पांश भक्षे जे आमिष । एमानंकठारे लक्ष्मी करन्ति जे रोष ।७९। धन जन सबु तार हरण करन्ति । मागिगले अन्नबस्त्र केहि न दिअन्ति ।८०। गुरुबारे जेउँ नारी पिन्धे शुक्ल लुगा । ऐश्वर्य सम्पद पाए हुअइ सुभगा ।८१। गुरुबारे जेउँ नारी पिलाङ्कु मारइ । किबा पाकहांडि धोइ कला न छाड़इ ।८२। संध्यागड़िगले जिए दिए सन्ध्याबती । पुत्रधन हानी हुए सदा बहु क्षति ।८३। गुरुवारे जेउँ नारी पोड़ा द्रव्य खाए । शोइबारे शय्य़ बंका करिण बिछाए ।८४। शाशु श्वशुरंकु न मानइ जे रमणी । उलग्न होइ शयन करे जेउँ प्राणी ।८५। अमावस्या संक्रान्तिरे बुलाए जे हल । एहि दिनमानंकरे घेनइ तइल ।८६। सभामानंकरे बसि मिछ जे कहइ । आलस्य़े पाद न धोइ जे भुञ्जइ ।८७। कुष्माण्ड फलकु जेहु रमणी काटइ । ऋतुमती नारीकु जे रमण करइ ।८८। कन्य़ा तुला मासे पितृश्राद्ध न करइ । कथा कहु कहु सबुबेले जे हसइ ।८९। एमन्त मनुष्य़ सदा बहु कष्ट पाइ । आय़ बुद्धि नाशय़ाए अन्न न मिलइ ।९०। गुरुवार संक्रांति अमावस्या दिन । रजनीरे स्त्री पुरुष कलेक भोजन ।९१। किबा एहि तिनि दिन जेउँ नारी मोहे । पुरुष संगरे माति धर्मकु न चाहेँ ।९२। प्राणे नाश न करिण ताकु दुःख देइ । बुलान्ति जे अन्न बस्त्र काहिँ न मिलइ ।९३। एहि तिनि देने जेहु तिक्त द्रव्य खान्ति । अन्तः काले यम द्वारे बहु कष्ट पान्ति ।९४। ए तिनि दिन जे नारी करइ हविष्य । दुःखी रङ्कि देखि दान करइ बिशेष ।९५। करे लक्ष्मीब्रत लक्ष्मीबारे उपबास । बढ़िब ताहा धन जन आय़ु यश ।९६। सकालु शेयरु उठि जे मुख न धुए । ता मुख जे जन देखे तार शुभ नुहेँ ।९७। रात्रशेषे बासि शेजे जे करे शय़न । ता गृहकु लक्ष्मी त्य़ाग करन्ति बहन ।९८। आसन बिना जे भूमिपरे बसि खाए । किबा जे कुमारी संगतरे काममोहे ।९९। दक्षिण पश्चिम मुख जे भुञ्जि बसइ । एमानंक पाशु लक्ष्मी जान्ति दूर होइ ।१००। सन्ध्यारे कुण्डाइ केश बान्धे जेउँ नारी । केभे न देखन्ति लक्ष्मी ताहार जे शिरी ।१०१। भोजन करि जे मुख शोधन न करे । भोजन करइ जेहु अन्धकार घरे ।१०२। जेउँ नारी निज पतिठारे रोष बहे । स्वामी जाहा बोले ताहा न करे केबेहेँ ।१०३। पर पुरुषरे जेहु होइथाए रत । परिष्कृत नोहि हुए जे नारी कुत्सित ।१०४। एमन्त नारींक मुख लक्ष्मी न देखन्ति । कांगालिनी परि बारद्वारे से बुलान्ति ।१०५। कलही अलसी अति अप्रिय़ा साहसी । देब बिप्र अतिथिरे नुहँइ बिश्वासी ।१०६। एहिपरि नारी थिले से गृह श्मशान । लक्ष्मी से स्थानकु सदा करन्ति बर्जन ।१०७। जेउँ नारी भक्ति चित्ते स्वामीकि न सेबे । जन्मे जन्मे स्वामी दुःखे दुःखी हुए भबे ।१०८। जेउँ नारी स्वामीकु जे देब सम मणि । सेबाकरि तोषुथाए तार मत चिह्नि ।१०९। निज अंग परिष्कार करि शुचि हुए । सान बड़ समस्तंकु समभाबे चाहेँ ।११०। परषिबा बेले पक्षपात जे न करे । स्वामी पुत्र समस्तंकु बाण्टे समानरे ।१११। पतिर आज्ञाकु केबे न पकाए तले । स्वामी दुःखे दुःखी सुखे सुखी होइ चले ।११२। एमन्त नारीर गृह लक्ष्मी न छाड़न्ति । तार दुःख नय़नरे केबे न देखन्ति ।११३। ए मर्त्त्य़ मण्डले सेहि नारी सुख पाए । पति पुत्र कन्य़ा अइश्वर्य सुख पाए ।१०४। अन्तकाले बइकुण्ठे लक्ष्मींक संगरे । अनुक्षणे मजि रहे प्रमोद रंगरे ।१०५। सधबा नारीर पति बिना नाहिँ गति । तप जप देब पूजा ताहार अनीति ।१०६। पति सेब छाड़ि बृथा ब्रत जे करइ । जन्म जन्मान्तरे बाल्य़ बिधबा हुअइ ।१०७। जेउँ नारी आनन्दरे अतिथि सेबइ । पुण्यवती बोलि ताकु पुराणरे कहि ।१०८। एमन्त प्रकारे जेउँ नारी बा पुरुष । आपणार कुलधर्म न छाड़न्ति लेश ।१०९। सदाबेले करन्ति उत्तम आचरण । श्रीलक्ष्मी ताहाङ्क पादे मिलन्ति तक्षण ।११०। पति सेबा बिना नाहिँ नारींकर गति । पतिप्राणा नारी करे देबलोक गति ।१११। नारींकर लक्ष्मीब्रत पतिसेबा बिना । अन्य़ देब पूजातीर्थ यात्रा बिड़म्बना ।११२। पति सेबा बरजि जे मात गरबरे । गुरुबारे लक्ष्मीब्रत सेहु यदि करे ।११३। ताहार नुहइ भल जनमे जनमे । दुःख शोक रोग भोग संसारे से भ्रमे ।११४। एमन्त तिआरि साधबाणीकि बोइले । आजिठारु लक्ष्मीब्रत कर जा बोइले ।११५। न कले सर्ब सम्पद तोर क्षय़ जिब । अन्न बस्त्र अभाबरे दुःख भोग हेब ।११६। शुण हे नारद ठाकुराणी एहा कहि । सेठाबरु केतेदूर पथ गले बाहि ।११७। घरे घरे पुरे पुरे लक्ष्मी बिजे कले । काहारि दुआरे सेहि शुचि न देखिले ।११८। केबण युबती निदे होइ अचेतन । काहर फिटिजाइचछि पिन्धिला बसन ।११९। काहार शिररे केश मुकुलित होइ । भूमिपरे पड़िअछि केरि केरि होइ ।१२०। एहि रुपे महालक्ष्मी देखिकरि गले । चण्डाल साहिरे जाइ प्रबेश होइले ।१२० श्रिय़ा चण्डालुणी नग्र बाहारे ता घर । ताहार महिमा देवंकु जे अगोचर ।१२१। प्रतिदिन खरकइ गुण्डिचा नगर । बिष्णु भकतिरे से जे अति ततपर ।१२२। रात्र बेनि घड़ि थाइ चण्डालुणी गला । एक बर्ण्णि गाईर जे गोबर आणिला ।१२३। उत्तम करिण घरद्वारकु लिपिला । अरुआ चाउल बाटि घरे झोटि देला । षोलकोठि करि दिब्य़ पद्मेक काटिला ।१२५। दशमुखी दीपाबली मण्डले थोइला । दशबर्ण फलमूल मण्डले बाढ़िला ।१२६। सूता दशखिअ नेइ मण्डले थोइला । मनर चंचले पुणि बेगे चलगला ।१२७। अरुआ चाउल आउ दुब दशकेरा । ताहा नेइ चण्डालुणी मण्डले थोइला ।१२८। धूपदीप नइबेद्य गन्धपुष्प देला । लक्ष्मी नाराय़ण बोलि सुमरणा कला ।१२९। नमस्ते नमस्ते मागो हरिंक घरणी । मुहिँ छार हीनजाति न जाणइ पुणि ।१३०। चण्डाल साहिरे घर पुणि चण्डालुणी । किञ्चिते भकति मोर घेन कमलिनी ।१३१। दाण्डे दाण्डे जाउथिले बिष्णु पाटराणी । सहि न पारिले चण्डालुणीर दय़िनी ।१३२। पद्म फुल देखि तांक बलिला शरधा । दुइपाद देइ माता पद्मे हेले उभा ।१३३। चण्डालुणी घरगोटि पाइलाक शोभा । लक्ष्मी बिजे करिछन्ति कि उपमा देबा ।१३४। बोइलेक चण्डालुणी मागि घेन बर । प्रसन्न होइलि दुःख नाशिबि तोहर ।१३५। चण्डालुणी कहुअछि शिरे कर देइ । कि बर मागिबि मागो मागि न जाणइ ।१३६। गो-गोष्ठकु देब मोर लक्षे पद्म गाई । कुबेर समान धन देबु मागो तुहि ।१३७। कोलकु नन्दन जे हस्तकु सुनाबाहि । चारियुगे बसिबि अमर बर पाइ ।१३८। लक्ष्मी शुणि होइले तु होइछु कि बाइ । ए समस्त बर तोते देइ त पारइ ।१३९। अमर बर देबाकु शक्ति नाहिँ मोर । ए बर मागिलु तु केमन्त प्रकार ।१४०। जेते दिन जिइँथिबु ऐश्वर्य भुञ्जिबु । अन्तकाले जाइ बष्णु पञ्जरे पशिबु ।१४१। मोहर ए ब्रत करुथिबु सबुदिन । लक्ष्मी-नाराय़ण पादे थिब तोर मन ।१४२। शुण हे नारद एणे हरि बलराम । मृगय़ा बिनोदे जाइथिले घोरबन ।१४३। योगबले बलराम ए कथा जाणिले । डाकिकरि श्रीहरिङ्कु एमन्त कहिले ।१४४। देख देख कह्नाइ तो भारिजा आचार । उभा होइ अछन्त जे चण्डालुणी घर ।१४५। हाड़ि घरे थिब लक्ष्मी पाण घरे थिब । स्नान न करिण बड़ देउले पशिब ।१४६। एहि रुपे सबुदेन देउले पशुछि । दुइगोटि भाइंकु बिटाल कराउछि ।१४७। दरिद्र भञ्जनी नाम जेणु अछि बहि । दरिद्रमानङ्क कष्ट न पारइ सहि ।१४८। सुदशा नामक एक ब्रत जे ताहार । एहि ब्रते चण्डालुणी पुजइ पय़र ।१४९। भारिजारे कार्य जेबे अछिरे कह्नाइ । चण्डाल साहिरे नग्र तोल बेगे जाइ ।१५०। आम्भ बाक्य़ मानि ताकु दिअ घउड़ाइ । एपरि घरणि थिले भल गति नाहिँ ।१५१। गोविन्द बोइले भाइ घउड़ाइ देबा । लक्ष्मी परा भारिजाकु आउ न पाइबा ।१५२ से दोष करिछि जेबे एमन्त करिबा । स्वर्गपुर लोकंकु डकाइ अणाइबा ।१५३। पाञ्च लक्ष टङ्का देइ जाति कराइबा । आउ बेले तार यदि अनीति देखिबा ।१५४। देउल भितरु ताकु देबा घउड़ाइ । ए कथा प्रमाण तमे शुण ज्य़ोष्ठ भाइ ।१५५। न जाणि जे दोष कले सिन्धु राजजेमा । बारे मात्र भाइ तांक दोष कर क्षमा ।१५६। बलराम बोलुछन्ति शुण भाबग्राही । तोर लक्ष्मी थिले मुहिँ रहिबइ नाहिँ ।१५७। भारिजा अटइ सिना पादर पाण्डोइ । भाइ थिले कोटि भार्या मिलि जे पारइ ।१५८। भार्याठारे लोभ जेबे अछिरे कह्नाइ । चण्डाल साहिरे तु नबर तोल जाइ ।१५९। मोर बड़ देउलकु आउ न आसिबु । माइपकु नेइ दाण्ड बाहारे रहिबु ।१६०। धिक्कार बचन प्रभु शुणि न पारिले । छाड़िलि बोलिण रंग अधरे कहिले ।१६१। देउलर सिंहद्वारे प्रबेश होइले। उर्द्ध्ॱमुख होइ प्रभु निःश्वास छाड़िले ।१६२। शुण हे नारद तेणे श्रीय़ा चण्डालुणी । पूजा करुथिला लक्ष्मींकर पादबेनि ।१६३। ताहार पूजारे लक्ष्मी सन्तुष्ट होइले । जाचिण अनेक बर प्रदान करिले ।१६४। कुटीर खण्डिक थिला बलुरिर दास । लक्ष्मी दय़ाकले ताकु चन्दन उआस ।१६५। जेउँ चण्डालुणी घरे न थिलाक पुत्र । लक्ष्मी दय़ा कले तार हेला पाञ्च सुत ।१६६। धन पुत्रबती हुअ बोलिण बोइले । बरदेइ से ठाबरु बिजे करिगले ।१६७। लक्ष्मी हेतु चण्डालुणी हेले भाग्य़बती । एबे शुण हे नारद अपूर्ब भारती ।१६८। सिंहद्वारे बिजय़ लक्ष्मी जे महामाय़ी । देखिले दुआरे बसिछन्ति बेनि भाइ ।१६९। बोइले ले बाट छाड़ भितरकु जिबि । दशनी योगाड़ मुहिँ मणिही रान्धिबि ।१७०। गोविन्द बोइले लक्ष्मी होइल कि बाइ । चण्डाल साहिकि जाइथिल काहिँ पाइँ ।१७१। आम्भे न देखुणि देखिले जे बड़भाइ । आम्भे देखुथिले सिना दिअन्तु घोड़ाइ ।१७२। जाअ लक्ष्मी तुम्भठारे आउ कार्य नाहिँ । धिक्कार बहुत मोते कले बड़ भाइ ।१७३। हाड़ि घरे थिब लक्षी थिब पाण घरे । स्नान न करि पशुछि देउल भितरे ।१७४। ताठारु पापिनी नाहिँ संसाररे नाहिँ । मोहर बचन एबे शुण प्राणसही ।१७५। जगते बोलन्ति तोते बाइ ठाकुराणी । बाइ प्राय़े बुलुथाउ होइ मो घरणी ।१७६। एक घर कराउ सहस्र घर भाङ्गि । सहस्र घर कराउ एक घर भाङ्गि ।१६८। एमन्त प्रकार लक्ष्मी महिमा तोहर । जाअ लक्ष्मी बाहारि गो न रह मो पुर ।१६९। तोहठारे कोप करिछन्ति बड़ भाइ । लक्ष्मीदेबी कहुछन्ति ठाकुरंकु चाहिँ ।१७०। छाड़ पत्र देइ मोते दिअ घउड़ाइ । जगन्नाथ कहुछन्ति लक्ष्मी मुख चाहिँ ।१७१। आम जातिरे त छाड़ पत्र चले नाहिँ । छाड़िबा भारिजा मुख चाहिँ न योगाइ ।१७२। लक्ष्मी देबी कहुछन्ति ठाकुरंकु चाहिँ । जेतेबेले सागर मन्थिले देबे जाइँ ।१७३। बेद मन्त्रादि सह मोते पाइथिल । सेतेबेल कथा तुमे पाशोरि जे देल ।१७४। मोर पिता बरुण जे तुम्भंकु बरिले । कनक बेदीरे नेइ बिभा कराइले ।१७५। झिअ देइ शरण पशिले तुम्भठाइँ । दशदोष मोर क्षमा करिबार पाइँ ।१७६। दशगोटि दोषरु गोटिए न सहिल । प्रथमरे चण्डालुणी बोलि गालिदेल ।१७७। बिभा बासी दिन जुआ खेलिबार बेले । सातकड़ा कउड़ि जे पातिलइँ तले ।१७८। तुम्भे ढ़ालिदिअ नाथ मोहरि हस्तरे । सुबर्ण कउड़ि मुहिँ जाकिलइँ करे ।१७९। छड़ाइ न पारि तुम्भे ब्रह्माण्ड ठाकुर । मोते बोइल जा' इच्छा मागि घेन बर ।१८०। जाहा मन बाञ्छा गो करिबु बइदेही । ताहा मुँ अबश्य़ देबि शुण प्राणसही ।१८१। करपत्र योड़िण मुँ बोइलि उत्तर । साबधान होइ शुण ब्रह्माण्ड ठाकुर ।१८२। अष्टदिने पड़िब मोहर गुरुवार । पड़ि चरचिबि मुहिँ सभिङ्कर घर ।१८३। पड़ि चरचिबि कीटु ब्रह्म परियन्ते । एहि दोष मोर प्रभु न धरिब चित्ते ।१८४। हेउ बोलि श्रीमुखरे आज्ञा अछ देइ । एबे किम्पा सत्य़ भग्न हेउछ गोसाइँ ।१८५। जगन्नाथ कहुछन्ति कोपभर होइ । बाप तो लुणिअ जे गरजि मरुथाइ ।१८६। झिअ टेरी तो दुर्गुण कहिले न सरे । बापर गर्ज्जन शब्दे किए रहिपारे ।१८७। चारिपाखे मेघनाद पाचेरी तोलाइ । बड़ देउलरे रहिअछ दुइ भाइ ।१८८। महालक्ष्मी बोलुछन्ति ठाकुरंकु चाहिँ । अछबर घरे दण्डे थिले उभाहोइ ।१८९। अछब बिटाल बोलि दिअ घउड़ाइ । पुणि जाति कुल गोत्र कहिल गोसाइँ ।१९०। प्रभु हेतु जाउछन्ति सबु गोप्य़ होइ । तुम जाति कूलर त ठिकणा न थाइ ।१९१। तुम्भ जाति कूल जे कहिले न सरइ । गउड़ घरे रहिल दुइगोटि भाइ ।१९२। निमा नामे सपुटि जे जातिरे गोलक । ताहा घरे जगन्नाथ कल अन्न भक्ष ।१९३। दूत पणे जाइथिल हस्तिना भुबन । बिदुर घरे जे पुणि करिल भोजन ।१९४। जारा नामे शबर जे अरण्य़रे घर । से तुम्भंकु पूजिला बरष दश बार ।१९५। अरण्य़र फलमूल खोजिण आणइ । बसिण प्रथमे भलमन्द से खाअइ ।१९६। पिता कषा सबु प्रभु आड़ करिदेइ । जे फल सुआद ताहा तुम्भंकु भुञ्जइ ।१९७। शबर बिटाल तुम्भे बेनिगोटि भाइ । ए कथा कि तुम्भ मनु गला भुलि होइ ।१९८। आपणे पातकी किम्पा पर निन्दा कर । पाप पूण्य़ दुइ कथा बिचार न कर ।१९९। भारिजा जे दोष कले पति ता सहइ । एक अपराधे प्रभु भृत्य़े कि तेजइ ।२००। किम्पा न कर प्रभु एमन्त बिचार । जाअ जाअ बोलुअछ मोते बारम्बार ।२०१। जगन्नाथ कहुछन्ति एमन्त करिबा । माणे माणे पड़ि तोते नित्य़ देउथिबा ।२०२। भाइकु बुझाइ पछे तुम्भंकु आणिबु । भाइङ्क आज्ञा अबज्ञा केबे न करिबु ।२०३। लक्ष्मीदेबी कहन्ति पड़िरे कार्य नाहिँ । अनाथ अरक्ष प्राय़े जाउअछि मुहिँ ।२०४। राण्डी अलक्षणी झिअ मुहिँ जे नुहँइ । पितार घरकु मुँ जे बाहारि जिबइ ।२०५। तुम्भ अलंकारमान प्रभु काढ़िनिअ । पछरे मोते जे आउ बोलणा न दिअ ।२०६। गोनिन्द बोलन्ति लक्ष्मी होइल कि बाई । अंग अलंकार आम्भे नेबु काहिँ पाइँ ।२०७। भारिजा देहरे जेउँ अलंकार थाए । स्वामी होइ ताहाठारु काढ़ि किए निए ।२०८। ठाकुराणी कहुछन्ति श्रीमुखकु चाहिँ । तुम्भर अटइ मुँ जे प्रथम बिबाही २०९। पछरे कहिब लक्ष्मी आम घरे थिला । सहस्र टङ्कार अलंकार घेनि गला ।२१०। एमन्त अख्य़ाति मोते न दिअ गोसाइँ । तुम्भ अलंकारमान निअ बाहुड़ाइ ।२११। शिररु काढ़िले लक्ष्मी मुकुतार जालि । हृदरु काढ़िले इन्द्र गोविन्द कञ्चुलि ।२१२। अण्टारु काढ़िले माए रत्न ओड़िआणी । नासिकारु काढ़िले जे मुकुता बसणी ।२१३। कर्णद्ॱय़रु काढ़ले हीरार कुण्डल । गलारु काढ़िले जे दोषरी चिनामाल ।२१४। पादरु काढ़िले देबी बाजेणी नुपूर । अङ्गुष्ठिरु काढ़िले जे झुण्टिआ सत्वर ।२१५। अन्य़ अलंकारमान कि कहिबि आउ । रुण्ड कलारु दिशिला सबु दाउ दाउ ।२१६। सबु अलंकारमान एकठाब कले । रख दीनबन्धु एहा बोलि समर्पिले ।२१७। गोविन्द कहन्ति एहा कि करिबु नेइ । आम्भर ए अलंकारे प्रय़ोजन नाहिँ ।२१७। गृहस्थ होइण जेबे भार्याकु तेजइ । छ' मास हात लुगा लेखिण दिअइ ।२१८। एहि अलंकार सबु तुम्भे घेनिजाअ । बिकि भाङ्गिकरि भात लुगा करुथाअ ।२१९। लक्ष्मीदेबी कहुछन्ति प्रभु मुख चाहिँ । साबधान होइ शुण ब्रह्माण्ड गोसाइँ ।२२०। मोर तुले आउ जेउँ भारिजा आणिब । एहिसबु अलंकार ताहांकु जे देब ।२२१। मुहिँ जाउअछि हीन अरक्षित होइ । मोग अभिशाप घेन प्रभु भाबग्राही ।२२२। सते यदि चन्द्र सूर्य होन्ति आतजात । तुम्भंकु अन्न न मिलु आहे जगन्नाथ ।२२३। बारबर्ष जाए तुम्भे दरिद्र होइब । अन्न बस्त्र जल जे तुम्भंकु न मिलिब ।२२४। मुहिँ चण्डालुणी जेबे टेकिदेबि अन्न । भोजन करिबे तेबे कालीय़ गञ्जन ।२२५। एते बोलि लक्ष्मी देबी शाप देइगले । देउलु बाहार होइ केतेदूर गले ।२२६। एहा देखि दासीमाने सङ्गे गोड़ाअन्ति । दासींकु अनाइ लक्ष्मीदेवी बोलुछन्ति ।२२७। मुहिँ जाउअछि हीन अलक्षणी होइ । मोर पछे तुम्भेमाने आसुछ किम्पाइँ ।२२८। एहि परि होइ जेबे पिताघर जि वी । चारिदिन मात्र तहिँ रहि न पारिबि ।२२९। जगन्नाथ प्राय़ बन्धु पिताघर जिबे । तांकु देखि पिता मोते समर्पिण देबे ।२३०। शाप देबा फल मोर हेब अकारण । दरिद्र नोहिबे प्रभु देव भगबान ।२३१। एते बोलि लक्ष्मीदेबी मने चिन्ताकले । बिश्वकर्माकु जे माए मने सुमरिले ।२३२। बैकुण्ठपुररे बिश्वकर्मा रहिथिला । स्मरण मात्रके लक्ष्मी छामुरे मिलिला ।२३३। किस आज्ञा हेउ मोते लक्ष्मी महामाय़ी । शुणि आज्ञा देले बिश्वकर्माकु जे चाहिँ ।२३४। चण्डालुणी कहि प्रभु देले घउड़ाइ । पारिबुकि खण्डिए कुड़िआ तोलिदेइ ।२३५। आज्ञामात्रे बिश्वकर्मा बेगे चलिगले । तिनि कोश प्रमाणे उआस तोलाइले ।२३६। सुवर्णर कान्थमान सबुघरे कले । हीरे नीला माणिक्य़ादि तहिँ खञ्जाइले ।२३७। गण्ठिस्थले अनेक मुकुता लगाइले । प्रबालर स्तम्भमान तहिँरे रचिले ।२३८। पुर देखि कमलिनी सन्तुष्ट होइले । बिश्वकर्माकु बहुत प्रशंसा जे कले ।२३९। बैकुण्ठ पुरकु बिश्वकर्मा चलिगले । अष्ट बेतालकु डाकि देबी आज्ञा देले ।२४०। अष्ट बेतालरे तुम्भे एमन्त करिब । प्रथमे रोषाइ शाले जाइण पशिब ।२४१। षाठिए पउटि भोग भुञ्जिब जे तहिँ । तेर पौटि ब्य़ञ्जन खाइब हर्ष होइ ।२४२। शागमुग मधुरुचि तिक्त काञ्जिराइ । आम्बिल खाइब खण्ड शाकर मिशाइ ।२४३। अमृत मणोहिमान भोजन करिब । हांडिमान नेइ एकठाबे कचाड़िब ।२४४। तहुँ जाइण भण्डार मध्य़रे पशिब । बाउन कोटि भण्डार बोहिण आणिब ।२४५। काणि कउड़ि कड़ाकर द्रव्य न रखिब । सबु बोहि आणि मोर पाशे समर्पिब ।२४६। बेताल बोइले महालक्ष्मी मुख चाहिँ । केमन्त करिण तहुँ आणिबु बुहाइ ।२४७। जगन्नाथ महाप्रभु तहिँ चाहिँ थिबे । आम्भंकु देखिण काले पराभब देबे ।२४८। शुणि कमलिनी निद्राबतीकि राइले । बहन मो बोलकर बोलिण बोइले ।२४९। रामकृष्ण नय़नरे निद्रा जे घारिबु । कालि बेल दुइ घड़िजाए न छाड़िबु ।२५०। आज्ञा पाइ निद्राबती शीघ्र चलिगले । रामकृष्ण नय़नरे निद्रा जे घारिले ।२५१। पाकशालारे बेताल प्रबेश होइले । तहिँ थिबा पाकद्रव्य समस्त खाइले ।२५२। हांडिमान सबु एक स्थाने कचाड़िले । भण्डार घररे अष्ट बेताल पशिले ।२५३। जेते द्रव्य पूर्ण होइ रहिथिला तहिँ । बाउन कोटि भण्डार आणिले बुहाइ ।२५४। रात्र षोल घड़िजाक बेताल जे तहिँ । कुलारु छाञ्चुणि जाए सबु नेले बोहि ।२५५। देखिकरि महालक्ष्मी सन्तुष्ट होइले । तुम्भे आजि पुत्रपण करिल बोइले ।२५६। प्रशंसा करिण माए बचन जे कहि । सबु द्रव्य आणिल त रत्न खट नाहिँ ।२५७। पाञ्च लक्ष मूल्य़ सेहि खट त अटइ । जाअरे बेताल सेहि खट आण बोहि ।२५८। जेतेबेले जगन्नाथ दरिद्र होइबे । रत्न खट बिकिकरि दिन चलाइबे ।२५८। जेबे प्रभु जगन्नाथ मोते न खोजिबे । नारींकु परुषमाने आउ न लोड़िबे ।२५९। मोते घेनि प्रभु जेबे न करिबे घर । कलियुगे नारींकु जे न खोजिबे नर ।२६०। बेतालि बोलुछन्ति रमा मुख चाहिँ । रत्न खटे शोइछन्ति बेनि दुइ भाइ ।२६१। कोटि सिंह पराक्रम प्रभु बलराम । पुणि तहिँ शोइछन्ति कालीय़ गञ्जन ।२६२। सातगोटि पर्बतरु अटइ जे गरु । नाम बहि अछन्ति अचल महामेरु ।२६३। महालक्ष्मी बोइलेरे एमन्त करिब । दउड़िआ खट एक गोटि जे आणिब ।२६४। रामकृष्ण दुहिँङ्कु जे गड़ाइण देब । शोइबार रत्न खट बोहिण आणिब ।२६५। एहा शुणि बेतेल जे शीघ्र चलिगले । रत्नखट पाशै दउड़िआ खट देले ।२६६। बलरामङ्कु प्रथमे धइलेक जाइ । दउड़िआ खटकु जे देले गड़िआइ ।२६७। ए उत्तारु जगन्नाथ प्रभुंकु धइले । दउड़िआ खट उपरकु गड़ाइले ।२६८। शोइबार रत्नखट आणिलेक बोहि । महालक्ष्मी आगे देले आनन्दरे नेइ ।२६९। बलराम पिन्धिबार पाट बोहि नेले । जगन्नाथ पिन्धिबार नेत घेनिगले ।२७०। देखिकरि महालक्ष्मी सन्तुष्ट होइले । अष्ट बेतालकु बर जाचिण जे देले ।२७१। आरे अष्ट बेतालरे एमन्त करिब । बैकुण्ठ पुररे जाइ सुखरे रहिब ।२७२। आज्ञा पाइण बेतालगण बेगे गले । बैकुण्ठपुररे जाइ प्रबेश होइले ।२७३। महालक्ष्मी तहुँ एक कथा बिचारिले । सरस्वती देबीङ्कु जे हृदे सुमरिले ।२७४। बोइले गो सरस्वती एमन्त करिब । राज्य़ राज्य़ होइ घरे घरे बुलुथिब ।२७५। सर्बद्वारे जगन्नाथ बुलिबेटि जाइँ । सर्बकण्ठे सरस्वती बिजे कर तुहि ।२७६। अन्न पाणि केहि तांकु किछिहिँ न देबे । एते दुःख पाइले से मोते सुमरिबे ।२७८। आराम दाय़िनी रात्र सुखरे पाहिला । दिन दुइ घड़िकरे निद्रा जे भांगिला ।२७९। बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । गहल चहल आजि किछि शुभुनाहिँ ।२८०। मुदिरथ पण्डार त तुण्ड शुभुनाहिँ । दासी परबारी जे परिचा गले काहिँ ।२८१। श्रीमुख पखालिबाकु जल न मिलइ । कि बुद्धि करिबा एबे कहरे कह्नाइ ।२८२। जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ । लक्ष्मी छाड़िगलारु जे एमन्त हुअइ ।२८३। बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । भार्या छार एमन्तकु कहुअछु तुहि ।२८४। काहार भारिजा जेबे ऋषि हजिजाए । तार गृहस्थ इ भात रान्धिण न खाए ।२८५। भण्डार घरकु बिजे कले दुइभाइ । भण्डारे देखिले किछि पदार्थ जे नाहिँ ।२८६। बलराम कहुछन्ति काहिँ किस हेला । बाउन कोटि भण्डार के घेनिण गला ।२८७। लक्षे जीब खाइले बोहिले न सरइ । क्षणक भितरे किए घेनिगला बोहि ।२८८। सुबर्ण मुदिए बलराम जे पाइले । सात गोटि गण्ठिदेइ कानिरे बान्धिले ।२८९। जगन्नाथ कहन्ति जे पाइलकि भाइ । बलराम कहुछन्ति धन पाइलइँ ।२९०। जगन्नाथ कहुछन्ति बलराम भाइ । बेङ्गि पित्तल खण्डिक रख काहिँ पाइँ ।२९१। बलराम कहुछन्ति कि कथा घटिला । पाइथिबा स्वर्ण बेङ्गि पित्तल होइला ।२९२। शुद्ध सुबर्णरु जेउँ धन धन होइथिला । काणि कउड़ि जड़ाकु समान नोहिला २९३। सेठारु बाहारि गले दुइगोटि भाइ । पाकशाल दुआरे जे प्रबेशिले जाइ ।२९४। बलराम ठिआहेले दुआर मुहँकु । जगन्नाथ पशिगले रोषाइ घरकु ।२९५। देहरे लागिला कला मुहँरे लागिला । कला श्रीमुख गोटक झटकि दिशिला ।२९६। बलराम कहुछन्ति शुण जगन्नाथ । बड़ खिआ बोल तोते कहन्ति जगत ।२९७। मोते अन्न न देइण सबु खाउ तुहि । जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ ।२९८। अन्न काहिँ मिलिब जे चुलि सुद्धा नाहिँ । न बुझि एपरि किम्पा कहुछ गोसाइँ ।२९०। देखिले अगाड़ि तहिँ गोटिए जे नाहिँ । तहुँ गले दुइभाइ निराश जे होइ ।२९१। इन्द्रद्य़ुम्न कूले जाइ प्रबेश होइले । टोपाए टोपाए पाणि तहिँ न देखिले ।२९२। बड़ देउलरे जाइ प्रबेश होइले । सेहिदिन उपबास करिण रहिले ।२९३। बेल दुइ घड़िलरे निद्रा जे भांगिला । मुख प्रक्षालन अर्थे पाणि न मिलिला ।२९४। कि बुद्धि करिबा एबे बुद्धि दिशुनाहिँ । बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ ।२९५। कालि उपबासरे रहिले दुइ भाइ । आउ पादे जिबाकु त बल पाउनाहिँ ।२९६। केउँठारे आजि यदि न मिलिब अन्न । केमन्त प्रकारे आम्भे धरिबा जीबन ।२९७। बलराम कहुछन्ति शुण आरे बाबा । नगररे भिक्षा मागि जीबन पोषिबा ।२९८। कान्धरे पकाइ छिण्डा उत्तरी पइता । हस्तरे धइले दुइभाइ भङ्गाछता ।२९९। चिता घेनिबाकु जल काहिँ न पाआन्ति । जाहा घरठाकु पाणि मागिबाकु जान्ति ।३००। चोर खण्ट बोलि मारि घउड़ाइ द्य़न्ति । से ठाबरु दुइ भाइ भय़े पलाअन्ति ।३०१। जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ । बड़पण्डा घरकु हे चाल ज्य़ेष्ठ भाइ ।३०२। हस्त धरा धरि होइ दुइ भाइ गले । बड़पण्डा घरे जाइ प्रबेश होइले ।३०३। बधु तार कहइ जे शाशु आगे जाइ । ब्रह्मण जे दुइगोटि आसिछन्ति धाइँ ।३०४। शाशु राण्डि राहाङ्कु जे चिह्नि न पारिला । धाइँ जाइ बेगे तांकु कबाट किलिला ।३०५। आस आस बोहुए लो ठेङ्गा बाड़ि धरि । चोर कि खण्ट ए दुहेँ देबा आड़करि ।३०५। एहा शुणि दुइ भाइ तहुँ पलाइले । सामबेद यजुरबेद दूरे उच्चारिले ।३०६। शुणि शष्क तरुगण पल्लबी उठिले । भिक्षुक ब्राह्मण बोलि ब्राह्मणी चिह्निले ३०७। दुइ भाइंकु से डाकि तहिँ बसाइला । खुद मलुख मिशाइ सत्वर रान्धिला ।३०८। अफिटा कदलीमञ्ज दुइखण्ड आणि । बेनि भाइ पकाइण सिञ्चिलेक पाणि ।३०९। कंसा घेनि ब्राह्मणी जे अन्न आणिगला । आउ कि बाढ़िब तार हांडि उभा हेला ।३१०। लक्ष्मी द्रोही पुरुष ए बोलिण जाणिला । पाकशालरु लेउटि पाशरे मिलिला ।३११। दुइगोटि भाइंकर हस्तकु धइला । कटु कथा कहि तांकु दाण्डरे छाड़िला ।३१२। तहुँ दुइजण जे निराश होइगले । कबीर साहिरे जाइ प्रबेश होइले ।३१३। क्षुधार्थ ब्राह्मण बोलि कबीर जाणिले । खइ चारि पाञ्च माण आणि बेगे देले ।३१४। अन्तर्गते जाणिले जा देबी कमलिनी । पबनकु डाकि आज्ञा देले सेहिक्षणि ।३१५। आरे पबन तुहि त बेगे चलिजिबु । खइ चारि पाञ्च माण उड़ाइण देबु ।३१६। आज्ञा पाइ पबन जे बेगे चलिगला । प्रभुंक आगरु खइ उड़ाइण नेला ।३१७। बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । प्राण गलाबेले जाति कूल लोड़ु काहिँ ।३१८। पद्म पोखरीकु चाल जिबा दुइ भाइ । पद्म मूल खाइ प्राण बञ्चाइबा तहिँ ।३१९। फल पुष्प करि तहुँ गुड़ाए आणिबा । अधिक मिलिले किछि सञ्चिण रखिबा ।३२०। एमन्त बिचार करि दुइ भाइ गले । पद्म पुष्करिणीरे जे प्रबेश होइले ।३२१। पद्म पोखरीरे सात ताल पाणि थिला । लक्ष्मी आज्ञा मात्रे सबु पङ्क होइगला ।३२२। जगन्नाथ कहुछन्ति कि बुद्धि करिबा । जल नाहिँ फल एथि काहुँ बा पाइबा ।३२३। एहा कहि दुइजण तहुँ चलिगले । जाउ जाउ बाटे एक योगीकि भेटिले ।३२४। जगन्नाथ कहुछन्ति शुण आहे नाथ । तुम्भर थालरु जे आम्भकु दिअ भात ।३२५। सत्य़ानन्द बोले रामकृष्ण मुख चाहिँ । लक्ष्मी द्रोहि होइअछ तुम्भे दुइ भाइ ।३२६। दुध अन्नरे जे मोर थाल पुरिथिला । तुम्भे मागन्तेण अन्न शून्य़ होइगला ।३२७। अन्न जल न मिलिब तुम्भंकु जे काहिँ । समुद्र कूलकु बेगे जाअ दुइ भाइ ।३२८। मुहिँ जाइथिलि मोते अन्न थिले देइ । खाइले बोहिले सेहि अन्न न सरइ ।३२९। एहि रूपे सत्य़ानन्द बाट कहिदेले । जिबा बोलि दुइ भाइ कमर बान्धिले ।३३०। हटि कमलिनी तहुँ बाट भिआइले । सूर्यंकु राइण देबी बेगे आज्ञा देले ।३३१। अतिशीघ्र टाण खरा कर तुम्भे जाइ । बालि माटि तातु बेगे डह डह होइ ।३३२। तातिब खरारे जेह्ने भाजिबार बालि । पादे मात्र केहि तहिँ न पारिबे चालि ।३३३। जगन्नाथ कहुछन्ति शुण ज्य़ेष्ठ भाइ । एड़े बड़ खरारे मुँ चालि न पारइ ।३३४। बेग बेग होइ तुम्भे जाउअछ धाइँ । बुद्धि दिशुनाहिँ एबे किस करिबइँ ।३३५। शुणि न शुणिला परि बलराम गले । कमलांक सिंहद्वारे प्रबेश होइले ।३३६। सिंहद्वारे प्रबेशिण डाकिलेक तहुँ । डाक शुणि दासीमाने अइलेक तहुँ ।३३७। केउँ दासी कहुअछि शुण आगो सहि । एपरि कांगाल मुँ जे काहिँ देखिनाहिँ ।३३८। एहिपरि मोटा होइ गोटाएक थिला । आम्भ ठाकुराणींकु जे घरु तड़िदेला ।३३९। एहि रूपे दासीमाने कुहाकुहि हेले । बेकरे हात देइण दाण्डरे छाड़िले ।३४०। बलराम प्रभु तहिँ लेउटि अइले । जगन्नाथ ठाकुरंकु बाटरे देखिले ।३४१। बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । दासीमाने आसि मोते देले घउड़ाइ ।३४२। जगन्नाथ कहुछन्ति कि बुद्धि करिबा । केमन्त प्रकारे आम्भे जीबन धरिबा ।३४३। आउथरे चाल बेनि भाइ फेरिजिबा । बिनय़ करिण अन्न दासींकु मागिबा ।३४४। बलराम कहुछन्ति पछे आम्भे थिबु । आगरे थाइण अन्न तुहि जे मागिबु ।३४५। एते कहि सिंहद्वारे प्रभु बिजेकले । मन्दिर शोभा देखि आश्चर्य होइले ।३४६। जगन्नाथ प्रभु यहुँ एमन्त शुणिले । ओँकार शबद करि बेदध्ॱनि कले ।३४७। ऋक्, शाम, यजुः जे अथर्ब चारि बेद । ब्रह्माण्ड पुरिउठिला गहगह नाद ।३४८। पलङ्क उपरे कमला जे शोइथिले । निस्तरिलि निस्तरिलि बोलिण बोइले ।३४९। कोटि कोटि जन्मर पातक हेले क्षय़ । मोर घरे बिजे कले प्रभु देबराय़ ।३५०। पचार पचार दासी पचार लो जाइ । किस मागुछन्ति जे ब्राह्मण बेनिभाइ ।३५१। चालिजाइ मुदु्सुलि तांकु पचारिले । कि मागुछ पण्डामाने कह तुम्भे भले ।३५२। जगन्नाथ कहुछन्ति दासीमुख चाहिँ । अन्न गण्डाएक तुम्भे पारिबकि देइ ।३५३। एमन्त शुणिण दासीमाने चलिगले । लक्ष्मी ठाकुराणी आगे बेगे से बोइले ।३५४। दासीङ्क मुखरु जे एमन्त बाक्य़ शुणि । मने बिचार करन्ति लक्ष्मी ठाकुराणी ।३५५। ए कथा अरजि अछि चण्डालुणी मुहिँ । एबे दासीमाने लो पचार बेगे जाइ ।३५६। ब्राह्मण होइ मो घरे कि खाइबे । चण्डालुणी अन्न खाइ अपबाद नेबे ।३५७। ए मोहर द्रव्य तांकु छुइँ न योगाइ । जाणु जाणु मुँ केमन्त प्रकारे देबइँ ।३५८। ठाकुराणी समीपरु दासीमाने गले । ब्राह्मणंक आगे जाइ एमन्त कहिले ।३५९। दासीङ्क मुखरु जे एमन्त बाक्य़ शुणि । क्षुधातुर होइ कहन्ति हलपाणि ।३६०। नूआ हांडि नूआ सञ्चा देइ कि पारिबु । एमन्त बोइले आम्भेमाने जे खाइबु ।३६१। दासीमाने कहन्ति लक्ष्मींक आगे जाइ । हाते रान्धि भोजन करिबे दुइ भाइ ।३६२। एहा शुणि महालक्ष्मी सन्तोष होइले । दासीङ्क हस्तरे हांडि दशगोटि देले ।३६३। चाउल पउटिए नेइ छामुरे रखिले । लेउटिआ शाग नेइ छामुरे रखिले ।३६४। आलु सारु कदली जे बड़ि बाइगण । दुध दहि छेना शर्करी जे देले पुण ।३६५। एबे जेते इच्छा तेते भुञ्ज होइ बोइले । गृहे महालक्ष्मी थाइ बिचार जे कले ।३६६। रान्धणा भुञ्जिबे यदि हाते दुइ भाइ । नारींकु पुरुष आउ लोड़िबे किम्पाइँ ।३६७। लक्ष्मीदेबी काष्ठ खण्डे हातरे धरिले । अग्निर स्तम्भन मन्त्र देबी पाठा कले ।३६८। कदापि अग्नि देबता तेज न होइब । हांडि न तातिबा आउ पाणि न तातिब ।३६९। जेते काठ जलुथिबा भष्म होइजिब । कुहुलि करिण तहुँ धुआँ हेउथिब ।३७०। एमन्त बोलिण कमला जे आज्ञा देले । सेहि प्रकारेण अग्नि देबता जे कले ।३७१। सबु काठजाक तहिँ अंगार अङ्गार जे हेला । तेबे सुद्धा किञ्चिते जे पाणि न तातिला ।३७२। हटि कमलिनी हट भिआइले जेणु । हांडितले कला टिके न पड़िला तेणु ।३७३। सुगन्ध तइल देबी देले पठिआइ । दासीमाने कहुछन्ति ब्राह्मणङ्कु जाइ ।३७४। पाकसिद्धि हेला कि ब हेला हे गोसाइँ । तइल लगाइ स्नान कर बेगे जाइ ।३७५। जगन्नाथ कहुछन्ति पाणि न तातिला । कि पाक करिबु बेल उछुर होइला ।३७६। बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । अन्न होइलाकि नाहिँ कह बेगे तुहि ।३७७। जगन्नाथ कहुछन्ति शुण आहे भाइ । अन्न कि होइब टिके पाणि ताति नाहिँ ।३७८। बलराम कहुछन्तिरे अधुआ मुहाँ । रान्धि न जाणि होइअछु रान्धुणिआ ।३७९। तुहि आड़ हुअ मुहिँ रान्धुअछि जाइँ । अन्न रान्धिबाकु गले ब्राह्मण गोसाइँ ।३८०। फुङ्कि फुङ्कि बलराम बिरक्त होइले । काठ खण्डे घेनिण जे हांडि पिटिदेले ।३८१। क्षुधातुर दुइभाइ आकुल होइले । कि बुद्धि करिबा जगन्नाथङ्कु बोइले ।३८२। जगन्नाथ बोइले त बुद्धि दिशुनाहिँ । क्षुधारे आतुर हेउअछि मोर देही ।३८३। बलराम कहुछन्ति शुण जगन्नाथ । जाति पछे जाउ तार घरे खाउ भात ।३८४। जेबे एहा घरु भात आम्भकु न देब । आम्भ दुइ भाइंकर मरण होइब ।३८५। लेउटिण दासी जाइ लक्ष्मींकु कहिले । ब्राह्मण त हांडि भाङ्गि फोपड़ाइ देले ।३८६। एहा शुणि महालक्ष्मी मने चिन्ता कले । केते दुःख दीनबन्धु दुहेँ जे पाइले ।३८७। सुबर्णर चटु गोटि हातरे धइले । रोषेइ शालकु लक्ष्मी निजे बिजे कले ।३८८। प्रथमे रान्धिले माए बगड़ा जे अन्न । मुग मधुरुचि क्षीर नानादि ब्य़ञ्जन ।३८९। आम्बिल शाकर कले कदलीर भजा । अति यत्ने कले माए तिअण जे मञ्जा ।३९०। षाठिए पउटि से रन्धन कले जाइ । बगड़ा भात महिमा कलना न जाइ ।३९१। दुधपुलि कले मात घृतपुलि कले । अति यतनरे माए सरपुलि कले ।३९२। जेते द्रव्य रान्धिछन्ति ब्राह्मणंक रुचि । बड़िर महुर कले पकाइण साचि ।३९३। सहस्र आटिका रान्धि द्रव्य सजाड़िले । जे जाहा स्थानरे यत्ने रखाइण देले ।३९४। कर्पूर छेना शर्करा मरिच गोलाइ । षाठिए नउति पणा रखिले त तहिँ ।३९५। रंगबाण पइड़ संगरे छेनापणा । अदा मिशा करि जे नबात खण्डछेना ।३९६। लक्ष्मींकर पाकगुण के कहि पारिब । क्षणक मध्य़रे माए सजाड़िले सर्ब ।३९७। सबुथिरु खण्डिए खण्डिए रखिथिले । भोजन शेषकु पोड़पिठाए रखिले ।३९८। बोइले दासीङ्कि कर अंग मरदन । ब्राह्मण बोलिण मने न पाञ्चिब भिन्न।३९९। ब्राह्मणमानङ्क मुहिँ अटे निज दासी । शुणिण आनन्दे चलिगले सबु दासी ।४००। दासीमाने कहुछन्ति सुबेदी गोसाइँ । स्नान कर बेगे अंग मरदन होइ ।४०१। तहुँ सुबास जलरे दुहेँ स्नान कले । अंग पोछिबाकु दासी गामुछाए देले ।४०२। पिताम्बर पाट आणि पिन्धिबाकु देले । सुबेश होइण दुइ भाइ जे बसिले ।४०३। बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । एमन्त प्रकारे मान्य़ करे किस पाइँ ।४०४। एहा घरे पुरुष त जणे दिशुनाहिँ । शूलि देबा प्राय़े एहि बिचार दिशइ ।४०५। चाल एबे पलाइण एहिठारु यिबा । क्षणक मध्य़रे आउ प्राण ब पाइबा ।४०६। जगन्नाथ कहुछन्ति ज्य़ेष्ठ भाइ शुण । ए घरर कर्त्ता आजि होइबे आपण ।४०७। बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । एमन्त कहिबा तोर उचित नुहइँ ।४०८। गृह परिष्कार देबी स्वहस्तरे कले । गन्ध चन्दन जे माए छड़ा पकाइले ।४०९। सुबर्णर थालि सुबर्णर गिनाझरि । हातधूआ पादधूआ सुसज्जित करि ।४१०। मणोहि करिबा बिधि जेमन्त भिआण । सुबर्णर पीठ तहिँ कलेक निर्माण ।४११। महालक्ष्मी कहुछन्ति दासी मुख चाहिँ । बेग प्रभुंकु लो घेनिआस जाइ ।४१२। एहा शुणि दासीमाने बेगे चलिगले । ब्राह्मणंक पाशे जाइ प्रबेश होइले ।४१३। बिनय़रे कहुछन्ति ब्राह्मण गोसाइँ । भोजन करिब चाल स्थान अछि होइ ।४१४। बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्नाइ । नारीए जणे पुरुष केहि एथि नाहिँ ।४१५। भितरकु जिबा आम्भ उचित नुहँइ । पत्र दुइखण्ड तुम्भे आण बेगे जाइ ।४१६। जगन्नाथ कहुछन्ति शुण भाइ तुम्भे । ए घरर कर्त्ता आज होइबा जे आम्भे ।४१७। किम्पा तुम्भे भय़ करुअछ ज्य़ेष्ठ भाइ । दाता देउअछि आम्भे छाड़िबा कम्पाइ ।४१८। भय़े बलराम से ठाबरु न उठन्ति । हस्त धरि घेनिगले कमलांक पति ।४१९। ठाब सञ्चारे जे बलराम न बसन्ति । हस्त धरि बसाइले देब शिरीपति ।४२०। कमलिनी कहुछन्ति तुलसी ब्राह्मणी । देढ़शूर अटन्ति जे मोर हलपाणि ।४२१। ताहाङ्कु केमन्ते अन्न मुहिँ देबि नेइ । भितरे थाइण मुँ जे देबइँ बढ़ाइ ।४२२। सान किए बोलि आग पचारिबु जाइ । बड़ठारे आग अन्न परशिबु नेइ ।४२३। अन्नथालि नेइ आग ब्राह्मणी अइला । बड़ सान केउँ पण्डा बोलि पचारिला ।४२४। बलराम बोलुछन्ति होइलुकि काणी । बड़ सान किए तोते न दिशइ पुणि ।४२५। आम्भे बड़ बोलिण जे बलराम कहि । ब्राह्मणी बोइले कोप कल कि गोसाइँ ।४२६। प्रथम थालिर अन्न बलरामे देला । भितरकु आउ अन्न आणिबाकु गला ।४२७। आउ एक थालि अन्न आणिला बेलकु । चारि ग्रासरे बलराम खाइले ताहाकु ।४२८। अन्न थालि घेनि करि ब्राह्मणी अइला । ए पण्डार अन्नजाक किए घेनिगला ।४२९। बलराम बोइले क्षुधार्त्त होइथिलु । आग करि चारि ग्रास बेगे खाइदेलु ।४३०। हसिला ब्राह्मणी दुइभाइंकु अनाइ । कुटुम्भ मारिबा प्राय़ दिशुछ गोसाइँ ।४३१। पुत्र भारिजाकि तुम्भ दुहिङ्कर नाहिँ । पेट लागि बुलुअछ देश देश होइ ।४३२। सहस्र कान्दि कदली रखिदेले नेइ । षाठिए नउति पणा रखिदेले थोइइ ।४३३। जेउँपरि प्रभुंकर मनकु रुचइ । सेहिपरि कमलिनी दिअन्ति पठाइ ।४३४। भोजान शेषकु जे कहन्ति बलराम । लक्ष्मींक रान्धणा परि लागुछि उत्तम ।४३५। जगन्नाथ कहुछन्ति बलराम भाइ । लक्ष्मीपरा भार्याकु पाइबा आउ काहिँ ।४३६। लक्ष्मींकु भर्त्सना करि देले घउड़ाइ । बाहारि गले से तांक इच्छा हेला नाहिँ ।४३७। एमन्त समय़े पोड़पिठा देले नेइ । जगन्नाथ कहुछन्ति बलराम भाइ ।४३८। मोर मन कथाकु जे लक्ष्मी जाणिथाइ । भोजन शेषकु पोड़पिठाए दिअइ ।४३९। भोजन सारिण प्रभु आचमन कले । कर्पुर ताम्बूल दुइ भाइ जे भुञ्जिले ।४४०। बाहार मेलारे जाइ प्रभु बिजेकले जाइँ । गबाक्ष द्वाररे लक्ष्मी अछन्ति अनाइ ।४४१। पचार पचार दासी पचारलो जाइ । बिभा होइ अछन्ति कि पण्डा दुइ भाइ ।४४२। एहा शुणि दासीमाने बेगे चलिगले । ब्राह्मणंक निकटरे प्रबेश होइले ।४४३। पुत्र भार्या अछन्ति कि काहिँ तुम्भ घर । केउँ राज्य़े बाड़ि बृत्ति शासन तुम्भर ।४४४। जगन्नाथ कहुछन्ति शुण दासी तुहि । बिबाह हेबाकु द्रव्य आम्भर जे नाहिँ ।४४५। गुआ बाड़ि शासन पाइबु आम्भे काहिँ । लक्ष्मी परा भार्याकु जे देलु घउड़ाइ ।४४६। कपाल मन्दा आम्भर दुइ भाइ बुलु । लक्ष्मी घउड़ाइ आम्भे ए दुःख पाइलु ।४४७। दासीए बोइले पण्डा होइल कि बाइ । नारीकि छाड़ि पुरुष दरिद्र कि होइ ।४४८। गोविन्द बोलन्ति आम्भे कहुअछु शुण । केउँ नारी थिले हुए ऐश्वर्य बर्द्धन ।४४८। केउँ नारी थिले बंश निपात हुअइ । केउँ नारी थिले बासि पेज न मिलइ ।४४९। केउँ नारी थिले सुना बला जे मिलइ । केउँ नारी अलक्षणी घररे भाङ्गइ ।४५०। तुम्भ साआन्ताणींकु जे पचार बोलइ । दासी कहे बातुल कि होइल गोसाइँ ।४५१। क्षुधा लागुथिला एबे भात जे खाइल । आम्भ साआन्ताणिङ्कु जे पचार बोइल ।४५२। बलराम बोइले ए मोर पिला भाइ । तुम्भ साआन्ताणी आगे जणाइब नाहिँ ।४५३। जगन्नाथ कहुछन्ति भय़ काहिँपाइँ । किछि न बिचार आहे बलराम भाइ ।४५४। लक्ष्मींकर गृह सिना अटइ जे एहि । एठारे आपण भय़ कर किस पाइँ ।४५५। बलराम बोलुछन्ति बाबु चक्रधर । तुम्भे जाइँ हस्तधरि महालक्ष्मींकर ।४५६। आम्भ दोष कलु बोलि कह तांकु जाइ । जहिँ इच्छा तहिँ रह आम्भ मना नाहिँ ।४५७। जेतेबेले बलराम एमन्त कहिले । भितर पुरकु प्रभु निजे बिजे कले ।४५८। धीरे धीरे भितरकु गले पीतबास । प्रबेश होइले जाइ कमलांक पाश ।४५९। पाणिझरि घेनिकरि कमला अइले । दरहासे प्रभुंकर मुखकु चाहिँले ।४६०। अति यतनरे देले पादपद्म धोइ । थोपाए पाद उदक मस्तके लगाइ ।४६१। किछि पादोदक लक्ष्मी गर्भकु खेपिले । पञ्चबर्ण पुष्पे पादपद्म पूजाकले ।४६२। महालक्ष्मी कहुछन्ति प्रभुंकु अनाइ । चण्डालुणी बोलि मोते देल घउड़ाइ ।४६३। चण्डालुणी घरे एबे भुञ्जिल गोसाइँ । चण्डाल बिटाल हेल दुइगोटि भाइ ।४६४। धिक तुम बड़पण धिक तुम कथा । पोड़ु तुम्भर प्रतिज्ञा धिक तुम्भ भ्राता ।४६५। महालक्ष्मी ए प्रकारे बहु धिकारिला । कालीय़ गञ्जन शुणि किछि न कहिले ।४६६। महामय़ी बोइले हे शुण मो बचन । मोर किस कार्य तुम्भे कह हे बहन ।४६७। किछि क्षण उत्तारे बोइले जगन्नाथ । एबे मनु मान तेज जगतर मात ।४६८। अकारणे एते कथा कह प्राणसहि । आम्भर प्रार्थना आम्भ सङ्गे जिबापाइँ ।४६९। बड़ हेले किस हेला गरब गञ्जिल । रबि तले सबु युगे यश रखिगल ।४७०। तुम्भ योगे आम्भे कष्ट पाइलु बहुत । आम्भे भिक्षा मागिबार जाणिले जगत ।४७१। तुम्भ यश किर्त्ती एबे जगते रहिला । आम्भंकु अन्न देबार जगत शुणिला ।४७२। गुरुवार दिन ए पुराण जे शुणिब । जन्म जन्मान्तर पाप तार क्षय़ हेब ।४७३। लक्ष्मीपूजा दिन एहा जे नारी गाइब । इह जन्मे पतिब्रता बैकुण्ठकु जिब ।४७४। यद्यपि नारीकु केहि मुखे बुझाइब । ताहार सुकृत आउ के कहि पारिब ।४७५। एते कहि गोविन्द धइले लक्ष्मी हस्त । जगत मात कहिले कर तुम्भे सत्य़ ।४७६। चण्डालु ब्राह्मण जाए खुआखोइ हेबे । समस्ते खाइण हस्त जले न धोइबे ।४७७। हाड़िर हस्तु ब्राह्मण छड़ाइ खाइबे । ब्राह्मणे खाइ हस्तकु मुण्डरे पोछिबे ।४७८। अन्न खाइ सर्बे मुण्डे पोछुथिबे हस्त । तेबे बड़ देउलकु जिबि जगन्नाथ ।४७९। हेउ हेउ बोलि आज्ञा देले महाबाहु । युगे युगे लक्ष्मी गो तुम्भर यश रहु ।४८०। लक्ष्मींक हस्त धरिण जगन्नाथ नेले । बड़ देउलकु प्रभु बिजे करिगले ।४८१। लक्षे चन्द्र उदिआजे छामुरे जलइ । देउलकु बिजे कले ब्रह्माण्ड गोसाइँ ।४८२। इन्द्र डाकुछन्ति देब मणिमा मणिमा । ब्रह्मा डाकुछन्त देब गुहारि शुणिमा ।४८३। बरुण कुबेर जे हस्तरे बेत धरि । नृत्य करुथिले जहिँ स्वर्ग अपशरि ।४८४। रम्भा जे मेनका आदि आउ चित्रलेखा । तुलसी मालति आउ अन्य़ान्य़ रसिका ।४८५। चञ्चला जे मदालसी आबर सुशीला । नृत्य आरम्भन्ति तुष्ट होइ से अबला ।४८६। बलराम कहुछन्ति शुणरे कह्ना इ । घरकु घरणी सिना सुन्दर दिशइ ।४८७। जेतेबेले दाण्डे जाउथिलु दुइ भाइ । चोर खण्ट बोलि देउथिले घउड़ाइ ।४८८। आहुरि कथाए शुण जगन्नाथ भाइ । लक्ष्मी एते बड़ बोलि एबे जाणिलइँ ।४८९। लक्ष्मी देबी बिजे कले तांक देउलकु । दुइ भाइ बिजे कले तांक देउलकु ।४९०। दासी परचारि आदिकरि जेते थिले । लक्ष्मी आसिलारु से समस्त जे अइले ।४९१। लक्ष्मींकु पाइण देब गोविन्द आनन्द । संसाररे सेहि मते कलेक गोविन्द ।४९२। शुणिले नारद एहि पुरातन आख्य़ा । जाहा प्रसन्नरे प्रभु मागिले जे भिक्षा ।४९३। छार चण्डालुणी अइश्वर्य भोग कला । लक्ष्मींकर सुदय़ारे एमन्त होइला ।४९४। ए पुराण पढ़िले जे सर्ब सिद्धि हुए । सूर्योदय सम तम पाप क्षय़ हुए ।४९५। ए पुराण जेउँमाने पढ़न्ति शुणन्ति । लक्षे कोटि गोदानर फल जे लभन्ति ।४९६। ए पुराण अटइ जे मुकतिर पथ । एहा फल कथनरे के हेब समर्थ ।४९७। लक्ष्मींक पुराण एहु समाप्त होइला । भाबे बलराम दास गीतरे कहिला ।४९८।
- ॥ इति श्री लक्ष्मी पुराण समाप्त ॥:
बळराम > बलराम चाउळ > चाउल कमळा >कमला कदळी> कदली कमळाङ्क, कदळीरे, येउँ अलंकार, बंचित, अंगार, मंडल