"आचार्य महाप्रज्ञ": अवतरणों में अंतर

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उनकी बहुत पुस्तकें और लेख उनके पूर्व नाम मुनि नथमल के नाम से प्रकाशित हुई।
उनकी बहुत पुस्तकें और लेख उनके पूर्व नाम मुनि नथमल के नाम से प्रकाशित हुई।


उन्होंने दस वर्ष की आयु में जैन संन्यासी के रूप में विकास और धार्मिक प्रतिबिंब का जीवन आरम्भ किया।<ref>{{cite web|url=http://www.terapanthinfo.com/AcharyaMahapragya/AGreatSaint/tabid/215/language/en-US/Default.aspx|title=TRANSFORMATION FROM NATHMAL TO ACHARYA MAHAPRAGYA|publisher=Terapanth Secretariat|accessdate=2010-07-10|archive-url=https://web.archive.org/web/20100824182839/http://www.terapanthinfo.com/AcharyaMahapragya/AGreatSaint/tabid/215/language/en-US/Default.aspx|archive-date=24 अगस्त 2010|url-status=dead}}</ref> महाप्रज्ञ ने अनुव्रत आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई जो [[गुरु]] [[आचार्य तुलसी]] ने 1949 में आरम्भ किया था और 1995 के आंदोलन में स्वीकृत अधिनायक बन गए।<ref>{{cite web|url=http://www.terapanthinfo.com/AcharyaMahapragya/AGreatSaint/tabid/215/language/en-US/Default.aspx|title=Anuvrat Global Prospective|publisher=Terapanth Secretariat|accessdate=2010-07-10|archive-url=https://web.archive.org/web/20100824182839/http://www.terapanthinfo.com/AcharyaMahapragya/AGreatSaint/tabid/215/language/en-US/Default.aspx|archive-date=24 अगस्त 2010|url-status=dead}}</ref> आचार्य महाप्रज्ञ ने 1970 के दशक में अच्छी तरह से नियमबद्ध प्रेक्षा ध्यान तैयार किया<ref name="Jain Vishva Bharati">{{cite book|first=Acharya Mahapragya|title=Praksha Dhyaan: Theory and Practice|publisher=Jain Vishva Bharati|chapter=Publisher note by Shankar Mehta}}</ref> और शिक्षा प्रणाली में "जीवन विज्ञान" का विकास किया जो छात्रों के संतुलित विकास और उसका चरित्र निर्माण के लिए प्रयोगिक पहुँच है।<ref>{{cite web|url=http://www.terapanthinfo.com/AcharyaMahapragya/AGreatSaint/tabid/215/language/en-US/Default.aspx|title=Jeevan Vigyan|publisher=Terapanth Secretariat|accessdate=2010-07-10|archive-url=https://web.archive.org/web/20100824182839/http://www.terapanthinfo.com/AcharyaMahapragya/AGreatSaint/tabid/215/language/en-US/Default.aspx|archive-date=24 अगस्त 2010|url-status=dead}}</ref>
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== जीवन ==
== जीवन ==

22:50, 13 जनवरी 2021 का अवतरण

आचार्य महाप्रज्ञ
नाम (आधिकारिक) आचार्य महाप्रज्ञ
व्यक्तिगत जानकारी
जन्म 14 जून 1920
टमकोर, राजस्थान, भारत
निर्वाण 9 मई 2010(2010-05-09) (उम्र 89)
सरदारशहर, राजस्थान, भारत
माता-पिता तोला राम चोरड़िया और बालुजी
शुरूआत
नव सम्बोधन महाप्रज्ञ
दीक्षा के बाद
पद आचार्य
पूर्ववर्ती आचार्य तुलसी
परवर्ती आचार्य महाश्रमण

आचार्य श्री महाप्रज्ञ (14 जून 1920 – 9 मई 2010) जैन धर्म के श्वेतांबर तेरापंथ के दसवें संत थे।[1] महाप्रज्ञ एक संत, योगी, आध्यात्मिक, दार्शनिक, अधिनायक, लेखक, वक्ता और कवि थे।[2] उनकी बहुत पुस्तकें और लेख उनके पूर्व नाम मुनि नथमल के नाम से प्रकाशित हुई।

उन्होंने दस वर्ष की आयु में जैन संन्यासी के रूप में विकास और धार्मिक प्रतिबिंब का जीवन आरम्भ किया।[3] महाप्रज्ञ ने अनुव्रत आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई जो गुरु आचार्य तुलसी ने 1949 में आरम्भ किया था और 1995 के आंदोलन में स्वीकृत अधिनायक बन गए।[4] आचार्य महाप्रज्ञ ने 1970 के दशक में अच्छी तरह से नियमबद्ध प्रेक्षा ध्यान तैयार किया[5] और शिक्षा प्रणाली में "जीवन विज्ञान" का विकास किया जो छात्रों के संतुलित विकास और उसका चरित्र निर्माण के लिए प्रयोगिक पहुँच है।[6]

जीवन

आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म हिन्दू तिथि के अनुसार विक्रम संवत 1977, आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी को राजस्थान के टमकोर नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम तोलाराम तथा माता का नाम बालू था। आचार्य महाप्रज्ञ का बचपन का नाम नथमल था। उनके बचपन में पिता का देहांत हो गया था। माँ बालू ने उनका पालन-पोषण किया। उनकी माँ धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। इस कारण उन्हें बचपन से ही धार्मिक संस्कार मिले थे।

विक्रम संवत 1987, माघ शुक्ल की दशमी (29 जनवरी 1931) को उन्होंने दस वर्ष की आयु में अपनी माता के साथ तेरापंथ के आचार्य कालूगणी से दीक्षा ग्रहण की।

आचार्य कालूगणी की आज्ञा से मुनि तुलसी जो आगे चल कर आचार्य कालूगणी के बाद तेरापंथ के नौवें आचार्य बने, के मार्गदर्शन में दर्शन, न्याय, व्याकरण, मनोविज्ञान, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि का तथा जैन आगम, बौद्ध ग्रंथों, वैदिक ग्रंथों तथा प्राचीन शास्त्रों का गहन अध्ययन किया था। वे संस्कृत भाषा के आशु कवि थे।

आचार्यश्री तुलसी ने महाप्रज्ञ (तब मुनि नथमल) को पहले अग्रगण्य एवं विक्रम संवत 2022 माद्य शुक्ला सप्तमी (ईस्वी सन् 1965) को हिंसार में निकाय सचिव नियुक्त किया। आगे चल कर उनकी प्रज्ञा से प्रभावित होकर आचार्य तुलसी ने उन्हें महाप्रज्ञ की उपाधि से अंलकृत किया। तब से उन्हें महाप्रज्ञ के नाम से जाना जाने लगा।

विक्रम संवत 2035 राजलदेसर (राजस्थान) मर्यादा महोत्सव के अवसर पर आचार्यश्री तुलसी ने विक्रम संवत 2035 को राजस्थान के राजलदेसर में उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। और महाप्रज्ञ युवाचार्य महाप्रज्ञ हो गए।

विक्रम संवत 2050 में राजस्थान के सुजानगढ़ में आचार्य तुलसी ने अपने आचार्य पद का विर्सजन कर दिया और युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य नियुक्त किया। और वे तेरापंथ के दसवें आचार्य बने।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Chapple, Christopher Key (2007). "4 Jainism and Buddhism". प्रकाशित Dale Jamieson (संपा॰). A Companion to Environmental Philosophy. Blackwell Companions to Philosophy. Blackwell Publishing. पृ॰ 54. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-4051-0659-X. मूल से 11 अक्तूबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-01-25.
  2. "A great saint". Terapanth Secretariat. मूल से 24 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-07-10.
  3. "TRANSFORMATION FROM NATHMAL TO ACHARYA MAHAPRAGYA". Terapanth Secretariat. मूल से 24 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-07-10.
  4. "Anuvrat Global Prospective". Terapanth Secretariat. मूल से 24 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-07-10.
  5. "Publisher note by Shankar Mehta". Praksha Dhyaan: Theory and Practice. Jain Vishva Bharati. |firstlast= missing |lastlast= in first (मदद)
  6. "Jeevan Vigyan". Terapanth Secretariat. मूल से 24 अगस्त 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2010-07-10.

बाहरी कड़ियाँ