"पुद्गल": अवतरणों में अंतर

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[[जैन दर्शन]] के अनुसार स्थूल भौतिक पदार्थ '''पुद्गल''' कहलाता है क्योंकि यह अणुओं के संयोग और वियोग का खेल है। पुद्घाल में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण होते है। ये उसके विशेष गुण है। जहा इनमें से कोई एक भी गुण होगा वहा नियम से बाकी तीनों गुण होगे ही। जो रीपी है दिखता है वो पुधाल है। सारी दुनिया पुद्गल के पीछे भागते हुए उसे अपना बनाने में लगी है जब की वो जुड़ता (पुद) और बिछड़ता (गल) रहेगा।
[[जैन दर्शन]] के अनुसार स्थूल भौतिक पदार्थ '''पुद्गल''' कहलाता है क्योंकि यह अणुओं के संयोग और वियोग का खेल है। पुद्घाल में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण होते है। ये उसके विशेष गुण है। जहा इनमें से कोई एक भी गुण होगा वहा नियम से बाकी तीनों गुण होगे ही। जो रूपी है दिखता है वो पुद्गल है। सारी दुनिया पुद्गल के पीछे भागते हुए उसे अपना बनाने में लगी है जब की वो जुड़ता (पुद) और बिछड़ता (गल) रहेगा।इसके स्पर्श गुण की ८ पर्याय है हल्का,भारी, रूखा,चकना, कड़ा,नरम,ठंडा,गरम। इसके रस गुण की ५ पर्याय है खट्टा,मीठा, कशयला,चरपरा, कड़वा। इसके गंध गुण की २ पर्याय है सुगंध,दुर्गन्ध। इसके वर्ण गुण की ५ काला,पीला,नीला,लाल, सफ़ेद। हवा प्रकाश परछाई भी पुदगल है इनमें भी ये चारो गुण मौजूद है।


==व्युत्पत्ति==
==व्युत्पत्ति==

10:21, 7 जनवरी 2021 का अवतरण

जैन दर्शन के अनुसार स्थूल भौतिक पदार्थ पुद्गल कहलाता है क्योंकि यह अणुओं के संयोग और वियोग का खेल है। पुद्घाल में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण होते है। ये उसके विशेष गुण है। जहा इनमें से कोई एक भी गुण होगा वहा नियम से बाकी तीनों गुण होगे ही। जो रूपी है दिखता है वो पुद्गल है। सारी दुनिया पुद्गल के पीछे भागते हुए उसे अपना बनाने में लगी है जब की वो जुड़ता (पुद) और बिछड़ता (गल) रहेगा।इसके स्पर्श गुण की ८ पर्याय है हल्का,भारी, रूखा,चकना, कड़ा,नरम,ठंडा,गरम। इसके रस गुण की ५ पर्याय है खट्टा,मीठा, कशयला,चरपरा, कड़वा। इसके गंध गुण की २ पर्याय है सुगंध,दुर्गन्ध। इसके वर्ण गुण की ५ काला,पीला,नीला,लाल, सफ़ेद। हवा प्रकाश परछाई भी पुदगल है इनमें भी ये चारो गुण मौजूद है।

व्युत्पत्ति

पुद्गल शब्द की रचना दो अंगों से हुई हैं।

दूरयंति गलंति च

इसका संस्कृत एवं पाकृत में अर्थ हैं - "जो उत्पन्न होता हैं और गल जाता हैं"। आंशिक रूप से अंग्रेजी में पुद्गल को मैटर कहा जा सकता हैं, पर पाश्चात्य विज्ञान और जैन दर्शन में अणु की परिभाषा में भेद हैं, जिससे पुद्गल का भी मैटर कहा जाना संदिग्ध हैं।

प्रकृति

पुद्गल के पाँच गुण हैं - स्पर्श, दर्शन, रस, श्रवण और गंध। ततः, पुद्गल या तो छुआ जा सकता हैं या देखा जा सकता हैं या चखा जा सकता हैं या सुना जा सकता हैं या सूँघा जा सकता हैं। पुद्गल में इन में से एक या एक से अधिक गुण हो सकते हैं। पुद्गल का धर्म बनना और बिगड़ना हैं, अतः, पुद्गल को पूर्णतः नष्ट करना असंभव हैं। पुद्गल केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित हो सकता हैं। आत्मा और पुद्गल के मेल से, संसार चलायमान हैं।

जैन दर्शन

जैन दर्शन के अनुसार, पुद्गल एक अजीव तत्व हैं। वह चेतना रहित हैं। जब तक आत्मा पुद्गल से लिप्त हैं, तब तक वह संसार के जन्म-मरण के द्वंद्व में बंधी हुई हैं। पुद्गल से अलिप्त होने पर ही, आत्मा की मुक्ति संभव हैं।।

ये भी देखें