"ब्राह्मण": अवतरणों में अंतर

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: ''जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैः द्विज उच्यते।''
: ''जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैः द्विज उच्यते।''
:''विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय लक्षणम्।।''
:''विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रियलक्षणम्।।''


अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है।
अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है।

04:52, 28 नवम्बर 2020 का अवतरण

ब्राह्मण पुजारी
एक ब्राह्मण जप करता हुआ
म्यांमार
इंडोनेशिया
19 वीं सदी का भारत

ब्राह्मण, हिन्दू वर्ण व्‍यवस्‍था का एक वर्ण है। यास्क मुनि की निरुक्त के अनुसार, ब्रह्मं जानाति ब्राह्मणः अर्थात् ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है "ईश्वर का ज्ञाता"। यद्यपि भारतीय जनसंख्या में ब्राह्मणों का प्रतिशत कम है, तथापि धर्म, संस्कॄति, कला तथा शिक्षा के क्षेत्र में इनका योगदान अपरिमित है।

इतिहास

ब्राह्मण समाज का इतिहास भारत के वैदिक धर्म से आरम्भ होता है। वास्तव में ब्राह्मण कोई जाति विशेष ना होकर एक वर्ण है, इस वर्ण में सभी जातियों के लोग ब्राह्मण होते थे। भारत का मुख्य आधार ही ब्राह्मणों से शुरू होता है।

धार्मिक व सांस्कॄतिक रीतियों एवं व्यवहार में विवधताओं के कारण और विभिन्न वैदिक विद्यालयों के उनके संबन्ध के चलते, आचार्य ही ब्राह्मण हैं। सूत्र काल में प्रतिष्ठित विद्वानों के नेतॄत्व में, एक ही वेद की विभिन्न नामों की पृथक-पृथक शाखाएं बनने लगीं। इन प्रतिष्ठित ऋषियों की शिक्षाओं को सूत्र कहा जाता है। प्रत्येक वेद का अपना सूत्र है। सामाजिक, नैतिक तथा शास्त्रानुकूल नियमों वाले सूत्रों को धर्म सूत्र कहते हैं, आनुष्ठानिक वालों को श्रौत सूत्र तथा घरेलू विधिशास्त्रों की व्याख्या करने वालों को गृह्यसूत्र कहा जाता है। सूत्र सामान्यतः पद्य या मिश्रित गद्य-पद्य में लिखे हुए हैं।

ब्राह्मण शास्त्रज्ञों में प्रमुख हैं आंगिरस, आपस्तम्भ, अत्रि, बॄहस्पति, बौधायन, दक्ष, गौतम, वत्स, हारीत, कात्यायन, लिखित, पाराशर, संवर्त, शंख, शातातप, ऊषानस, वशिष्ठ, विष्णु, व्यास, याज्ञवल्क्य तथा यम। ये इक्कीस ऋषि स्मृतियों के रचयिता थे। स्मृतियों में सबसे प्राचीन हैं आपस्तम्भ, बौधायन, गौतम तथा वशिष्ठ।

ब्राह्मण निर्धारण - जन्म या कर्म से

ब्राह्मण का निर्धारण माता-पिता की जाती के आधार पर ही होने लगा है। स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा द्वारा नारद को यज्ञोपवीत के आध्यात्मिक अर्थ में बताया गया है,

जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैः द्विज उच्यते।
विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रियलक्षणम्।।

अतः आध्यात्मिक दृष्टि से यज्ञोपवीत के बिना जन्म से ब्राह्मण भी शुद्र के समान ही होता है।

ब्राह्मण का व्यवहार

ब्राह्मण

ब्राह्मण मांस शराब का सेवन जो धर्म के विरुद्ध हो वो काम नहीं करते हैं। ब्राह्मण सनातन धर्म के नियमों का पालन करते हैं। जैसे वेदों का आज्ञापालन, यह विश्वास कि मोक्ष तथा अन्तिम सत्य की प्राप्ति के अनेक माध्यम हैं, यह कि ईश्वर एक है किन्तु उनके गुणगान तथा पूजन हेतु अनगिनत नाम तथा स्वरूप हैं जिनका कारण है हमारे अनुभव, संस्कॄति तथा भाषाओं में विविधताएं। ब्राह्मण सर्वेजनासुखिनो भवन्तु (सभी जन सुखी तथा समॄद्ध हों) एवं वसुधैव कुटुम्बकम (सारी वसुधा एक परिवार है) में विश्वास रखते हैं। सामान्यत: ब्राह्मण केवल शाकाहारी होते हैं (बंगाली, उड़िया, कश्मीरी पंडित तथा कुछ अन्य ब्राह्मण) इसके अपवाद हैं।

दिनचर्या

हिन्दू ब्राह्मण अपनी धारणाओं से अधिक धर्माचरण को महत्व देते हैं। यह धार्मिक पन्थों की विशेषता है। धर्माचरण में मुख्यतः है यज्ञ करना। दिनचर्या इस प्रकार है - स्नान, सन्ध्यावन्दनम्, जप, उपासना, तथा अग्निहोत्र। अन्तिम दो यज्ञ अब केवल कुछ ही परिवारों में होते हैं। ब्रह्मचारी अग्निहोत्र यज्ञ के स्थान पर अग्निकार्यम् करते हैं। अन्य रीतियां हैं अमावस्य तर्पण तथा श्राद्ध

देखें : नित्य कर्म तथा काम्य कर्म

संस्कार

मुख्य लेख : संस्कार

ब्राह्मण अपने जीवनकाल में सोलह प्रमुख संस्कार करते हैं। जन्म से पूर्व गर्भधारण, पुन्सवन (गर्भ में नर बालक को ईश्वर को समर्पित करना), सीमन्तोन्नयन संस्कार। बाल्यकाल में जातकर्म (जन्मानुष्ठान), नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्ण, कर्णवेध। बालक के शिक्षण-काल में विद्यारम्भ, उपनयन अर्थात यज्ञोपवीत्, वेदारम्भ, केशान्त अथवा गोदान, तथा समवर्तनम् या स्नान (शिक्षा-काल का अन्त)। वयस्क होने पर विवाह तथा मृत्यु पश्चात अन्त्येष्टि प्रमुख संस्कार हैं।

सम्प्रदाय

दक्षिण भारत में ब्राह्मणों के तीन सम्प्रदाय हैं -स्मार्त सम्प्रदाय, श्रीवैष्णव सम्प्रदाय तथा माधव सम्प्रदाय

ब्राह्मणों की श्रेणियां

ब्राह्मणों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विभिन्न उपनामों से जाना जाता है, जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश में,भट्ट, दीक्षित, शुक्ल, द्विवेदी त्रिवेदी, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल में उप्रेती, दिल्ली, हरियाणा व राजस्थान के कुछ भागों में खाण्डल विप्र, ऋषीश्वर, वशिष्ठ, कौशिक, भारद्वाज, सनाढ्य ब्राह्मण, अवध (मध्य उत्तर प्रदेश) तथा मध्यप्रदेश के बुन्देलखंड से निकले जिझौतिया ब्राह्मण, रम पाल,पश्चिम उत्तर प्रदेश त्यागी और पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, भूमिहार ब्राह्मण , राजस्थान, मध्यप्रदेश व बाजपेयी, जम्मू कश्मीर, पंजाब व हरियाणा के कुछ भागों में महियाल, मध्य प्रदेश व राजस्थान में गालव, गुजरात में श्रीखण्ड,भातखण्डे अनाविल, महाराष्ट्र के महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण, मुख्य रूप से देशस्थ, कोंकणस्थ , दैवदन्या, देवरुखे और करहाड़े है. ब्राह्मणमें चितपावन एवं कार्वे, कर्नाटक में निषाद अयंगर एवं हेगडे, केरल में नम्बूदरीपाद, तमिलनाडु में अयंगर एवं अय्यर, आंध्र प्रदेश में नियोगी एवं राव, उड़ीसा में दास एवं मिश्र आदि तथा राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बिहार में शाकद्वीपीय (मग)कहीं उत्तर प्रदेश में जोशी जाति भी पायी जाती है। [1] आदि।

ब्राह्मणों के जाति वर्गीकरण के आधार पर ब्राह्मण जाति चार्ट

ब्राह्मणों में कई जातियां है। इससे मूल कार्य व स्थान का पता चलता है

  • सामवेदी: ये सामवेद गायन करने वाले लोग थे।
  • अग्निहोत्री: अग्नि में आहुति देने वाला,
  • त्रिवेदी: वे लोग जिन्हें तीन वेदों का ज्ञान था,
  • चतुर्वेदी: जिन्हें चारों वेदों का ज्ञान था,
  • वेदी: जिन्हें वेदी बनाने का ज्ञान था,
  • द्विवेदी:जिन्हें दो वेदों का ही ज्ञान था।

ब्राह्मणों की वर्तमान स्थिति

आधुनिक भारत के निर्माण के विभिन्न क्षेत्रों जैसे साहित्य, विज्ञान एवं प्रौद्यौगिकी, राजनीति, संस्कृति, पाण्डित्य, धर्म में ब्राह्मणों का अपरिमित योगदान है। प्रमुख क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता सेनानियों मे बाल गंगाधर तिलक, चंद्रशेखर आजाद इत्यादि हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 31 जनवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जनवरी 2016.

बाहरी कड़ियाँ