"भैरव": अवतरणों में अंतर

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{{स्रोतहीन|date=जून 2018}}{{Infobox deity <!--Wikipedia:WikiProject Hindu mythology-->|type=Hindu|name=भैरव({{IAST|bhairava}})|image=SFEC BritMus Asia 035.JPG|caption=ब्रिटिश संग्रहालय में रखी भैरव की प्रतिमा|alt=|Devanagari={{lang|sa|भैरव}}|Sanskrit_transliteration={{IAST|bhairava}}|Tamil_script=|affiliation=[[शिव]]|mantra=ॐ काल भैरवाय नमः|weapon=डंडा , [[त्रिशूल]]|consort=भैरवी|mount=कुत्ता|symbols=}}'''भैरव''' (शाब्दिक अर्थ- भयानक भैरव का अर्थ होता है - भय + रव = भैरव अर्थात् भय से रक्षा करनेवाला।) हिन्दुओं के एक देवता हैं जो [[शिव]] के रूप हैं। भैरवों की संख्या ५२ है। ये ५२ भैरव भी ८ भागों में विभक्त हैं।भैरव एक हिंदू देवता हैं जिन्हें हिंदुओं द्वारा पूजा जाता है। [[शैव|शैव धर्म]] में, वह [[शिव]] के विनाश से जुड़ा एक उग्र रूप है। [[कश्मीर शैवदर्शन|त्रिक]] प्रणाली में भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची, सर्वोच्च वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर [[हिन्दू धर्म|हिंदू धर्म]] में, भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है (जैसा कि वह पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी या डंडा रखते हैं) और स्वस्वा का अर्थ है "जिसका वाहन (सवारी) कुत्ता है"। [[वज्रयान|वज्रयान बौद्ध धर्म]] में, उन्हें [[बोधिसत्व]] मंजुश्री का एक उग्र वशीकरण माना जाता है और उन्हें हरुका, वज्रभैरव और यमंतक भी कहा जाता है।
{{स्रोतहीन|date=जून 2018}}{{Infobox deity <!--Wikipedia:WikiProject Hindu mythology-->|type=Hindu|name=भैरव({{IAST|bhairava}})|image=SFEC BritMus Asia 035.JPG|caption=ब्रिटिश संग्रहालय में रखी भैरव की प्रतिमा|alt=|Devanagari={{lang|sa|भैरव}}|Sanskrit_transliteration={{IAST|bhairava}}|Tamil_script=|affiliation=[[शिव]]|mantra=ॐ काल भैरवाय नमः|weapon=डंडा , [[त्रिशूल]]|consort=भैरवी|mount=कुत्ता|symbols=}}'''भैरव''' (शाब्दिक अर्थ- भयानक भैरव का अर्थ होता है - भय + रव = भैरव अर्थात् भय से रक्षा करनेवाला।) हिन्दुओं के एक देवता हैं जो [[शिव]] के रूप हैं। भैरवों की संख्या ५२ है। ये ५२ भैरव भी ८ भागों में विभक्त हैं। भैरव एक हिंदू देवता हैं जिन्हें हिंदुओं द्वारा पूजा जाता है। [[शैव|शैव धर्म]] में, वह [[शिव]] के विनाश से जुड़ा एक उग्र रूप है। [[कश्मीर शैवदर्शन|त्रिक]] प्रणाली में भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची, सर्वोच्च वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर [[हिन्दू धर्म|हिंदू धर्म]] में, भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है (जैसा कि वह पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी या डंडा रखते हैं) और स्वस्वा का अर्थ है "जिसका वाहन (सवारी) कुत्ता है"। [[वज्रयान|वज्रयान बौद्ध धर्म]] में, उन्हें [[बोधिसत्व]] मंजुश्री का एक उग्र वशीकरण माना जाता है और उन्हें हरुका, वज्रभैरव और यमंतक भी कहा जाता है।


वह पूरे [[भारत]], [[श्रीलंका]] और [[नेपाल]] के साथ-साथ [[तिब्बती बौद्ध धर्म]] में भी पूजे जाते हैं।<ref>{{Citation|title=Bhairava|date=2019-12-05|url=https://en.wikipedia.org/w/index.php?title=Bhairava&oldid=929332066|work=Wikipedia|language=en|access-date=2020-01-02}}</ref>[[हिन्दू]] और [[जैन धर्म|जैन]] दोनों भैरव की पूजा करते हैं।
वह पूरे [[भारत]], [[श्रीलंका]] और [[नेपाल]] के साथ-साथ [[तिब्बती बौद्ध धर्म]] में भी पूजे जाते हैं।<ref>{{Citation|title=Bhairava|date=2019-12-05|url=https://en.wikipedia.org/w/index.php?title=Bhairava&oldid=929332066|work=Wikipedia|language=en|access-date=2020-01-02}}</ref>[[हिन्दू]] और [[जैन धर्म|जैन]] दोनों भैरव की पूजा करते हैं।
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उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता हैं। उनको बलि दी जाती है और जहाँ कहीं यह प्रथा समाप्त हो गयी है वहाँ भी एक साथ बड़ी संख्या में नारियल फोड़ कर इस कृत्य को एक प्रतीक के रूप में सम्पन्न किया जाता है। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है।
उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता हैं। उनको बलि दी जाती है और जहाँ कहीं यह प्रथा समाप्त हो गयी है वहाँ भी एक साथ बड़ी संख्या में नारियल फोड़ कर इस कृत्य को एक प्रतीक के रूप में सम्पन्न किया जाता है। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है।


'''देवनारायण भगवान और भैरूजी महाराज का मंदिर पावटा(राजस्थान) से दक्षिण - पूर्व स्थित लगभग 15km दूर ग्राम पांचूडाला में किंवदंतियों के अनुसार सैकड़ों वर्षों से डूंगरी ऊपर स्थित है तथा ग्राम पंचायत पांचूडाला में स्थित कई हजारों वर्ष पुराना काला भैरू बाबा ( काल भैरव) का मंदिर स्थित है ।'''
'''देवनारायण भगवान और भैरूजी महाराज का मंदिर पावटा(राजस्थान) से दक्षिण - पूर्व स्थित लगभग 15 कि॰मी॰ दूर ग्राम पांचूडाला में किंवदंतियों के अनुसार सैकड़ों वर्षों से डूंगरी ऊपर स्थित है तथा ग्राम पंचायत पांचूडाला में स्थित कई हजारों वर्ष पुराना काला भैरू बाबा ( काल भैरव) का मंदिर स्थित है ।'''


[[हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत]] में एक [[राग]] का नाम इन्हीं के नाम पर भैरव रखा गया है।
[[हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत]] में एक [[राग]] का नाम इन्हीं के नाम पर भैरव रखा गया है।
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== कालभैरव की पूजा ==
== कालभैरव की पूजा ==
कालभैरव की पूजाप्राय: पूरे देश में होती है और अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग नामों से वह जाने-पहचाने जाते हैं। महाराष्ट्र में [[खंडोबा]] उन्हीं का एक रूप है और खण्डोबा की पूजा-अर्चना वहाँ ग्राम-ग्राम में की जाती है। दक्षिण भारत में भैरव का नाम शास्ता है। वैसे हर जगह एक भयदायी और उग्र देवता के रूप में ही उनको मान्यता मिली हुई है और उनकी अनेक प्रकार की मनौतियां भी स्थान-स्थान पर प्रचलित हैं। भूत, प्रेत, पिशाच, पूतना, कोटरा और रेवती आदि की गणना भगवान शिव के अन्यतम गणों में की जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो विविध रोगों और आपत्तियों विपत्तियों के वह अधिदेवता हैं। शिव प्रलय के देवता भी हैं, अत: विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके अपने सैनिक हैं। इन सब गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महाभैरव। सीधी भाषा में कहें तो भय वह सेनापति है जो बीमारी, विपत्ति और विनाश के पार्श्व में उनके संचालक के रूप में सर्वत्र ही उपस्थित दिखायी देता है।
कालभैरव की पूजाप्राय: पूरे देश में होती है और अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग नामों से वह जाने-पहचाने जाते हैं। महाराष्ट्र में [[खंडोबा]] उन्हीं का एक रूप है और खण्डोबा की पूजा-अर्चना वहाँ ग्राम-ग्राम में की जाती है। दक्षिण भारत में भैरव का नाम शास्ता है। वैसे हर जगह एक भयदायी और उग्र देवता के रूप में ही उनको मान्यता मिली हुई है और उनकी अनेक प्रकार की मनौतियाँ भी स्थान-स्थान पर प्रचलित हैं। भूत, प्रेत, पिशाच, पूतना, कोटरा और रेवती आदि की गणना भगवान शिव के अन्यतम गणों में की जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो विविध रोगों और आपत्तियों विपत्तियों के वह अधिदेवता हैं। शिव प्रलय के देवता भी हैं, अत: विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके अपने सैनिक हैं। इन सब गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महाभैरव। सीधी भाषा में कहें तो भय वह सेनापति है जो बीमारी, विपत्ति और विनाश के पार्श्व में उनके संचालक के रूप में सर्वत्र ही उपस्थित दिखायी देता है।


== प्राचीन ग्रंथों में भैरव ==
== प्राचीन ग्रंथों में भैरव ==
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कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया।
कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया।
ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं।
ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं।
ऐसा भी कहा जाता है की ,ब्रह्मा जी के पांच मुख हुआ करते थे तथा ब्रह्मा जी पांचवे वेद की भी रचना करने जा रहे थे,सभी देवो के कहने पर महाकाल भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप की परन्तु ना समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए और उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी की का पांचवा मुख काट दिया, इस पर भैरव को ब्रह्मा हत्या का पाप भी लगा,[[चित्र:Adityawarman.jpg|अंगूठाकार|१४वीं शताब्दी में निर्मित राजा [[आदित्यवर्मन]] की मूर्ति जो भैरव रूप में है। (इण्डोनेशिया राष्ट्रीय संग्रहालय)]]
ऐसा भी कहा जाता है की ,ब्रह्मा जी के पाँच मुख हुआ करते थे तथा ब्रह्मा जी पाँचवे वेद की भी रचना करने जा रहे थे,सभी देवो के कहने पर महाकाल भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप की परन्तु ना समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए और उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी की का पाँचवा मुख काट दिया, इस पर भैरव को ब्रह्मा हत्या का पाप भी लगा,[[चित्र:Adityawarman.jpg|अंगूठाकार|१४वीं शताब्दी में निर्मित राजा [[आदित्यवर्मन]] की मूर्ति जो भैरव रूप में है। (इण्डोनेशिया राष्ट्रीय संग्रहालय)]]
== भैरव उपासना की शाखाएं<ref>{{Cite web|url=http://himalayauk.org/baba-kal-bhairav/|title=रहस्यमयी और चमत्कारिक है-भगवान काल भैरव {{!}} Himalaya Gaurav|language=en-GB|access-date=2020-01-02|archive-url=https://web.archive.org/web/20180424235322/http://himalayauk.org/baba-kal-bhairav/|archive-date=24 अप्रैल 2018|url-status=dead}}</ref>==
== भैरव उपासना की शाखाएं<ref>{{Cite web|url=http://himalayauk.org/baba-kal-bhairav/|title=रहस्यमयी और चमत्कारिक है-भगवान काल भैरव {{!}} Himalaya Gaurav|language=en-GB|access-date=2020-01-02|archive-url=https://web.archive.org/web/20180424235322/http://himalayauk.org/baba-kal-bhairav/|archive-date=24 अप्रैल 2018|url-status=dead}}</ref>==


कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहां बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।
कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहाँ बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।


==== पुराणों में भैरव का उल्लेख ====
==== पुराणों में भैरव का उल्लेख ====
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ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना। श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है।
ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना। श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है।


जहां सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
जहाँ सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।


[[File:जयगढ़ में भैरव मंदिर.JPG|thumb|जयपुर के जयगढ़ किले में स्थित प्राचीन काल भैरव मंदिर|कड़ी=Special:FilePath/जयगढ़_में_भैरव_मंदिर.JPG]]
[[File:जयगढ़ में भैरव मंदिर.JPG|thumb|जयपुर के जयगढ़ किले में स्थित प्राचीन काल भैरव मंदिर|कड़ी=Special:FilePath/जयगढ़_में_भैरव_मंदिर.JPG]]
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=== भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर ===
=== भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर ===


भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर सर्वप्रमुख माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। उत्तराखंड चमोली जिला के सिरण गांव में भी भैरव गुफा काफी प्राचीन है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। [[जयगढ़ दुर्ग|जयगढ़]] के प्रसिद्ध किले में काल-भैरव का बड़ा प्राचीन मंदिर है जिसमें भूतपूर्व महाराजा जयपुर के ट्रस्ट की और से दैनिक पूजा-अर्चना के लिए पारंपरिक-पुजारी नियुक्त हैं। ।
भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर सर्वप्रमुख माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। उत्तराखंड चमोली जिला के सिरण गाँव में भी भैरव गुफा काफी प्राचीन है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। [[जयगढ़ दुर्ग|जयगढ़]] के प्रसिद्ध किले में काल-भैरव का बड़ा प्राचीन मंदिर है जिसमें भूतपूर्व महाराजा जयपुर के ट्रस्ट की और से दैनिक पूजा-अर्चना के लिए पारंपरिक-पुजारी नियुक्त हैं। ।


जयपुर जिले के  '''चाकसू'''  कस्बे मे भी प्रसिद बटुक भैरव मंदिर  हे  जो लगभग आठवी शताब्दी का बना हुआ  हे मान्यता हे की जब तक कस्बे के लोग बारिश ऋतु से पहले बटुक भैरव की पूजा नहीं करते तब तक कस्बे मे बारिश नहीं आती ।
जयपुर जिले के '''चाकसू''' कस्बे मे भी प्रसिद बटुक भैरव मंदिर हे जो लगभग आठवी शताब्दी का बना हुआ हे मान्यता हे की जब तक कस्बे के लोग बारिश ऋतु से पहले बटुक भैरव की पूजा नहीं करते तब तक कस्बे मे बारिश नहीं आती ।


मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम अदेगाव में भी श्री काल भैरव का मंदिर है जो किले के अंदर है जिसे गढ़ी ऊपर के नाम से जाना जाता है
मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम अदेगाव में भी श्री काल भैरव का मंदिर है जो किले के अंदर है जिसे गढ़ी ऊपर के नाम से जाना जाता है

13:20, 2 नवम्बर 2020 का अवतरण

भैरव(bhairava)

ब्रिटिश संग्रहालय में रखी भैरव की प्रतिमा
देवनागरी भैरव
संस्कृत लिप्यंतरण bhairava
संबंध शिव
मंत्र ॐ काल भैरवाय नमः
अस्त्र डंडा , त्रिशूल
जीवनसाथी भैरवी
सवारी कुत्ता

भैरव (शाब्दिक अर्थ- भयानक भैरव का अर्थ होता है - भय + रव = भैरव अर्थात् भय से रक्षा करनेवाला।) हिन्दुओं के एक देवता हैं जो शिव के रूप हैं। भैरवों की संख्या ५२ है। ये ५२ भैरव भी ८ भागों में विभक्त हैं। भैरव एक हिंदू देवता हैं जिन्हें हिंदुओं द्वारा पूजा जाता है। शैव धर्म में, वह शिव के विनाश से जुड़ा एक उग्र रूप है। त्रिक प्रणाली में भैरव परम ब्रह्म के पर्यायवाची, सर्वोच्च वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर हिंदू धर्म में, भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है (जैसा कि वह पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी या डंडा रखते हैं) और स्वस्वा का अर्थ है "जिसका वाहन (सवारी) कुत्ता है"। वज्रयान बौद्ध धर्म में, उन्हें बोधिसत्व मंजुश्री का एक उग्र वशीकरण माना जाता है और उन्हें हरुका, वज्रभैरव और यमंतक भी कहा जाता है।

वह पूरे भारत, श्रीलंका और नेपाल के साथ-साथ तिब्बती बौद्ध धर्म में भी पूजे जाते हैं।[1]हिन्दू और जैन दोनों भैरव की पूजा करते हैं।

भैरव

कोलतार से भी गहरा काला रंग, विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले डरावने चोगेनुमा वस्त्र, रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड और काले कुत्ते की सवारी - यह है महाभैरव, अर्थात् मृत्यु-भय के भारतीय देवता का बाहरी स्वरूप।

उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता हैं। उनको बलि दी जाती है और जहाँ कहीं यह प्रथा समाप्त हो गयी है वहाँ भी एक साथ बड़ी संख्या में नारियल फोड़ कर इस कृत्य को एक प्रतीक के रूप में सम्पन्न किया जाता है। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता हैं और तंत्रशास्त्र में उनकी आराधना को ही प्राधान्य प्राप्त है। तंत्र साधक का मुख्य लक्ष्य भैरव भाव से अपने को आत्मसात करना होता है।

देवनारायण भगवान और भैरूजी महाराज का मंदिर पावटा(राजस्थान) से दक्षिण - पूर्व स्थित लगभग 15 कि॰मी॰ दूर ग्राम पांचूडाला में किंवदंतियों के अनुसार सैकड़ों वर्षों से डूंगरी ऊपर स्थित है तथा ग्राम पंचायत पांचूडाला में स्थित कई हजारों वर्ष पुराना काला भैरू बाबा ( काल भैरव) का मंदिर स्थित है ।

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत में एक राग का नाम इन्हीं के नाम पर भैरव रखा गया है।

काठमांडू में आकाश भैरब।

कालभैरव की पूजा

कालभैरव की पूजाप्राय: पूरे देश में होती है और अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग नामों से वह जाने-पहचाने जाते हैं। महाराष्ट्र में खंडोबा उन्हीं का एक रूप है और खण्डोबा की पूजा-अर्चना वहाँ ग्राम-ग्राम में की जाती है। दक्षिण भारत में भैरव का नाम शास्ता है। वैसे हर जगह एक भयदायी और उग्र देवता के रूप में ही उनको मान्यता मिली हुई है और उनकी अनेक प्रकार की मनौतियाँ भी स्थान-स्थान पर प्रचलित हैं। भूत, प्रेत, पिशाच, पूतना, कोटरा और रेवती आदि की गणना भगवान शिव के अन्यतम गणों में की जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो विविध रोगों और आपत्तियों विपत्तियों के वह अधिदेवता हैं। शिव प्रलय के देवता भी हैं, अत: विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत और देवता उनके अपने सैनिक हैं। इन सब गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महाभैरव। सीधी भाषा में कहें तो भय वह सेनापति है जो बीमारी, विपत्ति और विनाश के पार्श्व में उनके संचालक के रूप में सर्वत्र ही उपस्थित दिखायी देता है।

प्राचीन ग्रंथों में भैरव

शिवपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी, अतः इस तिथि को काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य अपने कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार कर रहा था, यहाँ तक कि एक बार घमंड में चूर होकर वह भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा. तब उसके संहार के लिए शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई।

कुछ पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। यह सृष्टि के प्रारंभकाल की बात है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। स्रष्टा तो यह देख कर भय से चीख पड़े। शंकर द्वारा मध्यस्थता करने पर ही वह काया शांत हो सकी। रूद्र के शरीर से उत्पन्न उसी काया को महाभैरव का नाम मिला। बाद में शिव ने उसे अपनी पुरी, काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। ऐसा कहा गया है कि भगवान शंकर ने इसी अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था, इसलिए यह दिन भैरव अष्टमी व्रत के रूप में मनाया जाने लगा। भैरव अष्टमी 'काल' का स्मरण कराती है, इसलिए मृत्यु के भय के निवारण हेतु बहुत से लोग कालभैरव की उपासना करते हैं।

ऐसा भी कहा जाता है की ,ब्रह्मा जी के पाँच मुख हुआ करते थे तथा ब्रह्मा जी पाँचवे वेद की भी रचना करने जा रहे थे,सभी देवो के कहने पर महाकाल भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप की परन्तु ना समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव प्रकट हुए और उन्होंने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी की का पाँचवा मुख काट दिया, इस पर भैरव को ब्रह्मा हत्या का पाप भी लगा,

१४वीं शताब्दी में निर्मित राजा आदित्यवर्मन की मूर्ति जो भैरव रूप में है। (इण्डोनेशिया राष्ट्रीय संग्रहालय)

भैरव उपासना की शाखाएं[2]

कालान्तर में भैरव-उपासना की दो शाखाएं- बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। जहाँ बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप में विख्यात हैं वहीं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले प्रचण्ड दंडनायक के रूप में प्रसिद्ध हुए।

पुराणों में भैरव का उल्लेख

तंत्रशास्त्र में अष्ट-भैरव का उल्लेख है –

  1. असितांग-भैरव,
  2. रुद्र-भैरव,
  3. चंद्र-भैरव,
  4. क्रोध-भैरव,
  5. उन्मत्त-भैरव,
  6. कपाली-भैरव,
  7. भीषण-भैरव तथा
  8. संहार-भैरव।

कालिका पुराण में भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है जिसका वाहन कुत्ता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी

  1. महाभैरव,
  2. संहार भैरव,
  3. असितांग भैरव,
  4. रुद्र भैरव,
  5. कालभैरव
  6. क्रोध भैरव
  7. ताम्रचूड़ भैरव तथा
  8. चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का निर्देश है। इनकी पूजा करके मध्य में नवशक्तियों की पूजा करने का विधान बताया गया है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है -
भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥

भैरव साधना व ध्यान

ध्यान के बिना साधक मूक सदृश है, भैरव साधना में भी ध्यान की अपनी विशिष्ट महत्ता है। किसी भी देवता के ध्यान में केवल निर्विकल्प-भाव की उपासना को ही ध्यान नहीं कहा जा सकता। ध्यान का अर्थ है - उस देवी-देवता का संपूर्ण आकार एक क्षण में मानस-पटल पर प्रतिबिम्बित होना। श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में मिलता है।

जहाँ सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। ग्रंथों में लिखा है कि गृहस्थ को सदा भैरवजी के सात्विक ध्यान को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

चित्र:जयगढ़ में भैरव मंदिर.JPG
जयपुर के जयगढ़ किले में स्थित प्राचीन काल भैरव मंदिर

भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर

भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर सर्वप्रमुख माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है। नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है। यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है। उत्तराखंड चमोली जिला के सिरण गाँव में भी भैरव गुफा काफी प्राचीन है। इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है। जयगढ़ के प्रसिद्ध किले में काल-भैरव का बड़ा प्राचीन मंदिर है जिसमें भूतपूर्व महाराजा जयपुर के ट्रस्ट की और से दैनिक पूजा-अर्चना के लिए पारंपरिक-पुजारी नियुक्त हैं। ।

जयपुर जिले के चाकसू कस्बे मे भी प्रसिद बटुक भैरव मंदिर हे जो लगभग आठवी शताब्दी का बना हुआ हे मान्यता हे की जब तक कस्बे के लोग बारिश ऋतु से पहले बटुक भैरव की पूजा नहीं करते तब तक कस्बे मे बारिश नहीं आती ।

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम अदेगाव में भी श्री काल भैरव का मंदिर है जो किले के अंदर है जिसे गढ़ी ऊपर के नाम से जाना जाता है

कहते हैं औरंगजेब के शासन काल में जब काशी के भारत-विख्यात विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया, तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा था। जनश्रुतियों के अनुसार कालभैरव का मंदिर तोड़ने के लिये जब औरंगज़ेब के सैनिक वहाँ पहुँचे तो अचानक पागल कुत्तों का एक पूरा समूह कहीं से निकल पड़ा था। उन कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गये और फिर स्वयं अपने ही साथियों को उन्होंने काटना शुरू कर दिया। बादशाह को भी अपनी जान बचा कर भागने के लिये विवश हो जाना पड़ा। उसने अपने अंगरक्षकों द्वारा अपने ही सैनिक सिर्फ इसलिये मरवा दिये किं पागल होते सैनिकों का सिलसिला कहीं खु़द उसके पास तक न पहुँच जाए।

भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही प्रतीकवादी रही है और यहाँ की परम्परा में प्रत्येक पदार्थ तथा भाव के प्रतीक उपलब्ध हैं। यह प्रतीक उभयात्मक हैं - अर्थात स्थूल भी हैं और सूक्ष्म भी। सूक्ष्म भावनात्मक प्रतीक को ही कहा जाता है -देवता। चूँकि भय भी एक भाव है, अत: उसका भी प्रतीक है - उसका भी एक देवता है और उसी भय का हमारा देवता हैं- महाभैरवरेरर

सन्दर्भ सूची

  1. "Bhairava", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2019-12-05, अभिगमन तिथि 2020-01-02
  2. "रहस्यमयी और चमत्कारिक है-भगवान काल भैरव | Himalaya Gaurav" (अंग्रेज़ी में). मूल से 24 अप्रैल 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-01-02.

इन्हें भी देखें


बाहरी कड़ियाँ