"पपीता": अवतरणों में अंतर

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पपीते के पेड़ में तीन या चार साल तक ही अच्छे फल लगते हैं। आवश्यकतानुसार यदि तीसरे चौथे साल पपीते के दो पेड़ों के बीच बीच में नए पेड़ लगते रहें तो चौथे पाँचवें साल नए फलनेवाले पेड़ तैयार होते जाते हैं। नए पेड़ तैयार हो जाने पर पुराने पेड़ों को उखाड़ फेंकना चाहिए। इसकी मुख्य किस्में हनीड्यू (मधुविंदु), सिलोन, राँची आदि हैं।
पपीते के पेड़ में तीन या चार साल तक ही अच्छे फल लगते हैं। आवश्यकतानुसार यदि तीसरे चौथे साल पपीते के दो पेड़ों के बीच बीच में नए पेड़ लगते रहें तो चौथे पाँचवें साल नए फलनेवाले पेड़ तैयार होते जाते हैं। नए पेड़ तैयार हो जाने पर पुराने पेड़ों को उखाड़ फेंकना चाहिए। इसकी मुख्य किस्में हनीड्यू (मधुविंदु), सिलोन, राँची आदि हैं।
[https://web.archive.org/web/20170223104548/http://www.hindiayurveda.com/papaya-benefits-papita-ke-fayde-%E0%A4%AA%E0%A4%AA%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BE/ पपीता] खाने के अनेको लाभ है। य़ह बहुत ही उत्तम फल हैं
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पपीता का दुध पाचक, जंतुनाशक, उदररोगहारक होता है। इसके कारण कृमी नष्ट होते है। पाचन अच्छी तरह से होता है। इसके साथ ही पपीते के दूध में शक्कर लेने से अपचन नही होता है। कच्चे पपीते की सब्जी अथवा कोशिंबीर अपचन की परेशानी सहन करनेवालो के लिए वरदायी है। मलावरोध, आतड्यांची दुर्बलता तसेच उदाररोग व हृदयरोग यावर पपइचे सेवन करणे हितावह ठरते. पपइच्या रसामुळे अरुची दूर होते. आतड्यामध्ये पडून राहिलेल्या अन्नाचा नाश होतो. डोकेदुखी(अजीर्णामुळे) दूर होते. तसेच आंबट ढेकर येण बंद होते. खरुज व गजकर्ण यांवर पपइचा चीक लावल्यास फायदा होते. कच्चा पपईचा रस तोंडावर चोळून लावल्यास मुरुमे नाहीशी होतात. पपई पांढऱ्या पेशींची वाढ करणारी आहे. गरोदरावस्थेमध्ये स्त्रियांनी पपई खाणे टाळावे. पपई उष्ण असल्याने गरोदर स्त्रियांना त्याचा फार त्रास होतो.


==चित्रदीर्घा==
==चित्रदीर्घा==

14:38, 12 अक्टूबर 2020 का अवतरण

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पपीता
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: पादप
अश्रेणीत: Angiospermae
अश्रेणीत: Eudicots
अश्रेणीत: Rosids
गण: Brassicales
कुल: Caricaceae
वंश: Carica
जाति: C. papaya
द्विपद नाम
Carica papaya
L.
पपीते के पके फल
अन्य पौधों के साथ पपीते का फल लगा पेड़

पपीता एक फल है।... पपीता का वैज्ञानिक नाम कॅरिका पपया ( carica papaya ) यह है। इतकी फॅमिली केरीकेसी ( Caricaceae ) है। पपीता का औषधी उपयोग होता है।केरीकेसी ( Caricaceae )इस कुल (फॅमिली) का है।पपीते का औषधी उपयोग है। पपीता स्वादिष्ट तो होता ही है इसके अलावा स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। सहज पचनयोग्य है। पपीता भूक और शक्ती बढाता है। प्लीहा, यकृत रोगमुक्त रखनेवाला और पीलिया जैसे रोगाें से मुक्ती देनेवाला यह फल है। कच्ची अवस्था में यह हरे रंग का होता है और पकने पर पीले रंग का हो जाता है। इसके कच्चे और पके फल दोनों ही उपयोग में आते हैं। कच्चे फलों की सब्जी बनती है। इन कारणों से घर के पास लगाने के लिये यह बहुत उत्तम फल है।

इसके कच्चे फलों से दूध भी निकाला जाता है, जिससे पपेन तैयार किया जाता है। पपेन से पाचन संबंधी औषधियाँ बनाई जाती हैं पपीता पाचन शक्ति को बढ़ाता है। अत: इसके पक्के फल का सेवन उदरविकार में लाभदायक होता है। पपीता सभी उष्ण समशीतोष्ण जलवायु वाले प्रदेशों में होता है। उच्च रक्तदाब पर नियंत्रण रखने के लिए पपीते के पत्ते की सब्जी करते है। पपीते में ए, बी, डी विटामिन और कॅल्शियम, लोह, प्रोटीन आदि तत्त्व विपुल प्रमाण में होते है।पपीते से वीर्य बढता है। त्वचा रोग दूर होते है। जखम जलद ठीक होती है। मूत्रमार्ग की बिमारी दूर होती है। पचनशक्ती बढती है। भूक बढती है। मूत्राशय की बिमारी दूर होती है। खॉसी के साथ रक्त आ रहा हो तो वह रूकता है। मोटापा दूर होता है। कच्चे पपीता की सब्जी खाने से स्मरणशक्ती बढती है। पपीता और ककडी हमारे स्वास्थ्य केंद्र लिए उपयुक्त है। ककडी और पपीता का हररोज भोजन में समावेश करने से पाचनक्रिया अच्छी होती है।साथ ही यह सौदंर्य बढाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका करता है।

उच्च रक्तदाब नियंत्रण में रखनेवाला केले लिए पपीते के पत्ते की सब्जी करते है।

परिचय

भारत में पपीता अब से लगभग ३०० वर्ष पूर्व आया। आरंभ में भारतवासियों ने फलों में हीक के कारण इसको कदाचित् अधिक पसंद नहीं किया, परंतु अब अच्छी और नई किस्मों के फलों में हीक नहीं होती।

शीघ्र फलनेवाले फलों में पपीता अत्यंत उत्तम फल है। पेड़ लगाने के बाद वर्ष भर के अंदर ही यह फल देने लगता है। इसके पेड़ सुगमता से उगाए जा सकते हैं और थोड़े से क्षेत्र में फल के अन्य पेड़ों की अपेक्षा अधिक पेड़ लगते हैं।

इसके पेड़ कोमल होते हैं और पाले से मर जाते हैं। ऐसे स्थानों में जहाँ शीतकाल में पाला पड़ता हो, इसको नहीं लगाना चाहिए। यहाँ उपजाऊ, दुमट भूमि में अच्छा फलता है। ऐसे स्थानों में जहाँ पानी भरता हो, पपीता नहीं बढ़ता। पेड़ के तने के पास यदि पानी भरता है तो इसका तना गलने लगता है। पपीते के खेत में पानी का निकास अच्छा होना चाहिए। इसका बीज मार्च से जून तक बोना चाहिए। प्राय: अप्रैल मई में बीज बोते हैं और जुलाई अगस्त में पेड़ लगाते हैं। यदि सिंचाई का सुप्रबंध हो तो फरवरी मार्च में इसका पेड़ लगाना अति उत्तम होता है। पेड़ लगाने के लिये पहले आठ या दस फुट के फासले से डेढ़ या दो फुट गहरे गोल गड्ढे खोद लेने चाहिए। गड्ढे के केंद्र में पेड़ लगाना चाहिए। पेड़ों की सिंचाई के लिये उनमें छल्लेदार थाले बनाकर आवश्यकतानुसार पानी देते रहना चाहिए।

पपीते के पेड़ों में नर एवं मादा पेड़ अलग होते हैं। नर पेड़ों में केवल लंबे-लंबे फूल आते हैं। इनमें फल नहीं लगते। जब पेड़ फलने लगते हैं तो केवल १० प्रतिशत नर पेड़ों को छोड़कर अन्य सब नर पेड़ों को उखाड़ फेंकना चाहिए।

पपीते के पेड़ में तीन या चार साल तक ही अच्छे फल लगते हैं। आवश्यकतानुसार यदि तीसरे चौथे साल पपीते के दो पेड़ों के बीच बीच में नए पेड़ लगते रहें तो चौथे पाँचवें साल नए फलनेवाले पेड़ तैयार होते जाते हैं। नए पेड़ तैयार हो जाने पर पुराने पेड़ों को उखाड़ फेंकना चाहिए। इसकी मुख्य किस्में हनीड्यू (मधुविंदु), सिलोन, राँची आदि हैं। पपीता खाने के अनेको लाभ है। य़ह बहुत ही उत्तम फल हैं

पपीता का दुध पाचक, जंतुनाशक, उदररोगहारक होता है। इसके कारण कृमी नष्ट होते है। पाचन अच्छी तरह से होता है। इसके साथ ही पपीते के दूध में शक्कर लेने से अपचन नही होता है। कच्चे पपीते की सब्जी अथवा कोशिंबीर अपचन की परेशानी सहन करनेवालो के लिए वरदायी है। मलावरोध, आतड्यांची दुर्बलता तसेच उदाररोग व हृदयरोग यावर पपइचे सेवन करणे हितावह ठरते. पपइच्या रसामुळे अरुची दूर होते. आतड्यामध्ये पडून राहिलेल्या अन्नाचा नाश होतो. डोकेदुखी(अजीर्णामुळे) दूर होते. तसेच आंबट ढेकर येण बंद होते. खरुज व गजकर्ण यांवर पपइचा चीक लावल्यास फायदा होते. कच्चा पपईचा रस तोंडावर चोळून लावल्यास मुरुमे नाहीशी होतात. पपई पांढऱ्या पेशींची वाढ करणारी आहे. गरोदरावस्थेमध्ये स्त्रियांनी पपई खाणे टाळावे. पपई उष्ण असल्याने गरोदर स्त्रियांना त्याचा फार त्रास होतो.

चित्रदीर्घा

सन्दर्भ

बाहरी कड़ियाँ

पपीता कई रोगों से बचाता है