"फुजिवारा प्रभाव": अवतरणों में अंतर

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टाइफून परमा (बाएं) और मेलोर (दाएं) 6 अक्टूबर, 2009 को फिलीपीन सागर में एक-दूसरे के साथ बातचीत कर रहे थे।

फुजिवारा प्रभाव (अंग्रेज़ी- Fujiwhara effect, कभी-कभी Fujiwara effect, Fujiw(h)ara interaction या binary interaction) का तात्पर्य एक ऐसी घटना से होता है जब दो निकटवर्ती चक्रवाती भंवर एक दूसरे के इर्द-गिर्द घूमते हैं और अपने आस अपने आसपास के निम्न दाब क्षेत्रों में होने वाले परिसंचरणों (circulations) के बीच की दूरी लाँघ लेते हैं (आपस में मिल जाते हैं)। इस प्रभाव की खोज जापानी मौसम विज्ञानी सकुही फुजिवारा ने की थी, और उन्हीं पर इसका नाम पड़ा। छोटे परिसंचरणों की द्विआधारी परस्पर-क्रियाओँ (बाइनरी इंटरैक्शन) के कारण एक बड़ा चक्रवात विकसित हो सकता है (या दो चक्रवातों का एक में विलय भी हो सकता है)। 2,000 किलोमीटर (1,200 मील) के भीतर परोष्णकटिबंधीय चक्रवात (एक्सट्रॉप्टिकल साइक्लोन) आमतौर पर एक दूसरे के साथ बाइनरी इंटरैक्शन में संलग्न होते हैं, जबकि उष्णकटिबंधीय चक्रवात आमतौर पर 1,400 किलोमीटर (870 मील) के भीतर ही परस्पर-क्रिया करते हैं।

विवरण

फुजिवारा प्रभाव का आरेख, यह दिखाता है कि 2 उष्णकटिबंधीय चक्रवात कैसे परस्पर-क्रिया करते हैं।[1]

ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात

अप्रैल 26–28, 2011 का यह सैटलायट चित्र फूजिवारा प्रभाव दर्शातेदो परोष्णकटिबंधीय चक्रवात दिखता है (मिड्वेस्ट और ग्रेट लेक्स, संयुक्त राज्य अमेरिका)।

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संदर्भ

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर

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