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== योगदान ==
== योगदान ==
अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। और, आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक। ये उसी परंपरा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों देखा ही कहाँ था। जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी। शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। प्रजाजन-साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यंत हीन अवस्था में सिसक रहे थे। उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अंधविश्वासों, भय त्रासों और रूढि़यों की जकड़ में कसा जा रहा था। न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-और बहुत किया।-वह चिरस्मरणीय है।
अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। और, आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक। ये उसी परंपरा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों देखा ही कहाँ था। जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी। शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। प्रजाजन-साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यंत हीन अवस्था में सिसक रहे थे। उनका एकमात्र सहारा धर्म में रहा था। न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-और बहुत किया।-वह चिरस्मरणीय है।


[[इंदौर]] में प्रति वर्ष [[भाद्रपद]] कृष्णा [[चतुर्दशी]] के दिन अहिल्योत्सव होता चला आता है। अहिल्याबाई जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम [[उबदी]] के पास स्थित कस्बे अकावल्या के [[पाटीदार]] को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे। उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह मांगा कि [[महेश्वर]] में मेरे समाज लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलाये।
[[इंदौर]] में प्रति वर्ष [[भाद्रपद]] कृष्णा [[चतुर्दशी]] के दिन अहिल्योत्सव होता चला आता है। अहिल्याबाई जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम [[उबदी]] के पास स्थित कस्बे अकावल्या के [[पाटीदार]] को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे। उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह मांगा कि [[महेश्वर]] में मेरे समाज लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलाये।

05:27, 19 सितंबर 2020 का अवतरण

महारानी अहिल्याबाई होल्कर
महाराणी अहिल्याबाई होळकर
पुण्यश्लोक
मालवा साम्राज्य, इंदौर की महाराणी अहिल्याबाई होलकर की दिल्ली के महाराष्ट्र सदन स्थित मुख प्रतिमा
मालवा राज्य की महारानी
शासनावधि१ दिसंबर १७६७ - १३ अगस्त १७९५)
राज्याभिषेक११ दिसंबर, १७६७
पूर्ववर्तीमाळेराव होल्कर
उत्तरवर्तीतुकोजीराव होल्कर - १
जन्म31 मई 1725
ग्राम चौंढी, जामखेड , अहमदनगर, महाराष्ट्र, भारत
निधन13 अगस्त 1795
जीवनसंगीखण्डेराव होलकर
पूरा नाम
अहिल्याबाई खण्डेराव होलकर
घरानाहोल्कर
राजवंशमराठा साम्राज्य
पितामान्कोजी शिन्दे
धर्महिन्दू

अहिल्याबाई होलकर (३१ मई १७२५ - १३ अगस्त १७९५) इतिहास-प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं। जन्म इनका सन 1725 में हुआ था और देहांत 13 अगस्त 1795 को; तिथि उस दिन भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी थी। अहिल्याबाई मालवा साम्राज्य की रानी थीं।

जीवन परिचय

दस-बारह वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। उनतीस वर्ष की अवस्था में विधवा हो गईं। पति का स्वभाव चंचल और उग्र था। फिर जब बयालीस-तैंतालीस वर्ष की थीं, पुत्र मालेराव का देहांत हो गया। जब अहिल्याबाई की आयु बासठ वर्ष के लगभग थी, दौहित्र नत्थू चल बसा। चार वर्ष पीछे दामाद यशवंतराव फणसे न रहा और इनकी पुत्री मुक्ताबाई सती हो गई। दूर के संबंधी तुकोजीराव के पुत्र मल्हारराव पर उनका स्नेह था; सोचती थीं कि आगे चलकर यही शासन, व्यवस्था, न्याय औऱ प्रजारंजन की डोर सँभालेगा।[1]

योगदान

अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों और स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। और, आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक। ये उसी परंपरा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई। अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी। इतना बड़ा व्यक्तित्व जनता ने अपनी आँखों देखा ही कहाँ था। जब चारों ओर गड़बड़ मची हुई थी। शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। प्रजाजन-साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यंत हीन अवस्था में सिसक रहे थे। उनका एकमात्र सहारा धर्म में रहा था। न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई ने जो कुछ किया-और बहुत किया।-वह चिरस्मरणीय है।

इंदौर में प्रति वर्ष भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव होता चला आता है। अहिल्याबाई जब 6 महीने के लिये पूरे भारत की यात्रा पर गई तो ग्राम उबदी के पास स्थित कस्बे अकावल्या के पाटीदार को राजकाज सौंप गई, जो हमेशा वहाँ जाया करते थे। उनके राज्य संचालन से प्रसन्न होकर अहिल्याबाई ने आधा राज्य देेने को कहा परन्तु उन्होंने सिर्फ यह मांगा कि महेश्वर में मेरे समाज लोग यदि मुर्दो को जलाने आये तो कपड़ो समेत जलाये।

विचारधाराएं

अहिल्याबाई के संबंध में दो प्रकार की विचारधाराएँ रही हैं। एक में उनको देवी के अवतार की पदवी दी गई है, दूसरी में उनके अति उत्कृष्ट गुणों के साथ अंधविश्वासों और रूढ़ियों के प्रति श्रद्धा को भी प्रकट किया है। वह अँधेरे में प्रकाश-किरण के समान थीं, जिसे अँधेरा बार-बार ग्रसने की चेष्टा करता रहा। अपने उत्कृष्ट विचारों एवं नैतिक आचरण के चलते ही समाज में उन्हें देवी का दर्जा मिला।

सेनापति के रूप में

मल्हारराव के भाई-बंदों में तुकोजीराव होल्कर एक विश्वासपात्र युवक थे। मल्हारराव ने उन्हें भी सदा अपने साथ में रखा था और राजकाज के लिए तैयार कर लिया था। अहिल्याबाई ने इन्हें अपना सेनापति बनाया और चौथ वसूल करने का काम उन्हें सौंप दिया। वैसे तो उम्र में तुकोजीराव होल्कर अहिल्याबाई से बड़े थे, परंतु तुकोजी उन्हें अपनी माता के समान ही मानते थे और राज्य का काम पूरी लगन ओर सच्चाई के साथ करते थे। अहिल्याबाई का उन पर इतना प्रेम और विश्वास था कि वह भी उन्हें पुत्र जैसा मानती थीं। राज्य के काग़ज़ों में जहाँ कहीं उनका उल्लेख आता है वहाँ तथा मुहरों में भी 'खंडोजी सुत तुकोजी होल्कर' इस प्रकार कहा गया है।

मृत्यु

राज्य की चिंता का भार और उस पर प्राणों से भी प्यारे लोगों का वियोग। इस सारे शोक-भार को अहिल्याबाई का शरीर अधिक नहीं संभाल सका। और 13 अगस्त सन् 1795 को उनकी जीवन-लीला समाप्त हो गई। अहिल्याबाई के निधन के बाद तुकोजी इन्दौर की गद्दी पर बैठा।

देश में स्‍थान

औरंगाबाद, महाराष्ट्र में अहिल्याबाई का पुतला

स्‍वतंत्र भारत में अहिल्‍याबाई होल्‍कर का नाम बहुत ही सम्‍मान के साथ लिया जाता है। इनके बारे में अलग अलग राज्‍यों की पाठ्य पुस्‍तकों में अध्‍याय मौजूद हैं।

चूंकि अहिल्‍याबाई होल्‍कर को एक ऐसी महारानी के रूप में जाना जाता है, जिन्‍होंनें भारत के अलग अलग राज्‍यों में मानवता की भलाई के लिये अनेक कार्य किये थे। इसलिये भारत सरकार तथा विभिन्‍न राज्‍यों की सरकारों ने उनकी प्रतिमायें बनवायी हैं और उनके नाम से कई कल्‍याणकारी योजनाओं भी चलाया जा रहा है।

ऐसी ही एक योजना उत्‍तराखंड सरकार की ओर से भी चलाई जा रही है। जो अहिल्‍याबाई होल्‍कर को पूर्णं सम्‍मान देती है। इस योजना का नाम ‘अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी विकास योजना है। अहिल्‍याबाई होल्‍कर भेड़ बकरी पालन योजना के तहत उत्‍तराखंड के बेरोजगार, बीपीएल राशनकार्ड धारकों, महिलाओं व आर्थि[2] के रूप से कमजोर लोगों को बकरी पालन यूनिट के निर्मांण के लिये भारी अनुदान राशि प्रदान की जाती है। लगभग 100000 रूपये की इस युनिट के निर्मांण के लिये सरकार की ओर से 91770 रूपये सरकारी सहायता रूप में अहिल्‍याबाई होल्‍कर के लाभार्थी को प्राप्‍त होते हैं।

स्रोत

  • मल्हार (तुकोजी का पुत्र) विषयक घटनाओं के आधार-
  • ‘इतिहासाचीं साधनें’ में, पत्र क्र. 260, ता. 8-12-1789
  • तुकोजी का पत्र अहिल्याबाई को क्र. 168, ता. 3-2-1790
  • रुक्माबाई का पत्र अहिल्याबाई को, क्र. 268, ता. 3-2-1790
  • अहिल्याबाई का पत्र तुकोजी को, क्र. 273, ता. 1-4-1790 [जिसमें उन्होंने मल्हार के अत्याचारों का वर्णन किया है।]
  • यशवंतराव गंगाधर का पत्र अहिल्याबाई को, ता. 2-4-1790
  • रुक्मबाई का पत्र अहिल्याबाई को, क्र. 277, ता. 16-4-1790
  • मल्हार का पत्र अहिल्याबाई को, क्र. 279, ता. 5-5-1790 तथा पत्र क्र. 295, 301, 303, 315, 317, 332, 339, 347, 391, 399, 402, 403 इत्यादि और सरदेसाई की ‘New History of the Marathas’, Vol.।।। का सातवाँ और आठवाँ परिच्छेद; जहाँ नाना फडनीस का महादजी सिंधिया के प्रति वैर और मल्हार इत्यादि के चरित्रों का पूरा वर्णन है। मल्हार कहाँ और कैसे पकड़ा गया, इसका वर्णन यशवंतराव गंगाधर के पत्र में मिलेगा; जो होलकर सरकार पुस्तकमाला की 16वीं पुस्तक के पृ. 158-159 पर छपा है। पत्र मराठी में है।
  • लखेरी का युद्ध 1-6-1793 के दिन हुआ था। दूसरे दिन भोर, मल्हार एक तालाब किनारे शराब पिए अचेत पड़ा पाया गया।-सरदेसाई की ‘New History of the Marathas’, Vol. lll, P.248।
  • अहिल्याबाई का न्याय, शासन-व्यवस्था, दानशीलता और उनकी विनयशीलता इत्यादि का आधार है-‘इतिहासाचीं साधनें’, पहला भाग के पत्र। ‘महेश्वर दरबारचीं वातमीं पत्रें’; इंदौर गजीटियर; ‘होलकर शाहीचा इतिहास’; V.V. Thakur कृत ‘Life and Life-work of Shri Ahilya Bai’; डॉक्टर उदयभानु कृत ‘देवी अहिल्याबाई’, (हिंदी); ‘देवी श्री अहिल्याबाई होलकर’ (मराठी), ‘पुण्यश्लोक देवी श्री अहिल्याबाई’ (मराठी), ‘होलकरांची कैफियक’; सरदेसाई कृत ‘New History of the Marathas’, Vol.।।। और ‘The Main currents of Maratha History’। अंतिम पुस्तक में रुढ़िगत विश्वासों की आलोचना भी मिलेगी।
  • गौतमापुर में अपराधियों को छोड़ छुट्टी- इंदौर गजीटियर, पृ. 275
  • गनपतराव और जामघाट पर भवन-निर्माण गजीटियर, पृ. 285 मराठी पुस्तक ‘देवी श्री अहिल्याबाई होलकर’ इत्यादि।
  • उस समय के अंधविश्वास और खरगोन के चबूतरे, खंबे और फरसे की पूजा, ‘नव दुर्गामाता’ के मंदिर में जीभ का बलिदान, राजा बल्लाल की ‘ऊन’ वाली कहानी इत्यादि-
  • इंदौर गजीटियर इत्यादि
  • अहिल्याबाई, तुकोजीराव होलकर-
  • ऊपर लिखी सभी पुस्तकों में वृत्तांत मिलेगा।
  • अहिल्याबाई और महादजी सिंधिया तथा उत्तरी क्षेत्र के प्रसंग-‘New History of the Marathas’, Vol.।।।; इसी पुस्तक के पृ. 213 पर अहिल्याबाई का क्षुब्ध होना और महादजी को शाप देना लिखा है।

इन्हें भी देखें

  1. जोशी, गोविन्दराम केशवराम (1916). अहिल्याबाई होलकर. पृ॰ 23-31 – वाया विकिस्रोत. [स्कैन विकिस्रोत कड़ी]
  2. आजमी, जमशेद (11 नवम्बर 2018). "भेड़ बकरी पालन उत्तराखंड". Kanafusi. मूल से 11 नवम्बर 2018 को पुरालेखित.