"जारखी जनपद फिरोजाबाद": अवतरणों में अंतर

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जनपद फिरोजाबाद के अंतर्गत एक ग्राम है मुस्लिम काल में जारखी नाम से जाट ताल्लुका प्रसिद्ध था। यह स्थान टूंडला स्टेशन से 4 मील पूर्वोत्तर में है। जिस समय भरतपुर लार्ड लेक चढ़कर आया था अर्थात् सन् 1803 में जारखी के सुन्दरसिंह और दिलीपसिंह के पास 41 गांव थे। पहले इनका सम्बन्ध भरतपुर और मराठों से रहा था। मुगल हाकिमों से भी इनका ताल्लुक रहा होगा। सन् 1816 और 1820 के बीच डेहरीसिंह जो कि दलीपसिंह के पोते थे, इस रियासत के मालिक थे। उन्होंने सरकारी मालगुजारी बन्द कर दी। इसलिए रियासत हाथरस के राजा दयासिंह जी के पास चली गई। किन्तु जब अंग्रेजों और दयारामसिंह में खटकी तो सरकार ने यह रियासत डेहरीसिंह के पुत्र जुगलकिशोरसिंह को वापस कर दी। अब ठाकुर शिवकरनसिंह और भगवानसिंह जी इस खानदान के मालिक थे। कुंवर शिवपालसिंह जी ने अपना हिस्सा अलग करा लिया था। पंजाब की बेर रियासत के साथ, जो कि सिख-जाटों की जिला लुधियाना में छोटी-सी स्टेट थी,
जनपद फिरोजाबाद के अंतर्गत एक ग्राम है मुस्लिम काल में जारखी नाम से जाट ताल्लुका प्रसिद्ध था। यह स्थान टूंडला स्टेशन से 4 मील पूर्वोत्तर में है। जिस समय भरतपुर लार्ड लेक चढ़कर आया था अर्थात् सन् 1803 में जारखी के सुन्दरसिंह और दिलीपसिंह के पास 41 गांव थे। पहले इनका सम्बन्ध भरतपुर और मराठों से रहा था। मुगल हाकिमों से भी इनका ताल्लुक रहा होगा। सन् 1816 और 1820 के बीच डेहरीसिंह जो कि दलीपसिंह के पोते थे, इस रियासत के मालिक थे। उन्होंने सरकारी मालगुजारी बन्द कर दी। इसलिए रियासत हाथरस के राजा दयासिंह जी के पास चली गई। किन्तु जब अंग्रेजों और दयारामसिंह में खटकी तो सरकार ने यह रियासत डेहरीसिंह के पुत्र जुगलकिशोरसिंह को वापस कर दी। अब ठाकुर शिवकरनसिंह और भगवानसिंह जी इस खानदान के मालिक थे। कुंवर शिवपालसिंह जी ने अपना हिस्सा अलग करा लिया था। पंजाब की बेर रियासत के साथ, जो कि सिख-जाटों की जिला लुधियाना में छोटी-सी स्टेट थी,
==संदर्भ==
==संदर्भ==

12:17, 3 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

जनपद फिरोजाबाद के अंतर्गत एक ग्राम है मुस्लिम काल में जारखी नाम से जाट ताल्लुका प्रसिद्ध था। यह स्थान टूंडला स्टेशन से 4 मील पूर्वोत्तर में है। जिस समय भरतपुर लार्ड लेक चढ़कर आया था अर्थात् सन् 1803 में जारखी के सुन्दरसिंह और दिलीपसिंह के पास 41 गांव थे। पहले इनका सम्बन्ध भरतपुर और मराठों से रहा था। मुगल हाकिमों से भी इनका ताल्लुक रहा होगा। सन् 1816 और 1820 के बीच डेहरीसिंह जो कि दलीपसिंह के पोते थे, इस रियासत के मालिक थे। उन्होंने सरकारी मालगुजारी बन्द कर दी। इसलिए रियासत हाथरस के राजा दयासिंह जी के पास चली गई। किन्तु जब अंग्रेजों और दयारामसिंह में खटकी तो सरकार ने यह रियासत डेहरीसिंह के पुत्र जुगलकिशोरसिंह को वापस कर दी। अब ठाकुर शिवकरनसिंह और भगवानसिंह जी इस खानदान के मालिक थे। कुंवर शिवपालसिंह जी ने अपना हिस्सा अलग करा लिया था। पंजाब की बेर रियासत के साथ, जो कि सिख-जाटों की जिला लुधियाना में छोटी-सी स्टेट थी,

संदर्भ[संपादित करें]

1 https://villageinfo.in/uttar-pradesh/firozabad/tundla/jarkhi.html