"कुंतक": अवतरणों में अंतर

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== बाहरी कड़ियाँ ==
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* {{citation | year=2007 | chapter=''Midnight's Children'' in the Light of ''Vakrokti'' | author=Ajai Sharma | title = New perspectives on indian english writing | editor1=Malti Agrawal | publisher=Atlantic Publishers & Distributors | isbn=978-81-269-0689-5 | page=198 | url=http://books.google.com/books?id=Zt7OOLEqo7AC&pg=PA198&dq=kuntaka}}
* {{citation | year=2007 | chapter=''Midnight's Children'' in the Light of ''Vakrokti'' | author=Ajai Sharma | title=New perspectives on indian english writing | editor1=Malti Agrawal | publisher=Atlantic Publishers & Distributors | isbn=978-81-269-0689-5 | page=198 | url=http://books.google.com/books?id=Zt7OOLEqo7AC&pg=PA198&dq=kuntaka | access-date=8 अक्तूबर 2012 | archive-url=https://web.archive.org/web/20140715030416/http://books.google.com/books?id=Zt7OOLEqo7AC&pg=PA198&dq=kuntaka | archive-date=15 जुलाई 2014 | url-status=live }}
* [http://www.sub.uni-goettingen.de/ebene_1/fiindolo/gretil/1_sanskr/5_poetry/1_alam/kunvjivu.htm Kuntaka's Vakroktijivika with Kuntaka's own commentary] at [[GRETIL]]
* [https://web.archive.org/web/20101110061647/http://www.sub.uni-goettingen.de/ebene_1/fiindolo/gretil/1_sanskr/5_poetry/1_alam/kunvjivu.htm Kuntaka's Vakroktijivika with Kuntaka's own commentary] at [[GRETIL]]
* [http://www.sanskrit.nic.in/DigitalBook/V/Vkrokttijivitamkuntank.pdf Kuntaka's Vakroktijivika with Kuntaka's own commentary] (Sanskrit text in Devanagari)
* [https://web.archive.org/web/20120506210105/http://www.sanskrit.nic.in/DigitalBook/V/Vkrokttijivitamkuntank.pdf Kuntaka's Vakroktijivika with Kuntaka's own commentary] (Sanskrit text in Devanagari)


[[श्रेणी:संस्कृत साहित्य]]
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05:39, 16 जून 2020 का अवतरण

कुंतक, अलंकारशास्त्र के एक मौलिक विचारक विद्वान थे। ये अभिधावादी आचार्य थे जिनकी दृष्टि में अभिधा शक्ति ही कवि के अभीष्ट अर्थ के द्योतन के लिए सर्वथा समर्थ होती है। इनका काल निश्चित रूप से ज्ञात नहीं हैं। किंतु विभिन्न अलंकार ग्रंथों के अंत:साक्ष्य के आधार पर समझा जाता है कि ये दसवीं शती ई. के आसपास हुए होंगे।

कुन्तक अभिधा की सर्वातिशायिनी सत्ता स्वीकार करने वाले आचार्य थे। परंतु यह अभिधा संकीर्ण आद्या शब्दवृत्ति नहीं है। अभिधा के व्यापक क्षेत्र के भीतर लक्षणा और व्यंजना का भी अंतर्भाव पूर्ण रूप से हो जाता है। वाचक शब्द द्योतक तथा व्यंजक उभय प्रकार के शब्दों का उपलक्षण है। दोनों में समान धर्म अर्थप्रतीतिकारिता है। इसी प्रकार प्रत्येयत्व (ज्ञेयत्व) धर्म के सादृश्य से द्योत्य और व्यंग्य अर्थ भी उपचारदृष्ट्या वाच्य कहे जा सकते हैं।

उनकी एकमात्र रचना वक्रोक्तिजीवित है जो अधूरी ही उपलब्ध हैं। वक्रोक्ति को वे काव्य का 'जीवित' (जीवन, प्राण) मानते हैं। वक्रोक्तिजीवित में वक्रोक्ति को ही काव्य की आत्मा माना गया है जिसका और आचार्यों ने खंडन किया है। पूरे ग्रंथ में वक्रोक्ति के स्वरूप तथा प्रकार का बड़ा ही प्रौढ़ तथा पांडित्यपूर्ण विवेचन है। वक्रोक्ति का अर्थ है वदैग्ध्यभंगीभणिति (सर्वसाधारण द्वारा प्रयुक्त वाक्य से विलक्षण कथनप्रकार)

वक्रोक्तिरेव वैदग्ध्यभंगीभणितिरुच्यते। (वक्रोक्तिजीवित 1.10)

कविकर्म की कुशलता का नाम है वैदग्ध्य या विदग्धता। भंगी का अर्थ है - विच्छित, चमत्कार या चारुता। भणिति से तात्पर्य है - कथन प्रकार। इस प्रकार वक्रोक्ति का अभिप्राय है कविकर्म की कुशलता से उत्पन्न होनेवाले चमत्कार के ऊपर आश्रित रहनेवाला कथनप्रकार। कुंतक का सर्वाधिक आग्रह कविकौशल या कविव्यापार पर है अर्थात् इनकी दृष्टि में काव्य कवि के प्रतिभाव्यापार का सद्य:प्रसूत फल हैं।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ ग्रन्थ

  • आचार्य विश्वेश्वर: हिंदी वक्रोक्ति जीवित, दिल्ली, 1957;
  • बलदेव उपाध्याय : भारतीय साहित्यशास्त्र, भाग 2, काशी, सं. 2012;
  • सुशीलकुमार दे: वक्रोक्तिजीवित का संस्करण तथा ग्रंथ की भूमिका, कलकत्ता

बाहरी कड़ियाँ

  • Ajai Sharma (2007), "Midnight's Children in the Light of Vakrokti", प्रकाशित Malti Agrawal (संपा॰), New perspectives on indian english writing, Atlantic Publishers & Distributors, पृ॰ 198, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-269-0689-5, मूल से 15 जुलाई 2014 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 8 अक्तूबर 2012
  • Kuntaka's Vakroktijivika with Kuntaka's own commentary at GRETIL
  • Kuntaka's Vakroktijivika with Kuntaka's own commentary (Sanskrit text in Devanagari)