"अमोघवर्ष नृपतुंग": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
Rescuing 1 sources and tagging 0 as dead.) #IABot (v2.0.1
पंक्ति 28: पंक्ति 28:
* [http://books.google.co.in/books?id=daGJWnVs7usC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false दक्षिण भारत में जैनधर्म] (गूगल पुस्तक ; लेखक - कैलाशचन्द्र जैन)
* [http://books.google.co.in/books?id=daGJWnVs7usC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false दक्षिण भारत में जैनधर्म] (गूगल पुस्तक ; लेखक - कैलाशचन्द्र जैन)
* [http://books.google.co.in/books?id=QaNdOgOGd0kC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ] (गूगल पुस्तक ; लेखक - ज्योतिप्रसाद जैन)
* [http://books.google.co.in/books?id=QaNdOgOGd0kC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ] (गूगल पुस्तक ; लेखक - ज्योतिप्रसाद जैन)
* [http://www.ourkarnataka.com/history.htm History of Karnataka, Mr. Arthikaje]
* [https://web.archive.org/web/20061104095148/http://www.ourkarnataka.com/history.htm History of Karnataka, Mr. Arthikaje]
* [http://www.jainglory.com/research/amoghvarsha अमोघवर्ष] (जैन ग्लोरी)
* [http://www.jainglory.com/research/amoghvarsha अमोघवर्ष] (जैन ग्लोरी)



00:39, 16 जून 2020 का अवतरण

अमोघवर्ष नृपतुंग
अमोघवर्ष
राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष का शिलालेख जो ८७६ ई में पुरानी कन्नड भाषा में लिखा गया है। (कुम्सी के वीरभद्र मन्दिर में)
६ठा राष्ट्रकूट सम्राट
शासनावधिल. 815 (64 वर्ष)
पूर्ववर्तीगोविन्द तृतीय
उत्तरवर्तीकृष्ण द्वितीय
जन्मशर्व
800 ई
निधन878 ई
पितागोविन्द तृतीय
धर्मजैन धर्म[1]
पट्टडकल का जैन नारायण मंदिर अमोघवर्ष नृपतुंग ने निर्मित कराया था।

अमोघवर्ष नृपतुंग या अमोघवर्ष प्रथम (800 – 878) भारत के राष्ट्रकूट वंश के महानतम शाशक थे। वे जैन धर्म के अनुयायी थे। इतिहासकारों ने उनकी शांतिप्रियता एवं उदारवादी धार्मिक दृष्टिकोण के लिये उन्हें सम्राट अशोक से तुलना की है। उनके शासनकाल में कई संस्कृत एवं कन्नड के विद्वानो को प्रश्रय मिला जिनमें महान गणितज्ञ महावीराचार्य का नाम प्रमुख है।

परिचय

अमोघवर्ष राष्ट्रकूट राजा जो स. 814 ई. में गद्दी पर बैठा और 64 साल राज करने के बाद संभवत: 878 ईं. में मरा। वह गोविन्द तृतीय का पुत्र था। उसके किशोर होने के कारण पिता ने मृत्यु के समय करकराज को शासन का कार्य सँभालने को सहायक नियुक्त किया था। किन्तु मंत्री और सामन्त धीरे-धीरे विद्रोही और असहिष्णु होते गए। साम्राज्य का गंगवाडी प्रांत स्वतंत्र हो गया और वेंगी के चालुक्यराज विजयादित्य द्वितीय ने आक्रमण कर अमोघवर्ष को गद्दी से उतार तक दिया। परंतु अमोघवर्ष भी साहस छोड़नेवाला व्यक्ति न था और करकराज की सहायता से उसने राष्ट्रकूटों का सिंहासन फिर स्वायत्त कर लिया। राष्ट्रकूटों की शक्ति फिर भी लौटी नहीं और उन्हें बार-बार चोट खानी पड़ी।

अमोघवर्ष के संजन ताम्रपत्र के अभिलेख से समकालीन भारतीय राजनीति पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है, यद्यपि उसमें स्वयं उसकी विजयों का वर्णन अतिरंजित है। वास्तव में उसके युद्ध प्राय: उसके विपरीत ही गए थे। अमोघवर्ष धार्मिक और विद्याव्यसनी था, महालक्ष्मी का परम भक्त। जैनाचार्य के उपदेश से उसकी प्रवृत्ति जैन हो गई थी। 'कविराजमार्ग' और 'प्रश्नोत्तरमालिका' का वह रचयिता माना जाता है। उसी ने मान्यखेट राजधानी बनाई थी। अपने अंतिम दिनों में राजकार्य मंत्रियों और युवराज पर छोड़ वह विरक्त रहने लगा था।

सन्दर्भ

  1. Jaini 2000, पृ॰ 339.

बाहरी कड़ियाँ