"दुष्टता से भरी हँसी": अवतरणों में अंतर

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==भारतीय साहित्य में दुष्टता से भरी हँसी का वर्णन==
==भारतीय साहित्य में दुष्टता से भरी हँसी का वर्णन==
[[मनु शर्मा]] द्वारा रचित लक्षागृह: कृष्ण की अत्मकथा में भी इस हँसी का धार्मिक परिदृश्य में वर्ण इस प्रकार से है<ref>[https://books.google.co.in/books?id=B49ZDwAAQBAJ&pg=PT69&lpg=PT69&dq=%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95+%E0%A4%95%E0%A5%80+%E0%A4%B9%E0%A4%81%E0%A4%B8%E0%A5%80&source=bl&ots=5-ZuW_lmis&sig=pn73_oc8ByaG6BK7J_rjXIsKK5c&hl=hi&sa=X&ved=2ahUKEwjI_7rbosDdAhUJK48KHdg_CE4Q6AEwFXoECAIQAQ#v=onepage&q=%E0%A4%96%E0%A4%B2%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95%20%E0%A4%95%E0%A5%80%20%E0%A4%B9%E0%A4%81%E0%A4%B8%E0%A5%80&f=false लक्षागृह (कृष्ण की अत्मकथा -IV), मनु शर्मा, प्रभात प्रकाशन]</ref>:
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{{Quote|...और कभी-कभी ''उस नाटक में तुम्हारे जैसा खलनायक भी नायक बन जाता है''।' ''फिर वे जोर से हँसे। उनकी वह उन्मुक्त हँसी रुक्मिणी के स्वयंवर की ओर संकेत कर रही थी''। हँसी थमते ही फिर वे बोलने लगे—'अपने मनोनुकूल वर चुनने के नारियों के अधिकार पर तो हमारे ...}}


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==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
* [[टीवि ट्रोप्स]] पर [http://tvtropes.org/pmwiki/pmwiki.php/Main/EvilLaugh दुष्टता से भरी हँसी] ।
* [[टीवि ट्रोप्स]] पर [https://web.archive.org/web/20180917071403/https://tvtropes.org/pmwiki/pmwiki.php/Main/EvilLaugh दुष्टता से भरी हँसी] ।


[[श्रेणी:भावनाएँ]]
[[श्रेणी:भावनाएँ]]

01:00, 15 जून 2020 के समय का अवतरण

दुष्टता से भरी हँसी या पागलों-जैसी हँसी एक पूर्ण रूप से उन्माद से भरी हँसी है जो साधारण रूप से किसी खलनायक द्वारा कपोलकल्पना में हँसी जाती है। दुष्टता से भरी हँसी का मुहावरा १८६० से प्रयोग किया जा रहा है।[1] दुश्चरित्र हँसी का प्रयोग उससे भी पुराना है और कम से कम १७८४ में प्रयोग किया गया है।[2] इसी की एक प्रकार तिरस्कारपूर्ण हँसी कम से कम १७१४ से सम्बंधित है या शायद उससे भी पूर्व के साहित्य में पाई गई है।[3]

कॉमिक पुस्तकों में जहाँ महाखलनायक इस प्रकार की हँसी प्रदर्शित करता है, इसे कई बार म्वाहाहा, म्व्हाहाहा, मुआहाहाहा, हेहेहेहे, ब्वुहुहुहाहा, आदि के तौर पर छापा जाता है (इसका मुक़ाबला हो हो हो से किया जा सकता है।)[4] इंटरनेट पर इन शब्दों का प्रयोग आम है। इसे चिट्ठाकारी, बुलेटिन बोर्ड प्रणाली, और ऑनलाइन खेलों में प्रयोग में लाया जाता है। वहाँ पर इन शब्दों को साधारण रूप से जब किसी प्रकार की जीत दर्ज होती है, या फिर यह दिखाने के लिए कि किसी को किसी और पर श्रेष्टता की भावना है। इन शब्दों को विस्मयादिबोधक के रूप में अधिकांश रूप से प्रयोग किया जाता है और कम ही संज्ञा के रूप में प्रयोग किया जाता है।

१९३० में एक लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम दि शैडो ने दुष्टता से भरी हँसी को अपनी प्रस्तुति के पहचान संकेत के रूप में बार-बार प्रयोग किया था। इसकी आवाज़ अभिनेता फ़्रैंक रीडिक ने दी थी, और उसकी आवाज़ उस समय भी जारी रही जब इस कार्यक्रम मुख्य अभिनय ऑर्सन वेलेस ने किया था।[5] विंसेंट प्राइस की दुष्टता से भरी हँसी के संस्करण का कई बार रेडियो, फ़िल्म, संगीत और टीवी पर प्रयोग किया गया है।[उद्धरण चाहिए] उनमें से संगीत वीडियो माइकल जैकसनज़ थ्रिल्लर भी एक है।

फ़िल्मों में दुष्टता से भरी हँसी अधिकांशतः साउंड ट्रैक को उस समय पूरा करता है जब खलनायक कैमरा से दूर होता है। इन मामलों में दुष्टता से भरी हँसी असल नायक या किसी पीड़ित व्यक्ति का पीछा करती है जब वे भागने का प्रयास करते हैं। इसका एक उदाहरण रेडर्ज़ ऑफ़ दि लॉस्ट आर्क है, जहाँ बेलॉक की हँसी दक्षिण अमरीका के जंगल में छाई हुई होती है जब इंडियाना जोंज़ हॉविटॉस से बच निकलने का प्रयास करती है।

टीवी श्रंखला डल्लास में जे० आर० एरविंग (लैरी हैगमैन) अपनी पारम्परिक हँसी को प्रदर्शित करते हुए बार दिखाई दिए, जब भी उसे यह लगा कि वह किसी से बाज़ी ले गए, विशेष रूप से क्लिफ़ बर्न्स (केन केरचेवल) के मामले में।

गैर-इंसानी पात्र जैसे कि गॉज़िला श्रंखला से राजा घिदोराह और देस्तोराह भी अपनी निराली दुष्टता से भरी हँसी रखते थे या फिर हँसी-जैसी ध्वनि निकालते थे।[उद्धरण चाहिए]

भारतीय साहित्य में दुष्टता से भरी हँसी का वर्णन[संपादित करें]

मनु शर्मा द्वारा रचित लक्षागृह: कृष्ण की अत्मकथा में भी इस हँसी का धार्मिक परिदृश्य में वर्ण इस प्रकार से है[6]:

...और कभी-कभी उस नाटक में तुम्हारे जैसा खलनायक भी नायक बन जाता है।' फिर वे जोर से हँसे। उनकी वह उन्मुक्त हँसी रुक्मिणी के स्वयंवर की ओर संकेत कर रही थी। हँसी थमते ही फिर वे बोलने लगे—'अपने मनोनुकूल वर चुनने के नारियों के अधिकार पर तो हमारे ...

(प्रदर्शित तिरछा पाठ मूल पुस्तक में सामान्य रूप से दिखाया गया है।)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Littell, Eliakim; Littell, Robert S.; Making of America Project (1860), "The Luck of Ladysmede, part X", Littell's The living age, Littell, son & company, 64: 228
  2. Burney, Fanny (1784), Barrett, Charlotte (संपा॰), Diary and Letters of Madame D'Arblay: 1778 to 1784, Bickers and son, पृ॰ 279
  3. Steele, Richard; Addison, Joseph (April 14, 1714), The Guardian, 1, J. Tonson, पृ॰ 118
  4. Zawacki, Neil; Dignan, James (2003). How to be a villain: evil laughs, secret lairs, master plans, and more!!!. Chronicle Books. पृ॰ 23. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-8118-4666-0.
  5. Mott, Robert L. (2009). The audio theater guide: vocal acting, writing, sound effects and directing for a listening audience. McFarland. पृ॰ 31. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-7864-4483-5.
  6. "लक्षागृह (कृष्ण की अत्मकथा -IV), मनु शर्मा, प्रभात प्रकाशन". मूल से 16 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 सितंबर 2018.

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