"जलसेना विद्रोह (मुम्बई)": अवतरणों में अंतर

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== बाहरी कड़ियाँ ==
== बाहरी कड़ियाँ ==
* [http://nazehindsubhash.blogspot.com/2010/11/53.html ऐसे मिली आजादी]
* [https://web.archive.org/web/20110906075950/http://nazehindsubhash.blogspot.com/2010/11/53.html ऐसे मिली आजादी]
* [http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2005/06/printable/050616_mutiny_account.shtml नौसैनिकों ने किया था एक बड़ा विद्रोह]
* [https://web.archive.org/web/20141204143634/http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2005/06/printable/050616_mutiny_account.shtml नौसैनिकों ने किया था एक बड़ा विद्रोह]
* [http://www.amarujala.com/Vichaar/VichaarColDetail.aspx?nid=165&tp=b&Secid=47 एक विद्रोह की याद]
* [https://web.archive.org/web/20110429055152/http://www.amarujala.com/Vichaar/VichaarColDetail.aspx?nid=165&tp=b&Secid=47 एक विद्रोह की याद]
* [http://www.vishvguru.blogspot.in/2011/06/blog-post_12.html इंडियन नेवी का मुक्ति संग्राम और भारत की स्वतंत्रता]
* [https://web.archive.org/web/20140106034439/http://www.vishvguru.blogspot.in/2011/06/blog-post_12.html इंडियन नेवी का मुक्ति संग्राम और भारत की स्वतंत्रता]
* [http://navbharattimes.indiatimes.com/metro/mumbai/other-news/bombay-vidroh-they-counter-six-days/articleshow/57828709.cms बम्बई विद्रोहः वे छह हंगामी दिन!]
* [https://web.archive.org/web/20170818220323/http://navbharattimes.indiatimes.com/metro/mumbai/other-news/bombay-vidroh-they-counter-six-days/articleshow/57828709.cms बम्बई विद्रोहः वे छह हंगामी दिन!]
* [http://www.ajitvadakayil.blogspot.in/2013/02/the-indian-navy-mutiny-of-1946-only-war.html THE INDIAN NAVY MUTINY OF 1946, THE ONLY WAR OF INDIAN INDEPENDENCE] (CAPT AJIT VADAKAYIL)
* [https://web.archive.org/web/20140106032227/http://www.ajitvadakayil.blogspot.in/2013/02/the-indian-navy-mutiny-of-1946-only-war.html THE INDIAN NAVY MUTINY OF 1946, THE ONLY WAR OF INDIAN INDEPENDENCE] (CAPT AJIT VADAKAYIL)
* [http://www.tribuneindia.com/2002/20020224/spectrum/main3.htm 'The Tribune: RIN Mutiny - The lesser known mutiny]
* [https://web.archive.org/web/20090902135344/http://www.tribuneindia.com/2002/20020224/spectrum/main3.htm 'The Tribune: RIN Mutiny - The lesser known mutiny]
* [http://www.tribuneindia.com/1999/99feb25/edit.htm*7 'Madan Singh and B.C Dutt honoured at last']
* [http://www.tribuneindia.com/1999/99feb25/edit.htm*7 'Madan Singh and B.C Dutt honoured at last']
* [http://www.tribuneindia.com/2004/20040321/spectrum/main5.htm 'Interview with Madan Singh, Vice president of the Central Strike Committee']
* [https://web.archive.org/web/20070203011522/http://www.tribuneindia.com/2004/20040321/spectrum/main5.htm 'Interview with Madan Singh, Vice president of the Central Strike Committee']
* [http://www.tribuneindia.com/2007/20070630/edit.htm*5 'Goodbye to Madan the Mutineer']
* [http://www.tribuneindia.com/2007/20070630/edit.htm*5 'Goodbye to Madan the Mutineer']
* [http://www.mumbaipluses.com/downtownplus/index.aspx?page=article&sectid=2&contentid=20080228200802281108025381e256140&sectxslt=&comments=true&pageno=1 'A Statue of Stature']
* [https://web.archive.org/web/20170702183337/http://www.mumbaipluses.com/downtownplus/index.aspx?page=article&sectid=2&contentid=20080228200802281108025381e256140&sectxslt=&comments=true&pageno=1 'A Statue of Stature']
* [http://www.tribuneindia.com/2006/20060212/spectrum/main2.htm '60th anniversary of RIN mutiny']
* [https://web.archive.org/web/20060821104914/http://www.tribuneindia.com/2006/20060212/spectrum/main2.htm '60th anniversary of RIN mutiny']
* [http://www.marxist.com/1946-rebellion-indian-navy150903-5.htm 'A marxist interpretation of the Events']
* [https://web.archive.org/web/20080206211448/http://www.marxist.com/1946-rebellion-indian-navy150903-5.htm 'A marxist interpretation of the Events']
* http://www.dawn.com/weekly/dmag/archive/060219/dmag14.htm
* https://web.archive.org/web/20070610081617/http://www.dawn.com/weekly/dmag/archive/060219/dmag14.htm





21:22, 14 जून 2020 का अवतरण

विद्रोही नौसैनिक की मूर्ति (कोलाबा, मुम्बई)

भारत की आजादी के ठीक पहले मुम्बई में रायल इण्डियन नेवी के सैनिकों द्वारा पहले एक पूर्ण हड़ताल की गयी और उसके बाद खुला विद्रोह भी हुआ। इसे ही जलसेना विद्रोह या मुम्बई विद्रोह (बॉम्बे म्युटिनी) के नाम से जाना जाता है। यह विद्रोह १८ फ़रवरी सन् १९४६ को हुआ जो कि जलयान में और समुद्र से बाहर स्थित जलसेना के ठिकानों पर भी हुआ। यद्यपि यह मुम्बई में आरम्भ हुआ किन्तु कराची से लेकर कोलकाता तक इसे पूरे ब्रिटिश भारत में इसे भरपूर समर्थन मिला। कुल मिलाकर ७८ जलयानों, २० स्थलीय ठिकानों एवं २०,००० नाविकों ने इसमें भाग लिया। किन्तु दुर्भाग्य से इस विद्रोह को भारतीय इतिहास मे समुचित महत्व नहीं मिल पाया है।

परिचय

विद्रोह की स्वत:स्फूर्त शुरुआत नौसेना के सिगनल्स प्रशिक्षण पोत 'आई.एन.एस. तलवार' से हुई। नाविकों द्वारा खराब खाने की शिकायत करने पर अंग्रेज कमान अफसरों ने नस्ली अपमान और प्रतिशोध का रवैया अपनाया। इस पर 18 फ़रवरी को नाविकों ने भूख हड़ताल कर दी। हड़ताल अगले ही दिन कैसल, फोर्ट बैरकों और बम्बई बन्दरगाह के 22 जहाजों तक फैल गयी। 19 फ़रवरी को एक हड़ताल कमेटी का चुनाव किया गया। नाविकों की माँगों में बेहतर खाने और गोरे और भारतीय नौसैनिकों के लिए समान वेतन के साथ ही आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों और सभी राजनीतिक बन्दियों की रिहाई तथा इण्डोनेशिया से सैनिकों को वापस बुलाये जाने की माँग भी शामिल हो गयी। विद्रोही बेड़े के मस्तूलों पर कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस और मुस्लिम लीग के झण्डे एक साथ फहरा दिये गये। 20 फ़रवरी को विद्रोह को कुचलने के लिए सैनिक टुकड़ियाँ बम्बई लायी गयीं। नौसैनिकों ने अपनी कार्रवाइयों के तालमेल के लिए पाँच सदस्यीय कार्यकारिणी चुनी। लेकिन शान्तिपूर्ण हड़ताल और पूर्ण विद्रोह के बीच चुनाव की दुविधा उनमें अभी बनी हुई थी, जो काफी नुकसानदेह साबित हुई। 20 फ़रवरी को उन्होंने अपने-अपने जहाजों पर लौटने के आदेश का पालन किया, जहाँ सेना के गार्डों ने उन्हें घेर लिया। अगले दिन कैसल बैरकों में नाविकों द्वारा घेरा तोड़ने की कोशिश करने पर लड़ाई शुरू हो गयी जिसमें किसी भी पक्ष का पलड़ा भारी नहीं रहा और दोपहर बाद चार बजे युध्द विराम घोषित कर दिया गया। एडमिरल गाडफ्रे अब बमबारी करके नौसेना को नष्ट करने की धमकी दे रहा था। इसी समय लोगों की भीड़ गेटवे ऑफ इण्डिया पर नौसैनिकों के लिए खाना और अन्य मदद लेकर उमड़ पड़ी।

विद्रोह की खबर फैलते ही कराची, कलकत्ता, मद्रास और विशाखापत्तनम के भारतीय नौसैनिक तथा दिल्ली, ठाणे और पुणे स्थित कोस्ट गार्ड भी हड़ताल में शामिल हो गये। 22 फ़रवरी हड़ताल का चरम बिन्दु था, जब 78 जहाज, 20 तटीय प्रतिष्ठान और 20,000 नौसैनिक इसमें शामिल हो चुके थे। इसी दिन कम्युनिस्ट पार्टी के आह्नान पर बम्बई में आम हड़ताल हुई। नौसैनिकों के समर्थन में शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे मजदूर प्रदर्शनकारियों पर सेना और पुलिस की टुकड़ियों ने बर्बर हमला किया, जिसमें करीब तीन सौ लोग मारे गये और 1700 घायल हुए। इसी दिन सुबह, कराची में भारी लड़ाई के बाद ही 'हिन्दुस्तान' जहाज से आत्मसमर्पण कराया जा सका। अंग्रेजों के लिए हालात संगीन थे, क्योंकि ठीक इसी समय बम्बई के वायु सेना के पायलट और हवाई अड्डे के कर्मचारी भी नस्ली भेदभाव के विरुध्द हड़ताल पर थे तथा कलकत्ता और दूसरे कई हवाई अड्डों के पायलटों ने भी उनके समर्थन में हड़ताल कर दी थी। कैण्टोनमेण्ट क्षेत्रों से सेना के भीतर भी असन्तोष खदबदाने और विद्रोह की सम्भावना की ख़ुफिया रिपोर्टों ने अंग्रेजों को भयाक्रान्त कर दिया था।

मुस्लिम लीग और कांग्रेस का रवैया

ऐसे नाजुक समय में उनके तारणहार की भूमिका में कांग्रेस और लीग के नेता आगे आये, क्योंकि सेना के सशस्त्र विद्रोह, मजदूरों द्वारा उसके समर्थन तथा कम्युनिस्टों की सक्रिय भूमिका से राष्ट्रीय आन्दोलन का बुर्जुआ नेतृत्व स्वयं आतंकित हो गया था। जिन्ना की सहायता से पटेल ने काफी कोशिशों के बाद 23 फ़रवरी को नौसैनिकों को समर्पण के लिए तैयार कर लिया। उन्हें आश्वासन दिया गया कि कांग्रेस और लीग उन्हें अन्याय व प्रतिशोध का शिकार नहीं होने देंगे। बाद में सेना के अनुशासन की दुहाई देते हुए पटेल ने अपना वायदा तोड़ दिया और नौसैनिकों के साथ ऐतिहासिक विश्वासघात किया। मार्च '46 में आन्‍ध्र के एक कांग्रेसी नेता को लिखे पत्र में सेना के अनुशासन पर बल देने का कारण पटेल ने यह बताया था कि 'स्वतन्त्र भारत में भी हमें सेना की आवश्यकता होगी।' उल्लेखनीय है कि 22 फ़रवरी को कम्युनिस्ट पार्टी ने जब हड़ताल का आह्नान किया था तो कांग्रेसी समाजवादी अच्युत पटवर्धन और अरुणा आसफ अली ने तो उसका समर्थन किया था, लेकिन कांग्रेस के अन्य नेताओं ने विद्रोह की भावना को दबाने वाले वक्तव्य दिए थे। कांग्रेस और लीग के प्रान्तीय नेता एस.के. पाटिल और चुन्दरीगर ने तो कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए स्वयंसेवकों को लगाने तक का प्रस्ताव दिया था। नेहरू ने नौसैनिकों के विद्रोह का यह कहकर विरोध किया कि 'हिंसा के उच्छृंखल उद्रेक को रोकने की आवश्यकता है।' गाँधी ने 22 फ़रवरी को कहा कि 'हिंसात्मक कार्रवाई के लिए हिन्दुओं-मुसलमानों का एकसाथ आना एक अपवित्र बात है।' नौसैनिकों की निन्दा करते हुए उन्होंने कहा कि यदि उन्हें कोई शिकायत है तो वे चुपचाप अपनी नौकरी छोड़ दें। अरुणा आसफ अली ने इसका दोटूक जवाब देते हुए कहा कि नौसैनिकों से नौकरी छोड़ने की बात कहना उन कांग्रेसियों के मुँह से शोभा नहीं देता जो ख़ुद विधायिकाओं में जा रहे हैं।

नौसेना विद्रोह ने कांग्रेस और लीग के वर्ग चरित्र को एकदम उजागर कर दिया। नौसेना विद्रोह और उसके समर्थन में उठ खड़ी हुई जनता की भर्त्सना करने में लीग और कांग्रेस के नेता बढ़-चढ़कर लगे रहे, लेकिन सत्ता की बर्बर दमनात्मक कार्रवाई के खिलाफ उन्होंने चूँ तक नहीं की। जनता के विद्रोह की स्थिति में वे साम्राज्यवाद के साथ खड़े होने को तैयार थे और स्वातन्त्रयोत्तर भारत में साम्राज्यवादी हितों की रक्षा के लिए वे तैयार थे। जनान्दोलनों की जरूरत उन्हें बस साम्राज्यवाद पर दबाव बनाने के लिए और समझौते की टेबल पर बेहतर शर्तें हासिल करने के लिए थी।

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