"चेतक": अवतरणों में अंतर

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[[File:Statue of Maharana Pratap of Mewar, commemorating the Battle of Haldighati, City Palace, Udaipur.jpg|thumb|महाराणा प्रताप और चेतक का स्मारक]]
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[[महाराणा प्रताप]] के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल के घोड़े का नाम '''चेतक''' था।<ref>{{cite book |last1=Tod |first1=James |title=Annals and Antiquities of Rajast'han, Or, The Central and Western Rajpoot States of India |date=1873 |publisher=Higginbotham and Company |url=https://books.google.co.in/books?id=ckgOAAAAQAAJ&printsec=frontcover&dq=chetak+horse&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjIg52Ju_nnAhUq4nMBHVd2AxwQ6AEIVDAF#v=onepage&q&f=false |accessdate=1 मार्च 2020 |language=en}}</ref> चेतक अश्व गुजरात के व्यापारी काठीयावाडी नस्ल के तीन घोडे चेतक,त्राटक और अटक लेकर मारवाड आया।अटक परीक्षण में काम आ गया। त्राटक महाराणा प्रताप ने उनके छोटे भाई शक्ती सिंह को दे दिया और चेतक को स्वयं रख लिया। [[हल्दीघाटी|हल्दी घाटी-]](१५७६) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ। हिंदी कवि [[श्याम नारायण पाण्डेय]] द्वारा रचित प्रसिद्ध [[महाकाव्य]] [[हल्दीघाटी|हल्दी घाटी]] में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की मार्मिक कथा वर्णित हुई है। आज भी राजसमंद के [[हल्दीघाटी| हल्दी घाटी]] गांव में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहाँ स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ [[लोकगीत]] मेवाड़ में आज भी गाये जाते हैं।<ref>{{cite book |last1=Rima |first1=Hooja |title=Maharana Pratap : the invincible warrior |isbn=9386228963 |date=1 मार्च 2020|url=https://books.google.co.in/books?id=IPYmvwEACAAJ&dq=chetak+horse&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjIg52Ju_nnAhUq4nMBHVd2AxwQ6AEIZDAH}}</ref>
[[महाराणा प्रताप]] के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल के घोड़े का नाम '''चेतक''' था।<ref>{{cite book |last1=Tod |first1=James |title=Annals and Antiquities of Rajast'han, Or, The Central and Western Rajpoot States of India |date=1873 |publisher=Higginbotham and Company |url=https://books.google.co.in/books?id=ckgOAAAAQAAJ&printsec=frontcover&dq=chetak+horse&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjIg52Ju_nnAhUq4nMBHVd2AxwQ6AEIVDAF#v=onepage&q&f=false |accessdate=1 मार्च 2020 |language=en}}</ref> चेतक अश्व गुजरात के व्यापारी काठीयावाडी नस्ल के तीन घोडे चेतक,त्राटक और अटक लेकर मारवाड आया।अटक परीक्षण में काम आ गया। त्राटक महाराणा प्रताप ने उनके छोटे भाई शक्ती सिंह को दे दिया और चेतक को स्वयं रख लिया। [[हल्दीघाटी|हल्दी घाटी-]](१५७६) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ। हिंदी कवि [[श्याम नारायण पाण्डेय]] द्वारा रचित प्रसिद्ध [[महाकाव्य]] [[हल्दीघाटी|हल्दी घाटी]] में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की मार्मिक कथा वर्णित हुई है। आज भी राजसमंद के [[हल्दीघाटी| हल्दी घाटी]] गांव में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहाँ स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ [[लोकगीत]] मेवाड़ में आज भी गाये जाते हैं।<ref>{{cite book |last1=Rima |first1=Hooja |title=Maharana Pratap : the invincible warrior |isbn=9386228963 |date=1 मार्च 2020|url=https://books.google.co.in/books?id=IPYmvwEACAAJ&dq=chetak+horse&hl=en&sa=X&ved=0ahUKEwjIg52Ju_nnAhUq4nMBHVd2AxwQ6AEIZDAH}}</ref>महाराणा प्रताप [[चेतक]] को हाथी का मुखोटा पहनाकर रखते थे ताकि युद्ध में दुशमन के हाथियों को भ्रमित किया जा सके।<ref>{{Cite web|url=https://www.paigamehind.com/2020/05/maharanapratapjayanti.html|title=महाराणा प्रताप से जुड़े अदभुत रोचक तथ्य|last=Sharma|first=Navdeep|website=पैगाम-ए-हिंद|access-date=2020-05-09}}</ref>


==चेतक की वीरता==
==चेतक की वीरता==

08:27, 9 मई 2020 का अवतरण

महाराणा प्रताप और चेतक का स्मारक

महाराणा प्रताप के सबसे प्रिय और प्रसिद्ध नीलवर्ण ईरानी मूल के घोड़े का नाम चेतक था।[1] चेतक अश्व गुजरात के व्यापारी काठीयावाडी नस्ल के तीन घोडे चेतक,त्राटक और अटक लेकर मारवाड आया।अटक परीक्षण में काम आ गया। त्राटक महाराणा प्रताप ने उनके छोटे भाई शक्ती सिंह को दे दिया और चेतक को स्वयं रख लिया। हल्दी घाटी-(१५७६) के युद्ध में चेतक ने अपनी अद्वितीय स्वामिभक्ति, बुद्धिमत्ता एवं वीरता का परिचय दिया था। युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाने पर भी महाराणा प्रताप को सुरक्षित रणभूमि से निकाल लाने में सफल वह एक बरसाती नाला उलांघ कर अन्ततः वीरगति को प्राप्त हुआ। हिंदी कवि श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दी घाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की मार्मिक कथा वर्णित हुई है। आज भी राजसमंद के हल्दी घाटी गांव में चेतक की समाधि बनी हुई है, जहाँ स्वयं प्रताप और उनके भाई शक्तिसिंह ने अपने हाथों से इस अश्व का दाह-संस्कार किया था। चेतक की स्वामिभक्ति पर बने कुछ लोकगीत मेवाड़ में आज भी गाये जाते हैं।[2]महाराणा प्रताप चेतक को हाथी का मुखोटा पहनाकर रखते थे ताकि युद्ध में दुशमन के हाथियों को भ्रमित किया जा सके।[3]

चेतक की वीरता

हिन्दी के प्रसिद्ध कवि श्यामनारायण पाण्डेय ने 'चेतक की वीरता' नाम से एक सुन्दर कविता लिखी है-

रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था
गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में
बढ़ते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
विकराल वज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया।
भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग

हल्दीघाटी के वीर योद्धा

संदर्भ

  1. Tod, James (1873). Annals and Antiquities of Rajast'han, Or, The Central and Western Rajpoot States of India (अंग्रेज़ी में). Higginbotham and Company. अभिगमन तिथि 1 मार्च 2020.
  2. Rima, Hooja (1 मार्च 2020). Maharana Pratap : the invincible warrior. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9386228963.
  3. Sharma, Navdeep. "महाराणा प्रताप से जुड़े अदभुत रोचक तथ्य". पैगाम-ए-हिंद. अभिगमन तिथि 2020-05-09.