"राजेन्द्रलाल मित्र": अवतरणों में अंतर

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'''राजा राजेन्द्रलाल मित्र''' (1823 या 1824 – 1891) [[भारत]] में जन्मे प्रथम आधुनिक [[भारतविद्या|भारतविद]] थे। वे [[बंगाल का नवजागरण|बंगाल के पुनर्जागरण]] के भी अग्रदूत थे।
'''राजा राजेन्द्रलाल मित्र''' (1823 या 1824 – 1891) [[भारत]] में जन्मे प्रथम आधुनिक [[भारतविद्या|भारतविद]] थे। वे [[बंगाल का नवजागरण|बंगाल के पुनर्जागरण]] के भी अग्रदूत थे।
वे बंगाल के वैज्ञानिक इतिहास के प्रथम रचयिता थे। उन्होने पुरातत्त्वविद के रूप में भी ख्याति अर्जित की थी। वे एक [[बहुज्ञ]] थे।
वे बंगाल के वैज्ञानिक इतिहास के प्रथम रचयिता थे। उन्होने पुरातत्त्वविद के रूप में भी ख्याति अर्जित की थी। वे एक [[बहुज्ञ]] थे। इनकी योग्यता के कारण सरकार ने पहले उन्हें 'रायबहादुर' और 1888 में 'राजा' की उपाधि दे कर सम्मानित किया था।


==प्राथमिक जीवन==
==प्राथमिक जीवन==
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यद्यपि राजेन्द्रलाल को इतिहास में बहुत कम औपचारिक शिक्षा मिली थी, एशियाटिक सोसायटि के साथ काम करने से उन्होने भारतीय इतिहासलेखन में ऐतिहासिक विधि का पक्षधर बनने में सहायता मिली। वे 'बारेन्द्र रिसर्च सोसायटी' नामक एक स्थानीय सोसायटी से भी जुड़े हुए थे।
यद्यपि राजेन्द्रलाल को इतिहास में बहुत कम औपचारिक शिक्षा मिली थी, एशियाटिक सोसायटि के साथ काम करने से उन्होने भारतीय इतिहासलेखन में ऐतिहासिक विधि का पक्षधर बनने में सहायता मिली। वे 'बारेन्द्र रिसर्च सोसायटी' नामक एक स्थानीय सोसायटी से भी जुड़े हुए थे।

==लेखन कार्य==
राजेन्द्रलाल मित्र जीवन भर भारतीय वांङ्मय की खोज और उसे पाठकों के लिए उपलब्ध कराने में लगे रहे। इन्होंने सोसायटी पांड्डलिपियों की सूचियां प्रकाशित कीं और विभिन्न विषयों के मानक ग्रंथों की रचना की। इनके कुछ उल्लेखनीय ग्रंथ ये हैं- छान्दोग्य उपनिषद, तैत्तिरीय ब्राह्मण और आरण्यक, गोपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, पातञ्जलि योगसूत्र, अग्निपुराण, वायुपुराण, ललित विस्तार, अष्टसहसिक, उड़ीसा का पुरातत्व, बोध गया, शाक्य मुनि।

==सम्पादन कार्य==
राजेन्द्रलाल मित्र 'विविधार्थ' और 'रहस्य संदर्भ' नामक पत्रों का संपादन किया।

==इतिहासवेत्ता==
राजेन्द्रलाल मित्र निष्ठावान बुद्धिजीवी और सच्चे अर्थों में इतिहासवेत्ता थे। इनका कहना था कि- "यदि राष्ट्रप्रेम का यह अर्थ लिया जाए कि हमारे अतीत का अच्छा या बुरा जो कुछ है, उससे हमें प्रेम करना चाहिए, तो ऐसी राष्ट्रभक्ति को मैं दूर से ही प्रणाम करता हूँ।"


[[श्रेणी:भारतविद]]
[[श्रेणी:भारतविद]]

02:55, 26 अप्रैल 2020 का अवतरण

राजा राजेन्द्रलाल मित्र
রাজা রাজেন্দ্রলাল মিত্র

राजा राजेन्द्रलाल मित्र
जन्म 15 फ़रवरी 1824
Kolkata, Bengal, British India
मौत 26 जुलाई 1891(1891-07-26) (उम्र 67)
Kolkata, Bengal, British India
राष्ट्रीयता Indian
जाति Bengali Hindu
पेशा Orientalist
धर्म Hinduism
उल्लेखनीय कार्य {{{notable_works}}}

राजा राजेन्द्रलाल मित्र (1823 या 1824 – 1891) भारत में जन्मे प्रथम आधुनिक भारतविद थे। वे बंगाल के पुनर्जागरण के भी अग्रदूत थे। वे बंगाल के वैज्ञानिक इतिहास के प्रथम रचयिता थे। उन्होने पुरातत्त्वविद के रूप में भी ख्याति अर्जित की थी। वे एक बहुज्ञ थे। इनकी योग्यता के कारण सरकार ने पहले उन्हें 'रायबहादुर' और 1888 में 'राजा' की उपाधि दे कर सम्मानित किया था।

प्राथमिक जीवन

राजा राजेन्द्रलाल मित्र का जन्म १६ फरवरी, १८२२ को पूर्वी कलकता के सुरा (वर्तमान समय का बेलियाघाटा) नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता का नाम जन्मजय मित्र था। अपने पिता के छः पुत्रों में से वे तृतीय थे, इसके अलावा उनकी एक बहन भि थीं। राजेन्द्रलाल छोटी उम्र से ही अपनी बिधबा और निःसन्तान मौसी के पास रहकर बड़े हुए।

अपनी प्राथमिक शिक्षा बांग्ला की एक ग्राम पाठशाला से लेने के बाद पाथुरियाघाटा के एक गैर-सरकारी अंग्रेजी-माध्यमिक विद्यालय से उन्होने शिक्षा ग्रहण की। लगभग १० वर्ष की उम्र से उन्होने कलकाता के हिन्दु स्कुल में पढ़ना शुरू किया। इसके बाद उनकी शिक्षा दिशाहीन हो गयी। यद्यपि उन्होने १८३७ के दिसम्बर में कलकाता मेडिकल कालेज में प्रवेश ले लिया था, किन्तु १८१४ में किसी विवाद में आने से उन्हें उसे छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्होने कानून की शिक्षा लेना आरम्भ किया किन्तु उसे भी ज्यादा दिन नहीं चला सके। इसके बाद वे भाषा सीखने लगे और उन्होने ग्रीक, लातिन, फारसी, जर्मन का एक साथ अध्ययन शुरू किया। इसका परिणाम हुआ कि वे एक भाषाशास्त्री बन गए।

विवाह

१८३९ में जब वे १७ वर्ष के थे, उनका विवाह सौदामिनी से हो गया। २२ अगस्त १८४४ को उनकी एक बेटी हुई जिसके जनमने के कुछ ही देर बाद सौदामिनी का देहान्त हो गया। बेटी भी एकाध सप्ताह के बाद चल बसी। राजेन्द्रलाल ने अपना दूसरा विवाह १८६० या १८६१ में भुवनमोहिनी के साथ किया। उनके दो पुत्र हुए।

एशियाटिक सोसायटी

अप्रैल १८४५ में राजेन्द्रलाल एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालयाध्यक्ष सह सहायक-सचिव नियुक्त हुए। इस पद पर उन्होने १० वर्ष तक कार्य किया और फिर फरवरी १८५६ में उसे छोड़ दिया। इसके बाद वे एशियाटिक सोसायटी के सचिव चुने गए और बाद में इसके गवर्निंग काउन्सिल में भी ले लिए गए। तीन बार वे इसके उपाध्यक्ष चुने गए। १८८५ में वे एशियाटिक सोसायटी के प्रथम भारतीय अध्यक्ष बने।

यद्यपि राजेन्द्रलाल को इतिहास में बहुत कम औपचारिक शिक्षा मिली थी, एशियाटिक सोसायटि के साथ काम करने से उन्होने भारतीय इतिहासलेखन में ऐतिहासिक विधि का पक्षधर बनने में सहायता मिली। वे 'बारेन्द्र रिसर्च सोसायटी' नामक एक स्थानीय सोसायटी से भी जुड़े हुए थे।

लेखन कार्य

राजेन्द्रलाल मित्र जीवन भर भारतीय वांङ्मय की खोज और उसे पाठकों के लिए उपलब्ध कराने में लगे रहे। इन्होंने सोसायटी पांड्डलिपियों की सूचियां प्रकाशित कीं और विभिन्न विषयों के मानक ग्रंथों की रचना की। इनके कुछ उल्लेखनीय ग्रंथ ये हैं- छान्दोग्य उपनिषद, तैत्तिरीय ब्राह्मण और आरण्यक, गोपथ ब्राह्मण, ऐतरेय आरण्यक, पातञ्जलि योगसूत्र, अग्निपुराण, वायुपुराण, ललित विस्तार, अष्टसहसिक, उड़ीसा का पुरातत्व, बोध गया, शाक्य मुनि।

सम्पादन कार्य

राजेन्द्रलाल मित्र 'विविधार्थ' और 'रहस्य संदर्भ' नामक पत्रों का संपादन किया।

इतिहासवेत्ता

राजेन्द्रलाल मित्र निष्ठावान बुद्धिजीवी और सच्चे अर्थों में इतिहासवेत्ता थे। इनका कहना था कि- "यदि राष्ट्रप्रेम का यह अर्थ लिया जाए कि हमारे अतीत का अच्छा या बुरा जो कुछ है, उससे हमें प्रेम करना चाहिए, तो ऐसी राष्ट्रभक्ति को मैं दूर से ही प्रणाम करता हूँ।"