"बिश्नोई": अवतरणों में अंतर
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[[File:बिश्नोई मन्दिर मुक्तिधाम मुकाम-नोखा, बिकानेर, राजस्थान 2014-02-08 23-08.jpeg|thumb|250px|राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा में बिश्नोई पंथ का एक मंदिर, मुक्तिधाम।]] |
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'''बिश्नोई''' अथवा '''विश्नोई''' उत्तरी भारत में एक प्रकृति प्रेमी पंथ है जिसके अनुयाई मुख्यतः [[राजस्थान]] राज्य में हैं। इस पंथ के संस्थापक जाम्भोजी महाराज है। बिश्नोई पंथ में दीक्षित होने वाले अधिकांश जाट जाति के व्यक्ति थे इसलिए इनको कुछ जगह बिश्नोई जाट भी बोला जाता है। जाम्भोजी महाराज द्वारा बताये 29 नियमों का पालन करने वाला बिश्नोई है। यानी बीस+नौ=बिश्नोई। बिश्नोई शुध्द [[शाकाहार|शाकाहारी]] हैं। बिश्नोई समाज की [[पर्यावरण संरक्षण]] और वन्य जीव संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका है। |
'''बिश्नोई''' अथवा '''विश्नोई''' उत्तरी भारत में एक प्रकृति प्रेमी पंथ है जिसके अनुयाई मुख्यतः [[राजस्थान]] राज्य और समीपवर्ती राज्यों में हैं। इस पंथ के संस्थापक जाम्भोजी महाराज है। बिश्नोई पंथ में दीक्षित होने वाले अधिकांश जाट जाति के व्यक्ति थे इसलिए इनको कुछ जगह बिश्नोई जाट भी बोला जाता है। जाम्भोजी महाराज द्वारा बताये 29 नियमों का पालन करने वाला बिश्नोई है। यानी बीस+नौ=बिश्नोई। बिश्नोई शुध्द [[शाकाहार|शाकाहारी]] हैं। बिश्नोई समाज की [[पर्यावरण संरक्षण]] और वन्य जीव संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका है। |
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==इतिहास== |
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सम्वत् 1542 तक गुरु जाम्भोजी की कीर्ति चारों और फेल गई थी और इसी साल राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा जिसमें जाम्भोजी महाराज ने अकाल पीडि़तों की अन्न व धन्न से भरपूर सहायता की। सम्वत् 1542 की कार्तिक बदी 8 को जांभोजी महाराज ने एक विराट यज्ञ का आयोजन सम्भराथल धोरे पर किया और 29 नियमों की दीक्षा एवं पाहल देकर बिश्नोई धर्म की स्थापना की। |
सम्वत् 1542 तक गुरु जाम्भोजी की कीर्ति चारों और फेल गई थी और इसी साल राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा जिसमें जाम्भोजी महाराज ने अकाल पीडि़तों की अन्न व धन्न से भरपूर सहायता की। सम्वत् 1542 की कार्तिक बदी 8 को जांभोजी महाराज ने एक विराट यज्ञ का आयोजन सम्भराथल धोरे पर किया<ref name="Biśnoī1991">{{cite book|author=श्रीकृष्ण बिश्नोई|title=Biśnoī dharma-saṃskāra|url=https://books.google.com/books?id=VQMcAAAAIAAJ|year=1991|publisher=Dhoka Dhorā Prakāśana|page=36}}</ref> और 29 नियमों की दीक्षा एवं पाहल देकर बिश्नोई धर्म की स्थापना की। |
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== सन्दर्भ == |
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11:55, 20 अप्रैल 2020 का अवतरण
बिश्नोई अथवा विश्नोई उत्तरी भारत में एक प्रकृति प्रेमी पंथ है जिसके अनुयाई मुख्यतः राजस्थान राज्य और समीपवर्ती राज्यों में हैं। इस पंथ के संस्थापक जाम्भोजी महाराज है। बिश्नोई पंथ में दीक्षित होने वाले अधिकांश जाट जाति के व्यक्ति थे इसलिए इनको कुछ जगह बिश्नोई जाट भी बोला जाता है। जाम्भोजी महाराज द्वारा बताये 29 नियमों का पालन करने वाला बिश्नोई है। यानी बीस+नौ=बिश्नोई। बिश्नोई शुध्द शाकाहारी हैं। बिश्नोई समाज की पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीव संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका है।
इतिहास
सम्वत् 1542 तक गुरु जाम्भोजी की कीर्ति चारों और फेल गई थी और इसी साल राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा जिसमें जाम्भोजी महाराज ने अकाल पीडि़तों की अन्न व धन्न से भरपूर सहायता की। सम्वत् 1542 की कार्तिक बदी 8 को जांभोजी महाराज ने एक विराट यज्ञ का आयोजन सम्भराथल धोरे पर किया[1] और 29 नियमों की दीक्षा एवं पाहल देकर बिश्नोई धर्म की स्थापना की।
सन्दर्भ
- ↑ श्रीकृष्ण बिश्नोई (1991). Biśnoī dharma-saṃskāra. Dhoka Dhorā Prakāśana. पृ॰ 36.
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