"अरस्तु": अवतरणों में अंतर

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जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।<ref>{{Cite web|url=https://www.independent.co.uk/arts-entertainment/books/reviews/darwins-ghosts-by-rebecca-stott-7808310.html|title=Darwin's Ghosts, By Rebecca Stott
जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।<ref>{{Cite web|url=https://www.independent.co.uk/arts-entertainment/books/reviews/darwins-ghosts-by-rebecca-stott-7808310.html|title=Darwin's Ghosts, By Rebecca Stott
|website=independent.co.uk|access-date=19 June 2012}}</ref> उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।
|website=independent.co.uk|access-date=19 June 2012}}</ref> उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।
 अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ [[पोलिटिक्स]] है।<ref>भाषा विज्ञान, डा० [[भोलानाथ तिवारी]], किताब महल- दिल्ली, पन्द्रहवाँ संस्करण १९८१, पृष्ठ-४८१</ref>अरस्तु ने जन्तु इतिहास नामक पुस्तक लिखी।इस पुस्तक में लगभग 500 प्रकार के विविध जन्तुओं की रचना,स्वभाव,वर्गीकरण,जनन आदि का व्यापक वर्णन किया गया।
 अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ [[पोलिटिक्स]] है।<ref>भाषा विज्ञान, डा० [[भोलानाथ तिवारी]], किताब महल- दिल्ली, पन्द्रहवाँ संस्करण १९८१, पृष्ठ-४८१</ref>अरस्तु ने जन्तु इतिहास नामक पुस्तक लिखी।इस पुस्तक में लगभग 500 प्रकार के विविध जन्तुओं की रचना,स्वभाव,वर्गीकरण,जनन आदि का व्यापक वर्णन किया गया। अरस्तु को father of bioLogy का सम्मान प्राप्त है।


== जन्म ==
== जन्म ==

02:35, 20 अप्रैल 2020 का अवतरण

अरस्तु
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व्यक्तिगत जानकारी
जन्म384 ईसा पूर्व
मृत्यु322 ईसा पूर्व (उम्र 62)
एउबोएअ, यूनान
वृत्तिक जानकारी
युगप्राचीन दर्शन
क्षेत्रपाश्चात्य दर्शन
विचार सम्प्रदाय (स्कूल)
राष्ट्रीयतायूनानी
मुख्य विचार
  • संगीत
  • काव्य
  • रंगमंच
  • राजनीति
  • सरकार
प्रमुख विचार
अरस्तु

अरस्तु (384 ईपू – 322 ईपू) यूनानी दार्शनिक थे। वे प्लेटो के शिष्य व सिकंदर के गुरु थे। उनका जन्म स्टेगेरिया नामक नगर में हुआ था ।  अरस्तु ने भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र, जीव विज्ञान सहित कई विषयों पर रचना की। अरस्तु ने अपने गुरु प्लेटो के कार्य को आगे बढ़ाया। प्लेटो, सुकरात और अरस्तु पश्चिमी दर्शनशास्त्र के सबसे महान दार्शनिकों में एक थे।  उन्होंने पश्चिमी दर्शनशास्त्र पर पहली व्यापक रचना की, जिसमें नीति, तर्क, विज्ञान, राजनीति और आध्यात्म का मेलजोल था।  भौतिक विज्ञान पर अरस्तु के विचार ने मध्ययुगीन शिक्षा पर व्यापक प्रभाव डाला और इसका प्रभाव पुनर्जागरण पर भी पड़ा।  अंतिम रूप से न्यूटन के भौतिकवाद ने इसकी जगह ले लिया। जीव विज्ञान उनके कुछ संकल्पनाओं की पुष्टि उन्नीसवीं सदी में हुई।[1] उनके तर्कशास्त्र आज भी प्रासांगिक हैं।  उनकी आध्यात्मिक रचनाओं ने मध्ययुग में इस्लामिक और यहूदी विचारधारा को प्रभावित किया और वे आज भी क्रिश्चियन, खासकर रोमन कैथोलिक चर्च को प्रभावित कर रही हैं।  उनके दर्शन आज भी उच्च कक्षाओं में पढ़ाये जाते हैं।  अरस्तु ने अनेक रचनाएं की थी, जिसमें कई नष्ट हो गई। अरस्तु का राजनीति पर प्रसिद्ध ग्रंथ पोलिटिक्स है।[2]अरस्तु ने जन्तु इतिहास नामक पुस्तक लिखी।इस पुस्तक में लगभग 500 प्रकार के विविध जन्तुओं की रचना,स्वभाव,वर्गीकरण,जनन आदि का व्यापक वर्णन किया गया। अरस्तु को father of bioLogy का सम्मान प्राप्त है।

जन्म

अरस्तु का जन्म 384-322 ई. पू. में हुआ था और वह ६२ वर्ष तक जीवित रहे। उनका जन्म स्थान स्तागिरा (स्तागिरस) नामक नगर था। उनके पिता मकदूनिया के राजा के दरबार में शाही वैद्य थे। इस प्रकार अरस्तु के जीवन पर मकदूनिया के दरबार का काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। उनके पिता की मौत उनके बचपन में ही हो गई थी।

शिक्षा

पिता की मौत के बाद 17 वर्षीय अरस्तु को उनके अभिभावक ने शिक्षा पूरी करने के लिए बौद्धिक शिक्षा केंद्र एथेंस भेज दिया। वह वहां पर बीस वर्षो तक प्लेटो से शिक्षा पाते रहे। पढ़ाई के अंतिम वर्षो में वो स्वयं अकादमी में पढ़ाने लगे। उनके द्वारा द लायिसियम नामक संस्था भी खोली गई |अरस्तु को उस समय का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता था जिसके प्रशंसा स्वयं उनके गुरु भी करते थे।

अरस्तु की गिनती उन महान दार्शनिकों में होती है जो पहले इस तरह के व्यक्ति थे और परम्पराओं पर भरोसा न कर किसी भी घटना की जाँच के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचते थे।

प्लेटो के निधन के बाद

347 ईस्वी पूर्व में प्लेटो के निधन के बाद अरस्तु ही अकादमी के नेतृत्व के अधिकारी थे किन्तु प्लेटो की शिक्षाओं से अलग होने के कारण उन्हें यह अवसर नहीं दिया गया। एत्रानियस के मित्र शाषक ह्र्मियाज के निमंत्रण पर अरस्तु उनके दरबार में चले गये। वो वहाँ पर तीन वर्ष रहे और इस दौरान उन्होंने राजा की भतीजी ह्र्पिलिस नामक महिला से विवाह कर लिया। अरस्तु की ये दुसरी पत्नी थी उससे पहले उन्होंने पिथियस नामक महिला से विवाह किया था जिसके मौत के बाद उन्होंने दूसरा विवाह किया था। इसके बाद उनके यहाँ नेकोमैक्स नामक पुत्र का जन्म हुआ। सबसे ताज्जुब की बात ये है कि अरस्तु के पिता और पुत्र का नाम एक ही था। शायद अरस्तु अपने पिता को बहुत प्रेम करते थे इसी वजह से उनकी याद में उन्होंने अपने पुत्र का नाम भी वही रखा था।अरस्तु विश्व के महान ज्ञानी गिने जाते हैं

सिकंदर की शिक्षा

मकदूनिया के राजा फिलिप के निमन्त्रण पर वो उनके तेरह वर्षीय पुत्र को पढ़ाने लगे। पिता-पुत्र दोनों ही अरस्तु को बड़ा सम्मान देते थे। लोग यहाँ तक कहते थे कि अरस्तु को शाही दरबार से काफी धन मिलता है और हजारों गुलाम उनकी सेवा में रहते है हालांकि ये सब बातें निराधार थीं। एलेक्जैंडर के राजा बनने के बाद अरस्तु का काम खत्म हो गया और वो वापस एथेंस आ गये। अरस्तु ने प्लेटोनिक स्कूल और प्लेटोवाद की स्थापना की। अरस्तु अक्सर प्रवचन देते समय टहलते रहते थे इसलिए कुछ समय बाद उनके अनुयायी पेरीपेटेटिक्स कहलाने लगे।

अरस्तु और दर्शन

अरस्तु को खोज करना बड़ा अच्छा लगता था खासकर ऐसे विषयों पर जो मानव स्वभाव से जुड़े हों जैसे कि "आदमी को जब भी समस्या आती है वो किस तरह से इनका सामना करता है?” और "आदमी का दिमाग किस तरह से काम करता है?" समाज को लोगों से जोड़े रखने के लिए काम करने वाले प्रशासन में क्या ऐसा होना चाहिए जो सर्वदा उचित तरीके से काम करें। ऐसे प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए अरस्तु अपने आस पास के माहौल पर प्रायोगिक रुख रखते हुए बड़े इत्मिनान के साथ काम करते रहते थे। वो अपने शिष्यों को सुबह सुबह विस्तृत रूप से और शाम को आम लोगों को साधारण भाषा में प्रवचन देते थे।

एलेक्सेंडर की अचानक मृत्यु पर मकदूनिया के विरोध के स्वर उठ खड़े हुए। उन पर नास्तिकता का भी आरोप लगाया गया। वो दंड से बचने के लिये चल्सिस चले गये और वहीं पर एलेक्सेंडर की मौत के एक साल बाद 62 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी। इस तरह अरस्तु महान दार्शनिक प्लेटो के शिष्य और सिकन्दर के गुरु बनकर इतिहास के पन्नो में महान दार्शनिक के रूप में अमर हो गये। Alexander

कृतियां

अरस्तु ने कई ग्रथों की रचना की थी , लेकिन इनमें से कुछ ही अब तक सुरक्षित रह पाये हैं। सुरक्षित लेखों की सूची इस प्रकार है।

अरस्तु के प्रसिद्ध ग्रंथ का नाम ' पेरिपोइएतिकेस ' है |

अरस्तु के अनमोल विचार।

अच्छा लिखने के लिए खुद को एक आम इंसान की तरह व्यक्त करो, लेकिन सोचो एक बुद्धिमान आदमी की तरह.


सीखना कोई बच्चों का खेल नहीं है: हम बिना दर्द के नहीं सीख सकते है.


बिना पागलपन के स्पर्श के किसी भी महान दिमाग अस्तित्व नहीं होता है.


हमारे जीवन के गहनतम अंधकार के वक्त हमें अपना ध्यान रोशनी पर केंद्रित करना चाहिए. "परिवार एक प्राकृतिक संस्था हैं।"

शिक्षित मन की यह पहचान है की वो किसी भी विचार को स्वीकार किए बिना उसके साथ सहज रहे.

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "Darwin's Ghosts, By Rebecca Stott". independent.co.uk. अभिगमन तिथि 19 June 2012.
  2. भाषा विज्ञान, डा० भोलानाथ तिवारी, किताब महल- दिल्ली, पन्द्रहवाँ संस्करण १९८१, पृष्ठ-४८१

बाहरी कड़ियाँ