"ब्रजभाषा": अवतरणों में अंतर

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''' व्रजभाषा''' मूलत: [[ब्रज]] क्षेत्र की बोली है। (श्रीमद्भागवत के रचनाकाल में "व्रज" शब्द क्षेत्रवाची हो गया था। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक [[भारत]] के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने उत्थान एवं विकास के साथ आदरार्थ "भाषा" नाम प्राप्त किया और "ब्रजबोली" नाम से नहीं, अपितु "ब्रजभाषा" नाम से विख्यात हुई। अपने विशुद्ध रूप में यह आज भी भरतपुर,मथुरा,आगरा, हिण्डौन सिटी,धौलपुर, मैनपुरी, एटा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम "केंद्रीय ब्रजभाषा" भी कह सकते हैं।
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19:03, 5 अप्रैल 2020 का अवतरण

ब्रजभाषा
बृजभाषा
बोलने का  स्थान भारत
क्षेत्र बृज
मातृभाषी वक्ता 20000000
भाषा परिवार
  • ब्रजभाषा
लिपि देवनागरी
राजभाषा मान्यता
नियंत्रक संस्था कोई संगठन नहीं
भाषा कोड
आइएसओ 639-3 braj
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व्रजभाषा मूलत: ब्रज क्षेत्र की बोली है। (श्रीमद्भागवत के रचनाकाल में "व्रज" शब्द क्षेत्रवाची हो गया था। विक्रम की 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक भारत के मध्य देश की साहित्यिक भाषा रहने के कारण ब्रज की इस जनपदीय बोली ने अपने उत्थान एवं विकास के साथ आदरार्थ "भाषा" नाम प्राप्त किया और "ब्रजबोली" नाम से नहीं, अपितु "ब्रजभाषा" नाम से विख्यात हुई। अपने विशुद्ध रूप में यह आज भी भरतपुर,मथुरा,आगरा, हिण्डौन सिटी,धौलपुर, मैनपुरी, एटा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम "केंद्रीय ब्रजभाषा" भी कह सकते हैं।

ब्रजभाषा में ही प्रारम्भ में काव्य की रचना हुई। सभी भक्त कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, रहीम, रसखान, केशव, घनानंद, बिहारी, इत्यादि। फिल्मों के गीतों में भी ब्रजभाषा के शब्दों का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है।

आदर के भाव से कहें तो वस्तुत: बृज भाषा का प्रसाद है हिन्दी - साहित्य

आज सम्पूर्ण विश्व में भारत की ज़ुबान कही जाने वाली राष्ट्र भाषा हिंदी के मूल में यद्यपि संस्कृत, बंग्ला, फ़ारसी, अंग्रेज़ी एवं प्रांतीय बोली भाषाओं का समामेलन है, तथापि ब्रज का काव्य और वैष्णव वार्ताऐं वह अविभावक हैं जिन्होंने संस्कृत के धरातल पर भारत को प्रतिनिधी भाषा- हिंदी प्रदान की है ।

यद्यपि भारत की सनातन भाषा संस्कृत है तथापि जव विदेशियों के आक्रमण और लूट विध्वन्सों ने वेदों की वाणी को मंदिरों या कतिपय घरों में सीमित कर दीया था, तव भगवान श्री कृष्ण के मुख से कही गयी मैया यशोदा की बृज वोली संम्पूर्ण भारत में पद-कीर्तनों के रूप में गायी जाने लगी और कालान्तर में भारत की राष्ट्र भाषा हिंदी के रूप में परिणित हो गयी ।

संस्कृति को संक्रमण से सुरक्षित करते हूए पुष्टिमार्गिय अष्ट सखाओं के संगीत और साहित्य संगत गीतों ने पुराण और वेदों से भी आगे बढ़कर पंचम वेद का स्थान धारण कीया और गो. आचार्य श्री गोकुल नाथ जी के ग्रन्थ ८४ /२५२ वैष्णवों की वार्ता वह प्रथम लेख माने गये जिनके कि दिग्दर्शन से १९बीं शताब्दी में पहली वार हिंदी में गद्य अर्थात Prose लेख लिखे गये ।

हिंदी साहित्य के इतिहासकार आचार्य रामचंन्द्र शुक्ल ( सन् १८४४ - १९४१ ) ने हिंन्दी भाषा का शोध पूर्ण इतिहास लिखा है और स्पष्टत: कहा है कि ब्रज भाषा हिन्दी साहित्य का प्राण है ।

आपने हिंदी के इतिहास को चार युगों में विभक्त कीया है :

१. वीरगाथा काल (1050 ई से 1375 ई) २. भक्तिकाल (1375 से 1700 ई.) ३.रीतिकाल (1700 से 1900 ई.) ४. आधुनिक काल (1900 से अब तक)

जोशीली और उत्साह पूरक कविताओं का युग वीरगाथा काल कहा जाता है जिसमेंकि राजा पृथवी राज चौहान और मुहम्मद गौरी की १७ लड़ाइयाँ, राणा प्रताप और शिवाजी की वीरगाथाऐ एवं राज कवियों द्वारा जोशीले काव्यों का लेखन भारत वर्ष की चारों दिशाओं में मथुरा की वोली - ब्रज भाषा में गाया गया है ।

युद्ध, लूट और कूट की नीतियों के कठिन काल में परिवर्तन के साथ शान्ति और सद्भभावना का संदेश लेकर चारों ओर भक्ति काल में संतों का उदय हूआ जिसमें पंजाब के गुरु नानक, दिल्ली में अमीरखसरो, उ.प्र. में तुलसी दास, बंगाल में चैतन्य महाप्रभु, महाराष्ट्र में संत तुकाराम, गुजरात में नरसी, राजस्थान में मीरा, संत कबीर, जायसी, रसखान आदि जो ब्रज मूल के तो नहीं थे लेकिन आपकी रचनाएँ प्रमुखत: ब्रज भाषा से ओत प्रोत हैं ।

यहाँ ब्रज में जोकि दिल्ली और आगरा के मध्य परम तीर्थ स्थान था, मानो स्वयं भगवान ने मानवता की रक्षा केलिए अवतार लेकर स्वामी श्री हरिदास, श्रीमद वल्लभाचार्य, सूरदास, नंद दास, चौवे छीतस्वामी आदि के रूप में साहित्य और संगीत की जो अविरल धारा प्रवाहित की उसमें धर्म और जाति का भेद भूलकर सम्पूर्ण भारत आज भी अवगाहन करता है ।

कालान्तर में राजाओं की रिआसतें पुनर्स्थापित हुईं जिसमें श्रंगार एवं प्रेम प्रधान कविताओं का युग प्रारंभ हुआ और बृज भाषा में छन्द अलंकारों के विशारदीय प्रयोग हूए जिसे रीति काल कहा जाता है । उल्लेखनीय है कि रीति क़ालीन छंन्दों में चौबे श्री विहारी लाल महति कवियों का कृतित्व शीर्ष स्तरिय माना जाता है , जिनके वारे में प्रसिद्ध कहावत है कि - सतसैया के दोहरे , ज्यौं नाविक के तीर । देखत में सीधे लगें , घाव करें गम्भीर ।।

अभीतक पध् (poetry) का युग था लेकिन अंग्रेज़ी की तरह अखवार या पत्रिका लिखने के लिए गध् (prose) को ढूँढा जा रहा था, स्वतंत्रता संग्रामी चाहते थे कि अनेक भाषाओं के भारत में किसी ऐसी वोली को चुना जाय जो समझने में सरल और सभी को सर्वमान्य हो। अतएव क्रान्तिकारी वीर सावरकर और महात्मा गांधी आदि की अभिप्रेरणा से वनारस के सेठ श्री भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने साहित्यकारों के साथ शोध करके - बृज भाषा के ग्रन्थ “चौरासी वैष्णवों की वार्ता” जोकि काव्य या पदों में ना होकर गध् अर्थात prose में लिखा गया है को निदेशन माना तथा फ़ारसी और संस्कृत के मिश्रण से खड़ी वोली में हिन्दी साहित्य का आविर्भाव कीया ।

अब यहाँ से प्रारंभ होता है .... आधुनिक काल जो आज विश्व में हिंदी को हिंद की पहिचान देता है ।

स्वयं श्री कृष्ण मुख से गायी गई और श्री यमुनाजी के निकट विराजमान इस बृज की भाषा को साष्टांग प्रणाम है।

भौगोलिक विस्तार

अपने विशुद्ध रूप में ब्रजभाषा आज भी भरतपुर,आगरा, धौलपुर, हिण्डौन सिटी, मथुरा, मैनपुरी, एटा और अलीगढ़ जिलों में बोली जाती है। इसे हम "केंद्रीय ब्रजभाषा" के नाम से भी पुकार सकते हैं। केंद्रीय ब्रजभाषा क्षेत्र के उत्तर पश्चिम की ओर बुलंदशहर जिले की उत्तरी पट्टी से इसमें खड़ी बोली की लटक आने लगती है। उत्तरी-पूर्वी जिलों अर्थात् बदायूँ और एटा जिलों में इसपर कन्नौजी का प्रभाव प्रारंभ हो जाता है। डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा, "कन्नौजी" को ब्रजभाषा का ही एक रूप मानते हैं। दक्षिण की ओर ग्वालियर में पहुँचकर इसमें बुंदेली की झलक आने लगती है। पश्चिम की ओर गुड़गाँव तथा भरतपुर का क्षेत्र राजस्थानी से प्रभावित है।

ब्रज भाषा आज के समय में प्राथमिक तौर पर एक ग्रामीण भाषा है, जो कि मथुरा-भरतपुर केन्द्रित ब्रज क्षेत्र में बोली जाती है। यह मध्य दोआब के इन जिलों की प्रधान भाषा है:


गंगा के पार इसका प्रचार बदायूँ, बरेली होते हुए नैनीताल की तराई, उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले तक चला गया है। उत्तर प्रदेश के अलावा इस भाषा का प्रचार राजस्थान के इन जिलों में भी है:

और करौली जिले के कुछ भाग ( हिण्डौन सिटी)| जिसके पश्चिम से यह राजस्थानी की उप-भाषाओं में जाकर मिल जाती है।

हरियाणा में यह दिल्ली के दक्षिणी इलाकों में बोली जाती है- फ़रीदाबाद जिला और गुड़गाँव और मेवात जिलों के पूर्वी भाग।

विकास यात्रा

इसका विकास मुख्यत: पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उससे लगते राजस्थानमध्य प्रदेश में हुआ। मथुरा, भरतपुर, हिण्डौन सिटी, धौलपुर, आगरा, ग्वालियर आदि इलाकों में आज भी यह मुख्य संवाद की भाषा है। इस एक पूरे इलाके में बृजभाषा या तो मूल रूप में या हल्के से परिवर्तन के साथ विद्यमान है। इसीलिये इस इलाके के एक बड़े भाग को बृजांचल या बृजभूमि भी कहा जाता है।

भारतीय आर्यभाषाओं की परंपरा में विकसित होनेवाली "ब्रजभाषा" शौरसेनी अपभ्रंश की कोख से जन्मी है। जब से गोकुल वल्लभ संप्रदाय का केंद्र बना, ब्रजभाषा में कृष्ण विषयक साहित्य लिखा जाने लगा। इसी के प्रभाव से ब्रज की बोली साहित्यिक भाषा बन गई। भक्तिकाल के प्रसिद्ध महाकवि महात्मा सूरदास से लेकर आधुनिक काल के विख्यात कवि श्री वियोगी हरि तक ब्रजभाषा में प्रबंध काव्य तथा मुक्तक काव्य समय समय पर रचे जाते रहे।

स्वरूप

जनपदीय जीवन के प्रभाव से ब्रजभाषा के कई रूप हमें दृष्टिगोचर होते हैं। किंतु थोड़े से अंतर के साथ उनमें एकरूपता की स्पष्ट झलक हमें देखने को मिलती है।

ब्रजभाषा की अपनी रूपगत प्रकृति कारांत है अर्थात् इसकी एकवचनीय पुंलिंग संज्ञाएँ तथा विशेषण प्राय: औकारांत होते हैं; जैसे खुरपौ, यामरौ, माँझौ आदि संज्ञा शब्द औकारांत हैं। इसी प्रकार कारौ, गोरौ, साँवरौ आदि विशेषण पद औकारांत है। क्रिया का सामान्य भूतकालिक एकवचन पुंलिंग रूप भी ब्रजभाषा में प्रमुखरूपेण औकारांत ही रहता है। यह बात अलग है कि उसके कुछ क्षेत्रों में "य्" श्रुति का आगम भी पाया जाता है। जिला अलीगढ़ की तहसील कोल की बोली में सामान्य भूतकालीन रूप "य्" श्रुति से रहित मिलता है, लेकिन जिला मथुरा तथा दक्षिणी बुलंदशहर की तहसीलों में "य्" श्रुति अवश्य पाई जाती है। जैसे :

""कारौ छोरा बोलौ"" -(कोल, जिला अलीगढ़)।

""कारौ छोरा बोल्यौ"" -(माट जिला मथुरा)।

""कारौ छोरा बोल्यौ"" -(डीग जिला भरतपुर)।

""कारौ लौंडा बोल्यौ"" -(बरन, जिला बुलंदशहर)।

कन्नौजी की अपनी प्रकृति ओकारांत है। संज्ञा, विशेषण तथा क्रिया के रूपों में ब्रजभाषा जहाँ औकारांतता लेकर चलती है वहाँ कन्नौजी ओकारांतता का अनुसरण करती है। जिला अलीगढ़ की जलपदीय ब्रजभाषा में यदि हम कहें कि- ""कारौ छोरा बोलौ"" (= काला लड़का बोला) तो इसे ही कन्नौजी में कहेंगे कि-""कारो लरिका बोलो। भविष्यत्कालीन क्रिया कन्नौजी में तिङं्तरूपिणी होती है, लेकिन ब्रजभाषा में वह कृदंतरूपिणी पाई जाती है। यदि हम "लड़का जाएगा" और "लड़की जाएगी" वाक्यों को कन्नौजी तथा ब्रजभाषा में रूपांतरित करके बोलें तो निम्नांकित रूप प्रदान करेंगे :

कन्नौजी में - (1) लरिका जइहै। (2) बिटिया जइहै।

ब्रजभाषा में - (1) छोरा जाइगौ। (2) छोरी जाइगी।

उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि ब्रजभाषा के सामान्य भविष्यत् काल रूप में क्रिया कर्ता के लिंग के अनुसार परिवर्तित होती है, जब कि कन्नौजी में एक रूप रहती है।

इसके अतिरिक्त कन्नौजी में अवधी की भाँति विवृति (Hiatus) की प्रवृत्ति भी पाई जाती है जिसका ब्रजभाषा में अभाव है। कन्नौजी के संज्ञा, सर्वनाम आदि वाक्यपदों में संधिराहित्य प्राय: मिलता है, किंतु ब्रजभाषा में वे पद संधिगत अवस्था में मिलते हैं। उदाहरण :

(1) कन्नौजी -""बउ गओ"" (= वह गया)।

(2) ब्रजभाषा -""बो गयौ"" (= वह गया)।

उपर्युक्त वाक्यों के सर्वनाम पद "बउ" तथा "बो" में संधिराहित्य तथा संधि की अवस्थाएँ दोनों भाषाओं की प्रकृतियों को स्पष्ट करती हैं।

क्षेत्र विभाजन

ब्रजभाषा क्षेत्र की भाषागत विभिन्नता को दृष्टि में रखते हुए हम उसका विभाजन निम्नांकित रूप में कर सकते हैं :

(1) केंद्रीय ब्रज अर्थात् आदर्श ब्रजभाषा - अलीगढ़, मथुरा तथा पश्चिमी आगरे की ब्रजभाषा को "आदर्श ब्रजभाषा" नाम दिया जा सकता है।

(2) बुदेली प्रभावित ब्रजभाषा - ग्वालियर के उत्तर पश्चिम में बोली जानेवाली भाषा को यह नाम प्रदान किया जा सकता है।

(3) राजस्थान की जयपुरी से प्रभावित ब्रजभाषा - यह भरतपुर तथा उसके दक्षिणी भाग में बोली जाती है।

(4) सिकरवाड़ी ब्रजभाषा - ब्रजभाषा का यह रूप ग्वालियर के उत्तर पूर्व के अंचल में प्रचलित है जहाँ सिकरवाड़ राजपूतों की बस्तियाँ पाई जाती हैं।

(5) जादोबाटी ब्रजभाषा - करौली के क्षेत्र तथा चंबल नदी के मैदान में बोली जानेवाली ब्रजभाषा को "जादौबारी" नाम से पुकारा गया है। यहाँ जादौ (यादव) राजपूतों की बस्तियाँ हैं।

(6) कन्नौजी से प्रभावित ब्रजभाषा - जिला एटा तथा तहसील अनूपशहर एवं अतरौली की भाषा कन्नौजी से प्रभावित है।

ब्रजभाषी क्षेत्र की जनपदीय ब्रजभाषा का रूप पश्चिम से पूर्व की ओर कैसा होता चला गया है, इसके लिए निम्नांकित उदाहरण द्रष्टव्य हैं :

जिला गुडगाँव में - ""तमासो देख्ने कू गए। आपस् मैं झग्रो हो रह्यौ हो। तब गानो बंद हो गयो।""

जिला बुलंदशहर में -""लौंडा गॉम् कू आयौ और बहू सू बोल्यौ कै मैं नौक्री कू जांगौ।""

जिला अलीगढ़ में - ""छोरा गाँम् कूँ आयौ औरु बऊ ते बोलौ (बोल्यौ) कै मैं नौक्री कूँ जांगो।""

जिला एटा में - ""छोरा गॉम् कूँ आओ और बऊ ते बोलो कै मैं नौक्री कूँ जाउँगो।""

इसी प्रकार उत्तर से दक्षिण की ओर का परिवर्तन द्रष्टव्य है-

जिला अलीगढ़ में -""गु छोरा मेरे घर् ते चलौ गयौ।""

जिला मथुरा में -""बु छोरा मेरे घर् तैं चल्यौ गयौ।""

जिला भरतपुर में -""ओ छोरा तू कहा कररौय।""

जिला आगरा में -""मुक्तौ रुपइया अप्नी बइयरि कूँ भेजि दयौ।""

ग्वालियर (पश्चिमी भाग) में - "बानैं एक् बोकरा पाल लओ। तब बौ आनंद सै रैबे लगो।""

ब्रजभाषा की बोलियाँ

ब्रजभाषा एक साहित्यिक एवं स्वतंत्र भाषा है और इसकी अपनी कई बोलियाँ हैं।