"सूर्य नमस्कार": अवतरणों में अंतर

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== आसन ==
== आसन ==
सूर्य नमस्कार करने का सबसे अच्छा समय: सूर्योदय के समय खाली पेट करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।

प्राचीन समय में संतों और ऋषियों ने कहा था कि कुछ दिव्य शक्तियां मानव शरीर के विभिन्न हिस्सों को नियंत्रित करती हैं। सोलर प्लेक्सस मानव शरीर का एक केंद्रीय बिंदु है। यह नाभि के ठीक पीछे स्थित होता है। इसे शरीर का दूसरा दिमाग भी कहते हैं। यह सूर्य से जुड़ा हुआ माना गया है। सूर्य नमस्कार योग आपकी आंतरिक उर्जा को बढ़ाता है। इससे सोलर प्लेक्सस भी जागृत हो जाता है। सूर्य नमस्कार के 12 पोज 12 सूर्य चक्रों को आपके शरीर के साथ समायोजित कर देते हैं। जब रोज कुशलता से सूर्य नमस्कार योग आसन किया जाता है तो इससे आपके आत्मविश्वास, रचनात्मकता और मानसिक क्षमताओं का विकास होता है।

जब तेजी से ये सारे स्टेप्स किए जाते हैं तो सूर्य नमस्कार योग एक हार्ट एक्सराइज मानी जाती है। इसके अलावा जब सूर्य नमस्कार के सभी आसन धीमी गति से किए जाते हैं तो यह मन को शांति और आनंद मिलता है।  सूर्य नमस्कार के सभी चरण पूरे शरीर को स्वस्थ बनाने में बहुत उपयोगी हैं। 12 सूर्य नमस्कार आसन को सूर्य नमस्कार मुद्रा भी कहा जाता है। यह आपके पूरे शरीर की गांठों को खोल देता है और नियमित अभ्यास से शरीर में लचीलापन और ताकत बढ़ती है। सूर्य नमस्कार आपके मन, शरीर और आत्मा को पुनर्जागृत करने में मदद करते हैं। एक योग प्रशिक्षक आपको बेहतर तरीके से मुद्राओं को करने के बारे में समझा सकता है।

सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के
सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के
लिए भी उपयोगी बताया गया है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित है-
लिए भी उपयोगी बताया गया है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित है-


(1) दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।


(1) '''प्राणायाम''' : योग करने के लिए कुछ जरूरी सलाह- अपनी रीढ़ को सीधा रखें। आपके पैर ढीले न पड़ें ।
(2) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।


दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।
(3) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।


(4) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।


(2) '''हस्तोत्तानासन''': योग करते समय जरूरी सलाह- श्रोणि को थोड़ा आगे बढ़ाकर रखने की कोशिश करें। पीछे जाने के लिए अपने शरीर का इस्तेमाल करें। साथ ही हाथों की उंगलियों से भी खुद को ऊपर की ओर खींचने की कोशिश करें।
(5) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।


श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
(6) श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।


(3) '''हस्तपदासन''': योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपने हाथों को इसी स्थिति में रहने दें। जब तक आप स्टेप 3 मुद्रा को समाप्त नहीं कर लेते, तब तक हाथ को इधर-उधर ना करें।

तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।


(4) '''अश्व संचालासन:''' योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपने बाएं पैर को अपनी हथेलियों के बीच में ठीक से रखें।

इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।


(5) '''दंडासन:''' योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपनी बाहों को फर्श पर लंबवत रखें।

श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

(6) '''अष्टांग नमस्कार:''' योग करने के लिए जरूरी सलाह- दोनों हाथों, पैरों, घुटनों, छाती और ठोड़ी, शरीर के सभी 8 हिस्सों को फर्श से छूना चाहिए।

श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।
[[चित्र:Diafragma ademhaling mr.gif|thumb|right|सूर्यनमस्कार व श्वासोच्छवास]]
[[चित्र:Diafragma ademhaling mr.gif|thumb|right|सूर्यनमस्कार व श्वासोच्छवास]]


(7) '''भुजंगासन:''' योग करने के लिए जरूरी सलाह- सांस लें और अपनी छाती को आगे बढ़ाने का धीमा प्रयास करें। अपने शरीर को जरूरत से ज्यादा स्ट्रेच न करें। केवल तब तक खिंचाव करें जब तक आपका शरीर सहन कर पाए।
(7) इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।

इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।

(8) '''अधो मुख स्वांसन:''' योग करने के लिए जरूरी सलाह- जितना हो सके अपने पंजों को जमीन पर रखने की कोशिश करें।धीरे-धीरे अपनी सिर को ऊपर उठाने का प्रयास करें और धीरे-धीरे शरीर में खिंचाव पैदा करें।

श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

(9) '''अश्व संचलाना:''' योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपने दाहिने घुटने को अपने हाथों (हथेलियों) के बीच में रखें। आपका दाहिना पैर जमीन से समानांतर हो। ज्यादा खिंचाव करने के लिए अपने कूल्हों को जमीन की ओर दबाएं।

इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

(10) '''हस्तपादासन:''' योग करने के लिए जरूरी सलाह- सांस लेते रहें। अपने घुटनों को सीधा रखने की कोशिश करें।


तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।
(8) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।


(11) '''हस्तोत्तानासन:''' योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपने बाइसेप्स को अपने कानों के करीब रखें।
(9) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।


श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।
(10) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।


(12) '''ताड़ासन:''' योग करने के लिए जरूरी सलाह- सांस छोड़ें और अपनी बाहों को नीचे लाएं। आराम और शांत मन के साथ सीधे खड़े हों।
(11) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।


(12) यह स्थिति - पहली स्थिति की भाँति रहेगी।
यह स्थिति - पहली स्थिति की भाँति रहेगी।


सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियाँ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं। यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है।
सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियाँ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं। यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है।
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* [http://hindi.webdunia.com/religion/religion/dhyan_yog/0705/11/1070511057_1.htm सूर्य नमस्कार] - वेब दुनिया
* [http://hindi.webdunia.com/religion/religion/dhyan_yog/0705/11/1070511057_1.htm सूर्य नमस्कार] - वेब दुनिया
* [http://www.livehindustan.com//news/desh/national/article1-Surya-Namaskar--39-39-211489.html मध्यप्रदेश में बच्चों ने सूर्य नमस्कार का बनाया रिकॉर्ड ]
* [http://www.livehindustan.com//news/desh/national/article1-Surya-Namaskar--39-39-211489.html मध्यप्रदेश में बच्चों ने सूर्य नमस्कार का बनाया रिकॉर्ड ]
*[https://helloswasthya.com/swastha-jeevan/fitness/yoga/surya-namaskar/ सूर्य नमस्कार योग]


[[श्रेणी:योग]]
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07:12, 27 मार्च 2020 का अवतरण

चित्र:Suryanaman.jpg
सूर्य नमस्कार की बारह स्थितियाँ

सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है।

आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥
(जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है।

सूर्य नमस्कार मंत्र

Photo giving details of all 12 Mantras of Surya Namaskar.

सूर्य नमस्कार में बारह मंत्र बोले जाते हैं। प्रत्येक मंत्र में सूर्य का भिन्न नाम लिया जाता है। हर मंत्र का एक ही सरल अर्थ है- सूर्य को (मेरा) नमस्कार है। सूर्य नमस्कार के बारह स्थितियों या चरणों में इन बारह मंत्रों का उचारण जाता है। सबसे पहले सूर्य के लिए प्रार्थना और सबसे अंत में नमस्कार पूर्वक इसका महत्व बताता हुआ एक श्लोक बोलते हैं -

ॐ ध्येयः सदा सवितृ-मण्डल-मध्यवर्ती, नारायण: सरसिजासन-सन्निविष्टः।
केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी, हारी हिरण्मयवपुर्धृतशंखचक्रः ॥

ॐ मित्राय नमः।
ॐ रवये नमः।
ॐ सूर्याय नमः।
ॐ भानवे नमः।
ॐ खगाय नमः।
ॐ पूष्णे नमः।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।
ॐ मरीचये नमः। (वा, मरीचिने नम: - मरीचिन् यह सूर्य का एक नाम है)
ॐ आदित्याय नमः।
ॐ सवित्रे नमः।
ॐ अर्काय नमः।
ॐ भास्कराय नमः।

ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः।

आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥
जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है।

आसन

सूर्य नमस्कार करने का सबसे अच्छा समय: सूर्योदय के समय खाली पेट करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं।

प्राचीन समय में संतों और ऋषियों ने कहा था कि कुछ दिव्य शक्तियां मानव शरीर के विभिन्न हिस्सों को नियंत्रित करती हैं। सोलर प्लेक्सस मानव शरीर का एक केंद्रीय बिंदु है। यह नाभि के ठीक पीछे स्थित होता है। इसे शरीर का दूसरा दिमाग भी कहते हैं। यह सूर्य से जुड़ा हुआ माना गया है। सूर्य नमस्कार योग आपकी आंतरिक उर्जा को बढ़ाता है। इससे सोलर प्लेक्सस भी जागृत हो जाता है। सूर्य नमस्कार के 12 पोज 12 सूर्य चक्रों को आपके शरीर के साथ समायोजित कर देते हैं। जब रोज कुशलता से सूर्य नमस्कार योग आसन किया जाता है तो इससे आपके आत्मविश्वास, रचनात्मकता और मानसिक क्षमताओं का विकास होता है।

जब तेजी से ये सारे स्टेप्स किए जाते हैं तो सूर्य नमस्कार योग एक हार्ट एक्सराइज मानी जाती है। इसके अलावा जब सूर्य नमस्कार के सभी आसन धीमी गति से किए जाते हैं तो यह मन को शांति और आनंद मिलता है।  सूर्य नमस्कार के सभी चरण पूरे शरीर को स्वस्थ बनाने में बहुत उपयोगी हैं। 12 सूर्य नमस्कार आसन को सूर्य नमस्कार मुद्रा भी कहा जाता है। यह आपके पूरे शरीर की गांठों को खोल देता है और नियमित अभ्यास से शरीर में लचीलापन और ताकत बढ़ती है। सूर्य नमस्कार आपके मन, शरीर और आत्मा को पुनर्जागृत करने में मदद करते हैं। एक योग प्रशिक्षक आपको बेहतर तरीके से मुद्राओं को करने के बारे में समझा सकता है।

सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ प्रक्रिया है। यह अकेला अभ्यास ही साधक को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ पहुंचाने में समर्थ है। इसके अभ्यास से साधक का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। 'सूर्य नमस्कार' स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है। सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित है-


(1) प्राणायाम : योग करने के लिए कुछ जरूरी सलाह- अपनी रीढ़ को सीधा रखें। आपके पैर ढीले न पड़ें ।

दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान 'आज्ञा चक्र' पर केंद्रित करके 'सूर्य भगवान' का आह्वान 'ॐ मित्राय नमः' मंत्र के द्वारा करें।


(2) हस्तोत्तानासन: योग करते समय जरूरी सलाह- श्रोणि को थोड़ा आगे बढ़ाकर रखने की कोशिश करें। पीछे जाने के लिए अपने शरीर का इस्तेमाल करें। साथ ही हाथों की उंगलियों से भी खुद को ऊपर की ओर खींचने की कोशिश करें।

श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।


(3) हस्तपदासन: योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपने हाथों को इसी स्थिति में रहने दें। जब तक आप स्टेप 3 मुद्रा को समाप्त नहीं कर लेते, तब तक हाथ को इधर-उधर ना करें।

तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।


(4) अश्व संचालासन: योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपने बाएं पैर को अपनी हथेलियों के बीच में ठीक से रखें।

इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।


(5) दंडासन: योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपनी बाहों को फर्श पर लंबवत रखें।

श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

(6) अष्टांग नमस्कार: योग करने के लिए जरूरी सलाह- दोनों हाथों, पैरों, घुटनों, छाती और ठोड़ी, शरीर के सभी 8 हिस्सों को फर्श से छूना चाहिए।

श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को 'अनाहत चक्र' पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।

सूर्यनमस्कार व श्वासोच्छवास

(7) भुजंगासन: योग करने के लिए जरूरी सलाह- सांस लें और अपनी छाती को आगे बढ़ाने का धीमा प्रयास करें। अपने शरीर को जरूरत से ज्यादा स्ट्रेच न करें। केवल तब तक खिंचाव करें जब तक आपका शरीर सहन कर पाए।

इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।

(8) अधो मुख स्वांसन: योग करने के लिए जरूरी सलाह- जितना हो सके अपने पंजों को जमीन पर रखने की कोशिश करें।धीरे-धीरे अपनी सिर को ऊपर उठाने का प्रयास करें और धीरे-धीरे शरीर में खिंचाव पैदा करें।

श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान 'सहस्रार चक्र' पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

(9) अश्व संचलाना: योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपने दाहिने घुटने को अपने हाथों (हथेलियों) के बीच में रखें। आपका दाहिना पैर जमीन से समानांतर हो। ज्यादा खिंचाव करने के लिए अपने कूल्हों को जमीन की ओर दबाएं।

इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को 'स्वाधिष्ठान' अथवा 'विशुद्धि चक्र' पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

(10) हस्तपादासन: योग करने के लिए जरूरी सलाह- सांस लेते रहें। अपने घुटनों को सीधा रखने की कोशिश करें।

तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे 'मणिपूरक चक्र' पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

(11) हस्तोत्तानासन: योग करने के लिए जरूरी सलाह- अपने बाइसेप्स को अपने कानों के करीब रखें।

श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे 'विशुद्धि चक्र' पर केन्द्रित करें।

(12) ताड़ासन: योग करने के लिए जरूरी सलाह- सांस छोड़ें और अपनी बाहों को नीचे लाएं। आराम और शांत मन के साथ सीधे खड़े हों।

यह स्थिति - पहली स्थिति की भाँति रहेगी।

सूर्य नमस्कार की उपरोक्त बारह स्थितियाँ हमारे शरीर को संपूर्ण अंगों की विकृतियों को दूर करके निरोग बना देती हैं। यह पूरी प्रक्रिया अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यासी के हाथों-पैरों के दर्द दूर होकर उनमें सबलता आ जाती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है।

सूर्य नमस्कार के द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं अथवा इनके होने की संभावना समाप्त हो जाती है। इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचनतंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। इस अभ्यास के द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं, इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं। सूर्य नमस्कार की तीसरी व पांचवीं स्थितियां सर्वाइकल एवं स्लिप डिस्क वाले रोगियों के लिए वर्जित हैं।

सूर्यनमस्कार प्रक्रिया क्रम

सूर्यनमस्कार के आसन

आसन श्वासक्रिया चित्र
प्रणामासन उच्छवास
हस्त उत्तानासन श्वास
उत्तानासन उच्छवास
अश्व संचालनासन श्वास
चतुरंग दंडासन उच्छवास
अष्टांग नमस्कार रोखा
भुजंगासन श्वास
अधोमुक्त श्वानासन उच्छवास
अश्व संचालनासन श्वास
१० उत्तानासन उच्छवास
११ हस्त उत्तानासन श्वास
१२ प्रणामासन उच्छवास

मंत्र और चक्र

मन्त्र चक्र आसन
बीज नमस्कार
1 ॐ ह्रां ॐ मित्राय नमः अनन्तचक्र प्रणामासन
2 ॐ ह्रीं ॐ रवये नमः विशुद्धिचक्र हस्तोत्थानासन
3 ॐ ह्रूं ॐ सूर्याय नमः स्वाधिष्ठानचक्र हस्तपादासन
4 ॐ ह्रैं ॐ भानवे नमः आज्ञाचक्र एकपादप्रसारणासन
5 ॐ ह्रौं ॐ खगाय नमः विशुद्धिचक्र दण्डासन
6 ॐ ह्रः ॐ पूष्णे नमः मणिपुरचक्र अष्टांगनमस्कारासन
7 ॐ ह्रां) ॐ हिरण्यगर्भाय नमः स्वाधिष्ठानचक्र भुजंगासन
8 ॐ मरीचये नमः विशुद्धिचक्र अधोमुखश्वानासन
9 ॐ ह्रूं ॐ आदित्याय नमः आज्ञाचक्र अश्वसंचालनासन
10 ॐ ह्रैं ॐ सवित्रे नमः स्वाधिष्ठानचक्र उत्थानासन
11 ह्रौं ॐ अर्काय नमः विशुद्धिचक्र हस्तोत्थानासन
12 ॐ ह्रः ॐ भास्कराय नमः अनन्तचक्र प्रणामासन
13 (ॐ श्रीसवितृसूर्यनारायणाय नमः) अनन्तचक्र प्रणामासन

14।। (ॐ हे भो हरे नमः)।।

बाहरी कड़ियाँ