"हेनरी टामस कोलब्रुक": अवतरणों में अंतर

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
No edit summary
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:HTColebrooke.jpg|right|thumb|300px|हेनरी टामस कोलब्रुक]]
[[चित्र:HTColebrooke.jpg|right|thumb|300px|हेनरी टामस कोलब्रुक]]


'''हेनरी टामस कोलब्रुक''' (१७६५-१८३७ ई.)। [[इंग्लैंड]] के प्रख्यात प्राच्य विद्याविशारद तथा [[गणित]]ज्ञ थे। उन्हें '[[यूरोप]] का प्रथम महान [[संस्कृत]] विद्वान' माना जाता है।
'''हेनरी टामस कोलब्रुक''' (१७६५-१८३७ ई.)। [[इंग्लैण्ड|इंग्लैंड]] के प्रख्यात प्राच्य विद्याविशारद तथा [[गणित]]ज्ञ थे। उन्हें '[[यूरोप]] का प्रथम महान [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] विद्वान' माना जाता है।


== परिचय ==
== परिचय ==
हेनरी टामस कोलब्रुक का जन्म १५ जून,१७६५ ई. को [[लन्दन]] में हुआ था। उनके पिता सर जार्ज कोलब्रुक [[ईस्ट इंडिया कंपनी]] के संचालक-मंडल के अध्यक्ष थे। अत: १७८२-८३ ई. में वे [[भारत]] आए और [[तिरहुत]] के सहायक कलक्टर के पद पर नियुक्त हुए। १७९५ में उनकी नियुक्ति [[मिरजापुर]] (उत्तर प्रदेश) में हुई। वहाँ उनको प्राच्य भाषाओं के अध्ययन के लिये विशेष अवसर प्राप्त हुआ। १८०१ ई. में वे [[कोलकाता|कलकत्ते]] के सदर दीवानी आदालत के [[न्यायधीश|जज]] नियुक्त किए गए और चार वर्ष के पश्चात् उस अदालत के वे अध्यक्ष बने। उसी समय में कलकत्ता के [[फोर्ट विलियम कालेज]] में [[संस्कृत]] तथा [[हिंदू कानून]] के अवैतनिक अध्यापक नियुक्त हुए। वे अनेक वर्षों तक बोर्ड ऑव रेवेन्यु के सदस्य भी रहे।
हेनरी टामस कोलब्रुक का जन्म १५ जून,१७६५ ई. को [[लंदन|लन्दन]] में हुआ था। उनके पिता सर जार्ज कोलब्रुक [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी|ईस्ट इंडिया कंपनी]] के संचालक-मंडल के अध्यक्ष थे। अत: १७८२-८३ ई. में वे [[भारत]] आए और [[तिरहुत प्रमंडल|तिरहुत]] के सहायक कलक्टर के पद पर नियुक्त हुए। १७९५ में उनकी नियुक्ति [[मिर्ज़ापुर|मिरजापुर]] (उत्तर प्रदेश) में हुई। वहाँ उनको प्राच्य भाषाओं के अध्ययन के लिये विशेष अवसर प्राप्त हुआ। १८०१ ई. में वे [[कोलकाता|कलकत्ते]] के सदर दीवानी आदालत के [[न्यायाधीश|जज]] नियुक्त किए गए और चार वर्ष के पश्चात् उस अदालत के वे अध्यक्ष बने। उसी समय में कलकत्ता के [[फोर्ट विलियम कॉलेज|फोर्ट विलियम कालेज]] में [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] तथा [[हिंदू कानून]] के अवैतनिक अध्यापक नियुक्त हुए। वे अनेक वर्षों तक बोर्ड ऑव रेवेन्यु के सदस्य भी रहे।


कोलब्रुक बड़े मेधावी गणितज्ञ, उत्साही ज्योतिषी तथा संस्कृत भाषा के गंभीर विद्वान् थे। इन्होंने प्राच्य विद्या के विविध अंगों पर मौलिक लेख लिखे जिनके द्वारा इन विषयों का प्रथम प्रामाणिक परिचय पाश्चात्य विद्वानों को मिला। [[वेद]], [[संस्कृत व्याकरण]], [[कोश]], [[जैन दर्शन|जैनमत]], [[हिंदू विधि]], [[भारतीय दर्शन]], भारतीय [[बीजगणित]] आदि विषयों पर इनके लेख आज भी ज्ञानवर्धक माने जाते हैं। इनके ये लेख कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली ‘एशियांटिक रिसर्सेज़’ नामक प्रख्यात शोधपत्रिका में छपे। बाद में इनका संग्रह उनके पुत्र ने स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में किया। वे १८०७-१४ तक [[बंगाल एशियाटिक सोसाइटी]] के सभापति रहे। लंदन लौटकर उन्होंने [[रॉयल एशियाटिक सोसाइटी]] की स्थापना (१८२३) में विशेष योग दिया। वे उसके संचालक भी बने। यूरोप की अनेक सभाओं ने अपना सम्मानित सदस्य बनाकर इनके प्रति विशेष आदर प्रदर्शित किया। भारत में रहते हुए इन्होंने संस्कृत [[पाण्डुलिपि|हस्तलेखों]] का एक विशाल तथा बहुमूल्य संग्रह किया था। इस संग्रह को उन्होंने १८१८ ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के पुस्तकालय को दे दिया। इनके पुत्र [[सर टामस एडवर्ड कोलब्रुक]] (१८१३-९० ई.) इंग्लैंड के प्रख्यात राजनीतिज्ञ हुए।
कोलब्रुक बड़े मेधावी गणितज्ञ, उत्साही ज्योतिषी तथा संस्कृत भाषा के गंभीर विद्वान् थे। इन्होंने प्राच्य विद्या के विविध अंगों पर मौलिक लेख लिखे जिनके द्वारा इन विषयों का प्रथम प्रामाणिक परिचय पाश्चात्य विद्वानों को मिला। [[वेद]], [[संस्कृत व्याकरण]], [[कोश]], [[जैन दर्शन|जैनमत]], [[हिंदू विधि]], [[भारतीय दर्शन]], भारतीय [[बीजगणित]] आदि विषयों पर इनके लेख आज भी ज्ञानवर्धक माने जाते हैं। इनके ये लेख कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली ‘एशियांटिक रिसर्सेज़’ नामक प्रख्यात शोधपत्रिका में छपे। बाद में इनका संग्रह उनके पुत्र ने स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में किया। वे १८०७-१४ तक [[बंगाल एशियाटिक सोसाइटी]] के सभापति रहे। लंदन लौटकर उन्होंने [[रॉयल एशियाटिक सोसाइटी]] की स्थापना (१८२३) में विशेष योग दिया। वे उसके संचालक भी बने। यूरोप की अनेक सभाओं ने अपना सम्मानित सदस्य बनाकर इनके प्रति विशेष आदर प्रदर्शित किया। भारत में रहते हुए इन्होंने संस्कृत [[पाण्डुलिपि|हस्तलेखों]] का एक विशाल तथा बहुमूल्य संग्रह किया था। इस संग्रह को उन्होंने १८१८ ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के पुस्तकालय को दे दिया। इनके पुत्र [[सर टामस एडवर्ड कोलब्रुक]] (१८१३-९० ई.) इंग्लैंड के प्रख्यात राजनीतिज्ञ हुए।

05:38, 2 मार्च 2020 का अवतरण

हेनरी टामस कोलब्रुक

हेनरी टामस कोलब्रुक (१७६५-१८३७ ई.)। इंग्लैंड के प्रख्यात प्राच्य विद्याविशारद तथा गणितज्ञ थे। उन्हें 'यूरोप का प्रथम महान संस्कृत विद्वान' माना जाता है।

परिचय

हेनरी टामस कोलब्रुक का जन्म १५ जून,१७६५ ई. को लन्दन में हुआ था। उनके पिता सर जार्ज कोलब्रुक ईस्ट इंडिया कंपनी के संचालक-मंडल के अध्यक्ष थे। अत: १७८२-८३ ई. में वे भारत आए और तिरहुत के सहायक कलक्टर के पद पर नियुक्त हुए। १७९५ में उनकी नियुक्ति मिरजापुर (उत्तर प्रदेश) में हुई। वहाँ उनको प्राच्य भाषाओं के अध्ययन के लिये विशेष अवसर प्राप्त हुआ। १८०१ ई. में वे कलकत्ते के सदर दीवानी आदालत के जज नियुक्त किए गए और चार वर्ष के पश्चात् उस अदालत के वे अध्यक्ष बने। उसी समय में कलकत्ता के फोर्ट विलियम कालेज में संस्कृत तथा हिंदू कानून के अवैतनिक अध्यापक नियुक्त हुए। वे अनेक वर्षों तक बोर्ड ऑव रेवेन्यु के सदस्य भी रहे।

कोलब्रुक बड़े मेधावी गणितज्ञ, उत्साही ज्योतिषी तथा संस्कृत भाषा के गंभीर विद्वान् थे। इन्होंने प्राच्य विद्या के विविध अंगों पर मौलिक लेख लिखे जिनके द्वारा इन विषयों का प्रथम प्रामाणिक परिचय पाश्चात्य विद्वानों को मिला। वेद, संस्कृत व्याकरण, कोश, जैनमत, हिंदू विधि, भारतीय दर्शन, भारतीय बीजगणित आदि विषयों पर इनके लेख आज भी ज्ञानवर्धक माने जाते हैं। इनके ये लेख कलकत्ता से प्रकाशित होने वाली ‘एशियांटिक रिसर्सेज़’ नामक प्रख्यात शोधपत्रिका में छपे। बाद में इनका संग्रह उनके पुत्र ने स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में किया। वे १८०७-१४ तक बंगाल एशियाटिक सोसाइटी के सभापति रहे। लंदन लौटकर उन्होंने रॉयल एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना (१८२३) में विशेष योग दिया। वे उसके संचालक भी बने। यूरोप की अनेक सभाओं ने अपना सम्मानित सदस्य बनाकर इनके प्रति विशेष आदर प्रदर्शित किया। भारत में रहते हुए इन्होंने संस्कृत हस्तलेखों का एक विशाल तथा बहुमूल्य संग्रह किया था। इस संग्रह को उन्होंने १८१८ ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के पुस्तकालय को दे दिया। इनके पुत्र सर टामस एडवर्ड कोलब्रुक (१८१३-९० ई.) इंग्लैंड के प्रख्यात राजनीतिज्ञ हुए।