"नौ दो ग्यारह (1957 फ़िल्म)": अवतरणों में अंतर
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'''नौ दो ग्यारह''' 1957 में बनी [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]] की फिल्म है। इस फ़िल्म के निर्माता [[देव आनन्द]] थे और निर्देशक उनके छोटे भाई [[विजय आनन्द]] थे। यह विजय आनन्द द्वारा पहली निर्देशित फ़िल्म थी। |
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इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार देव आनन्द व उनकी पत्नी [[कल्पना कार्तिक]] हैं। |
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| "आँखों में क्या जी" |
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16:34, 1 मार्च 2020 के समय का अवतरण
नौ दो ग्यारह | |
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नौ दो ग्यारह का पोस्टर | |
निर्देशक | विजय आनन्द |
निर्माता | देव आनन्द |
अभिनेता |
देव आनन्द, जीवन, कल्पना कार्तिक, शशिकला, ललिता पवार |
संगीतकार |
सचिन देव बर्मन (संगीत निर्देशक), मजरुह सुल्तानपुरी (गीतकार) |
प्रदर्शन तिथि |
1957 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
नौ दो ग्यारह 1957 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इस फ़िल्म के निर्माता देव आनन्द थे और निर्देशक उनके छोटे भाई विजय आनन्द थे। यह विजय आनन्द द्वारा पहली निर्देशित फ़िल्म थी। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार देव आनन्द व उनकी पत्नी कल्पना कार्तिक हैं।
संक्षेप[संपादित करें]
मदन गोपाल किराया न दे पाने के कारण हर घर से निकाला जाता है। इस बार भी निकाले जाने के बाद वह चुपके से अपने दोस्त के पास जाता है जहाँ उसे अपने मुम्बई में रहने वाले चाचा मनोहर लाल का ख़त मिलता है जिसमें लिखा होता है कि वह अपनी वसीयत मदन के नाम कर रहे हैं। वसीयत के मुताबिक़ उनकी नौ लाख की जायदाद और दो लाख की नक़दी अब मदन की होगी यानि नौ दो ग्यारह। पहले मनोहर लाल ने अपनी वसीयत अपनी साली (ललिता पवार) के लड़के कुलदीप के नाम लिखी थी लेकिन उसकी आवारगी देखकर मनोहर लाल ने अपना इरादा बदल लिया।
मदन किसी तरह एक ट्रक का बंदोबस्त करता है और मुम्बई के लिए रवाना होता ही है कि रास्ते में उसे वही दोस्त किसी शादी में खींच लाता है। दुल्हन रक्षा (कल्पना कार्तिक) होती है और मदन और उसका दोस्त उसी के कमरे के बाहर खड़े होकर बातें करने लगते हैं। दूल्हा सुरजीत (जीवन) रक्षा के पिता से और अधिक दहेज़ की मांग करता है जिसका पता रक्षा को लग जाता है और वह यह शादी नहीं करना चाहती है। इधर मदन के पूछने पर उसका दोस्त बताता है कि सुरजीत मुम्बई में होटल का मालिक़ है लेकिन संदिग्ध चरित्र का है। मदन कहता है कि अगर वह दुल्हन होता तो भाग जाता जो रक्षा सुन लेती है।
रक्षा सरदार के भेष में मदन की ट्रक में छुप जाती है लेकिन मदन को मालूम पड़ जाता है। रक्षा के पास ढेर सारे पैसे देखकर मदन समझता है कि रक्षा चोर है। फिर मदन को रक्षा की असलियत मालूम पड़ जाती है और वो दोनों एक दूसरे के क़रीब आने लगते हैं। इसी बीच वो मुम्बई पहुँच जाते हैं मदन अपने दोस्त राधेश्याम (मदन पुरी) से मिलने जाता है जहाँ उसे पता चलता है कि उसके चाचा का कुछ समय पहले ही देहान्त हो गया है और अब कुलदीप और उसकी माँ सारी जायदाद के मालिक़ बने बैठे हैं। मदन जब अपने चाचा द्वारा लिखा पत्र फिर से देखता है तो उसे एहसास होता है कि यह तो कुछ माह पहले का लिखा हुआ है।
राधेश्याम मदन को सलाह देता है कि वो दोनों पति पत्नी बन कर चाचा की जायदाद के मैनेजर की नौकरी कर लें और मामले की तह तक जाने की कोशिश करें। नौकरी पाकर उन दोनों की उलझनें और बढ़ जाती हैं। क्या मदन अपना हक़ हासिल करने में सफल हो पाता है?
मुख्य कलाकार[संपादित करें]
- देव आनन्द - मदन गोपाल
- कल्पना कार्तिक - रक्षा
- जीवन - सुरजीत
- मदन पुरी - राधेश्याम
- ललिता पवार - कुलदीप की माँ
संगीत[संपादित करें]
इस फ़िल्म के संगीतकार सचिन देव बर्मन हैं तथा गीतकार मजरुह सुल्तानपुरी हैं। फ़िल्म के गीत क्रमबद्ध इस प्रकार हैं
गीत | गायक/गायिका | चित्रित |
---|---|---|
"हम हैं राही प्यार के" | किशोर कुमार | देव आनन्द |
"आँखों में क्या जी" | किशोर कुमार और आशा भोंसले | देव आनन्द और कल्पना कार्तिक |
"कली के रूप में" | मोहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले | देव आनन्द और कल्पना कार्तिक |
"क्या हो जो फिर दिन रंगीला हो" | आशा भोंसले और गीता दत्त | हेलन और शशि कला |
"आजा पंछी अकेला है" | मोहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले | देव आनन्द और कल्पना कार्तिक |
"ढलती जाये चुनरिया" | आशा भोंसले | देव आनन्द और कल्पना कार्तिक |
"देखो तो इधर हाय हाय" | आशा भोंसले | देव आनन्द और शशि कला |
"सी ले ज़ुबान" | गीता दत्त | शशि कला |
रोचक तथ्य[संपादित करें]
यह कल्पना कार्तिक की आख़िरी फ़िल्म थी। इसके बाद उन्होंने गृहस्थी सम्भालने का इरादा कर लिया। यह विजय आनन्द द्वारा निर्देशित पहली फ़िल्म थी।