"राव गुजरमल सिंह": अवतरणों में अंतर

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'''राव गुजरमल सिंह''' (1739-1750) राव नंदराम सिंह के पुत्र थे तथा चंद्रवंशी [[अहीर]] शासक थे। राव गुजरमल के बड़े भाई राव बाल किशन 24 फरवरी 1739 को करनाल युद्ध में [[नादिर शाह]] के विरुद्ध लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुए, उनके बाद राव गुजरमल राजा बने। राव बाल किशन की वीरता और बहादुरी को देखते हुए नादिर शाह ने राव राज घराना को "राव बहादुर" का खिताब नवाजा। राव गुजरमल के समय पर अहीर परिवार की शक्ति चरम सीमा पर थी। उनकी जागीर में रेवाड़ी, झज्जर, दादरी, हांसी, हिसार, कनौद, व नारनौल आदि प्रमुख नगर शामिल थे। गुरावडा व गोकुल गढ़ के किले इसी काल की देन है। गोकुल सिक्का मुद्रा का प्रचालन इसी काल में किया गया। अपने पिता के नाम स्तूप व जलाशय का भी निर्माण गुजरमल ने करवाया था। उन्होंने मेरठ के ब्रहनपुर व मोरना तथा रेवाड़ी में रामगढ़, जैतपुर व श्रीनगर गाँवों की स्थापना की थी।
'''राव गुजरमल सिंह''' (1739-1750) राव नंदराम सिंह के पुत्र थे तथा चंद्रवंशी [[अहीर]] शासक थे। राव गुजरमल के बड़े भाई राव बाल किशन 24 फरवरी 1739 को करनाल युद्ध में [[नादिर शाह]] के विरुद्ध लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुए, उनके बाद राव गुजरमल राजा बने। राव बाल किशन की वीरता और बहादुरी को देखते हुए नादिर शाह ने राव राज घराना को "राव बहादुर" का खिताब नवाजा। राव गुजरमल के समय पर अहीर परिवार की शक्ति चरम सीमा पर थी। उनकी जागीर में रेवाड़ी, झज्जर, दादरी, हांसी, हिसार, कनौद, व नारनौल आदि प्रमुख नगर शामिल थे। गुरावडा व गोकुल गढ़ के किले इसी काल की देन है। गोकुल सिक्का मुद्रा का प्रचालन इसी काल में किया गया। अपने पिता के नाम स्तूप व जलाशय का भी निर्माण गुजरमल ने करवाया था। उन्होंने मेरठ के ब्रहनपुर व मोरना तथा रेवाड़ी में रामगढ़, जैतपुर व श्रीनगर गाँवों की स्थापना की थी।


[[फर्रूखनगर]] का बलोच राजा व हाथी सिंह का वंशज घसेरा का बहादुर सिंह दोनों राव गुजरमल के कातर शत्रु थे। बहादुर सिंह, भरतपुर के [[जाट]] राजा [[सूरजमल]] से अलग होकर स्वतंत्र शासन कर रहा था। तब राव गुजरमल ने सूरजमल के साथ मिलकर उसे मुहतोड़ जवाब दिया। गुजरमल का बहादुर सिंह के ससुर नीमराना के टोडरमल से भी मैत्रीपूर्ण सम्बंध था। सन 1750 मे, टोडरमल ने राव गूजरमल को बहादुर सिंह के कहने पर आमंत्रित किया ओर धोखे से उनका वध कर दिया।<ref name="Mahendergarh1"/><ref name="S. D. S. Yadava1">{{cite book | url=http://books.google.com/?id=p69GMA226bgC&pg=PA52&dq=ahir+ruler+chief#v=onepage&q=ahir%20ruler%20chief&f=false | title=Followers of Krishna: Yadavas of India | publisher=Lancer Publishers | author=S. D. S. Yadava | year=2006 | pages=51 | isbn=9788170622161}}</ref>
[[फर्रूखनगर]] का बलोच राजा व हाथी सिंह का वंशज घसेरा का बहादुर सिंह दोनों राव गुजरमल के कातर शत्रु थे। बहादुर सिंह, भरतपुर के [[जाट]] राजा [[सूरजमल]] से अलग होकर स्वतंत्र शासन कर रहा था। तब राव गुजरमल ने सूरजमल के साथ मिलकर उसे मुहतोड़ जवाब दिया। गुजरमल का बहादुर सिंह के ससुर नीमराना के टोडरमल से भी मैत्रीपूर्ण सम्बंध था। सन 1750 मे, टोडरमल ने राव गुजरमल को बहादुर सिंह के कहने पर आमंत्रित किया ओर धोखे से उनका वध कर दिया।<ref name="Mahendergarh1"/><ref name="S. D. S. Yadava1">{{cite book | url=http://books.google.com/?id=p69GMA226bgC&pg=PA52&dq=ahir+ruler+chief#v=onepage&q=ahir%20ruler%20chief&f=false | title=Followers of Krishna: Yadavas of India | publisher=Lancer Publishers | author=S. D. S. Yadava | year=2006 | pages=51 | isbn=9788170622161}}</ref>


==सन्दर्भ==
==सन्दर्भ==

03:16, 22 फ़रवरी 2020 का अवतरण

राव गुजरमल सिंह (1739-1750) राव नंदराम सिंह के पुत्र थे तथा चंद्रवंशी अहीर शासक थे। राव गुजरमल के बड़े भाई राव बाल किशन 24 फरवरी 1739 को करनाल युद्ध में नादिर शाह के विरुद्ध लड़ते हुये वीरगति को प्राप्त हुए, उनके बाद राव गुजरमल राजा बने। राव बाल किशन की वीरता और बहादुरी को देखते हुए नादिर शाह ने राव राज घराना को "राव बहादुर" का खिताब नवाजा। राव गुजरमल के समय पर अहीर परिवार की शक्ति चरम सीमा पर थी। उनकी जागीर में रेवाड़ी, झज्जर, दादरी, हांसी, हिसार, कनौद, व नारनौल आदि प्रमुख नगर शामिल थे। गुरावडा व गोकुल गढ़ के किले इसी काल की देन है। गोकुल सिक्का मुद्रा का प्रचालन इसी काल में किया गया। अपने पिता के नाम स्तूप व जलाशय का भी निर्माण गुजरमल ने करवाया था। उन्होंने मेरठ के ब्रहनपुर व मोरना तथा रेवाड़ी में रामगढ़, जैतपुर व श्रीनगर गाँवों की स्थापना की थी।

फर्रूखनगर का बलोच राजा व हाथी सिंह का वंशज घसेरा का बहादुर सिंह दोनों राव गुजरमल के कातर शत्रु थे। बहादुर सिंह, भरतपुर के जाट राजा सूरजमल से अलग होकर स्वतंत्र शासन कर रहा था। तब राव गुजरमल ने सूरजमल के साथ मिलकर उसे मुहतोड़ जवाब दिया। गुजरमल का बहादुर सिंह के ससुर नीमराना के टोडरमल से भी मैत्रीपूर्ण सम्बंध था। सन 1750 मे, टोडरमल ने राव गुजरमल को बहादुर सिंह के कहने पर आमंत्रित किया ओर धोखे से उनका वध कर दिया।[1][2]

सन्दर्भ

  1. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Mahendergarh1 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  2. S. D. S. Yadava (2006). Followers of Krishna: Yadavas of India. Lancer Publishers. पृ॰ 51. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170622161.