"पादप कार्यिकी": अवतरणों में अंतर

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पौधे की वृद्धि और विकास का पूर्ण रूप से नियंत्रण इस प्रकार किया जा सकता है:-
पौधे की वृद्धि और विकास का पूर्ण रूप से नियंत्रण इस प्रकार किया जा सकता है:-


*'''प्रकाशकालिता''' की खोज से अनेक पौधों में उनका वांछित दीप्तिकाल घटा या बढ़ाकर तथा निम्न ताप उपचार द्वारा असामयिक पुष्पन तथा शीत प्रजातियों को सामान्य वातावरण में फलने-फूलने को प्रेरित किया जाता है। पादप शरीर-क्रिया विज्ञान के अनुसन्धान से कुछ क्रियाएं जैसे प्रकाशीय श्वसन को कम करके पौधों की प्रकाश संश्लेषण की क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
*'''[[प्रकाशकालिता]]''' की खोज से अनेक पौधों में उनका वांछित दीप्तिकाल घटा या बढ़ाकर तथा निम्न ताप उपचार द्वारा असामयिक पुष्पन तथा शीत प्रजातियों को सामान्य वातावरण में फलने-फूलने को प्रेरित किया जाता है। पादप शरीर-क्रिया विज्ञान के अनुसन्धान से कुछ क्रियाएं जैसे प्रकाशीय श्वसन को कम करके पौधों की प्रकाश संश्लेषण की क्षमता बढ़ाई जा सकती है।


* '''ऊतक संवर्धन''' तकनीक से पादप क्रिया में वैज्ञानिकों ने कम समय में ऐसे पौधे तैयार किए हैं जो सामान्य रूप से प्रजनन द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता और इनका उपयोग व्यापक स्तर पर किया जा रहा है।
* '''[[ऊतक संवर्धन]]''' तकनीक से पादप क्रिया में वैज्ञानिकों ने कम समय में ऐसे पौधे तैयार किए हैं जो सामान्य रूप से प्रजनन द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता और इनका उपयोग व्यापक स्तर पर किया जा रहा है।
* विभिन्न पादप हार्मोन जैसे- ऑक्सिन, जिबरेलिन, आदि।
* विभिन्न [[पादप हार्मोन]] जैसे- ऑक्सिन, जिबरेलिन, आदि।


यह कहना गलत नहीं होगा कि कृषि जगत में [[हरित क्रांति]] की सफलता पादप कार्यिकी के ज्ञान व नवीन खोजो के कारण ही संभव हो पाई है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि कृषि जगत में [[हरित क्रांति]] की सफलता पादप कार्यिकी के ज्ञान व नवीन खोजो के कारण ही संभव हो पाई है।

14:27, 20 फ़रवरी 2020 का अवतरण

अंकुरण दर का एक प्रयोग

पादप क्रिया विज्ञान या पादपकार्यिकी (Plant physiology), वनस्पति विज्ञान की वह शाखा है जो |पादपों के कार्यिकी (physiology) से सम्बन्धित है। पादप कार्यिकी में पौधों में होने वाली विभिन्न प्रकार की जैविक क्रियाओं (Vital Activities) का अध्ययन किया जाता है। पादप क्रियाविज्ञान का अध्ययन सर्वप्रथम स्टीफन हेल्स (Stephen Hales) ने किया। उन्होंने प्रथम बार अपने भौतिकी व संख्यिकी के ज्ञान के आधार पर प्रयोगात्मक विधियां ज्ञात की जिनसे पौधों में होने वाले परिवर्तन जैसे पौधों में रसों (Saps) की गति, वाष्पोत्सर्जन दर, पौधों में रसारोहण क्रिया में मूलदाब व केशिका बल को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

जैविक क्रियाएँ

पादप कोशिका में होने वाले सभी रासायनिक एवं भौतिक परिवर्तन तथा पादप अथवा पादप कोशिका एवं वातावरण (environment) के बीच सभी प्रकार का आदान-प्रदान जैविक क्रिया के अन्तर्गत आते हैं। जैविक क्रियाएंं निम्नलिखित होती है:-

  • रसायनिक परिवर्तन : रसायनिक परिवर्तन के अंतर्गत प्रकाश संश्लेषण, पाचन, श्वसन, प्रोटीन, वसा तथा हॉरमोन्स पदार्थों का संश्लेषण अदि आते हैं।
  • भौतिक परिवर्तन : भौतिक परिवर्तन के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की गैसें कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, तथा परासरण, वाष्पोत्सर्जन, रसारोहण, खनिज तत्व एवं जल का अवशोषण आदि।

कोशिका वृद्धि और विकास में रासायनिक एवं भौतिक दोनों परिवर्तन होते है। प्रकाश संश्लेषण और श्वसन में वातावरण और कोशिका के बीच ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है। इसी प्रकार वाष्पोत्सर्जन तथा जल अवशोषण में वातावरण तथा पादप कोशिका के बीच जल के अणुओं का आदान-प्रदान होता है।

पौधे की वृद्धि और विकास का पूर्ण रूप से नियंत्रण इस प्रकार किया जा सकता है:-

  • प्रकाशकालिता की खोज से अनेक पौधों में उनका वांछित दीप्तिकाल घटा या बढ़ाकर तथा निम्न ताप उपचार द्वारा असामयिक पुष्पन तथा शीत प्रजातियों को सामान्य वातावरण में फलने-फूलने को प्रेरित किया जाता है। पादप शरीर-क्रिया विज्ञान के अनुसन्धान से कुछ क्रियाएं जैसे प्रकाशीय श्वसन को कम करके पौधों की प्रकाश संश्लेषण की क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
  • ऊतक संवर्धन तकनीक से पादप क्रिया में वैज्ञानिकों ने कम समय में ऐसे पौधे तैयार किए हैं जो सामान्य रूप से प्रजनन द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता और इनका उपयोग व्यापक स्तर पर किया जा रहा है।

यह कहना गलत नहीं होगा कि कृषि जगत में हरित क्रांति की सफलता पादप कार्यिकी के ज्ञान व नवीन खोजो के कारण ही संभव हो पाई है।

इन्हें भी देखें