"इब्न-बतूता": अवतरणों में अंतर

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'''भारत प्रवेश''' - भारत के उत्तर पश्चिम द्वार से प्रवेश करके वह सीधा दिल्ली पहुँचा, जहाँ तुगलक सुल्तान मुहम्मद ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया और उसे राजधानी का [[काज़ी]] नियुक्त किया। इस पद पर पूरे सात बरस रहकर, जिसमें उसे सुल्तान को अत्यंत निकट से देखने का अवसर मिला, इब्न बत्तूता ने हर घटना को बड़े ध्यान से देखा सुना। १३४२ में मुहम्मद तुगलक ने उसे चीन के बादशाह के पास अपना राजदूत बनाकर भेजा, परंतु दिल्ली से प्रस्थान करने के थोड़े दिन बाद ही वह बड़ी विपत्ति में पड़ गया और बड़ी कठिनाई से अपनी जान बचाकर अनेक आपत्तियाँ सहता वह कालीकट पहुँचा। ऐसी परिस्थिति में सागर की राह चीन जाना व्यर्थ समझकर वह भूभार्ग से यात्रा करने निकल पड़ा और लंका, बंगाल आदि प्रदेशों में घूमता [[चीन]] जा पहुँचा। किंतु शायद वह मंगोल खान के दरबार तक नहीं गया। इसके बाद उसने पश्चिम एशिया, उत्तर अफ्रीका तथा स्पेन के मुस्लिम स्थानों का भ्रमण किया और अंत में टिंबकट् आदि होता वह १३५४ के आरंभ में मोरक्को की राजधानी "फेज" लौट गया। इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत जिसे रिहृला कहा जाता है, १४वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय मे बहुत ही रोचक जानकारियाँ देता है।
'''भारत प्रवेश''' - भारत के उत्तर पश्चिम द्वार से प्रवेश करके वह सीधा दिल्ली पहुँचा, जहाँ तुगलक सुल्तान मुहम्मद ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया और उसे राजधानी का [[काज़ी]] नियुक्त किया। इस पद पर पूरे सात बरस रहकर, जिसमें उसे सुल्तान को अत्यंत निकट से देखने का अवसर मिला, इब्न बत्तूता ने हर घटना को बड़े ध्यान से देखा सुना। १३४२ में मुहम्मद तुगलक ने उसे चीन के बादशाह के पास अपना राजदूत बनाकर भेजा, परंतु दिल्ली से प्रस्थान करने के थोड़े दिन बाद ही वह बड़ी विपत्ति में पड़ गया और बड़ी कठिनाई से अपनी जान बचाकर अनेक आपत्तियाँ सहता वह कालीकट पहुँचा। ऐसी परिस्थिति में सागर की राह चीन जाना व्यर्थ समझकर वह भूभार्ग से यात्रा करने निकल पड़ा और लंका, बंगाल आदि प्रदेशों में घूमता [[चीन]] जा पहुँचा। किंतु शायद वह मंगोल खान के दरबार तक नहीं गया। इसके बाद उसने पश्चिम एशिया, उत्तर अफ्रीका तथा स्पेन के मुस्लिम स्थानों का भ्रमण किया और अंत में टिंबकट् आदि होता वह १३५४ के आरंभ में मोरक्को की राजधानी "फेज" लौट गया। इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत जिसे रिहृला कहा जाता है, १४वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय मे बहुत ही रोचक जानकारियाँ देता है।

इब्न बतूता ने अफगानिस्तान के ऊंचे पहाड़ों से होते हुए तुर्की के योद्धाओं के नक्शेकदम पर चलते हुए भारत में प्रवेश किया, जिन्होंने एक सदी पहले भारत के हिंदू कृषक लोगों को जीत लिया था और दिल्ली सल्तनत की स्थापना की थी। मुस्लिम सैनिकों की पहली लहर ने कस्बों को लूट लिया और हिंदू उपासकों के देवताओं की छवियों को तोड़ दिया। लेकिन बाद में योद्धा राजाओं ने किसानों को मारने के बजाय कर लगाने के लिए एक प्रणाली स्थापित की। उन्होंने अफगानिस्तान से तुर्क के साथ स्थानीय हिंदू नेताओं को बदल दिया और उपमहाद्वीप के सिरे तक लगभग एक बड़े क्षेत्र को जीत लिया और एकजुट किया। लेकिन दिल्ली में ये मुस्लिम सुल्तान सुरक्षित नहीं थे। उन्हें भारत में हिंदू बहुमत के निरंतर विरोध का सामना करना पड़ा जिन्होंने अपने विजेता के खिलाफ विद्रोह किया, और उन्हें उत्तर से आवधिक मंगोल आक्रमणों की धमकी दी गई। चगताई खान (जिसे इब्न बतूता ने भारत आने पर देखा था) ने भारत पर हमला किया था और 1323 के आसपास नई राजधानी दिल्ली को धमकी दी थी। लेकिन दिल्ली में सामंत सुल्तान मुहम्मद तुगलक की सेनाओं ने सिंधु नदी के पार उनका पीछा किया था।

धीरे-धीरे भारत मुस्लिम नेताओं द्वारा अधिक मजबूती से नियंत्रित हो रहा था। हिंदू भी इस्लाम में परिवर्तित हो रहे थे और नई सरकार में नौकरी पा रहे थे। उन्होंने मुस्लिम बनने के आर्थिक लाभों को मान्यता दी: बहुत कम करों और वर्तमान नेता के तहत उन्नति के अवसर। (ग्रामीण क्षेत्रों में, आबादी लगभग विशेष रूप से हिंदू बनी हुई थी। उन्हें अपने करों का भुगतान करना था, लेकिन उनकी इच्छानुसार पूजा करने की अनुमति थी। और कई मुस्लिम सरकार से नफरत करते थे जो उन पर लगाया गया था।)

भारत पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए, सुल्तान को अधिक न्यायाधीशों, विद्वानों और प्रशासकों की आवश्यकता थी। यहां तक ​​कि उन्हें लेखकों, कवियों और नए नेतृत्व की प्रशंसा करने और मनोरंजन करने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता थी। और उसने इन पदों को भरने के लिए विदेशियों की ओर रुख किया। वह उन हिंदुओं के प्रति अविश्वास रखता था जिनसे वह डरता था कि वह उसके खिलाफ विद्रोह करेगा। इसलिए उन्होंने विदेशियों को भर्ती किया और उन्हें शानदार उपहार और उच्च वेतन के साथ पुरस्कृत किया। फारसियों और तुर्कों और अन्य मुसलमानों ने नए साम्राज्य की तलाश की। फारसी शासक अभिजात वर्ग की भाषा बन गई जिसने राजधानी शहर में लगभग खुद को अलग कर लिया। और यह सुल्तान मुहम्मद तुगलक से था कि इब्न बतूता ने रोजगार हासिल करने की उम्मीद की थी।

मुहम्मद तुग़लक़ मुहम्मद तुगलक का चित्र इतिहास में एक विलक्षण, अनिश्चित, हिंसक शासक के रूप में नीचे जाता है। उन्हें बहुत उज्ज्वल के रूप में वर्णित किया गया था। उन्होंने फारसी कविता लिखना सीखा और सुलेख की कला में महारत हासिल की; वह विद्वानों के साथ कानूनी और धार्मिक मुद्दों पर बहस कर सकता था; उन्होंने कुरान जैसे धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के लिए अरबी सीखी; और उन्होंने विद्वानों और मुसलमानों पर उपहारों की बौछार की, जिन पर उन्होंने भरोसा किया था। लेकिन वह बहुत दूर चला गया और कुछ विनाशकारी निर्णय लिए (जिसके बारे में लड़ाई लड़ने के लिए, जहां अपनी सरकार की राजधानी स्थापित करने के लिए, उस अर्थव्यवस्था के बारे में जो लगभग अपने खजाने को दिवालिया कर दिया, और न्याय कैसे प्रशासित करें)। वह एक क्रूर व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, यहां तक ​​कि मध्य युग के लिए भी! वह न केवल विद्रोहियों और चोरों को क्रूर मौत से दंडित करने के लिए जिम्मेदार था, बल्कि मुस्लिम विद्वानों और पवित्र पुरुषों - कोई भी जो केवल उसकी नीतियों के बारे में उससे पूछताछ करता था या ऐसा हुआ जो किसी का मित्र था। वह किसी भी आलोचना से भयभीत और भयभीत था। "एक सप्ताह भी नहीं बीता," एक पर्यवेक्षक को सूचना दी, "बहुत अधिक मुस्लिम खून बहाने और अपने महल के प्रवेश द्वार से पहले गोर की धाराओं के चलने के बिना।" इसमें आधे लोगों को काटना, उन्हें जीवित करना, सिर काट देना और उन्हें दूसरों को चेतावनी के रूप में ध्रुवों पर प्रदर्शित करना या कैदियों के साथ हाथियों द्वारा उनके तुस्क से जुड़ी तलवारें फेंकना था। जैसा कि इब्न बतूता ने बाद में बताया,





'''वापस मोरक्को में''' - इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान था। अनुमानत: उसने लगभग ७५,००० मील की यात्रा की थी। इतना लंबा भ्रमण उस युग के शायद ही किसी अन्य यात्री ने किया हो। "फेज" लौटकर उसने अपना भ्रमणवृत्तांत सुल्तान को सुनाया। सुल्तान के आदेशानुसार उसके सचिव मुहम्मद इब्न जुज़ैय ने उसे लेखबद्ध किया। इब्न बतूता का बाकी जीवन अपने देश में हो बीता। १३७७ (७७९ हि.) में उसकी मृत्यु हुई। इब्न बत्तूता के भ्रमणवृत्तांत को "तुहफ़तअल नज्ज़ार फ़ी गरायब अल अमसार व अजायब अल अफ़सार" का नाम दिया गया। इसकी एक प्रति पेरिस के राष्ट्रीय पुस्तकालय में सुरक्षित हैं। उसके यात्रावृत्तांत में तत्कालीन भारतीय इतिहास की अत्यंत उपयोगी सामग्री मिलती है।
'''वापस मोरक्को में''' - इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान था। अनुमानत: उसने लगभग ७५,००० मील की यात्रा की थी। इतना लंबा भ्रमण उस युग के शायद ही किसी अन्य यात्री ने किया हो। "फेज" लौटकर उसने अपना भ्रमणवृत्तांत सुल्तान को सुनाया। सुल्तान के आदेशानुसार उसके सचिव मुहम्मद इब्न जुज़ैय ने उसे लेखबद्ध किया। इब्न बतूता का बाकी जीवन अपने देश में हो बीता। १३७७ (७७९ हि.) में उसकी मृत्यु हुई। इब्न बत्तूता के भ्रमणवृत्तांत को "तुहफ़तअल नज्ज़ार फ़ी गरायब अल अमसार व अजायब अल अफ़सार" का नाम दिया गया। इसकी एक प्रति पेरिस के राष्ट्रीय पुस्तकालय में सुरक्षित हैं। उसके यात्रावृत्तांत में तत्कालीन भारतीय इतिहास की अत्यंत उपयोगी सामग्री मिलती है।

07:22, 6 फ़रवरी 2020 का अवतरण

model मध्यकालीन मुसलमान अन्वेषी

इब्न बत्तूता अरब यात्री, विद्धान् तथा लेखक। उत्तर अफ्रीका के मोरक्को प्रदेश के प्रसिद्ध नगर तांजियर में १४ रजब, ७०३ हि. (२४ फ़रवरी १३०४ ई.) को इनका जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम था मुहम्मद बिन अब्दुल्ला इब्न बत्तूता। इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान था। अनुमानत: इन्होंने लगभग ७५,००० मील की यात्रा की थी। इतना लंबा भ्रमण उस युग के शायद ही किसी अन्य यात्री ने किया हो। अपनी यात्रा के दौरान भारत भी आया था।

जीवनी

इनके पूर्वजों का व्यवसाय काजियों का था। इब्न बत्तूता आरंभ से ही बड़ा धर्मानुरागी था। उसे मक्के की यात्रा (हज) तथा प्रसिद्ध मुसलमानों का दर्शन करने की बड़ी अभिलाषा थी। इस आकांक्षा को पूरा करने के उद्देश्य से वह केवल 21 बरस की आयु में यात्रा करने निकल पड़ा। चलते समय उसने यह कभी न सोचा था कि उसे इतनी लंबी देश देशांतरों की यात्रा करने का अवसर मिलेगा। मक्के आदि तीर्थस्थानों की यात्रा करना प्रत्येक मुसलमान का एक आवश्यक कत्र्तव्य है। इसी से सैकड़ों मुसलमान विभिन्न देशों से मक्का आते रहते थे। इन यात्रियों की लंबी यात्राओं को सुलभ बनाने में कई संस्थाएँ उस समय मुस्लिम जगत् में उत्पन्न हो गई थीं जिनके द्वारा इन सबको हर प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त होती थीं और उनका पर्यटन बड़ा रोचक तथा आनंददायक बन जाता था। इन्हों संस्थाओं के कारण दरिद्र से दरिद्र "हाजी" भी दूर-दूर देशों से आकर हज करने में समर्थ होते थे।

इब्न बत्तूता ने इन संस्थाओं की बार-बार प्रशंसा की है। वह उनके प्रति अत्यंत कृतज्ञ है। इनमें सर्वोतम वह संगठन था जिसके द्वारा बड़े से बड़े यात्री दलों की हर प्रकार की सुविधा के लिए हर स्थान पर आगे से ही पूरी-पूरी व्यवस्था कर दी जाती थी एवं मार्ग में उनकी सुरक्षा का भी प्रबंध किया जाता था। प्रत्येक गाँव तथा नगर में ख़ानकाहें (मठ) तथा सराएँ उनके ठहरने, खाने पीने आदि के लिए होती थीं। धार्मिक नेताओं की तो विशेष आवभगत होती थी। हर जगह शेख, काजी आदि उनका विशेष सत्कार करते थे। इस्लाम के भ्रातृत्व से सिद्धांत का यह संस्था एक ज्वलंत उदाहरण थी। इसी के कारण देशदेशांतरों के मुसलमान बेखटके तथा बड़े आराम से लंबी लंबी यात्राएँ कर सकते थे। दूसरी सुविधा मध्यकाल के मुसलमानों का यह प्राप्त थीं कि अफ्रीका और भारतीय समुद्रमार्गो का समूचा व्यापार अरब सौदागरों के हाथों में था। ये सौदागर भी मुसलमान यात्रियों का उतना ही आदर करते थे।

भ्रमणवृत्तांत

Handmade oil painting reproduction of Ibn Battuta in Egypt, a painting by Hippolyte Leon Benett.

इब्न बत्तूता दमिश्क और फिलिस्तीन होता एक कारवाँ के साथ मक्का पहुँचा। यात्रा के दिनों में दो साधुओं से उसकी भेंट हुई थी जिन्होंने उससे पूर्वी देशों की यात्रा के सुख सौंदर्य का वर्णन किया था। इसी समय उसने उन देशों की यात्रा का संकल्प कर लिया। मक्के से इब्न बत्तूता इराक, ईरान, मोसुल आदि स्थानों में घूमकर १३२९ (७२९ हि.) में दुबारा मक्का लौटा और वहाँ तीन बरस ठहरकर अध्ययन तथा भगवनदभक्ति में लगा रहा। बाद में उसने फिर यात्रा आरंभ की और दक्षिण अरब, पूर्वी अफ्रीका तथा फारस के बंदरगाह हुर्मुज से तीसरी बार फिर मक्का गया। वहाँ से वह क्रीमिया, खीवा, बुखारा होता हुआ अफगानिस्तान के मार्ग से भारत आया। भारत पहुँचने पर इब्न बत्तूता बड़ा वैभवशाली एवं संपन्न हो गया था।

भारत प्रवेश - भारत के उत्तर पश्चिम द्वार से प्रवेश करके वह सीधा दिल्ली पहुँचा, जहाँ तुगलक सुल्तान मुहम्मद ने उसका बड़ा आदर सत्कार किया और उसे राजधानी का काज़ी नियुक्त किया। इस पद पर पूरे सात बरस रहकर, जिसमें उसे सुल्तान को अत्यंत निकट से देखने का अवसर मिला, इब्न बत्तूता ने हर घटना को बड़े ध्यान से देखा सुना। १३४२ में मुहम्मद तुगलक ने उसे चीन के बादशाह के पास अपना राजदूत बनाकर भेजा, परंतु दिल्ली से प्रस्थान करने के थोड़े दिन बाद ही वह बड़ी विपत्ति में पड़ गया और बड़ी कठिनाई से अपनी जान बचाकर अनेक आपत्तियाँ सहता वह कालीकट पहुँचा। ऐसी परिस्थिति में सागर की राह चीन जाना व्यर्थ समझकर वह भूभार्ग से यात्रा करने निकल पड़ा और लंका, बंगाल आदि प्रदेशों में घूमता चीन जा पहुँचा। किंतु शायद वह मंगोल खान के दरबार तक नहीं गया। इसके बाद उसने पश्चिम एशिया, उत्तर अफ्रीका तथा स्पेन के मुस्लिम स्थानों का भ्रमण किया और अंत में टिंबकट् आदि होता वह १३५४ के आरंभ में मोरक्को की राजधानी "फेज" लौट गया। इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया उसका यात्रा वृतांत जिसे रिहृला कहा जाता है, १४वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय मे बहुत ही रोचक जानकारियाँ देता है।

इब्न बतूता ने अफगानिस्तान के ऊंचे पहाड़ों से होते हुए तुर्की के योद्धाओं के नक्शेकदम पर चलते हुए भारत में प्रवेश किया, जिन्होंने एक सदी पहले भारत के हिंदू कृषक लोगों को जीत लिया था और दिल्ली सल्तनत की स्थापना की थी। मुस्लिम सैनिकों की पहली लहर ने कस्बों को लूट लिया और हिंदू उपासकों के देवताओं की छवियों को तोड़ दिया। लेकिन बाद में योद्धा राजाओं ने किसानों को मारने के बजाय कर लगाने के लिए एक प्रणाली स्थापित की। उन्होंने अफगानिस्तान से तुर्क के साथ स्थानीय हिंदू नेताओं को बदल दिया और उपमहाद्वीप के सिरे तक लगभग एक बड़े क्षेत्र को जीत लिया और एकजुट किया। लेकिन दिल्ली में ये मुस्लिम सुल्तान सुरक्षित नहीं थे। उन्हें भारत में हिंदू बहुमत के निरंतर विरोध का सामना करना पड़ा जिन्होंने अपने विजेता के खिलाफ विद्रोह किया, और उन्हें उत्तर से आवधिक मंगोल आक्रमणों की धमकी दी गई। चगताई खान (जिसे इब्न बतूता ने भारत आने पर देखा था) ने भारत पर हमला किया था और 1323 के आसपास नई राजधानी दिल्ली को धमकी दी थी। लेकिन दिल्ली में सामंत सुल्तान मुहम्मद तुगलक की सेनाओं ने सिंधु नदी के पार उनका पीछा किया था।

धीरे-धीरे भारत मुस्लिम नेताओं द्वारा अधिक मजबूती से नियंत्रित हो रहा था। हिंदू भी इस्लाम में परिवर्तित हो रहे थे और नई सरकार में नौकरी पा रहे थे। उन्होंने मुस्लिम बनने के आर्थिक लाभों को मान्यता दी: बहुत कम करों और वर्तमान नेता के तहत उन्नति के अवसर। (ग्रामीण क्षेत्रों में, आबादी लगभग विशेष रूप से हिंदू बनी हुई थी। उन्हें अपने करों का भुगतान करना था, लेकिन उनकी इच्छानुसार पूजा करने की अनुमति थी। और कई मुस्लिम सरकार से नफरत करते थे जो उन पर लगाया गया था।)

भारत पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए, सुल्तान को अधिक न्यायाधीशों, विद्वानों और प्रशासकों की आवश्यकता थी। यहां तक ​​कि उन्हें लेखकों, कवियों और नए नेतृत्व की प्रशंसा करने और मनोरंजन करने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता थी। और उसने इन पदों को भरने के लिए विदेशियों की ओर रुख किया। वह उन हिंदुओं के प्रति अविश्वास रखता था जिनसे वह डरता था कि वह उसके खिलाफ विद्रोह करेगा। इसलिए उन्होंने विदेशियों को भर्ती किया और उन्हें शानदार उपहार और उच्च वेतन के साथ पुरस्कृत किया। फारसियों और तुर्कों और अन्य मुसलमानों ने नए साम्राज्य की तलाश की। फारसी शासक अभिजात वर्ग की भाषा बन गई जिसने राजधानी शहर में लगभग खुद को अलग कर लिया। और यह सुल्तान मुहम्मद तुगलक से था कि इब्न बतूता ने रोजगार हासिल करने की उम्मीद की थी।

मुहम्मद तुग़लक़ मुहम्मद तुगलक का चित्र इतिहास में एक विलक्षण, अनिश्चित, हिंसक शासक के रूप में नीचे जाता है। उन्हें बहुत उज्ज्वल के रूप में वर्णित किया गया था। उन्होंने फारसी कविता लिखना सीखा और सुलेख की कला में महारत हासिल की; वह विद्वानों के साथ कानूनी और धार्मिक मुद्दों पर बहस कर सकता था; उन्होंने कुरान जैसे धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने के लिए अरबी सीखी; और उन्होंने विद्वानों और मुसलमानों पर उपहारों की बौछार की, जिन पर उन्होंने भरोसा किया था। लेकिन वह बहुत दूर चला गया और कुछ विनाशकारी निर्णय लिए (जिसके बारे में लड़ाई लड़ने के लिए, जहां अपनी सरकार की राजधानी स्थापित करने के लिए, उस अर्थव्यवस्था के बारे में जो लगभग अपने खजाने को दिवालिया कर दिया, और न्याय कैसे प्रशासित करें)। वह एक क्रूर व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, यहां तक ​​कि मध्य युग के लिए भी! वह न केवल विद्रोहियों और चोरों को क्रूर मौत से दंडित करने के लिए जिम्मेदार था, बल्कि मुस्लिम विद्वानों और पवित्र पुरुषों - कोई भी जो केवल उसकी नीतियों के बारे में उससे पूछताछ करता था या ऐसा हुआ जो किसी का मित्र था। वह किसी भी आलोचना से भयभीत और भयभीत था। "एक सप्ताह भी नहीं बीता," एक पर्यवेक्षक को सूचना दी, "बहुत अधिक मुस्लिम खून बहाने और अपने महल के प्रवेश द्वार से पहले गोर की धाराओं के चलने के बिना।" इसमें आधे लोगों को काटना, उन्हें जीवित करना, सिर काट देना और उन्हें दूसरों को चेतावनी के रूप में ध्रुवों पर प्रदर्शित करना या कैदियों के साथ हाथियों द्वारा उनके तुस्क से जुड़ी तलवारें फेंकना था। जैसा कि इब्न बतूता ने बाद में बताया,



वापस मोरक्को में - इब्न बतूता मुसलमान यात्रियों में सबसे महान था। अनुमानत: उसने लगभग ७५,००० मील की यात्रा की थी। इतना लंबा भ्रमण उस युग के शायद ही किसी अन्य यात्री ने किया हो। "फेज" लौटकर उसने अपना भ्रमणवृत्तांत सुल्तान को सुनाया। सुल्तान के आदेशानुसार उसके सचिव मुहम्मद इब्न जुज़ैय ने उसे लेखबद्ध किया। इब्न बतूता का बाकी जीवन अपने देश में हो बीता। १३७७ (७७९ हि.) में उसकी मृत्यु हुई। इब्न बत्तूता के भ्रमणवृत्तांत को "तुहफ़तअल नज्ज़ार फ़ी गरायब अल अमसार व अजायब अल अफ़सार" का नाम दिया गया। इसकी एक प्रति पेरिस के राष्ट्रीय पुस्तकालय में सुरक्षित हैं। उसके यात्रावृत्तांत में तत्कालीन भारतीय इतिहास की अत्यंत उपयोगी सामग्री मिलती है।

यात्राएं