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ताइवान की राजधानी है [[ताइपे]]। यह देश का वित्तीय केन्द्र भी है और यह नगर देश के उत्तरी भाग में स्थित है।
ताइवान की राजधानी है [[ताइपे]]। यह देश का वित्तीय केन्द्र भी है और यह नगर देश के उत्तरी भाग में स्थित है।


यहाँ के निवासी मूलत: चीन के फ्यूकियन (Fukien) और क्वांगतुंग प्रदेशों से आकर बसे लोगों की संतान हैं। इनमें ताइवानी वे कहे जाते हैं, जो यहाँ [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के पूर्व में बसे हुए हैं। ये ताइवानी लोग दक्षिण चीनी भाषाएँ जिनमें अमाय (Amoy), स्वातोव (Swatow) और हक्का (Hakka) सम्मिलित हैं, बोलते हैं। मंदारिन (Mandarin) राज्यकार्यों की भाषा है। ५० वर्षीय जापानी शासन के प्रभाव में लोगों ने [[जापानी]] भी सीखी है। आदिवासी, [[मलय पोलीनेशियाई समूह]] की बोलियाँ बोलते हैं।
यहाँ के निवासी मूलत: चीन के फ्यूकियन (Fukien) और क्वांगतुंग प्रदेशों से आकर बसे लोगों की संतान हैं। इनमें ताइवानी वे कहे जाते हैं, जो यहाँ [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के पूर्व में बसे हुए हैं। ये ताइवानी लोग दक्षिण चीनी भाषाएँ जिनमें अमाय (Amoy), स्वातोव (Swatow) और हक्का (Hakka) सम्मिलित हैं, बोलते हैं। [[मंदारिन]] (Mandarin) राज्यकार्यों की भाषा है। ५० वर्षीय जापानी शासन के प्रभाव में लोगों ने [[जापानी]] भी सीखी है। आदिवासी, [[मलय पोलीनेशियाई समूह]] की बोलियाँ बोलते हैं।


==इतिहास==
==इतिहास==

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ताइवान द्वीप की स्थिति
ताइवान का मानचित्र

ताइवान या ताईवान (चीनी: 台灣) पूर्व एशिया में स्थित एक द्वीप है। यह द्वीप अपने आसपास के कई द्वीपों को मिलाकर चीनी गणराज्य का अंग है जिसका मुख्यालय ताइवान द्वीप ही है। इस कारण प्रायः 'ताइवान' का अर्थ 'चीनी गणराज्य' से भी लगाया जाता है। यूं तो ऐतिहासिक तथा संस्कृतिक दृष्टि से यह मुख्य भूमि (चीन) का अंग रहा है, पर इसकी स्वायत्ता तथा स्वतंत्रता को लेकर चीन (जिसका, इस लेख में, अभिप्राय चीन का जनवादी गणराज्य से है) तथा चीनी गणराज्य के प्रशासन में विवाद रहा है।

ताइवान की राजधानी है ताइपे। यह देश का वित्तीय केन्द्र भी है और यह नगर देश के उत्तरी भाग में स्थित है।

यहाँ के निवासी मूलत: चीन के फ्यूकियन (Fukien) और क्वांगतुंग प्रदेशों से आकर बसे लोगों की संतान हैं। इनमें ताइवानी वे कहे जाते हैं, जो यहाँ द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व में बसे हुए हैं। ये ताइवानी लोग दक्षिण चीनी भाषाएँ जिनमें अमाय (Amoy), स्वातोव (Swatow) और हक्का (Hakka) सम्मिलित हैं, बोलते हैं। मंदारिन (Mandarin) राज्यकार्यों की भाषा है। ५० वर्षीय जापानी शासन के प्रभाव में लोगों ने जापानी भी सीखी है। आदिवासी, मलय पोलीनेशियाई समूह की बोलियाँ बोलते हैं।

इतिहास

चीन के प्राचीन इतिहास में ताइवान का उल्लेख बहुत कम मिलता है। फिर भी प्राप्त प्रमाणों के अनुसार यह ज्ञात होता है कि तांग राजवंश (Tang Dynasty) (६१८-९०७) के समय में चीनी लोग मुख्य भूमि से निकलकर ताइवान में बसने लगे थे। कुबलई खाँ के शासनकाल (१२६३-९४) में निकट के पेस्काडोर्स (pescadores) द्वीपों पर नागरिक प्रशासन की पद्धति आरंभ हो गई थी। ताइवान उस समय तक अवश्य मंगोलों से अछूता रहा।

जिस समय चीन में सत्ता मिंग वंश (१३६८-१६४४ ई.) के हाथ में थी, कुछ जापानी जलदस्युओं तथा निर्वासित और शरणार्थी चीनियों ने ताइवान के तटीय प्रदेशों पर, वहाँ के आदिवासियों को हटाकर बलात् अधिकार कर लिया। चीनी दक्षिणी पश्चिमी और जापानी उत्तरी इलाकों में बस गए।

१५१७ में ताइवान में पुर्तगाली पहुँचे, और उसका नाम 'इला फारमोसा' (Ilha Formosa) रक्खा। १६२२ में व्यापारिक प्रतिस्पर्धा से प्रेरित होकर डचों (हालैंडवासियों) ने पेस्काडोर्स (Pescadores) पर अधिकार कर लिया। दो वर्ष पश्चात् चीनियों ने डच लोगों से संधि की, जिसके अनुसार डचों ने उन द्वीपों से हटकर अपना व्यापारकेंद्र ताइवान बनाया और ताइवान के दक्षिण पश्चिम भाग में फोर्ट ज़ीलांडिया (Fort Zeelandia) और फोर्ट प्राविडेंशिया (Fort Providentia) दो स्थान निर्मित किए। धीरे धीरे राजनीतिक दावँ पेंचों से उन्होंने संपूर्ण द्वीप पर अपना अधिकार कर लिया।

१७वीं शताब्दी में चीन में मिंग वंश का पतन हुआ, और मांचू लोगों ने चिंग वंश (१६४४-१९१२ ई.) की स्थापना की। सत्ताच्युत मिंग वंशीय चेंग चेंग कुंग (Cheng Cheng Kung) ने १६६१-६२ में डचों को हटाकर ताइवान में अपना राज्य स्थापित किया। १६८२ में मांचुओं ने चेंग चेंग कुंग (Cheng Cheng Kung) के उत्तराधिकारियों से ताइवान भी छीन लया। सन् १८८३ से १८८६ तक ताइवान फ्यूकियन (Fukien) प्रदेश के प्रशासन में था। १८८६ में उसे एक प्रदेश के रूप में मान्यता मिल गई। प्रशासन की ओर भी चीनी सरकार अधिक ध्यान देने लगी।

१८९५ में चीन-जापान युद्ध के बाद ताइवान पर जापानियों का झंडा गड़ गया, किंतु द्वीपवासियों ने अपने को जापानियों द्वारा शासित नहीं माना और ताइवान गणराज्य के लिए संघर्ष करते रहे। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जापान ने वहाँ अपने प्रसार के लिए उद्योगीकरण की योजनाएँ चलानी आरम्भ कीं। इनको युद्ध की विभीषिका ने बहुत कुछ समाप्त कर दिया।

काहिरा (१९४६) और पोट्सडम (१९४५) की घोषणाओं के अनुसार सितंबर १९४५ में ताइवान पर चीन का अधिकार फिर से मान लिया गया। लेकिन चीनी अधिकारियों के दुर्व्यवहारों से द्वीपवासियों में व्यापक क्षोभ उत्पन्न हुआ। विद्रोहों का दमन बड़ी नृशंसता से किया गया। जनलाभ के लिए कुछ प्रशासनिक सुधार अवश्य लागू हुए।

इधर चीन में साम्यवादी आंदोलन सफल हो रहा था। अंततोगत्वा च्यांग काई शेक (तत्कालीन राष्ट्रपति) को अपनी नेशनलिस्ट सेनाओं के साथ भागकर ताइवान जाना पड़ा। इस प्रकार ८ दिसंबर, १९४९ को चीन की नेशनलिस्ट सरकार का स्थानांतरण हुआ।

१९५१ की सैनफ्रांसिस्को संधि के अंतर्गत जापान ने ताइवान से अपने सारे स्वत्वों की समाप्ति की घोषणा कर दी। दूसरे ही वर्ष ताइपी (Taipei) में चीन-जापान-संधि-वार्ता हुई। किंतु किसी संधि में ताइवान पर चीन के नियंत्रण का स्पष्ट संकेत नहीं किया गया।

बाहरी कड़ियाँ