"सहकारिता का इतिहास": अवतरणों में अंतर

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* [http://books.google.co.in/books?id=aLz7uJjLjJ8C&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false Co-Operative Movement In India] (By G.R. Madan)
* [http://books.google.co.in/books?id=aLz7uJjLjJ8C&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false Co-Operative Movement In India] (By G.R. Madan)
* [http://www.bhartiyapaksha.com/?p=4523 सहकारिता : सब एक के लिए, एक सब के लिए] (भारतीय पक्ष)
* [http://www.bhartiyapaksha.com/?p=4523 सहकारिता : सब एक के लिए, एक सब के लिए] (भारतीय पक्ष)
*[https://www.kailasheducation.com/2019/09/sahkarita-ka-arth-visheshta-mahatva.html सहकारिता] के बारें में विस्तार से जानने के लिए यहां पढ़े।
* [http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/101_economy_60yrs/page6.shtml भारत का सहकारिता आंदोलन ]
* [http://www.bbc.co.uk/hindi/specials/101_economy_60yrs/page6.shtml भारत का सहकारिता आंदोलन ]
* [http://humsamvet.org.in/06April09/9.html ग्रामीण विकास मेंयोगदान देती सहकारी समितियां] - स्वाति शर्मा
* [http://humsamvet.org.in/06April09/9.html ग्रामीण विकास मेंयोगदान देती सहकारी समितियां] - स्वाति शर्मा

11:35, 4 सितंबर 2019 का अवतरण

अनेक व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा किसी समान उद्देश्य की प्राप्ति के लिये मिलकर प्रयास करना सहकार (cooperation) कहलाता है। समान उद्देश्य की पूर्ति के लिये अनेक व्यक्तियों या संस्थाओं की सम्मिलित संस्था को सहकारी संस्था कहते हैं।

भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले से चल रहा सहकारिता आंदोलन आज विराट रूप धारण कर चुका है और देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके चलते देशवासी आर्थिक रूप से समृद्ध तो हुए ही हैं, साथ ही बेरोजगारी की समस्या भी बहुत हद तक कम हुई है। एक अनुमान के अनुसार इस समय देशभर में करीब ५ लाख से अधिक सहकारी समितियां सक्रिय हैं, जिनमें करोड़ों लोगों को रोजगार मिल रहा है। ये समितियां समाज जीवन के अनेक क्षेत्रों में काम कर रही हैं, लेकिन कृषि, उर्वरक ओर दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में इनकी भागीदारी सर्वाधिक है। अब तो बैंकिंग के क्षेत्र में भी सहकारी समितियों की संख्या निरन्तर बढ़ रही है। लेकिन देश में सहकारी आंदोलन राजनीतिक उदेश्यो की पूर्ति का साधन बनकर अनेक विसंगतियों के जाल में फंसा दिया गया है।

आर्थिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए संस्थाबद्ध हुए लोग, जो व्यवसाय चलाकर समाज की आर्थिक सेवा तथा संस्था के सभी सदस्यों को आर्थिक लाभ कराते हैं, को सहकारिता या सहकारी समिति कहा गया। इस प्रकार के व्यवसाय में लगने वाली पूंजी संस्था के सभी सदस्यों द्वारा आर्थिक योगदान के रूप में एकत्रित की जाती है। पूंजी में आर्थिक हिस्सा रखने वाला व्यक्ति ही उस सहकारी संस्था का सदस्य होता है। भारत में सहकारिता की यह निश्चिचत व्याख्या सन्‌ १९०४ में अंग्रेजों ने कानून बनाकर की थी। कानून बनने के बाद अनेक पंजीकृत संस्थाएं इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए उतरीं। सहकारिता में समाजहित को देखते हुए सरकार द्वारा भी बहुत तेजी से इसकी वृद्धि के प्रयास हुए। सरकार के प्रयास से सहकारी संस्थाओं की संख्या में तो वृद्धि हुई, लेकिन सहकारिता का जो मूल तत्व था वह धीरे-धीरे समाप्त हो गया। सहकारी संस्थाओं में दलीय राजनीति हावी होने लगी। हर जगह लोभ एवं भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया। समितियों के सदस्य निष्कि्रय होते चले गए और सरकारी हस्तक्षेप बढ़ता गया। सहकारिता की इस पृष्ठभूमि, सहकारिता को स्वायत्तता देने की मांग तथा सहकारिता आंदोलन को और बलवती बनाने के लिए सहकार भारती अस्तित्व में आई।

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