"भगवान": अवतरणों में अंतर

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पहला भाग
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''भगवान''' गुण वाचक शब्द है जिसका अर्थ गुणवान या ऐश्वर्यशाली होता है। यह "भग" धातु से बना है,भग के ६ गुण माने जाते हैं:- १-ऐश्वर्य २-सौम्यता ३-स्मृति ४-यश ५-विवेक ६-श्रद्धा इस परिभाषा के अनुसार जिसके पास ये ६ गुण है, वह भगवान है। परंतु भगवान् मूलतः पालि भाषा का पद था, जिसने सब बंधन भंग कर दिए उसके लिए. संस्कृत में बाद में इसे ईश्वर के अर्थ में यथावत् अपना लिया गया। वेदों में "भग" शब्द का प्रयोग है, परंतु अर्थ भिन्न है। मुंडकोपनिषद् में भगवो शब्द का प्रयोग है, परंतु अर्थ वहाँ भी भिन्न है। श्...
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'''भगवान''' गुण वाचक शब्द है जिसका अर्थ गुणवान होता है। यह "भग" धातु से बना है ,भग के ६ अर्थ है:-
'''भगवान''' गुण वाचक शब्द है जिसका अर्थ गुणवान या ऐश्वर्यशाली होता है। यह "भग" धातु से बना है,भग के ६ गुण माने जाते हैं:-
१-ऐश्वर्य
१-ऐश्वर्य
२-सौम्यता
२-सौम्यता
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५-विवेक
५-विवेक
६-श्रद्धा
६-श्रद्धा
इस परिभाषा के अनुसार जिसके पास ये ६ गुण है, वह भगवान है।
जिसके पास ये ६ गुण है वह भगवान है। पाली भाषा में भगवान "भंज" धातु से बना है जिसका अर्थ हैं:- तोड़ना। पाली भाषा के साहित्य से प्राप्त जानकारी के अनुसार वह व्यक्ति जिसने तृष्णा को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया हो भगवान कहलाता है। यह बौद्धों की एक प्रकार की उपाधि का भी एक रूप कहा जाता है जिसे ब्राह्मण साहित्य में राग,द्वेष ,और मोह के बंधनों को तोड़ चुका हो अथवा भाव में पुनः आने की आशा को भंग कर चुका हो भावनाओ से परे जहाँ सारे विचार शून्य हो जाये और वहीँ से उनकी यात्रा शुरु हो उसे भगवान कहा जाता है।

परंतु भगवान् मूलतः पालि भाषा का पद था, जिसने सब बंधन भंग कर दिए उसके लिए. संस्कृत में बाद में इसे ईश्वर के अर्थ में यथावत् अपना लिया गया। वेदों में "भग" शब्द का प्रयोग है, परंतु अर्थ भिन्न है। मुंडकोपनिषद् में भगवो शब्द का प्रयोग है, परंतु अर्थ वहाँ भी भिन्न है। श्लोक निम्न अनुसार है-
शौनको ह वै महाशालोऽङ्गिरसं विधिवदुपसन्नः पप्रच्छ ।कस्मिन्नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवतीति ॥ ३ ॥

उपनिषदों में कलि संतरण उपनिषद् में भगवान शब्द है, परंतु यह उपनिषद् बहुत बाद का है।
द्वापरान्ते नारदो ब्रह्माणं जगाम कथं भगवन् गां पर्यटन् कलिं सन्तरेयमिति.

भगवान् के लिए ईश्वर शब्द भी बहुत बाद में प्रचलित हुआ था। यद्यपि ईशावास्योपनिषद् में इस शब्द के पूर्व भाग का प्रयोग है।

पाली भाषा में भगवान "भंज" धातु से बना है जिसका अर्थ हैं:- तोड़ना। पाली भाषा के साहित्य से प्राप्त जानकारी के अनुसार वह व्यक्ति जिसने तृष्णा को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया हो भगवान कहलाता है। यह बौद्धों की एक प्रकार की उपाधि का भी एक रूप कहा जाता है जिसे ब्राह्मण साहित्य में राग,द्वेष ,और मोह के बंधनों को तोड़ चुका हो अथवा भाव में पुनः आने की आशा को भंग कर चुका हो भावनाओ से परे जहाँ सारे विचार शून्य हो जाये और वहीँ से उनकी यात्रा शुरु हो उसे भगवान कहा जाता है। जैन धर्म ने भी इसी अर्थ में अर्हत् के लिए इसका प्रयोग किया.


== संज्ञा ==
== संज्ञा ==

18:57, 23 अगस्त 2019 का अवतरण

भगवान गुण वाचक शब्द है जिसका अर्थ गुणवान या ऐश्वर्यशाली होता है। यह "भग" धातु से बना है,भग के ६ गुण माने जाते हैं:- १-ऐश्वर्य २-सौम्यता ३-स्मृति ४-यश ५-विवेक ६-श्रद्धा इस परिभाषा के अनुसार जिसके पास ये ६ गुण है, वह भगवान है।

परंतु भगवान् मूलतः पालि भाषा का पद था, जिसने सब बंधन भंग कर दिए उसके लिए. संस्कृत में बाद में इसे ईश्वर के अर्थ में यथावत् अपना लिया गया। वेदों में "भग" शब्द का प्रयोग है, परंतु अर्थ भिन्न है। मुंडकोपनिषद् में भगवो शब्द का प्रयोग है, परंतु अर्थ वहाँ भी भिन्न है। श्लोक निम्न अनुसार है- शौनको ह वै महाशालोऽङ्गिरसं विधिवदुपसन्नः पप्रच्छ ।कस्मिन्नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवतीति ॥ ३ ॥

उपनिषदों में कलि संतरण उपनिषद् में भगवान शब्द है, परंतु यह उपनिषद् बहुत बाद का है। द्वापरान्ते नारदो ब्रह्माणं जगाम कथं भगवन् गां पर्यटन् कलिं सन्तरेयमिति.

भगवान् के लिए ईश्वर शब्द भी बहुत बाद में प्रचलित हुआ था। यद्यपि ईशावास्योपनिषद् में इस शब्द के पूर्व भाग का प्रयोग है।

पाली भाषा में भगवान "भंज" धातु से बना है जिसका अर्थ हैं:- तोड़ना। पाली भाषा के साहित्य से प्राप्त जानकारी के अनुसार वह व्यक्ति जिसने तृष्णा को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया हो भगवान कहलाता है। यह बौद्धों की एक प्रकार की उपाधि का भी एक रूप कहा जाता है जिसे ब्राह्मण साहित्य में राग,द्वेष ,और मोह के बंधनों को तोड़ चुका हो अथवा भाव में पुनः आने की आशा को भंग कर चुका हो भावनाओ से परे जहाँ सारे विचार शून्य हो जाये और वहीँ से उनकी यात्रा शुरु हो उसे भगवान कहा जाता है। जैन धर्म ने भी इसी अर्थ में अर्हत् के लिए इसका प्रयोग किया.

संज्ञा

संज्ञा के रूप में भगवान् हिन्दी में लगभग हमेशा ईश्वर / परमेश्वर का मतलब रखता है। इस रूप में ये देवताओं के लिये नहीं प्रयुक्त होता।

आदरणीय महापुरुषों जैसे गौतम बुद्ध, विशेषता सप्त बौद्ध महावीर, धर्मगुरुओं, [], इत्यादि के लिये उपाधि है।

इन्हें भी देखें